विश्व स्तर पर गढ़्वाल और कुमाऊं की लोक कला की पहचान कराने में उप्रेती जी का विशिष्ट योगदान रहा है। अपने रंगमंचीय जीवन में इन्होंने लगभग २२ देशों की यात्रा की और वहां सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। १९८३ में अल्जीरिया, सीरिया, जार्डन, रोम आदि देशों की यात्राएं की और वहां पर सांस्कृतिक
कलाकारों के साथ पर्वतीय लोक संस्कृति को प्रचारित किया। १९८८ में २४ पर्वतीय लोक कलाकारों के साथ चीन, थाईलैण्ड और उत्तरी कोरिया का भ्रमण किया। श्रीराम कला केन्द्र के कलाकारों के साथ लगभग २० देशों का भ्रमण किया। १९७१ में सिक्किम के राजा नाम्ग्याल ने इन्हें राज्य में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने के लिये विशेष रुप से आमंत्रित किया। अल्मोड़ा में इन्होंने अपने अनन्य सहयोगियों सर्व श्री बृजेन्द्र लाल शाह, बांके लाल शाह, सुरेन्द्र मेहता, तारा दत्त सती, लेनिन पन्त और गोवर्धन तिवाड़ी के साथ मिलकर "लोक कलाकार संघ" की स्थापना की। अपने रंगमंचीय जीवन में श्री उप्रेती जी ने पर्वतीय क्षेत्रों के लगभग १५०० कलाकारों को प्रशिक्षित किया और १२०० के करीब सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। राजुला-मालूशाही, रसिक-रमौल, जीतू-बगड़वाल, रामी-बौराणी, अजुवा-बफौल जैसी १३ लोक कथाओं और विश्व की सबसे बड़ी गायी जाने वाली गाथा "रामलीला" का पहाड़ी बोलियों (कुमाऊनी और गढ़वाली) में अनुवाद कर मंच निर्देशन कर प्रस्तुत किया। इसके अतिरिक्त हिन्दी और संस्कृत में मेघदूत और इन्द्रसभा, गोरी-धन्ना का हिन्दी में मंचीय निर्देशन किया।