जात की अधिकृत घोषणा यद्यपि पंचों द्वारा संक्रांति को हो जाती है, परंतु संक्रांति से जगदी जात की तिथि तक जो अंतराल होता है इस अंतराल में पूरे नौज्यूला की कुशलता की भी अति आवश्यकता होती है. कहा गया है कि होनी को कोई टाल नहीं सकता है और ऐसी आशंकाओं से कभी इंकार भी नहीं किया जा सकता है. नौज्यूला के पूर्वजों का दुधादौ देने के पीछे भी यही उद्देश्य ज्ञात होता हैै.
ताकि दिन जात से पूर्व एक बार पुन: सारी नौज्यूला की रैत-प्रजा की कुशलता की समीक्षा की जा सके. साथ ही क्षेत्र के मौसम एवं अन्य विपरीत परिस्थितियों में कोई आकस्मिक निर्णय लेने की गुंजाइश भी बनी रहे. जात के एक दिन पहले दुधादौ भी एक महत्वपूर्ण रस्म होती है.
दुधादौ पंगरियाणा ग्रामसभा के लैणी गांव के नागराजा के बाकी देते हैं. नागराजा के बाकी लैणी से पंगरियाणा आकर एवं यहां के ढोल-दमाऊं वादक घंडियालधार नामक स्थल में आकर विशेष संकेत तालों एवं शंख ध्वनि के माध्यम से अंथवालगांव में पुजारी ब्राह्मïण को इस क्षेत्र की भलाकुशली की सूचना ध्वनि देकर जात की औपचारिक शुरुआत करने का निर्देश देते हैं.
ठीक इसी क्रम में अंथवालगांव से भी ढोल-दमाऊं एवं शंख की संकेत ध्वनि का अविवादन किया जाता है और इसे पूरे नौज्यूला की सकुशलता का प्रतीक माना जाता है. कहते हैं फिर दुधादौ के बाद चाहे जो भी घटित हो जाए, जगदी की जात नहीं टलती.