श्री शक्ति प्रसाद सकलानी जी द्वारा लिखित "उत्तराखण्ड की विभूतियां" नामक पुस्तक में दान सिंह मालदार जी के बारे में निम्न वर्णन उद्धृत है-
दान सिंह बिष्ट "मालदार" (1906-1964)
ग्राम- वड्ड़ा, जिला पिथौरागढ़,
उत्तराखण्ड क्षेत्र के पहले महान व्यवसायी,
टिम्बर किंग आफ इण्डिया उपनाम से विख्यात,
दानवीर, शिक्षाप्रेमी, पहले उत्तराखण्डी चाय बागान के स्वामी,
स्वालम्बी उत्तराखण्ड के स्वप्न दृष्टा।
बाल्यकाल पिथौरागढ़ में बीता, यहीं प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की, अग्रिम शिक्षा राजकीय हाईस्कूल, धारानौला के प्रधानाचार्य श्री उमाकान्त जी के संरक्षण में प्राप्त की, इनके पिता ठाकुर देव सिंह बिष्ट धन-धान्य से सम्पन्न तथा "राय बहादुर" की उपाधि से विभूषित थे। इनकी माता श्रीमती सरस्वती देवी ईश्वर भक्तेवं उदारमना महिला थीं।
१९२० में श्री देव सिंह बिष्ट ने चौकोड़ी और बेरीनाग में दो बड़े चाय के बागान और डेयरी फार्म खरीदे। कारोबार में पिता का हाथ बंटाने के लिये इन्हें आगे आना पड़ा, अतः इनकी पढ़ाई में व्यवधान आ गया। कड़ी मेहनत और लगन से इन्होंने इन कारोबारों में आशातीत प्रगति और ख्याति अर्जित की। एक बार वह समय भी आया कि जब बेरीनाग की चाय राष्ट्रीय बाजार में अपनी एक खास जगह बना गई। इस बीच इन्होंने अपने अकेले दम पर लकड़ी का कारोबार शुरु किया और "देव सिंह बिष्ट एण्ड संस" नाम से एक कम्पनी स्थापित की। लक्ष्मी माता की कृपा इन पर हुई और इनका लकड़ी का व्यवसाय जम्मू-कश्मीर, असम, हिमांचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश ही नहीं नेपाल तक फैल गया। दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति के साथ ही इनकी ख्याति भी बढ़ने लगी। दान सिंह बिष्ट, जिन्हें लोग उनकी आर्थिक सम्पन्नता के कारण सम्मान स्वरुप "मालदार साहब" कहकर सम्बोधित करते थे, शीघ्र ही "टिम्बर किंग आफ इण्डिया के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हो गये। आजादी के बाद देश विभाजन के समय इनकी करोड़ों रुपये की लकड़ी पाकिस्तान में ही रह गई थी, किन्तु मालदार साहब के चेहरे पर शिकन भी नहीं आई। उसी दौरान आपने करोडों रुपये मूल्य की लकड़ी भारतीय सेना को सहायता स्वरुप प्रदान कर दी। मालदार साहब द्वारा स्थापित उद्योगों में उस समय अकेले उत्तराखण्ड से करीबन ढाई-तीन हजार लोगों को रोजगार प्राप्त था।
असल में मालदार साहब उत्तराखण्ड के अधिसंख्य लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना चाह्ते थे। वे स्वालम्बी उत्तराखण्ड के स्वप्न दृष्टा थे, उनकी सेवायें अविस्मरणीय हैं। वड्डा में हाईस्कूल, कमलेश्वर में जूनियर हाई स्कूल, पिथौरागढ़ नगर में अपनी माता जी के नाम पर हाईस्कूल, पिथौरागढ़ में तीन मंजिली भव्य धर्मशाला का निर्माण, अपने पैतृक गांव क्वीतड़ में ९ कि०मी० लम्बी पीने के पानी की पाईप लाईन का निर्माण, बेरीनाग में एक स्कूल और एक औषधि केन्द्र के निर्माअण के अतिरिक्त नैनीताल में डिग्री कालेज की स्थापना, आपकी उदारता, दानशीलता के ज्वलंत प्रमाण है। आपका एक सपना जो आपके जी पूरा नहीं हो सका, वह था किच्छा ( जिला उधम सिंह नगर) में एशिया की सबसे बड़ी चीनी की मिल की स्थापना। कुमाऊं भ्रमण के दौरान लेखक ने कई स्थानीय लोगों के मुंह से मालदार साहब के लिये "शेर-ए-कुमाऊं" और कुमाऊं का राजा जैसे सम्मानजनक सम्बोधन सुने। १० सितम्बर, १९६४ को आप पुत्र विहीन स्वर्ग सिधारे, आपकी छह पुत्रियां सुशिक्षित, सुसंस्कृत सम्पन्न घरों में ब्याही हैं।