महर जी मैं अपने आप को बहुत रोक रहा था कि मैं अब इस बहस में हिस्सा न लूं , लेकिन आपके शब्दों को पढ़कर मुझे मजबूरन दुबारा इस टोपिक पर लिखना पढ़ रहा है. आप अभी भी सारा दोष हमारे ही ऊपर दे रहे हो, अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हो. आप कह रहे है कि हम लोगों ने इस टोपिक की सारगर्भिता को चोट पहुचाई है पर मुझे तो कही भी इस टोपिक में सारगर्भिता नजर नहीं आ रही है. पहले तो मैं ब्याक्तिगत टिपण्णी करने से बच रहा था लेकिन मैं अब खुलकर ब्याकिगत टिपण्णी करना चाहूँगा. जहा तक बात प्रोग्राम की समीक्षा का है, हमें दुःख इस बात का नहीं है कि तहलका ने प्रोग्राम के बारे में क्या छापा है, हमें तो दुःख इस बात का है कि हमारे ही बीच के लोगों ने हमारे ही दिल पर तीर छोड़ा है. जहा तक आप लोग कह रहे है कि ये टोपिक किसी विशेष संगठन को केन्द्रित बनाकर नहीं शुरू किया गया लेकिन टोपिक की पहली ही पोस्ट मैं "गोरव सोलंकी ने एक ऐसे ही आयोजन का बहुत सार्थक मूल्यांकन किया है " से पता चल जाता है और स्पष्ट रूप से कन्फर्म तब हो जाता है जब आप इस बहस में तहलका की रिपोर्ट को फोरम पर अपलोड कर देते है. क्या इससे से टोपिक की सारगर्भिता को चोट नहीं पहुचती है? क्या इसमें कोइ निष्पक्षता नजर आती है?
सबसे पहले तो शैलेश जी ने जो बहस शुरू की है वो केवल एक सुनी सुनाई बात पर की है. शैलेश जी ने केवल एक रिपोर्ट को आधार बनाकर अपने विचार ब्यक्त किये है जबकि वे खुद उस प्रोग्राम का हिस्सा नहीं थे. अगर प्रोग्राम की समीक्षा मोहन बिष्ट जी करते, दयाल पांडे जी करते या अन्य कोइ भी सदस्य जिसने प्रोग्राम देखा वो करता तो शायद वो तर्कपूर्ण लगता. ये कैसा आत्म मूल्यांकन है जिसमे मोहन जी के गाने पर आप लोग उनको बधाई देते है, वाह वाही करते है और उसी प्रोग्राम में किसी दूसरे कलाकार की परफोर्मेंस को आप लोग नजर अंदाज करते है. और उसी कार्यकर्म की निंदा करते है.
दयाल पांडे जी मेरा पहाड़ फोरम के एक वरिष्ट सदस्य है और खुद में एक बहुत अच्छे कलाकार है, ऐसा मैंने सुना है, इसी टोपिक पर कहते है कि मैं भी इतेफाक से उस कार्यक्रम में मोजूद था. मैं दयाल जी से पूछना चाहूँगा कि बड़े भाई जी ये कैसा इतेफाक था कि आप अचानक प्रोग्राम में सम्मलित हो गए. आपके द्वारा प्रोयोग किये गए ऐसे शब्दों की तो हमें बिलकुल भी अपेक्षा नहीं थी.
इसी टोपिक पर कोइ महाशय कहते है कि मुझे तो उस प्रोग्राम को देखकर ऐसा लग रहा था कि वहा पर संस्कृति का विकास नहीं संस्कृति का विनाश हो रहा है., तो क्या प्रोग्राम को आयोजित करने का हमारा मकसद संस्कृति को विनाश करने का था. क्या आप लोगों की ऐसी भावनाएं भी हो सकती है, विश्वास नहीं हो रहा है. भावना शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूँ कि किसी भी सदस्य ने इस बात पर अपना विरोध नहीं जताया.
इसी फोरम पर कोइ महाशय कहता है कि आज हमको अपनी ख्याति, फोटो खिचवाने की एक भूख हो गयी है, अपरोक्ष रूप से ये कमेन्ट जिस पर भी किया गया हो वो सब हम जानते है. चलो एक बार मैं आपकी बात मान भी लूं कि हमारा उधेश्य केवल फोटो खिचवाने और ब्याक्तिगत ख्याति प्राप्त करने का था, लेकिन जब मेरा पहाड़ वालों ने अपनी नयी वेबसाइट हिसालू को लौंच किया था तो उस समय वो किस नेता के पास गए थे वेबसाइट को लौंच करने के लिए. किसके साथ उन्होंने फोटो खिचवाई, सारी जानकारी इसी फोरम पर है. क्यों आप लोगों ने अपने ही क्षेत्र के किसी वरिष्ठ या सम्मानीय ग्रामीण ब्यक्ति को इस आयोजन के काबिल नहीं समझा. क्यों आप लोगों को एक नेता की जरूरत पढ़ी? फोटो खिचवाने और ब्याक्तिगत ख्याति प्राप्त करने की भूख किसको है? जैसे मैंने पहले ही कहा था कि मैं पहले ब्याकिगत टिप्पणी करने से बच रहा था लेकिन मैं अब जरूर करना चाहूँगा, इसीलिए जरूर आप लोगों को बुरा लग रहा होगा, लेकिन में भी ये सब लिखने के लिए मजबूर हूँ.
मोहन बिष्ट जी एक वरिष्ठ सदस्य और एक ठेट पहाड़ी कहे जाने वाले ब्यक्ति जो कि खुद उस कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा थे, ने शैलेश जी की पोस्ट पर अपने कुछ भी विचार ब्यक्त नहीं किये और न ही प्रोग्राम के बारे में. बल्कि उन्होंने तो इतना जरूर समझा कि तहलका की रिपोर्ट को अपने ऑरकुट प्रोफाइल में लगाया जाय ताकि दुनिया वाले जाने के प्रोग्राम कैसा था, चाहे उस रिपोर्ट में लिखा कुछ भी गया हो. ये सब देख कर तो ब्याक्तिगत रूप से ही मैं बहुत आहात हुआ तो अन्य सदस्य क्यों नहीं होते?
जहा तक बात आत्म मूल्यांकन की है तो इससे पहले न जाने हजारों उत्तराखंडी सांस्कृतिक प्रोग्राम हो चुके होंगे और शायद मेरा पहाड़ ग्रुप ने भी ऐसे कई प्रोग्राम आयोजित किये हैं, लेकिन इससे पहले किसी को आत्म मूल्यांकन की चेतना नहीं आई, क्या वो सब प्रोग्राम अप टू मार्क थे? क्या उनमे कुछ कमिय नही थी? क्या जो प्रोग्राम मेरा पहाड़ ग्रुप ने आयोजित किये थे उनमे कोइ कमियां नहीं थी? क्या इस प्रोग्राम को देखने के बाद ही आत्म मूल्यांकन की चेतना आप लोगों के चित में जागी?
महर की एक सम्मानीय अरु विद्वान सदस्यन बार बार कह रहे है कि हमने यहाँ पर महाभारत की लडाई शुरू कर दी. हाँ मैं जरूर कहूँगा कि हम इस महाभारत के युद्ध में कूदे हैं लेकिन मैं महर जी से पूछना चाहता हूँ कि जो ये लडाई छिड़ी है इसकी आगा किसने लगायी है, आग लगाने वाले कोन हैं? महर जी आप बार बार ये ऐसा क्यों कह रहे है कि हम लोग समझाने की कोशिश नहीं कर रहे है या हम लोगों ने बहस का रुख मोड़ दिया है. क्या आप लोग हमें मूर्ख समझ रहे हो ? हाँ ये जरूर हो सकता है कि आप लोगों जैसे विद्वान और समझ वाले न हो लेकिन अ आ और क ख ग हमने भी पढ़े है. हिंदी थोडा बहुत समझ आ जाती है, थोडा बहुत शब्दों के अर्थ भी समझ लेते है. अगर ये टोपिक किसी ब्याकिगत संगठन को केन्द्रित बनाकर नहीं शुरू किया गया तो मैं महर जी आप से एक बार फिर निवेदन करूँगा कि शैलेश जी की पोस्ट का अवलोकन एक बार फिर करें और हमें एक एक शब्द का अर्थ समझाएं क्योंकि हो सकता है कि हमें शब्दों का ज्ञान न हो और हमने कुछ और समझ लिया हो. इसीलिए आपसे करवध विनती है कि आप शैलेश जी कि पोस्ट की ब्याख्या जरूर करें.
जो बात मुझे नहीं नहीं कहनी चाहिए थी लेकिन मैं आज जरूर कहना चाहूँगा कि हम लोग हमेशा जोड़ने की बात करते है लेकिन आज इस बहस को देख कर लग रहा है कि हम जुड़ने नहीं बल्कि टूटने की ओर अग्रसर हो रहे है. कही न कही हमारे दिल में कुछ न कुछ भेद जरूर है. आज जब वो समय आया है कि हम सब लोग बड़े गर्व से कहते है कि हम पहाड़ी है, मुझे तो फिर ऐसा अनुभव हो रहा है कि ये सब बहुत जल्दी फिर उसी मानसकिता की ओर गतिशील है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो समय दूर नहीं कि जब मैं कहूँगा कि मैं काण्डपाल हूँ मैं अपना एक ग्रुप अलग बना रहा हूँ, कोइ कहेगा कि मैं रावत हूँ मैं अपना एक अलग ग्रुप बना रहा हूँ , इसी तरह कोइ कहेगा कि मैं नेगी हूँ , मैं पंवार हूँ, मैं मेहता हूँ, मैं ये हूँ और मैं वो हूँ....और ऐसे ही असंख्य ग्रुप बनते जायेंगे. एक उत्तराखंड का पूरब, पश्चिम, उत्तर दक्षिण बहुत सारे खंड बन जायेंगे. दिन दूर नहीं है.
आप लोग मेरी इस पोस्ट को भी पढने के बाद डिलीट कर देना, क्योंकि इसमें भी कुछ सारगर्भिता आप लोगों को नजर ना आये. सारगर्भिता तो केवल शैलेश जी और मेरा पहाड़ के अन्य सदस्यों की ही पोस्ट में देखने को मिल सकती है .
मैं इतना आहित हुआ हूँ कि मेरे दिल में कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन अभी समय की कमी हैं, मेरा ये सब लिखने का मकसद किसी ब्यक्ति विशेष को आहात पहुचाने के नहीं है बल्कि केवल महर जी के शब्दों को उत्तर देना है जो बार बार सारा दोष हमारे ऊपर लगा रहे है. महर जी और अन्य सदस्यों से क्षमा चाहूँगा अगर किसी को मेरे शब्दों से कुछ दुःख पंहुचा हो.
धन्याबाद
सुभाष काण्डपाल