वास्तुकला
प्राचीन वास्तुकला के कलात्मक स्वरूप का प्रमुख उदाहरण गोपीनाथ मंदिर है। कत्यूरी वंश के दौरान नागर शैली में निर्मित यह प्रभावकारी मंदिर स्थानीय पत्थरों के बड़े टुकड़ों से निर्मित है। यह इनके निर्माण कर्त्ताओं की निपुण हस्तकला के कौशल एवं दृष्टि केंद्रित पर श्रद्घांजलि है। मंदिर के पीछे 60 फीट गहरे एक प्राचीन कुएं के अवशेष भी यहां मिले हैं। मंदिर नीचे की जमीन पर स्थित है तथा इसके आस-पास घर बनाते समय खुदाई करने पर यह प्राचीन नाली प्रणाली का पता चला, जिसके जरिये इस नीचे की जमीन से पानी बहकर खेतों में जाता था। पास का वैतरणी कुंड भी वास्तुकला एवं अभियांत्रिकी का एक अद्भुत मिश्रण है। इस जलाशय में पानी तीन धारीओं से आता है, जो सुंदर रूप से निर्मित मुहानों द्वारा कुण्ड में गिरता है, जो भूमि के नीचे एक उत्तम पत्थर के पाईप के द्वारा संभव होता है। माना जाता है कि जलाशय से पानी का स्रोत दूर है।
इन विशाल भवनों के पीछे वास्तव में राज्य का संरक्षण एवं साधन रहा था। सामान्य घरों का निर्माण पत्थरों एवं गिलावों (मिट्टी) से हुआ था, जिनकी छतें स्लेट के टुकड़ों से बनी थीं। इन छोटे दो मंजिले घरों की बाल्कनी, दरवाजों एवं खिड़कियों में लकड़ी का इस्तेमाल हुआ जो रूप प्रचुर मात्रा में है। निचले तल पर मवेशियों या उनके चारें को रखा जाता था। संपन्न घरों के प्रवेश द्वार या खोली में तथा बाल्कनी को उठाये ब्रेकेटों पर भी लकड़ी की कुछ उत्तम नक्काशी होती थी। इसके विपरीत आज के घरों का निर्माण उत्तरी-भारत के मैदानी क्षेत्रों की तरह सीमेंट एवं कंक्रीट से होता है।