एक दशक पहले तक जब मेरे बुबू जी नजीबाबाद रेडियो स्टेशन लगाते थे तो हम लोग रेडियो को घेर कर बैठ जाया करते थे, तब रेडियो मैं आदरणीय गोपाल बाबू गोस्वामी, नरेन्द्र सिंह नेगी जी, रामरतन काला जी के गीत सुनने को मिलते थे उन्ही गीतों मैं से एक गीत आज तक जेहन से नहीं जाता. मुझे अच्छी तरह याद नहीं शायद श्री राम रतन काला जी ने ये गीत गाया है .....
पंछी उड़ी जाछो, घोल उशे रोंछों,
ये तो मायाजाला, द्वि दिनों का हुछो,
ये तो मायाजाला, द्वि दिनों का हुछो.