‘दूधातोली लोकविकास संस्थान’ के संस्थापक श्री सच्चिदानंद भारती जी को जानिए
नसे मिलिए ये हैं
‘दूधातोली लोकविकास संस्थान’ के संस्थापक श्री सच्चिदानंद भारती [ शिक्षक, रिटायर्ड] जिन्होंने एक-दो नहीं बल्कि 136 गाँवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुँचाया है. चिपको आंदोलन के सिपाही सच्चिदानंद भारती ने जनसहभागिता के आधार पर वो काम कर दिखाया जो लाखो करोड़ों रुपए की सरकारी योजनाएं नहीं कर पातीं. चिपको आंदोलन से शुरुआती दिनों से भारती जुटे हुए थे लेकिन जब उन्होंने जंगल बचाने की मुहिम के साथ जल को भी जोड़ दिया तो वर्षो पुराने सूखे जलस्रोतों में फिर से जलधाराएं निकल पड़ीं.
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चिपको आंदोलन के दौरान भारती जी ने युवाओं को इससे जोड़ने के लिए ‘डाल्यों का दग्ड़या’ (डालियों के साथी) नामक संगठन बनाया. कार्यक्रम के मुताबिक प्रत्येक स्कूल के छात्र को पांच पेड़ों को अपना दोस्त बनाता होता था और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेनी होती थी. इस संगठन ने यह कार्यक्रम पहाड़ों के 200 से भी अधिक स्कूलों तक पहुँचाया.
1979 में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने दूधातोली के जंगलों को काटने का ठेका दिया. जिसका सच्चिदानंद भारती ने गाँव के लोगों के साथ मिलकर विरोध किया. 45 प्रतिशत ढाल वाले पहाड़ी क्षेत्र के जंगल काटे जाएंगे तो यहाँ भूस्खलन के साथ ही जलस्रोतों के सूखने की समस्या पैदा हो जाएगी यह भारती जी का मानना था. यूपी सरकार के तत्कालीन वन सचिव जे.सी. पंत ने ग्रामीणों और कन्जर्वेटर फॉरेस्ट को मिलाकर एक कमेटी बनाई और पाया कि यदि दूधातोली के जंगल काटे गए तो जलस्रोत सूखेंगे और भूस्खलन होगा. इस तरह भारती ने ग्रामीणों के साथ मिलकर अपनी पहली लड़ाई जीत ली.
UNFAO ने 100 करोड़ की पेशकश की थी इस कार्य के लिए लेकिन सच्चिदानंद भारती ने अपने लोगो पर ही भरोसा किया और इस कार्य में उनका साथ दिया स्थानीय लोगो ने. दिनेश ढोंढियाल व् सत्येन्द्र कंडवाल जैसे व्यक्ति जो उनकी टीम का हिस्सा है…. अपना जंगल, अपना कार्य के तहत वे इस कार्य में जुटे है. जब यह पेशकश हुई थी तो सच्चिदानंद भारती ने वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों एक पत्र लिखा था कि इस क्षेत्र में वनों का, पानी का अच्छा काम गाँव खुद ही कर चुके हैं – बिना बाहरी, विदेशी या सरकारी मदद के. इन 100 करोड़ रुपयों से और क्या काम करने जा रहे हैं आप? भरोसा न हो तो कुछ अच्छे अधिकारीयों का एक दल यहाँ भेजें, उससे जाँच करवा लें और यदि हमारी बात सही लगे तो कृपया इस योजना को यहाँ से वापस ले लें. वन विभाग का एक दल यहाँ आया और यहाँ की हरियाली और और कार्य को देख लौट गया और 100 करोड़ की योजना को भी समेट दिया.
‘घास, चारा, पानी के बिना योजना कानी’ [ घास चारे पाने के बिना योजना कैसी ] जैसे नारे यहाँ गूंजते रहते है और साथ ही पलायन को रोकने के लिए गीत ‘ठंडो पाणी मेरा पहाड़ मा, न जा स्वामी परदेसा’ [ मेरे पहाड़ में ठंडा पानी है , मेरे स्वामी परदेस मत जाओ ]
तकनीक
उन्होंने जितने भी पेड़ लगाए गए थे उनके गड्ढों के साथ एक गड्ढा और बनाया गया ताकि वर्षा जल उस गड्ढे में भर जाए और लगाए गए पेड़ को लंबे समय तक पानी मिलता रहे. पेड़ों को बचाने का प्रयोग पूरी तरह सफल रहा. पेड़ों को बचाने के साथ यह तकनीक वर्षा जल संग्रहण और प्राकृतिक जलस्रोतों के पुनर्जीवित करने का भी प्रयोग था क्योंकि इन गड्ढों में भरा पानी पेड़ों के काम तो आ ही रहा था पहाड़ी के नीचे स्थित जलस्रोतों को भी यह पानी मिल रहा था.
पुरुस्कार:
घन एवं सजल के अभियान में जुटे सच्चिदानंद भारती को अब तक संस्कृति प्रतिष्ठान नई दिल्ली से संस्कृति पुरस्कार, सर्वोदयी समाजसेवी कामों के लिए भाऊराव देवरस सम्मान, दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग द्वारा स्रोत सम्मान और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय महात्मा गांधी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.
उत्तराखंड के जंगल के इस सेनानी को हम सलाम करते है. …http://sau.co.in/2013/05/……….साभार-
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल