उत्तराखंड के एक लोक गायक श्री प्रहलाद सिंह मेहरा ने पहाड़ की महिलाओ की कठिन जीवन पर यह हिर्दय स्पर्शी गीत लिखा है :
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पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
कैभे नि खाया द्वि रुवाटा, सुख ले
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
राति उठी, पोश गाड़ना
पानी ले भरी लियूना
बिना कलेवा रुवाटा,
तिवीली जाण घास का मगना
बार बाजी तू घर आयी
सासू के गाली पायी
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
कैभे नि खाया द्वि रुवाटा, सुख ले
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
भान माजी ले चूल लिपि ले
फिर गोरु मुचूणा,
गोरु का दगाड, ब्वारी तिवीली रित घर नी उणा
सूख लाकडा तोडी लाई, सासू की गाली पायी
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
कैभे नि खाया द्वि रुवाटा, सुख ले
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
अशौज में धान कटाना, चैत में ग्यू टीपना
मंगसिर में तवील जाण, घास के मागन
छय ऋतू बीत गयी, तेरी बुति पूरी नी भयी
बार मास बीत गयी तेरी बुति पूर नी भयी
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
कैभे नि खाया द्वि रुवाटा, सुख ले
पहाड़ की चेली ले, पहाड़ की ब्वारी ले
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