कुदरत की सौगात या करिश्मा
उच्च हिमालयी क्षेत्रों के 'सफेद बुरांश' का रामगढ़ में खिलना किसी चमत्कार से कम नहींइसे कुदरत की सौगात कहें या फिर करिश्मा, उच्च हिमालयी क्षेत्र (एल्पाइन जोन) में खिलने वाला सुख-शांति, समृद्धि व वैभव का द्योतक सफेद बुरांश रामगढ़ (नैनीताल) के 'टाइगर टॉप' पर भी अप्रतिम छटा बिखेर रहा है।
अमूमन रक्तवर्ण बुरांश रूबेनके पेड़ कम तापमान वाले पर्वतीय क्षेत्रों ही मिलते हैं मगर करीब 12634 से 8500 फीट की ऊंचाई तक वन व बुग्यालों की शोभा बढ़ाने वाले इस दुग्ध धवल बुरांश का कम ऊंचाई वाले इलाके में खिलना वाकई अचरज से कम नहीं। खास बात है सफेद बुरांश का यह पौधा राष्ट्र गान के रचयिता ठाकुर रवींद्र नाथ टैगोर ने आजादी से पूर्व रामगढ़ प्रवास के दौरान लगाया था।
दरअसल, कुमाऊं व गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्र के जंगल फरवरी से अप्रैल मध्य तक लाल बुरांश (रूडोडेनड्रॉन) के फूलों से सज जाते हैं। मगर अत्यधिक ऊंचाई व ठंडे क्षेत्र में खिलने वाले सफेद बुरांश का नैनीताल के रामगढ़ स्थित टागर टॉप पर छटा बिखेरना विशेषज्ञों को भी हैरत में डाल रहा है। उद्यान विशेषज्ञों के अनुसार सफेद बुरांश के पेड़ समुद्र तल से करीब 12634 फीट की ऊंचाई पर मुनस्यारी अथवा 8500 फीट की ऊंचे शिमला हिमाचल की पहाड़ियों पर ही पाए जाते हैं।
ऐसे में इन क्षेत्रों से कहीं कम ऊंचाई वाले नैनीताल के रामगढ़ में सफेद बुरांश का खिलना किसी अचरज से कम नहीं है। नैनीताल के युवा पर्यावरण प्रेमी दीपक बिष्ट अपने पूर्वजों का हवाला देते हुए बताते हैं कि कई दशक पूर्व राष्ट्रीय कवि रवींद्र नाथ टैगौर रामगढ़ आए थे। जिस जगह वह रुके थे, उसे टाइगर टॉप के नाम से जान जाता है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत राष्ट्र कवि ने यह पौधा कहीं से लाकर यहां लगाया था जो आज भी अपनी अप्रतिम छटा बिखेर रहा है।
वन और पुष्पों पर अरसे से शोध कर रहे तरुण जोशी कहते हैं, हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश की तालिस 'रूडोडेनड्रॉन कैम्पेनुनिटम' का रंग अत्यधिक शीत में लाल से सफेद हो जाता है। यह प्रजाति मुनस्यारी, धारचूला आदि के बुग्यालों के साथ ही हिमाचल, जम्मू कश्मीर आदि उच्च क्षेत्रों में ही बहुतायत से पायी जाती है।
उत्तराखंड में है राजकीय वृक्ष का दर्जा
उत्तराखंड व सिक्किम सरकार ने बुरांश के वृक्ष को राजकीय वृक्ष तो जम्मू कश्मीर ने राज्य पुष्प घोषित किया है। वहीं नेपाल में लाली गुरांश (बुरांश) को राष्ट्रीय पुष्प घोषित किया है। कुमाऊं व गढ़वाल में तो ग्रामीण बुरांश के फूलों में नमक-मिर्च मिलाकर इसे खाते भी हैं। इसे रमोड़ी कहा जाता है।
ऊंचाई के हिसाब से रंगों में फर्क
करीब 10 हजार फीट से ऊपर मध्य सदाबहार झाड़ी के रूप में उगने वाली बुरांश की सेमरू प्रजाति हल्के बैगनी रंग के गुच्छेदार पुष्प देती है। 11 हजार से ऊपर पत्थरों पर घनी छोटी झाड़ी के रूप में बुरांश की सिमरिस प्रजाति में गाढ़े लाल व बैगनी रंग के पुष्प होते हैं।
सफेद बुरांश के पेड़ उच्च हिमालयी क्षेत्रों के वनों में ही पाए जाते हैं। रामगढ़ के वनों में एकमात्र पेड़ के वर्षो से प्रकृति की शोभा बढ़ाना किसी चमत्कार से कम नहीं। वनों के दावानल की चपेट में आने से पिछले कुछ वर्षो से बुराश के नए व पुराने पौधों को काफी क्षति पहुंची है। इनके संरक्षण की सख्त जरूरत है।
Source Dainik Jagran