Daju Chaaru da program ki kuch update banayi hai wahi paste kar deta hu yaha par:-)
सुमित्रानन्दन पंत की जयन्ती पर कवि गोष्ठी
युवा कवियों की रचनाओं में झलका पलायन का दर्द
साहिबाबाद। क्वीड साहित्यिक संस्था के तत्वावधान में आयोजित कवि सम्मेलन में प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पंत को याद किया गया। उनकी जयन्ती पर आयोजित इस कार्यक्रम में हिन्दी साहित्य में उनके योगदान पर चर्चा की गयी। वक्ताओं ने कहा कि पंत केवल छायावादी कवि ही नहीं थे बल्कि उनकी कविताओं में जनकल्याण की सोच भी परिलक्षित होती है। युवा कवियों ने उनकी कविताओं के माध्यम से प्रकृति और मनुष्य के अन्तर्संबंधों को समझने की कोशिश की। इस मौके पर चन्द्रकुंवर बर्थवाल की कविताओं का पाठ भी किया गया।
उल्लेखनीय है कि क्वीड़ उत्तराखंड की साहित्यिक और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़ी युवाओं की संस्था है। छायावाद के शिखर कवियों में से एक सुमित्रानंदन पंत के जन्मदिन पर संस्था ने एक युवा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। इसमें युवा कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम की शुरुआत जनसरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने दीप प्रज्जवलित कर की। कवि गोष्ठी का प्रारंभ दीपा जोशी की सरस्वती बंदना से हुआ। कुमांऊ विश्वविद्यालय परिसर अल्मोड़ा में हिन्दी विभाग के उपाचार्य डा. शेर सिंह बिष्ट ने दूरभाष से सुमित्रानन्दन पंत के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पंतजी को सिर्फ छायावाद का कवि कहना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि पंत की कविताओं में मानव कल्याण और मानवीय मूल्यों की एक ऐसी धारा बहती है जिसमें समाज के हर तबके की भावनाएं और आकांक्षायें समाहित हैं। डा. बिष्ट ने इस मौके पर पंतजी की एकमात्र कुमांऊनी कविता बुरांश का पाठ भी किया। युवा कवियत्री मीना पांडे ने सुमित्रानन्दन पंत की रचनाओं पर आधारित कविता के माध्यम से उनके योगदान को बताते हुये नये लोगों को उनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया। युवा कवि नीरज बवाड़ी ने अपनी कविता ठीठे की बाकरी कंटर का बैंड बजाना/भौतिकता के युग में क्यों भूले पुराना जमाना से पलायन और परंपरागत मूल्यों में आयी गिरावट केा बहुत प्रभावी तरीके से रखा। डा. मनोज उप्रेती की कविता में सामाजिक मूल्यों में गिरावट और संवेदनहीन होती मानवीय प्रवृत्ति पर चिंता झलकती है। उनकी कविता, नान छिना ईज म्येरी-म्येरी/ ठुल है बेर ईज त्येरि-त्येरि, को श्रोताओं ने खूब सराहा। गीतकार दयाल पांडे ने अपने गीत के माध्यम से उत्तराखंड के विभिन्न आयामों को छुआ- भारत कि नानि चेली, सिराणां म भेटि छू/भली बाना-भली वाणी, देखणि कि भली छू।
उत्तराखंड रंगमंच के लिये काम कर रहे हेमन्त जोशी ने कहा कि सुमित्रानन्दन पंत को याद करते हुये उत्तराखंड के सवालों पर विचार करने की यह पहल अच्छी है। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से नई पीढ़ी में साहित्य के प्रति चेतना का संचार होगा। कवि सम्मेलन में मोहन सिंह बिष्ट, संदीप चतुर्वेदी, महीपाल सिंह मेहता, पवन कांडपाल ने अपनी कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने कहा कि नवोदित कवियों ने अपनी रचनाओं में जिस तरह पहाड़़ के दर्द को समेटा है उसमें पलायन की पीड़ा साफ झलकती है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के आत्मसात होकर ही चिदम्बरा जैसी रचनायें होती हैं। कोसी नहीं बचेगी तो कोसी का घटवार जैसी कहानियां नहीं होगी इसलिये लोक को बचाना बहुत जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन करते हुये मुकुल पांडे ने युवा कवियों की रचनाओं की सराहना करते हुये कहा कि जनसरोकारों से लबरेज इन कविताओ के अपने निहितार्थ हैं। कार्यक्रम के संयोजक कैलाश पांडे ने सबका आभार व्यक्त किया।
पन्त जी की १०९ वीं जयंती पर आयोजित "काव्य गोष्ठी"
ज्ञानपीठ पुरूस्कार से सम्मानीत प्रसीद्ध छायावादी कवि पंडित सुमित्रा नंदन पन्त जी की १०९ वीं जयंती के उपलक्ष्य मे "क्वीड़" द्वारा आयोजीत "काव्य गोष्ठी" मे सभी साहित्य प्रेमी और कवि मित्रो का स्वागत है.
कार्यक्रम का कोई अपडेट मिल सकता है तो उपलब्ध करायें।