काष्ठ कला का द्योतक है भद्रकाली मंदिरApr 20, 02:11 am
उत्तरकाशी। पौंटी भद्रकाली मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि इस मंदिर के निर्माण में लकड़ी पर हाथों से की गई कारीगरी का भी कोई जवाब नहीं है।
उत्तराखंड में कलकत्ते की काली की पूजा नित्य पौंटी में होती है। बड़कोट से यमुना के उस पार करीब 4 किमी की पैदल दूरी पर भद्रकाली का मंदिर स्थित है। उतराई और चढ़ाई से थकने के बाद जैसे ही श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचता है उसकी थकान काफूर हो जाती है और वह फिर सोचने लगता है। प्राचीन शैली में बने तीन मंजिलें लकड़ी के मंदिर की बनावट और उस पर हाथों से की गई कारीगरी को लेकर श्रद्धालु गहराई से सोचने लगता है। वास्तव में मंदिर पर की गई अद्भुत नक्काशी का कोई जवाब नहीं है। सबसे ऊपर तीसरी मंजिल पर मंदिर का गर्भ गृह है। गृभ गृह में भैरव व नाग देवता की मूर्ति भी काली की धातु से बनी मूर्ति के साथ विराजमान हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी रामप्रसाद बहुगुणा बताते हैं कि पौंटी में पूजा कब से होती है यह वे नहीं जानते। कहते हैं सैकड़ों साल पहले एक वृद्ध के साथ यहां देवी पहुंची और तब से यहीं वास करती है।