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REMARKABLE ACHIEVEMENTS BY UTTARAKHANDI - उत्तराखंड के लोगों की उपलब्धियाँ

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड की हिमांशी ने जीता सोना    ब्यूरो रविवार, 20 अक्टूबर 2013   अमर उजाला, देहरादून Updated @ 6:20 PM IST      संबंधित ख़बरें
* अक्षिता ने फाइनल में बनाई जगह  उत्तराखंड के शटलरों ने अपनी श्रेष्ठता साबित करते हुए ऑल इंडिया स्तर पर दो पदक अपने नाम करने में सफलता हासिल की है।

अंडर-13 युगल वर्ग का स्वर्ण पदक
उत्तराखंड की हिमांशी रावत ने ऑल इंडिया सब जूनियर रैंकिंग बैडमिंटन टूर्नामेंट में अपनी जोड़ीदार आंध्र प्रदेश की ए अक्षिता के साथ मिलकर अंडर-13 युगल वर्ग का स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया।

उन्नति को कांस्य पदक प्राप्त हुआ
गोहाटी में रविवार को अंडर-13 वर्ग के युगल वर्ग का फाइनल मुकाबले में हिमांशी रावत और ए अक्षिता की जोड़ी का सामना सिमरन सिंह और रीतिका ठक्कर की जोड़ी से हुआ।

हिमांशी व ए अक्षिता ने सीधे सेटों में 21-10, 21-7 के अंतर से जीत दर्ज कर खिताब पर कब्जा किया। जबकि उत्तराखंड की उन्नति बिष्ट और राजस्थान की योशिता माथुर को कांस्य पदक प्राप्त हुआ।

अंडर-15 बालिका युगल वर्ग में अक्षिता भंडारी और श्रेया बोस का सामना असम की अस्मिता छलीहा और दिल्ली की कनिका कनवाल की जोड़ी से हुआ। पहला सेट 21-19 से हारने के बाद अक्षिता व श्रेया की जोड़ी ने वापसी करते हुए 21-16, 21-10 के अंतर से जीत दर्ज कर खिताब अपने नाम किया।

http://www.dehradun.amarujala.com/news/city-news-dun/himanshi-wins-gold-medal/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड में तीन साल में बना यह 'ताज महल'
 
 पौड़ी के राजकीय प्राथमिक विद्यालय चुठाणी में कार्यरत सहायक अध्यापक पंकज सुंदरियाल ने ताज महल बताया है।
 पंकज ने यह महल माचिस की तिल्लियों से तैयार किया। 55 हजार तिल्लियों को जोड़कर बनाया गया ताजमहल तीन साल में बनकर तैयार हुआ।
 
 तिल्लियों से बना रहे ऐतिहासिक मंदिर एवं इमारतें
 पौड़ी निवासी पंकज सुंदरियाल पिछले चार साल से माचिस की तिल्लियों को जोड़कर ऐतिहासिक मंदिर एवं इमारतें बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि केदारनाथ मंदिर को तैयार करने में उन्होंने 17 हजार माचिस की तिल्लियों का प्रयोग किया है। बताया कि तिल्लियों से बना ताजमहल करीब दो फीट लंबा-चौड़ा और दो फीट ऊंचा है। इन दिनों वे बोरगंड नार्वे स्थित चर्च नाने में जुटे हैं।
 
 सुंदरियाल ने बताया कि तिल्लियों से इमारतों को रूप देने में लगन और समय की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि शिक्षण कार्य के बाद घर में मिलने वाले खाली का समय का उपयोग वे इस कार्य में करते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Mahi Singh Mehta मनोज सरकार (23 वर्ष) वह शख्स हैं जिन्होंने नवंबर 2013 में जर्मनी के डॉटमन में आयोजित पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप के डबल्स में देश के लिए गोल्ड और मिक्स्ड डबल्स में मेडल हासिल किया है।
 
 मनोज ने अपने हुनर की बदौलत देश-दुनिया में उत्तराखंड का नाम रोशन जरूर किया, लेकिन अपने ही राज्य में इस सितारे की चमक धूमिल है।
 
 खेल-खिलाड़ियों को बढ़ावा देने का दावा करने वाली प्रदेश सरकार ने मनोज को इमदाद तो दूर उन्हें बधाई तक देना जरूरी नहीं समझा है। यह हाल तब है, जबकि अन्य राज्यों के ओलंपिक संघ मनोज को शुभकामनाओं के साथ उन्हें अपने यहां आने का ऑफर तक दे चुके हैं।
 
 हैरत की बात यह है कि जर्मनी जाने के लिए जब मुफलिसी आड़े आने लगी तो मनोज ने खेल निदेशालय को आर्थिक मदद के लिए पत्र भेजा, जिसे नामंजूर कर दिया गया।
 
 आखिर मनोज के पिता ने पड़ोसियों-रिश्तेदारों से साठ हजार रुपए कर्ज लिया और वह जर्मनी में पदक जीत आए। इन दिनों वह उधार चुकाने के लिए बच्चों को कोचिंग दे रहे हैं।
 
 ये रहे मनोज के साथी
 मनोज ने बताया कि प्रतियोगिता के दौरान सभी खिलाड़ियों को अलग-अलग ग्रुपों में रखा गया था। वह एफ ग्रुप में थे। हर ग्रुप में लीग मैच के बाद खिलाड़ी आगे बढ़ते गए।
 
 वह सिंगल्स में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे, लेकिन हार गए। डबल्स में मनोज ने उड़ीसा के प्रमोद भगत के साथ गोल्ड मेडल जीता। वहीं, मिक्स्ड डबल्स में गुजरात की पारुल डी. परमार के साथ मनोज कांस्य जीते।
 
 पोलियो से खराब हो गया पांव
 घरों में रंगाई-पुताई का काम करने वाले परिवार में जन्मे मनोज ने गरीबी तो देखी ही, बचपन में दायां पांव पोलियो के कारण लकवाग्रस्त हो जाने का दर्द भी झेला। लेकिन अपनी कमजोरी पर मायूस होने के बजाय मनोज ने आगे बढ़ते रहने की ठानी और वर्ल्ड चैंपियन बन गए।
 
 गरीबी ने छुड़वाए दो मौके
 आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण स्पेन और टर्की में खेले जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय मैचों में मनोज भाग नहीं ले पाए। मनोज ने बताया कि सरकार ने तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब कुछ खेल संगठन उनकी मदद को आगे आ रहे हैं।
 
 कुमाऊं गढ़वाल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (केजीसीसीआई) और ऊधमसिंह नगर स्पोर्ट्स क्लब आर्थिक मदद कर रहे हैं।
 
 बेटे की जीत अच्छी लगती है, लेकिन...
 मनोज के माता-पिता जमुना देवी और मनेंद्र सरकार ने बताया कि बेटे के मेडल देखकर उन्हें खुशी तो मिलती है। लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वह बेटे को विदेश नहीं भेज पाते तो बड़ी टीस होती है। उनका कहना है कि सरकार मदद करे तो उनके बेटे का भविष्य बेहतर हो सकेगा।
 
 दूसरे राज्यों से लें सीख
 खिलाड़ियों को कैसे आगे बढ़ाया जाता है, राज्य सरकार और खेल अधिकारियों को यह पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से सीखना चाहिए।
 
 वहां नेशनल लेवल पर मेडल हासिल करने वाले खिलाड़ियोंको सरकार के स्तर पर मदद तो मिलती ही है, स्कॉलरशिप भी दी जाती है। इससे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ता है और वे प्रतियोगिताओं में राज्य का नाम रोशन करने के मकसद से उतरते हैं।
 
 प्रोफाइल
 नाम : मनोज सरकार
 जन्मतिथि : 12 जनवरी 1990
 शिक्षा : बीकॉम, सरदार भगत सिंह डिग्री कॉलेज, रुद्रपुर (एमकॉम में अध्ययनरत)
 पता : आदर्श नगर, बंगाली कॉलोनी, रुद्रपुर ऊधमसिंह नगर
 
 खिलाड़ियों की मदद केलिए सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है। मनोज की उपलब्धि वाकई काबिले तारीफ है। इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है। उन्हें पूरी मदद की जाएगी।
 - दिनेश अग्रवाल, खेल मंत्री
 
 प्रदेश में प्रतिभाओं की कमी नहीं, लेकिन संसाधन और मदद के अभाव में वे दम तोड़ रही हैं। सरकार को खिलाड़ियों की आर्थिक मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।
 - विजय आहूजा, अध्यक्ष, ऊधमसिंह नगर स्पोर्ट्स क्लब

source - amar ujala

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड के 'लाल' को मोदी की कॉल - अभिलाष  चंद सेमवाल
 
 मोबाइल के जरिए विस्फोटकों की तलाश करने वाले ‘मोबाइल बम डिटेक्टर सेंसर’ बनाने वाले कर्णप्रयाग के बेटे अभिलाष सेमवाल का चयन आईआईटी खड़गपुर ने दुनिया की शीर्ष-20 टीमों में किया है।
 
 ये टीमें जनवरी 2014 में ग्लोबल समिट में अपने अनुसंधानों का डेमो दिखाएंगी। अभिलाष इस सूची में सातवां स्थान पर हैं। गुजरात सरकार ने अभिलाष को उनकी खोज पर बधाई दी है।
 
 यही नहीं, ग्लोबल समिट में कामयाब रहने पर उन्हें गुजरात के लिए ये सेंसर बनाने की पेशकश भी की गई है।
 
 मोदी ने किया फोन
 
 अभिलाष ने बताया कि उन्हें इस कामयाबी पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम ने कॉल की थी। कहा गया कि यदि समिट में यह डिटेक्टर चिप कामयाब हो जाती है तो वह सबसे पहले गुजरात सरकार के लिए यह चिप बनाएं।
 
 जनवरी में होगी समिट
 आईआईटी खड़गपुर में हर तीसरे साल ‘ग्लोबल इंटरप्रेन्योरशिप समिट’ का आयोजन होता है। इस वर्ष यह समिट 10 से 12 जनवरी तक होगी। समिट में दुनियाभर से ऐसे छात्र पहुंचते हैं जिन्होंने कुछ अलग प्रयोग कर नया आविष्कार किया हो। बीटेक के हैं छात्र
 कर्णप्रयाग निवासी और ग्राफिक एरा हिल विवि के बीटेक कंप्यूटर साइंस तृतीय वर्ष के छात्र अभिलाष ने भी ऐसा सेंसर ईजाद किया है, जो कार में बम लगा होने पर इसकी सूचना तुरंत मोबाइल पर पहुंचा देता है।
 
 अभिलाष ने बताया कि अब वह अपने सेंसर को व्यावहारिक तौर पर दुनियाभर के विशेषज्ञों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। वे इसे पास करते हैं तो दो लाख रुपये नकद पुरस्कार और सेंसर को डेवलप करने के लिए 45 लाख रुपये की ग्रांट मिलेगी।
 
 ऐसे काम करता है सेंसर
 कार में लगा सेंसर कार के चेसिस नंबर की सहायता से मोबाइल से कनेक्ट होता है। यह सेंसर अपने आसपास किरणें छोड़ता है। बम में मौजूद गैसें जैसे ही इन किरणों से टकराती हैं तो तुरंत सेंसर को इसकी जानकारी मिल जाती है।
 
 सेंसर इसका अलर्ट संबंधित मोबाइल नंबर पर एसएमएस के माध्यम से भेज देता है। इस तकनीक से कार में बम का काफी हद तक पता चल जाएगा।
 
 सरकार से मदद की दरकार
 अभिलाष के पिता प्रकाश चंद सेमवाल का दो वर्ष पहले निधन हो चुका है। चाचा और दादा उसकी पढ़ाई का खर्च चला रहे हैं। माता अंजना सेमवाल गृहिणी हैं।
 
 अभिलाष ने बताया कि इस प्रयोग में हालांकि ज्यादा खर्च नहीं है लेकिन 50 हजार रुपये या फिर शुल्क में कुछ माफी यदि सरकार की ओर से मिल जाएगी तो उनकी राह ज्यादा आसान हो जाएगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड के सपूत आदित्य बने दुनिया के नंबर एक जूनियर शटलर
 
 उत्तराखंड के सपूत ने दुनिया भर में प्रदेश का नाम का रोशन किया है। अल्मोड़ा निवासी आदित्य जोशी ने जूनियर बैडमिंटन रैंकिंग (अंडर-19) में पहला स्थान हासिल किया है। उन्होंने 2013 में खेले गए 35 मैचों में से 24 में जीत दर्ज की। जिसके बाद दो जनवरी को बैडमिंटन व‌र्ल्ड फेडरेशन द्वारा जारी साप्ताहिक रैंकिंग में उन्हें शीर्ष वरीयता दी गई।
 
 यह पहला मौका है जब किसी भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने विश्व रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल किया है। आदित्य का परिवार फिलहाल मध्य प्रदेश के धार में रहता है। फोन पर हुई बातचीत में आदित्य ने बताया कि यह उपलब्धि शानदार है, लेकिन उनका सपना विश्व चैंपियन बनने का है। इसके लिए वह खूब मेहनत कर रहे हैं।
 
 आदित्य ने बताया कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा व बैडमिंटन कोचिंग दून में ही हुई। बैडमिंटन से उनका बचपन से ही लगाव रहा है। उनके पिता अतुल जोशी धार स्थित साइ केंद्र में बैडमिंटन कोच हैं और बड़े भाई प्रतुल जोशी भी अंतरराष्ट्रीय शटलर हैं। पिछले महीने चंडीगढ़ में आयोजित हुई जूनियर नेशनल बैडमिंटन चैंपियनशिप में आदित्य ने राष्ट्रीय चैंपियन बनने का भी गौरव हासिल किया था।

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