नमस्कार भे-बिनौ
में अमेरिका का रहनेवाला हूँ पर कई सालो तक गढ़वाल में रह चुका हू और थोड़ा-बहुत हिन्दी गढ़वाली भी सीखी. मुझे पहाड़ गाँव से बहुत प्रेम है और कभी कभा खुद भी लगती है. बरी खुशी की बात है आप लोग इस फोरम मे च्वी लगनी छन वा अपना विचार अदला-बदला कर रहे हैं.
में संगीत का आध्यापक हू और आजकल उत्तराखंडी लोक संगीत और कमर्षियल संगीत का उद्योग पर शोध कर रहा हूँ. मेरे कई प्रश्न है अगर आप लोगों की कोई राइ है इस विषय में कृपया उत्तर दीजिए.
१) आजकल के जमाने में 'लोक संगीत' के बारे में आप क्या सोचते हैं? आज के कमर्षियल रेकॉर्डिंग में क्या आपको 'लोक संगीत' मिल पाती है?
२) जिस प्रकार की विषय खुदेर झूमेलओ बाज़ुबंद आदि गीतो मे महिलाओं की पीड़ित और भावनाओं पर ज़्यादा प्रचलित है, उस प्रकार का विषय क्या आपको कमर्षियल रेकॉर्डिंग में भी दिखाई देती हैं? नरेन्द्रा नेगिजी के कई सारे गाना महिलाओ के विषयो पर लिखे हैं, बल्कि उन के गानों मैं और पुरानी
गानो में क्या अंतर हैं?
३) आजकल के लोक कलाकार कौन कौन हैं?
४) आप का जीवन मैं लोक संगीत का क्या महत्त्व है और इस महत्व मैं क्या बदलाव देखि हैं?
बहुत बहुत धन्यवाद--आपका,
फ्युलिदास (स्टेफन फिओल, उनिवेरसिटी ऑफ़ सिन्सिन्नती)
आदरणीय प्रोफेसर साहब समन्या/पैलाग,
ये हमारे लिये गर्व की बात है कि आपने हमें इस लायक समझा कि हम लोक संगीत के विषय पर अपनी राय आपको दे सकें। आपके प्रश्नों का उत्तर मैं निम्नवत देना चाहूंगा-
१- उत्तराखण्ड में आजकल के गीतों में लोक गायन विलुप्ति की कगार पर है, लगभग हर लोकगायक भेड़चाल का हिस्सा बन रहा है और चलताऊ गीत और भडकाऊ संगीत के बूते प्रसिद्धि और पैसे की चाह उन्हें संगीत की ओर ला रही है या यह भी हो सकता है कि यह आजकल का ट्रेंड है तो वह अपने आप को इसी तरह स्थापित करना चाहते हैं, लेकिन इसका परिणाम सामने है कि कई सालों से कोई भी नया लोक गायक स्थापित नहीं हो पाया है।
२- यह सही है कि नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने महिलाओं और पहाड़ की विपदाओं पर काफी गीत रचे और गाये हैं, लेकिन वह भी पुराने लोक गीतों को बाहर लाने में असफल ही रहे हैं या कहा जाय कि उन्होंने प्रयास ही नहीं किया। वे भी जिस प्रकार स्थापित हो गये, वह अपनी स्थापना को ही आज तक भुनाते आ रहे हैं। जहां तक उत्तराखण्ड के लोक गायन का सवाल है तो उत्तराखण्ड का लोक गायन दो शैलियों में है, एक- ऋतु गायन, अर्थात ऋतुओं पर आधारित गीत। दूसरा बैर गायन, जिसमें पवाड़ा और वीर-भड़ों की गाथाओं का गायन होता है, इनमें से दोनों का अभाव कमर्शियल गीतों में रहा है।
३- आजकल के लोक गायकों में गढ़वाल क्षेत्र से रजनीकांत सेमवाल और कुमाऊ क्षेत्र से ललित मोहन जोशी का नाम लिया जा सकता है।
४- लोक संगीत का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण रोल है, लोक गीत और संगीत हमारी अपनी अभिव्यक्ति होती है, यह समाज और लोक जीवन से हमारी सांमजस्यता को प्रदर्शित करता है और उत्तराखण्ड के लोक जीवन में संगीत का बहुत महत्व रहा है, जब कोई बालिका बड़ी होने लगती है तो उसके लिये एक छोटी सी दातुली बना दी जाती है, जिसमें घुंघरु भी जड़े जाते हैं, जिसे घुंघरयाली दातुली कहा जाता है, इस प्रकार से उस बालिका को संगीत और आम जनजीवन से एक साथ जोडे जाने का काम किया जाता है और इसी प्रकार से पलायन के दर्द से दोहरी मार झेल रही महिला का विरह भी इन्हीं लोकगीतों से झलकता है। सामाजिक सरोकारों और विभिन्न लोक आंदोलनों को भी लोकगीतों में स्थान मिलता है, कुल मिलाकर लोकगीत और संगीत हमारे सुख-दुःख का सच्चा साथी है।