बुरांस
पहाड़ों पर बुरांस
देवभूमि गढ़वाल जहाँ अनेक सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण उल्लेखनीय है वहीं पर पुष्पप्रियता यहाँ की अन्यतम विशेषता है। रंग-बिरंगे लुभावने पुष्पों के प्रति सांस्कारिक अनुरक्ति का भाव-निर्झर यहाँ गीतों एवं नृत्य-गीतों के रूप में दृष्टिगोचर होता है।
गढ़वाल-सौंदर्य, प्रणय और जीवंतता की क्रीड़ाभूमि है। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ यहाँ का मानवीय सौंदर्य भी उच्च एवं प्रभावी कोटि का है। गढ़वाली गीतों व नृत्य-गीतों में मानवीय रूप-सौंदर्य तथा या रमणीक प्राकृतिक ऐश्वर्य बिखरा हुआ है। जैसा इस झुमैलो नामक नृत्य-गीत में वर्णित है कि एक ओर लयेड़ी, लया सरसों, राडौड़ी या राड़ा पुष्प विकसित हो गए हैं, दूसरी ओर बुरांस अपनी अरुणिमा आभा में वन-वृक्षों को डोलियों की भाँति सजाने लगा है-
फूलीक ऐ मैंने झमैलो लयेड़ी राडोड़ी झुमैलो
नीं गंधा बुरांस झुमैलो डोला सी गच्छैने झुमैलो
हिमालय हिम की शीतल पवन और वन के वृक्षों के आडू, घिंघारू, बांज, बुरांस, साकिना इत्यादि वृक्षों में पुष्पोद्भव देखकर मनरूपी मयूर का नृत्य हेतु विवश होना स्वाभाविक ही है। जैसा इस मयूर नृत्य-गीत से स्पष्ट है-
हैंयुचलि डांड्यूं की चली हिवांली कांकोरा
रंगम तुब्हे, नाचण लगे मेरा मन कू मोर
आरू, घिंगारू, बांज, बुरांस
साकिनी झका झोर
बसंत उमंग, उल्लास व हास्य का पर्व है। इस रमणीय काल में गढ़वाल की प्राकृतिक सुषमा का अपना महत्व है। इसके आगमन से वन-वृक्षों की कमनीयता तथा कुसुमों का मनोमुग्धकारी सौंदर्य मुखरित हो जाता है। पुष्पोद्भव के इस रम्य अवसर पर सभी ह्रदयों में चेतना, स्फूर्ति एवं उल्लास का स्वतः संचरण हो जाता है। इस समय न केवल मानव अपितु प्रकृति का रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठता है-
हँसदो बसंत ऐगी गिंवाड़ी सारी
पिंगली फ्योंलड़ी नाचे घागरी पसारी
गढ़वाल में रमणीक बसंत ऋतु की सूचना यहाँ के ग्वीराल, मालू, फ्योंली, साकिनी, कूंजू, तुषरी व बुरांस इत्यादि मनोहर पुष्पराजियों से मिलती है।
गढ़-साहित्य एवं गीतों में वासंतिक वैभव, वनश्री व उसके मंजुल कुसुमों का रूप-चित्र यत्र-तत्र बिखरा हुआ है। बसंत-श्री में अभिवृद्धि करनेवाले लयेड़ी (लया या सरसों) तथा जयेड़ी (जौ) का उल्लेख इस लोकगीत में किया गया है- 'ऋतु बसंत माँ फुली लयेड़ी जौवन जोर जताली जयेड़ी' यही नहीं पुष्पोत्सव के इस रम्यकाल में जब कानन-कानन बुरांस की अरुणिमा से और डाली-डाली हिलांस पक्षी के गीतों से गूँजने लगे तब हिमालय क्षेत्र के गाँव और अधिक प्रिय लगने लगते हैं-
मेरो गाँव भलो प्यारो, डांडू फूली बुरांसी, बासदौं हिंलासी
वास्तव में बांज, बुरांस व कुलैं (चीड़) के सघन वन ही गढ़वाल का सौंदर्य है। चैत्र में चित्ताकर्षक बुरांस से वन्य शोभा और भी दर्शनीय हो जाती है-
गदन्यों मां पांणी सेरों मा छ कूल, खिल-खिल हंसदू बुरांस कु फूल
गढ़वाल के पक्षियों में घूघती को मयालू या अत्यंत मायादार कहें तो अनुचित न होगा।
पर्वत पुत्रियाँ अपने ह्रदय की बात इसी से कहना उचित मानती हैं। प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण तथा रंग-बिरंगे पुष्पों के बीच वे अपने समस्त दुःखों को विस्मृत कर घुघती नृत्य-गीत गाती हैं। वे कहती हैं- 'देखो धरती के गले में पुष्पहार सज गया है तथा पयाँ, धौलू, फ्यूंली, आरू, लया व बुरांस पुष्प विकसित हो गए हैं-
फूलों की हंसुली
पयां, धौलू, फ्यूंली, आरू
लया, फूले बुरांस
फुलारी महीनों के आते ही मायके के लिए व्यथित गढ़-रमणियाँ अपनी आत्मिक क्षुधा की अभिव्यक्ति जिन नृत्यों के माध्यम से करती हैं उन्हें खुदेड़ नृत्य-गीत संज्ञा प्रदान की गई है। खुंदेड नृत्य-गीतों के विषय - अपना घर, गाँव, वन, वृक्ष, पशु-पक्षी, हरीतिमा, निर्झर, नदी एवं प्रसून होते हैं। यहाँ पर खुदेड़ नृत्य गीत के माध्यम से कांस तथा बुरांस प्रसून के साथ-साथ मेल्वड़ी पक्षी की सुमधुर गीत ध्वनि का स्मरण किया गया है-
फूली जालो कांस वबै, फूली जालो कांस वूबै
मेल्वडी बांसली वबै, फूली गै बुरांस
हिमालय के कवियों ने नायक एवं नायिका के रूप-सौंदर्य वर्णन हेतु जिन पुष्प गीतों का सृजन किया है उनमें बुरांस तथा फ्योंली प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त इन विद्वान कवियों ने पोस्त, कूंजू, गुलाब, कमल प्रसूनों को अपनी गीतमाला में पिरो-पिरोकर रूप सौंदर्य का सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। कहीं पर गीतकार नायिका को रक्ताभ बुरांस की भाँति कमनीय तथा आकर्षक कहता है और कहीं उसे फ्योंली की तरह सुंदर, सजीली राजकन्या कहता है- बुरांस जनो फूल, फ्योंली जनी रौतेली
एक स्थल पर गीतकार नव-यौवना की कोमल काया से प्रभावित होकर उसे फ्योंली की कली कह बैठता है- ''फ्यूंली की-सी कली।'' अन्यत्र सुई नृत्य-गीत के माध्यम से कवि 'गालू मां बुरांस।' यानी पहाड़ी रमणी के श्वेत कपोलों पर रक्तवर्ण बुरांस का आरोपण कर अपनी शृंगार प्रसाधन विशेषज्ञता का सुंदर परिचय प्रस्तुत करता है। इनके अतिरिक्त गढ़वाली गीत सृजकों ने 'पोस्तू का छुमा, त्वेसरी गुलाबी फूल मेरी भग्यानी बौ।' इत्यादि नृत्य-गीतों के द्वारा उन्होंने पोस्त तथा गुलाब प्रसूनों से नायिका के रूप-सौंदर्य की वर्णन किया है
नायिका सौंदर्य चित्रण ही गढ़ कवियों का एकमात्र उद्देश्य रहा हो, ऐसा नहीं अपितु इन्होंने नायक सौंदर्य वर्णन हेतु भी पुष्प गीतों की सृष्टि।
बुरांस या बुरुंश (रोडोडेंड्रॉन / Rhododendron ) सुन्दर फूलों वाला एक वृक्ष है। बुरांस का पेड़ जहां उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है, वहीं नेपाल में बुरांस के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है। गर्मियों के दिनों में ऊंची पहाडिय़ों पर खिलने वाले बुरांस के सूर्ख फूलों से पहाडिय़ां भर जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में भी यह पैदा होता है।
हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांस मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। बुरांस के पेड़ों पर मार्च-अप्रैल माह में लाल सूर्ख रंग के फूल खिलते हैं। बुरांस के फूलों का इस्तेमाल दवाइयों में किया जाता है, वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल स्त्रोतों को यथावत रखने में बुरांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बुरांस के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत बनाया जाता है, वहीं इसकी लकड़ी का इस्तेमाल कृषि यंत्रों के हैंडल बनाने में किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बुजुर्ग सीजऩ के दौरान घरों में बुरांस की चटनी बनवाना नहीं भूलते। बुरांस की चटनी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंद की जाती है।
[संपादित करें]परिचय
रोडोडेंड्राँन (Rhododendron), झाड़ी अथवा वृक्ष की ऊँचाईवाला पौधा है, जो एरिकेसिई कुल (Ericaceae) में रखा जाता है। इसकी लगभग 300 जातियाँ उत्तरी गोलार्ध की ठंडी जगहों में पाई जाती हैं। अपने वृक्ष की सुंदरता और सुंदर गुच्छेदार फूलों के कारण यह यूरोप की वाटिकाओं में बहुधा लगाया जाता है। भारत में रोडोडेंड्रॉन की कई जातियाँ पूर्वी हिमालय पर बहुतायत से उगती हैं। रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम (Rorboreum) अपने सुंदर चमकदार गाढ़े लाल रंग के फूलों के लिए विख्यात है। पश्चिम हिमालय पर कुल चार जातियाँ इधर उधर बिखरी हुई, काफी ऊँचाई पर पाई जाती हैं। दक्षिण भारत में केवल एक जाति रोडोडेंड्रॉन निलगिरिकम (R. nilagiricum) नीलगिरि पर्वत पर पाई जाती है। चित्र. रोडोडेंड्रॉन अरबोनियम
इस वृक्ष की सुंदरता के कारण इसकी करीब 1,000 उद्यान नस्लें (horticultural forms) निकाली गई हैं। इसकी लकड़ी अधिकतर जलाने के काम आती है। कुछ अच्छी लकड़ियों से सुंदर अल्मारियाँ बनाई जाती हैं। फूल से एक प्रकार की जेली बनती है तथा पत्तियाँ ओषधि में प्रयुक्त होती हैं।
बुरांस की खेती
बुरांस के कृषिकरण में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं -
जलवायुः अफ्रीका व दक्षिणी अमरीका को छोड़कर विश्व के सभी भागों में यह जंगली रूप से पाया जाता है। इसकी कुछ प्रजातियां दक्षिणी एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में भी मिलती हैं। इसका तात्पर्य यह है कि बुरांस नमीयुक्त शीतोष्ण क्षेत्रों में लगभग 11000 फुट की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है।
मृदाः बुरांस के लिए अम्लीय मृदा, जिसका पीएच मान पांच या उससे कम हो, अच्छी रहती है। यद्यपि अगर मृदा का पीएच मान छह हो, तो भी अम्लीय खाद मिलाकर इसे उगाया जा सकता है। बुरांस का पेड़ रेतीली व पथरीली भूमि, जो जल्दी सूख जाए, में नहीं उगता।
पोषणः बुरांस में भोजन लेने वाली जड़ें मिट्टी की ऊपरी सतह पर होती हैं। अतः उन पर गर्मी और सूखे का दुष्प्रभाव जल्दी पड़ता है। पूर्ण रूप से सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छी मात्रा में बिजाई से पहले पौधों में देनी चाहिए। मशरूम के उत्पाद अवशेष और मांस के उत्पाद अवशेष खाद के रूप में बुरांस के पेड़ में प्रयोग नहीं करने चाहिएं, क्योंकि इनमें चूने की मात्रा होती है, जो मिट्टी की अम्लीयता पर प्रभाव डालती है और अम्लीयता कम होने पर बुरांस के पत्ते पीले पड़ने लगते हैं।
प्रवर्द्धनः प्राकृतिक रूप से इसका प्रसारण बीज द्वारा होता है। जबकि साधारणतया कलम इसके प्रवर्द्धन का अच्छा माध्यम है।
बीजः बुरांस के पौधे ग्राफ्टिंग और शोभाकारी पौधों के प्रवर्द्धन में काम आते हैं। इसके बीज फलों के फटने से पहले एकत्रित किए जाते हैं। शरद ऋतु के अंत में या बसंत ऋतु से पहले ग्रीन हाउस या पोलीटनल में बीज बोए जाते हैं। बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए बालू और पीट के ऊपर मॉस घास की एक परत बिछानी चाहिए और तापमान 15-21 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। बीज को अंकुरण से रोपाई अवस्था में आने में तीन महीने लग जाते हैं।
कलमः जड़ कलम बुरांस के प्रवर्द्धन का मुख्य तरीका है। तना कलम भी मातृ पौधे से गर्मियों में ली जाती है। कलम में जल्दी जड़ निकलने के लिए इसके आधार पर छोटे-छोटे घाव करने चाहिएं। जबकि जड़ें ग्रीनहाउस में मिस्ट के अंदर जल्दी निकल जाती हैं। कलम से तैयार पौधे जल्दी बढ़ते हैं।
ग्राफ्टिंगः विनियर ग्राफ्टिंग इसकी सबसे अच्छी तकनीक है। ग्राफ्टिंग के अच्छे परिणाम के लिए अधिक नमी और 21 डिग्री सेल्सियस तापमान उचित है।
जंगलों में फिर लौटी बुरांस की बयार
सदाबहार पहाड़ी वृक्षों में बसंत के आगमन पर यदि कोई वृक्ष फूलों की बहार बिखेरता है तो वह है बुरांस। बुरांस का नाम आते ही एक ऐसे वृक्ष का दृश्य आंखों के आगे तैरने लगता है जो बड़े-बड़े गुच्छानुमा गहरे लाल रंग के फूलों से लदा है और जो दूर से ही सदाबहार हरे जंगलों के बीच अपनी आकर्षक उपस्थिति दर्शाता है। जी, हां! बुरांस का फूल है ही ऐसा जिसे हर कोई देखना चाहेगा, हर कोई उसे अपने ड्राइंग रूम में सजाना चाहेगा। अगर किसी जगह पर एक साथ दर्जनभर बुरांस के पेड़ खिले हों तो समूचा क्षेत्र ही इनकी चमक से उज्ज्वल होता है। यदि इन जंगलों के बीच से गुजरें तो इनकी सुवास से हृदय खिल उठता है।
बुरांस को अंग्रेजी में ‘रोडोडेण्ड्रन’ कहते हैं जबकि वनस्पति विज्ञान में इसे ‘रोडोडेण्ड्रन पोंटिकम’ कहते हैं। यह शब्द वास्तव में लेटिन भाषा का है जिसमें रोडो का अर्थ ‘गुलाब’ तथा डेण्ड्रन का अर्थ ‘पेड़’ होता है। बुरांस के फूल दूर से भले ही गुलाब से लगते हों परन्तु होते गुलाब से काफी बड़े। इनकी पंखुडिय़ां एकदम सुर्ख लाल, खूब बड़ी और रस से सराबोर। बुरांस की विशेषता यह है कि इसमें फूल एक साथ आते हैं। इसी कारण यह फूलों से एकदम लद जाता है। फरवरी के अंतिम सप्ताह से इसमें फूल आने लगते हैं जो प्राय: अप्रैल के अन्त तक अपनी छटा बिखेरे रहते हैं। इस दौरान पहाड़ों में सर्दियां भी समाप्ति पर होती हैं और बुरांस के जंगलों में घूमने का अपना ही आनन्द होता है। यदि फूल झड़ भी जाएं तो इसके सख्त चौड़े नुकीले पत्ते इतने सुंदर होते हैं कि खाली पत्तों को दूसरे फूलों के बीच कमरे के एक कोने या गुलदस्ते में सजाया जा सकता है। महीनों तक ये पत्ते गुलदान में हरे रहते हैं।
हमारे देश में बुरांस पर ध्यान बहुत देर बाद गया जबकि वनस्पति विज्ञानियों के लिये यह बहुत पहले से उनकी रुचि का विषय रहा है। बुरांस को सबसे पहले एशिया माइनर में देखा गया। उसके बाद मध्य चीन के पहाड़ों में। हमारे देश में बुरांस समस्त हिमालयी क्षेत्र जहां की ऊंचाई सात हजार से दस हजार फीट तक है, में पाया जाता है। उत्तर-पूर्व के पहाड़ी राज्यों, उत्तर प्रदेश के कुमांऊ, गढ़वाल तथा हिमाचल प्रदेश के शिमला तथा इससे ऊपर की ऊंचाई के क्षेत्रों में बुरांस के पेड़ देखे जा सकते हैं। शिमला में तो बुरांस है ही आकर्षण का विषय। समस्त समरहिल क्षेत्र, जाखू तथा नवबहार में तो बुरांस के जंगल ही हैं। लोग बुरांस के गुलदस्ते तो बनाते ही हैं परन्तु इसकी चटनी जैम और जैली आदि बड़े चाव से खाते हैं। बुरांस के फूलों का स्वाद आमतौर पर खट्टा-मीठा होता है। बुरांस का शरबत हृदय रोगियों के लिये उत्तम माना जाता है हिमाचल प्रदेश का बागवानी विभाग तो इससे तैयार होने वाले पदार्थों का बाकायदा प्रशिक्षण भी देता है। धड़ल्ले से इसके फूल चुनने और टहनियां तोडऩे या काटने के कारण जब इसके अस्तित्व के लिये खतरा दिखा तो सरकार ने इसके काटने या तोडऩे पर पाबंदी लगा दी है।
हमारे देश में बुरांस भले ही आज उपेक्षित है। परन्तु विदेशों में इस पर बहुत से अनुसंधान चल रहे हैं। वहां बुरांस की अनेक प्रजातियां विकसित की गई हैं, जिनको अलग-अलग नाम दिये गए हैं। इन देशों में लाल रंग के अतिरिक्त सफेद, गुलाबी और पीले रंग की बुरांस की किस्में भी विकसित की गई हैं। बुरांस का पेड़ बहुत धीरे बढ़ता है, इसकी पौध तैयार करना भी कम सरल नहीं है। इसके बीज इतने छोटे होते हैं कि यह पता करना तक कठिन होता है कि बीज जिन्दा है या मृत। पौधशाला में इसे टिकाए रखना बहुत कठिन होता है। विदेशों में तो इसकी बौनी किस्में भी विकसित की गई हैं। लोग बड़े शौक से इस प्रकार के बौने वृक्षों को ड्राइंग रूप में सजाते हैं। ऐसी धारणा है कि बुरांस के पेड़ बहुधा देवदार और राई के पेड़ों के बीच पैदा होते हैं। भारत में देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान में बुरांस पर अनुसंधान चल रहा है। हिमाचल प्रदेश के सोलन स्थित बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय तथा वन विभाग की कुछ पौधशालाओं में भी बुरांस पर काम चल रहा है।
बुरांस की खेती से खुल सकते है रोजगार के दरवाजे
जोगिन्द्रनगर: हिमाचल में बुरांस के फूलों की खेती यहां बेरोजगारों के लिए वरदान साबित हो सकती है। हालांकि बुरांस के फूल को राज्य फूल का दर्जा भी मिला है। पर इसको अभी व्यवसायिक रूप नही दिया जा सका है। अब बुरांस को औषधियों के प्रयोग में भी लाया जा रहा है।
बुरांस का अपना महत्व है। बुरांस कई तरह की औषधियों को तैयार करने में प्रयोग किया जाता है। और साथ ही बुरांस फूल से धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई है। सरकार ने हिमाचल को हर्बल राज्य बनाने की पहल तो की है ,पर बुरांस की खेती के लिए सरकार के पास अभी तक कोई योजना नही है। बुरांस की खेती बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के नए दरवाजे खोल सकती है। बस जरूरत है तो बुरांस के फूलों का सवर्द्धन करने की।
बुरांस के फूल का महत्व यह है कि यह चटनी के अलावा सक्वैश व नसवार तैयार करने में भी काम आता है। फिलहाल लोगों को इंतजार है तो सरकार की पहल का