By Dinesh Dhyani
जीत सिंह नेगी जी सिर्फ एक व्यक्ति नही एक युग का नाम है।
गढ़वाली के लोक गायक/नाटककारः जीत सिंह नेगी
दिनेश ध्यानी
जीवन वृत्त
पर्वतीय संस्कृति एवं भाषा के अनन्य उपासक श्री जीतसिंह नेगी पर्वतीय संस्कृति भाषा, लोकगीतों, लोक-गाथाओं, लोक-नृत्य, लोक-संगीत, स्वस्थ-परम्पराओं के पुर्नजीवन एवं उत्थान के लिए निरन्तर समर्पित भाव से जुटे हुए हैं स्वरचित गीतों, नृत्य-नाटिकाओं एवं गीत-नाटकों के मंचन के माध्यम से उन्होंने पर्वतीय जन-जीवन को बड़ें ही मार्मिक, सजीव एवं प्रभावी ढंग से चित्रित किया है।
विगत 56 वर्षों से गढ़वाली-गीतों की धुनों में स्वरचित सैकड़ों गीतों को अपनी मधुर व प्रेरक वाणी में गाकर यहां के जन-मानस को आल्हादित करते हुए अपनी संस्कृति की ओर आकर्षित करते आ रहे हैं। गढ़वाल के सांस्कृतिक कार्य-कलापों में उनके नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा गढ़वाली गीतों की धुनों को बनाने एवं सजाने-संवारने में उनकी विशिष्टता को, लोक-साहित्य समिति, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सचिव श्री विद्यानिवास मिश्र तथा आकाशवाणी दिल्ली के चीफ प्रोड्यूसर ;म्यूजिकद्ध ठाकुर जयदेव सिंसह ने गढ़वाली-गीतों को बनाने तथा गीत-रिकार्डिगं के लिए उन्हें आमत्रित कर मान्यता दी है। श्री नेगी के गीतों की व्यापकता और लोकप्रियता को भारतीय जनगणना सर्वेंक्षण विभाग ने भी प्रमाणित किया है। भारत सरकार के जनगणना विभाग 1961 वौल्यूम ग्ट उत्तर प्रदेश भाग टप् के ग्राम्य सर्वेंक्षण, ग्राम, थापली तहसील पौड़ी, जनपद गढ़वाल के पृष्ठ 48 पर सामयिक सर्वप्रिय लोक-गीतों में श्री नेगी के गीत जिसका विशेष उल्लेख किया गया है।:-
तू होली बीरा उंची निसी ड़ाड्यों मां घसियारी का भेष मा
खुद मां तेरी रूणूं छौउ यखुली मी परदेश मां।
प्रायः सभी महत्वपूर्ण आयोजनों के अवसर पर, यथा चीनी प्रतिनिधि-मण्डल के स्वागत में तथा तत्कालीन गृहमंत्री, भारत सरकार, स्वर्गीय पं. गोबिन्द वल्लभ पंत आदि के समक्ष श्री नेगी ही गढ़वाल की सांस्कृतिक टोलियांें का नेतृत्व करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं। साथ ही गढ़वाल के सांस्कृतिक पक्ष को उजागर करने में वे नेतृत्व प्रदान करते आ रहे हैं। उनके अनेक अनुयायी हैं जो उनके प्ररक मार्गदर्शन में पर्वतीय जनजीवन को चित्रित करने वाले गीत एवं नाटक लिख रहे हैं और आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के अच्छे कलाकारों में स्थान पा रहे हैं।
1. नाम जीतसिंह नेगी
2. जन्मतिथि 2 फरवरी, 1927
ग्राम अयाल, पट्टी- पैडुलस्यूं, पौड़ी गढ़वाल
3. वर्तमान पता 108/12, धर्मपुर, देहरादून, उत्तराखण्ड
4. शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षा-वर्मा में माध्यमिक शिक्षा
ड़ी.ए.वी हाई स्कूल पौड़ी गढ़वाल में तथा
डी.ए.वी. काॅलेज, देहरादून में
5. रचनाएं ;गढ़वाली मेंद्ध -
क. प्रकाशित
गीत गंगा गीत-संग्रह
जौंळ-मंगरी ;गीत-संग्रह
छम घंुघरू बाजला गीत-संग्रह
मलेथा की कूल ऐतिहासिक-नाटक
भारी भूल ऐतिहासिक-नाटक
ख अप्रकाशित
जीतू-बगड्वाल ऐतिहासिक-नाटक
पप राजू पोस्टमैन एकांकी
रामी गीत-नाटिका
अप्रकाशित
पतिव्रता नारी हिन्दी-नाटक
राजू पोस्टमैन एकांकी हिन्दी रूपान्तर
6. मंचन किए गए नाटकः-
भारी भूलः सन् 1952 में गढ़वाल भाृत-मण्डल बुम्बई के तत्वाधान में प्रथम बार इस गढ़वाली नाटक का सफल मंचन हुआ। मुम्बई के प्रवासी गढ़वालियों का यह सर्वप्रथम बड़ा नाटक था। तत्पश्चात 1954-55 में हिमालय कला संगम, दिल्ली के मंच से उक्त नाटक का सफल निर्देशन व मंचन किया गया। इसके अतिरिक्त विभिन्न नगरों मं जनता की भारी माॅंग पर अनेक बार इस नाटक का मंचन किया गया।
मलेथा की कूलः ऐतिहासिक पुरूष टिहरी नरेश के सेनाध्यक्ष तिब्बत विजेता, शूरमा व श्रमदानी माधोसिंह भण्डारी द्वारा मलेथा गांव की कूल के निर्माण की रोमांचक घटना पर आधारित स्वरचित मलेथा की कूल ऐतिहासिक नाटक का प्रथम बर 1970 देहरादून में निर्देशन व मंचन किया गया। 1983 में पर्वतीय कला मंच के तत्वाधान में इस नाटक के देहरादून में पांच मंचित किया गया। इस प्रकार चण्डीगढ़, दिल्ली,टिहरी गढ़वाल, मसूरी एवं मुम्बई आदि मिलाकर इस नाटक को 18 बार प्रदर्शित किया गया।
पपप जीतू बगड़वालः गढ़वाल की लोक-गाथा के प्रसिद्ध नायक बांसुरी- वादक जीतू बगड़वाल पर मधुर लोक-धुनों में गीत-नृत्य-नाटक, जीतू बगड्वाल का प्रदर्शन व मंचन पर्वतीय कला मंच के तत्वाधान में सन् 1984 में देहरादून में किया गया। सन् 1986 में देहरादून में ही इस नाटक के आठ प्रदर्शन हुए। 1987 में पुनः चण्डीगढ़ में इस नाटक के चार प्रदर्शन किए गए।
पअ पतिव्रता रामीः 1956 में पर्वतीय सेवा समाज, दिल्ली के मंच से दो बार हिन्दी में इस सामाजिक नाटक का मंचन व निर्देशन किया गया।
अ रामीः 1961 में टैगोर शताब्दी के अवसर पर इस गढ़वाली गीत-नाटिका का नरेन्द्र नगर में सफल मंचन हुआ। इस नाटिका के अब तक मुम्बई, दिल्ली, मसूरी, मेरठ, सहारनपुर आदि नगरों में सैकड़ों प्रदर्शन किए गए है।
अप राजू पोस्टमैनः गढ़वाल-सभा, चण्डीगढ़ के तत्वाधान में टैगोर थियेटर में इस हिन्दी गढ़वाली मिश्रित एकांकी का मंचन किया गया। इसके अतिरिक्त इस नाटिका का प्रदर्शन मुरादाबाद, देहरादून तथा अन्य नगरों में सात बार किया गया।
अपप आकाशवाणी से प्रसारित रचनाएंः जीतू बगड्वाल एवं मलेथा की कूल गीत-नाटकों का कई बार आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रसारण किया गया। सन् 1954 से अब तक आकाशवाणी दिल्ली, लखनउू व नजीबाबाद से पांच-छः सौ बार गढ़वाली गीतो का प्रसारण किया गया।
अपपप दूरदर्शन दिल्ली से प्रसारित रचनाएंः रामी गीत-नाटिका का दिल्ली दूरदर्शन से पहलीबार हिन्दी रूपान्तर प्रसारण।
;पगद्ध गढ़वाली लोक-गीतोंः नृत्यों के रंगारंग कार्यक्रम राष्ट्रीय त्यौहारों, धार्मिक उत्सवों तथा विभिन्न शताब्दी समारोहों के अवसरों पर 1950 से देश के विभिन्न नगरों में प्रदर्शन।
7. उपलब्धियां
क गढ़वाली लोक-गीतों को विभिन्न लुप्त, अर्द्धलुप्त धुनों के सम्बर्द्धक, सरचियता एवं स्वर समा्रटः-
अन्य पहाड़ी-प्रदेशों की मिलती-जुलती मधुर धुनों का समावेश कर सम्बर्द्धन एवं स्वरचित उत्तराखण्ड परिवार की धुनों में अभिवृद्धि की। प्राचीन लुप्त व विस्मृत धुनों को अपनी मौलिक प्रतिभा से पुर्नजीवित किया। उमड़ते-घुमड़ते बादलों, वर्षा की रिमझिम बूंदों, झरनों, नदी-नालों को कलकल, फूलों की मुस्कान, पशु-पक्षियों का हाल-लास आदि प्रकृति के विभिन्न रूप बिम्बवत उनके गीतों में सन्निहित है। यथा मेरा मैत का देश ना बांस घुघूतीए ना बांस घुघुती घू.........
श्री नेगी के मुख से निकलेने वाले गढ़वाली लोक-गीतों के प्रत्येक शब्द में बसे मधुर स्वरों को सुनकर मनुष्य की क्या पशु-पक्षी भी अपने गंतव्य को भूल जाते हैं।
ख प्रथम गढ़वाली लोक-गीतकार जिन्हौंने गढ़वाली लोक गीतों को सर्वप्रथम हिज मास्टर व्हाइस एवं ऐजिंल न्यू रिकार्ड़िंग कम्पनी में छः गीतों को रिकार्डिं़ग की।
ग गढ़वाली लोक-गीतों द्वारा गढ़वाल के प्राचीन व आधुनिक सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आदि विचारों को वहां के जन-जीवन से जोड़कर नाटक व गीतों में पिरोकर अभिव्यक्त किया।
भविष्य की पीढ़ी के गीतकारों के लिए गढ़वाली लोक-गीतों के स्वर, ताल, लय व धुन को शोध के विषय का मार्ग प्रशस्त किया।
;ड़द्ध गढ़वाली लोक-गीतों व नाटकों द्वारा रचनाकारों को उनके जीवन-यापन से जोड़ने के लिए मार्ग-दर्शन किया। उनकी कई रचनाओं के आज चलचित्र भी बन रहे हैं।
8. अतिरिक्त सर्वोंत्तम सांस्कृतिक गतिविधियांः-
सन् 1942 में छात्र जीवन से ही गढ़वाल की राजधानी पौड़ी के नाटक-मंचों से स्वरचित गढ़वाली-गीतों के सस्वर पाठ से गायन-जीवन का शुभारम्भ। प्रारम्भ से ही आकर्षक सुरीली धुनों में लोकगीत गाकर जन-प्रियता को प्राप्ति।
सन् 1949 में यंग-इण्डिया ग्रामोफोन कम्पनी, मुम्बई से छः गढ़वाली गीतों की रिर्काड़िग, ये गीत बहुत ही प्रचलित हुए और सराहे भी गए।
सन् 1954 में, मुम्बई में ही फिल्म मूवी इण्डिया द्वारा निर्मित खलीफा चलचित्र में सहायक निर्देशन की भूमिका निभाई।
उन्ही दिनों चैहदवीं रात फिल्म जो कि मुम्बई की मून आर्ट पिक्चर ने बनाई थी, उसमें भी सहायक निर्देशक के रूप में कार्य किया।
नेशनल ग्रामोफोन रिकार्ड़िग कम्पनी मुम्बई में भी सहायक संगीत निर्देशक के पद पर कार्य किया।
1955 में दिल्ली आकाशवाणी से गढ़वाली गीतों का प्रसारण आरम्भ होने पर प्रथम बैच का गीत गायक तब से निरन्तर सक्रिय।
1955 में ही दिल्ली रघूमल आर्य कन्या पाठशाला में छात्राओं को सांस्कृतिक दिशा देने हेतु रंगारंग कार्यक्रम का निर्देशन।
1955 में कानपुर में चीनी प्रतिनिधि मण्डल के स्वागत समारोह में पर्वतीय जन-विकास समिति के तत्वाधान में संास्कृतिक दल का नेतृत्व।
1955 व 56 में सरस्वती महाविद्यालय दिल्ली के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का निर्देशन।
1955 में गढ़वाल भूमि सुधार से सम्बधिंत दिल्ली स्थित प्रवासी गढ़वालियों के वृह्द सम्मेलन में प्रगतिवादी एवं कृर्षि-उत्थान सम्बन्धी गढ़वाली गीतों द्वारा जन-जागरण में प्रमुख योगदान।
सन् 1956 में माननीय पं. गोबिन्दबल्लभ पंत, केन्द्रीय गृह-मंत्री द्वारा उद्घाटित पर्वतीय लोक-नृत्य से भरपूर सांस्कृतिक समारोह में गढ़वाल की टोली का नेतृत्व।
1956 में लैन्सीड़ौंन गढ़वाल में बुद्ध जयन्ती समारोह के अवसर पर धार्मिक प्रेरणा-प्रद गीतों का गायन कार्यक्रम में भाग लिया।
सन् 1956 में गढ़वाली लोक-गीतों की अन्य नगरों में गीत-संध्या का आयोजन करते हुए भ्रमण।
सन् 1957 में लोक साहित्य समिति, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सचिव श्री विद्यानिवास मिश्र द्वारा विशेष रिकार्डि़ग के लिए स्वरचित गढ़वाली लोग-गीतों के गायन का निमंत्रण, गीतों की स्वीकृति और उनकी रिकार्ड़िग।
1957 व 1964 में एच.एम.वी. एवं कोलम्बिया ग्रामोफोन कम्पनी के लिए स्वयं गाकर आठ गढ़वाली-गीतों की रिकार्डि़ग जो कि अत्यधिक प्रचलित हुए और सराहे गए।
1957 में सूचना विभाग एवं लोक-साहित्य समिति द्वारा संचालित साॅंस्कृतिक कार्यक्रम, लखनउ में गढ़वाल की ओर से पर्वतीय कार्यक्रमों की प्रस्तुति एवं गढ़वाली -भाषा कविता पाठ में सक्रिय भाग लिया।
1957 में लैन्सीड़ौन गढ़वाल में प्रथम ग्रीष्म-उत्सव में कवि-सम्मेलन एवं साॅंस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लिया। इसी अवसर पर गढ़वाल साॅंस्कृतिक विकास समिति का सदस्य निर्वाचित।
1957 में देहरादून में आयोजित ऐतिहासिक विराट साॅंस्कृतिक सम्मेलन में गढ़वाल की लोक-गीत-नृत्य टोली का नेतृत्व। तत्पश्चात इसी संस्था का कला-सचिव निर्वाचित।
1960 में पर्वतीय साॅंस्कृतिक सम्मेलन, देहरादून के मंच से लोक-गीत एवं नृत्यों का आयोजन एवं प्रदर्शन।
1962 में पर्वतीय साॅंस्कृतिक सम्मेलन, देहरादून के मंच से लोक-गीत एवं नृत्यों का प्रदर्शन।
1963 में हरिजन सेवक संघ, देहरादून के तत्वाधान में राष्ट्रीय सुरक्षा कोष के लिए पर्वतीय बाल-कलाकारों को प्रश्क्षिित कर लोक-गीत व नृत्यों का अभूतपूर्व आयोजन। इस कार्यक्रम का उद्घोषक भी बाल-कलाकार को ही बनाया।
1964 में श्रीनगर गढ़वाल में हरिजन सेवक संघ के लिए मनोरम कार्यक्रम का निर्देशन।
1966 में गढ़वाल भ्रात-मण्डल, मुम्बई के तत्वाधान में उत्तराखण्ड के लोक-गीत व नृत्यों के कार्यक्रम में गढ़वाली साॅंस्कृतिक टोली का नेतृत्व।
1970 में मसूरी शरदोत्सव समारोह के अवसर पर शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के रंगारंग कार्यक्रम प्रतियोगिताओं में निर्णायक।
1972 में गढ़वाल-सभा मुरादाबाद के मंच पर देहरादून की अपनी सांस्कृतिक टोली द्वारा साॅंस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तति।
1976 में गढ़वाल-भ्रातृ-मण्डल, मुम्बई के लिए वहीं के गढ़वाली कलाकारों द्वारा साॅंस्कृतिक कार्यक्रमों का निर्देशन।
1979 में मसूरी टी.वी. टावर के उद्घाटन के अवसर पर दिल्ली दूरदर्शन के लिए अपनी टोली द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का प्रस्तुतीकरण।
1979 में सेन्ट्रल डिफेन्स एकाउण्ट के शताब्दि-समारोह के अवसर पर रंगारंग कार्यक्रम की प्रस्तुति।
1980 में गढ़वाल-सभा चण्डीगढ़ के तत्वाधान में टैगोर थियेटर में सांस्कृतिक टोली का नेतृत्व एवं रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति।
1982 में पर्वतीय कला मंच के गठन के बाद देहरादून में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के चार प्रदर्शन तथा इसी वर्ष गढ़वाल-सभा, चण्डीगढ के मंच पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के चार प्रदर्शन।
1883 में पर्वतीय कला मंच का सचिव नियुक्त।
1986 में गढवाली समाज, कानपुर के गढ़वाली कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता।
1987 में भारत सरकार द्वारा संचालित उत्तर मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित इलाहाबाद में सम्पन्न सांस्कृतिक समारोह में पर्वतीय कला मंच की टोली का नेतृत्व।
1987 में ही दृष्टिवाध्तिार्थ राष्ट्रीय संस्थान, देहरादून में आयोजित संगीत, गायन नृत्य और नाटक की प्रतियोगिता में निर्णायक।
9. विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
पद्ध रघुमल आर्य कन्या पाठशाला, दिल्ली द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए 1955 में सम्मानित।
पपद्ध गढ़वाली गीतों का प्रथम संग्रह गीत-गंगा पुस्तक अखिल गढ़वाल सभा देहरादून द्वारा 1956 में सम्मानित।
पपपद्ध प्रान्तीय रक्षा दल, देहरादून द्वारा आयोजित खेलकूद व सांस्कृतिक प्रतियोगिता के अवसर पर जिलाधीश श्री मोहम्मद बट्ट द्वारा 1956 मंे सम्मानित।
पर्वतीय जन-विकास, दिल्ली द्वारा गढ़वाली लोक-संगीत के लिए 1956 में सम्मानित।
सरस्वती महाविद्यालय, दिल्ली द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए 1956 में सम्मानित।
आचार्य नरेन्द्र देव शास्त्री विधायक व सांसद माननीय श्री भक्तदर्शन द्वारा 1957 में प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित।
पर्वतीय सांस्कृतिक सम्मेलन, देहरादून द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोकगीतों के रंगारंग कार्यक्रमों के लिए 1958 में सम्मानित।
लोक-विद्यालय की ओर से साहित्य-सम्मेलन, चमोली द्वारा 1962 में लोकरत्न उपाधि से सम्मानित।
मलेथा की कूल नाटक के सफल मंचन हेतु हिमालय कला संगम, देहरादून द्वारा 1970 में सम्मानित।
ड़िफेंस एकाउन्टस रिक्रेशन क्लब सी.ड़ी.ए. देहरादून द्वारा 1979 में सम्मानित।
लोक-संगीत-स्वर परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर आकाशवाणी, नजीबावाद द्वारा 1980 में प्रशस्ति पत्र।
15 अगस्त 1984 को स्वतंत्रता-दिवस के अवसर पर दून मनोरजन क्लब की ओर से जिलाधीश श्री आशुतोष चतुर्वेदी द्वारा सम्मानित।
10. विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित क्रमशः।
गपपप गढवाली लोक-गीत, संगीत एवं रंगकर्म के क्षेत्र में विशिष्ठ योगदान के लिए गढ़वाल भ्रातृ मंड़ल मुम्बई द्वारा गढ़-रत्न उपाधि से सम्मानित 1990 में।
अग उत्तर-प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा लोक गीत एवं रंगकर्म के क्षेत्र में विशिष्ठ योगदान के लिए 27/3/1995 में सम्मानित।
नागरिक परिषद देहरादून द्वारा 1995 में गढ़रत्न से सम्मानित।
गढ़वाल भ्रातृ मण्डल क्लमेंट टाउन क्षेत्र देहरादून द्वारा 1995 में गढ़रत्न अलंकार से सम्मानित।
उत्तराखण्ड भ्रात1 मण्डल सोलन द्वारा 1997 में सम्मानित।
अखिल गढ़वाल सभा देहरादून द्वारा उत्तराखण्ड महोत्सव-1999 में सम्मानित।
उत्तराखण्ड के लोकनृत्य/लोकगीत, टैगोर थियेटर, चण्डीगढ़ उत्तराखण्ड युवामंच द्वारा 7/2/1999 में सम्मानित।
संगीत नाटक अकादमी उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित निर्बल वर्गजन कल्याण समिति , गढ़वाल मण्डल द्वारा 16/4/1995 में सम्मानित।
अखिल भारतीय उत्तराखण्ड एकादमी दिल्ली द्वारा प्रशस्ति-प्रमाण पत्र से सम्मानित 7/5/1995 मे।
हिमालय सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था देहरादून द्वारा 6/1/1996 में अभिनन्दन पत्र से सम्मानित।
गढ़वाली साहित्य परिषद कानपुर द्वारा पं. आदित्यराम नवानी, गढ़वाली भाषा प्रोत्साहन पुरस्कार से 1988 में सम्मानित।
गढ़वाली भ्रातृ मण्डल और्डनेन्स फैक्टरी स्टेशन रायपुर देहरादून द्वारा अभिनन्दन पत्र से 13/4/199 को सम्मानित।
नन्दादेवी कलासंगम द्वारा सुमन-स्मृति सम्मान - 1994
एग्रीरियनस फील्ड एवं फाॅरेस्ट लिमिटेड़ द्वारा उत्तराखण्ड सम्मान से 1994 में सम्मानित।
मैत्री सांस्कृतिक कला संगम देहरादून द्वारा सम्मानित 1994 में।
अखिल गढ़वाल सभा, देहरादून द्वारा उत्तरायण महोत्सव 1994 में सम्मानित।
11.राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बद्ध।
मनोरंजन क्लब, पौड़ी गढ़वाल।
हिमालय कला संगम, दिल्ली।
पर्वतीय जन-कल्याण समिति दिल्ली।
गढ़वाल भ्रातृ-मण्डल, मुम्बई।
हिमालय कला संगम, देहरादून।
पर्वतीय सांस्कृतिक सम्मेलन, देहरादून।
पर्वतीय कला मंच, देहरादून।
सरस्वती महाविद्यालय, दिल्ली।
शैल-सुमन, मुम्बई।
अखिल गढ़वाल सभा, देहरादून।
गढ़वाल रामलीला परिषद, देहरादून।
गढ़वाल साहित्य मण्डल, दिल्ली।
उत्तर-प्रदेश हरिजन सेवक समाज, देहरादून।
भारत सेवक समाज, देहरादून।
नागजुण्डा नागराजा अयाल का थाल, ये गुठयार,
चामुण्डा मादेव, वख, बल्द जुंटा धार।।
मेरू वोल्यूं औल्यंू कू स्वाद सूण जरा बस।
रौंत्यलु गुठयार म्यारू, हाथु देदे हाथ।
संयोजकः- गढवाळी के वरिंष्ठ कवि श्री रघुवीर सिंह रावत अयाळ
प्रस्तुतिः- दिनेश ध्यानी