उत्तराखंड राज्य गठन के बाद , राज्य और और देश के बड़े शहरों मे उत्तराखंड के कई संगठन बने , जिनका हमेशा ही दावा रहा है की उन्होंने राज्य के विकास , और संस्कृति के प्रचार प्रसार मे बहुत योगदान रहा है !
ये संगठन दिल्ली और राज्य के कई बड़े शहरों मे कोई न कोई सांस्कृतिककार्यक्रम या कोई ngo की तर्ज पर कुछ ना कुछ कैंप जरूर आयोजित करते रहेहै ! तहलका के गौरव सोलंकी ने एक ऐसे ही आयोजन का बहुत सार्थक मूल्यांकन किया है !
असल मे ऐसे तमाम कार्यक्रम जिसमे संस्कृति और उसके सरोकारोंकी समझ बहुत ही सतही होती है ! इन सभी कार्यक्रमों मे हर बार वही पुराने गाने गए जाते है और सब वही पुराना रंग ढंग रहता है , गीत संगीत बहुत कमजोरहोता है ! कहीं भी कोई नयापन इन कार्यक्रमों मे नहीं झलकता है ! और जिनका उद्देश्य नेताओं , मंत्रियों , ठेकेदारों को मंच प्रदान करना और उनके साथ फोटो खिचवा कर वाहवाही लूटना भर होता है !
कोईसंगठन अगर थोडा एलीट किस्म के हुए तो उनके आयोजनों मे चमक दमक रहती है ,पर उनमे संस्कृति के प्रति प्रेम कम दिखावा ज्यादा रहता है ! और आजकल सभी groups मे एक परंपरा बन गयी है एक दुसरे की पीठ थपथपाने की , भले ही उनकार्यक्रमों का स्तर कुछ भी हो! और इन कार्यक्रमों से ओब्जेक्टिविटीबिलकुल ही गायब रहती है ! और इसीलिये हमारे आयोजनों का अगर कभी भीराष्ट्रीय मीडिया द्वारा मूल्यांकन होगा तो इसी तरह से होगा भले ही हम एकदुसरे की पीठ कितनी ही थपथपा लें | और अगर हम चाहते है की हमारेकार्यक्रमों मे एक ओब्जेक्टिविटी रहे तो हमें संस्कृति के प्रति अपनीबुनियादी समझ को बदलना होगा, हमें समझना होगा की ऐसे सांस्कृतिक आयोजनोंका उद्देश्य समाज के भीतर एक बौद्धिक, भावात्मक , और सामाजिक चेतना कोजगाना हो ! और ये कार्यक्रम किसी सर्कस की तरह ना होकर, कला की सुन्दर अभिव्यक्ति बने !
तहलका मे छपा लेख