मेरे कुछ अनुत्तरित प्रश्न
१-राज्य आन्दोलन के शहीदों और आन्दोलनकारियों को श्रद्धांजलि देने वाले एलबम बहुत कम कलाकारों ने निकाले हैं, मेरा आप जैसे सफल और लोक संस्कृति को जानने वाले गायक से करबद्ध अनुरोध है कि एक एलबम आप जरुर निकालें और इसके लिये संस्कृति विभाग भी आपकी वित्तीय मदद कर सकता है। मुझसे और मेरा पहाड़ परिवार से इस पुनीत कार्य के लिये जो भी सहयोग हो सकेगा, हम करेंगे।
२-राणा जी,
पुराने लोक गीत, जो हमारी दादियां-नानियां गाया करती थीं, उन गीतों का संवर्द्धन भी आवश्यक है, उन गीतों की मिठास घर के बने गुड़ की जैसी होती थी। क्या उन गीतों का संकलन कर नई पीढी को परिचित कराने का आपका कोई विचार है?
३-राणा जी,
आजकल पहाड़ खाली हो गये हैं, गांव में अब अपनी पैतृक सम्पत्ति के मोह में डूबे बूढे-बाढी ही रह गये हैं, उनके बच्चे भी अब उनकी सुध लेने नहीं आते। बूढी आंखे जो अपने लडके और नाती-पोतों की राह देखते-देखते एक दिन पथरा जाती हैं, इस पीड़ा को लेकर और ऎसे (नालायक) लड़कों, जो अपने मां-बाप की सुध भी नहीं लेते, उनके हृदय को झकझोर कर वापस पहाड़ आने के लिये मजबूर कर देने वाले गीत का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
४-लोक गीत, जनजागरण के सशक्त माध्यम होते हैं और गैरसैंण के लिये व्यापक जनजागरण की आवश्यकता है। मेरी उत्तराखण्डी लोक संगीत के कलाकारों से हमेशा अपेक्षा रही है कि वह व्यवसायिक गीतों को गाने की बजाय सामाजिक सरोकारों वाले गीतों को प्राथमिकता दें। ऎसे गीत गाकर आप लोगों को आत्म संतुष्टि भी मिलेगी कि हमने अपने राज्य के लिये यह किया।
५-राणा जी,
उत्तराखण्डी वाद्य यंत्र विलुप्ति की कगार पर हैं, आप जैसे लोक कलाकारों को उसके संरक्षण के लिये कुछ करना चाहिये, क्योंकि इनका संरक्षण आप लोग अपने गीतों में प्रयोग करके कर सकते हैं। मेरा अनुरोध है कि हुड़का, डौंर, मुरुली, भोंकर, तुतुरी, नारसिंग, मशकबीन आदि वाद्य यंत्रों के साथ आप अपने गीतों का फिल्मांकन करें।
यदि ये वाद्य यंत्र विलुप्त हो गये तो शादी-ब्याह में तो हम बैंड-बाजे से काम चला लेंगे, लेकिन फिर जागर कैसे लगायेंगे?.........जागर गायेगा कौन? क्योंकि उसे तो औजी/जगरिया ही गा सकता है।
६-राणा जी,
टिहरी विस्थापितों का सबसे बड़ा दर्द यह है कि वो अपने आने वाली पीढी़ को अपना पैतृक स्थान नहीण दिखा पायेंगे। आज कोई भी देश-विदेश में रहता है और कभी गांव आता है तो अपने बच्चों से कहता है कि ये हमारा घर है या घर टूटा-फूटा भी हो तो कह सकता है कि यह हमारा घर था। जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ भी दिल्ली आये तो अपने पूर्वजों के मकान को देखने गये, लेकिन टिहरी का आदमी कहां जायेगा और क्या अपने बच्चों को दिखायेगा।
मेरा अनुरोध है कि इस थीम पर आप गीत लिखकर गांये, क्योंकि यह वास्तविक पीड़ा है।
७-उत्तराखण्ड के लोक संगीत के स्तर से क्या आप संतुष्ट हैं?