Kail Bisht
Kail Bisht is said to be a generous folk god. The temple of this flute playing God is near Binsar. The story goes that Shrikrishna Pandey was given false reports about a love affair between his wife and a brave Rajput shepherd Kallu (Kail Bisht). The matter was brought before the king, who refused to have Kail Bisht executed when he saw the impression of a trident on Kail Bisht’s forehead and that of a Kadamb flower on his feet. However, later on Kallu was murdered by deception.
कलविष्ट :
लगभग २०० वर्ष की बात है कि कोटयूड़ी का पुत्र कलू कोटयूड़ी नाम का एक राजपूत पाटिया ग्राम के पास कोटयूड़ा कोट में रहता था। उसकी माता का नाम दुर्पाता (द्रोपदा) था। उसके नाना का नाम रामाहरड़ था। वह बड़ा वीर व रंगीला नौजवान था। वह किसान था, पर राजपूत होने पर भी ग्वाले का काम करता था। वह बिनसर के जंगल में गायें चराता था नदी में नहाने (खाल बैठने) को ब्रह्मघाट (कोशी) में जाता था।
उसके पास ये सामान बताया जाता है -'मुरली, बाँसुरी, मोचंग, परवाई, रमटा, घुंघरवालो, दातुले, रतना, कामली, झपुवा, कुत्तो लखमा, बिराली, खनुवा, लाखो रुमोली, घुमेली, गाई, झगुवा, रांगो (भैंसा), नागुली, भागुली भैंसी, सुनहरी दातुलो, बाखुड़ी भैंस।'
कलविष्ट मुरली खूब बजाता था। बिनसर में सिद्ध गोपाली के यहाँ दूध पहुँचाता था, और साथ ही श्री कृष्ण पांडेजी की नौलखिया पांडेजी से लड़ाई थी। वे देश से 'भराड़ी' नामक एक प्रकार के भूत को इस गरज लाये कि वह श्री कृष्ण पांडेजी के खानदान को नष्ट कर दे। पर कलवृष्ट एक वीर पुरुष था। वह भूतों को भगाता था। 'भराड़ी' को भी उसने एक नदी (त्यूनरीगाड़) में एक पत्थर के नीचे दबा दिया, और हर तरह से श्री कृष्ण की मदद करता था। बाद में प्रार्थना करने पर 'भराड़ी' को छोड़ दिया। नौलखिया पांडे इस प्रकार अपने कार्य में सफलीभूत न होने पर रुष्ट हुआ, और उसने एक चाल चली, जिससे श्री कृष्ण पांडे और कलविष्ट के बीच लड़ाई हो जाए। उसने यह झूठी खबर उड़ाई कि कलविष्ट श्री कृष्ण पांडेसे गुप्त रुप से मिला है। श्री कृष्ण दिल में जानता था कि उसकी स्री निर्दोष है, तथापि लोकापवाद को दूर करने के गरज से उसने कलविष्ट को मारने की ठहराई। श्री कृष्ण राजा का पुरोहित था। उसने राजा से कलविष्ट की शिकायत की, और उसे मारने को कहा। राजा ने सभी जगह पत्र भेजे तथा पाँच पान के बीड़े भेजे कि देखें कौन कलविष्ट को मारने का बीड़ा उठाता है।
जयसिंह टम्टा ने बीड़ा उठाया। राजा ने कलविष्ट को सादर दरबार में बुलाया। उस दिन श्राद्ध था, उससे दही - दूध लेकर आने को कहा। कलविष्ट बड़े-बड़े बर्तनों (ठेकों व डोकों) में इतना दही-दूध लेकर गया कि राजा चकित हो गया। राजा ने कलविष्ट को देखा उसके माथे में त्रिशूल और पैर में पद्म का फूल था। वह बड़ा वीर और सच्चरित्र पुरुष ज्ञात हुआ। राजा ने कहा, वह उसे न मारेगा। उसने बड़ी-बड़ी करामते दिखाई। राजा ने एक दिन उसके तथा जयसिंह टम्टा के बीच कुश्त ठहराई। नाक काटने की शर्त पर कुश्ती ठहरी। राजा, रानी तथा दरबारियों का सामने कुश्ती हुई। कलविष्ट ने जयसिंह टम्टा को चित्त कर दिया, और नाक काट डाली। दरबार में धाक बैठ गई। कलविष्ट से बहुत से लोग जलने लगे। उन्होंने उसे मारने की ठहराई।
दयाराम पछाइ (पालीपछाऊँ के रहने वाले) ने कहा कि कलविष्ट अपने भैसों को लेकर चौरासी माल (तराई भावर) में जावे तो अच्छा हो, वहाँ भैसों के धरने के लिए अच्छा स्थान है। पर दिल में यह कपट था कि वह (तराई भावर) में खत्म हो जाएगा, या वहाँ मुगलों द्वारा मारा जाएगा।
कलविष्ट नथुवाखान, रामगाड़, भीमताल होकर भावर में गया। वहाँ १६०० मंगोली सेना उसे मिली। उनके नेता सूरम व भागू पठान थे। साथ ही श्री गजुबा ढ़ींगा तथा भागा कूर्मी भी उक्त पठानों से मिल गये। सब ने उसे मारने की धमकी दी। उन्होंने उसकी ताकत आजमाने को उससे एक बड़ी बल्ली (भराणे) उठाने को कहा। उसने उठा दिया। उन्होंने प्रपंच रचा। मेला किया। गुप्त रुप से हथियार एकत्र किये। उसके बिल्ली-कुत्तों ने गुप्तचर का काम किया। उसको सूचना दे दी। मेले में कलविष्ट ने कहा कि वह पहाड़ी नाच दिखाएगा, उसने उस बड़ी बिल्ली को उठाकर चारों ओर घुमाया, और अपने दुश्मनों को ठंडा कर दिया। तब वह चौरासी माल को गया। कलविष्ट ने वहाँ के सब शेरों को जो ८४ की संख्या में थे मार डाला। बड़े शार्दूल (गाजा केसर) को खनुवा लाखे ने मार डाला।
चौरसी से चलकर कलविष्ट पालीपछाऊँ दयाराम के यहाँ गया। उसने कहा कि चौरासी तो अच्छी है, पर शेर बहुत हैं। दयाराम ने पूछ-ताछ की, तो सब शेर मरे हुए पाए गये। कलविष्य ने दयाराम को दगा करने के लिए श्राप दिया कि उसने छल करके उसे चौरासी माल भिजवाया था, पर वह बच गया। अब यदि कपट से मारा जाएगा, तो वह भूत बनकर पालीपछाऊँ के लोगों को चिपटेगा। इस समय कलविष्ट की पूजा पालीपछाऊँ में ज्यादा होती है।
फिर कलविष्ट कपड़खान में आया। यहाँ काठघर में रहना शुरु किया। वहाँ रात को 'दोष' एक प्रकार के भूत ने तंग किया। भैंसो को दुहने न दिया। रात भर कलविष्ट की 'दोष' से लड़ाई हुई। 'दोष' प्रात: काल हार गया। कलविष्ट ने उससे वचन लिया कि वह किसी को तंग न करे, बल्कि भूले-भटके को रास्ता दिखाए।
जब अनेक प्रपंच करने पर भी वीर कलू कोटयूड़ी न मरा, तो श्री कृष्ण ने लखड़योड़ी नामक उसके साढ़ को बहकाया कि वह किसी तरह छल (चाला) करके उसे मारे। लखड़योड़ी ने एक भैंस के पैर में कील ठोंक दी। तब कलू कोटयूड़ी से मिलने गया। कलू कोटयूड़ी ने आने का कारण पूछा, तो उसने कहा कि वह भैंस माँगने आया है। इसने कहा कि जितने चाहिए लखड़योड़ी ले जावे। पर लखड़योड़ी ने कहा कि भैंस के पै में क्या हो रहा है? देखा, तो मेख ठुकी हुई थी। कलू कोटयूड़ी ने दाँस से मेख निकालनी चाही, तो लखड़योड़ी ने खुकरी से कलू कोटयूड़ी के दोनों पैर काट दिए गये। कोटयूड़ी ने भी लखड़योड़ी को मार डाला और श्राप दिया कि उसने दगाबाजी से मारा है, उसके खानदान में कोई नहीं रहेगा।