नहीं संवर सका सूर्य मंदिर समूह
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इतिहास अतीत का आइना ही नहीं, वर्तमान की नींव भी है। बावजूद इसके भविष्य की ओर दौड़ते कदमों को नींव के क्षरण का अहसास तक नहीं है। उत्तरकाशी जिले के रैथल गांव में सूर्य मंदिर के अवशेष भी इसी मानसिकता के शिकार हैं। एतिहासिक तथ्यों के अनुसार यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्यमंदिर से भी पुराना है। कोणार्क सूर्य मंदिर तेहरवीं सदी का है, जबकि रैथल के मंदिर नवीं सदी के बताए जाते हैं। जर्जर हो चुकी इमारत से मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं और शिल्प की पौराणिक शैली नष्ट होने की कगार पर है। महज पांच वर्ष पहले पुरातत्व विभाग ने मंदिर का अधिग्रहण किया और खंडहर के निकट एक अन्य कंक्रीट का मंदिर बना बोर्ड टांग कर कर्तव्य का निर्वहन कर डाला।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से करीब 42 किमी दूर भटवाड़ी व रैथल गांव के बीच खेतों में पौराणिक सूर्य मंदिर है। इनकी संख्या दो है। इस बारे में स्थानीय लोगों को भी ज्यादा जानकारी नहीं है। वे भी इतना ही जानते हैं कि कभी यहां और भी मंदिरों के अवशेष थे। इनकी मूर्तियां चोरी हो गई और अवशेष भी नष्ट हो गए।
रैथल के निकट सूर्य मंदिर समूह का उल्लेख 1816 में गंगा के उद्गम की खोज में निकले अंग्रेज खोजकर्ता जेम्स विलियम फ्रेजर के यात्रा वृतांत में मिलता है। पांच वर्ष पूर्व पुरातत्व विभाग ने एक कंक्रीट का मंदिर तैयार करने के साथ ही एक बोर्ड टांग कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी। इतिहास के जानकार उमारमण सेमवाल बताते हैं कि नवीं सदी की इस धरोहर का उल्लेख इतिहास की पुस्तकों में मिलता है। गंगोत्री धाम यात्रा मार्ग में ऐसे मंदिरों की बहुलता रही है, जो 1803 में आए भूकंप में नष्ट हुए थे।
विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी बताते हैं कि पहले यह मंदिर समूह टिहरी व उत्तरकाशी के अन्य मंदिरों की तरह रियासत काल में बने टैंपल बोर्ड के ही संरक्षण में था। पांच वर्ष पहले पुरातत्व विभाग ने इसे अपने अधीन कर लिया।
क्या कहते हैं अधिकारी
' रैथल का सूर्यमंदिर विभाग द्वारा संरक्षित किये जाने वाले मंदिरों में शामिल है। पांच साल पहले इस पर काम कराया गया था। शीघ्र ही इसके संरक्षण के लिए प्रयास किए जाएंगे।'