Author Topic: भक्ति की अनूठी छटा- कांवड़ यात्रा, हरिद्वार Kanwar Yatra, Haridwar  (Read 30741 times)

हेम पन्त

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भगवान आशुतोष महादेव शिव अपने भक्तों को सदैव खुश रखते हैं. उनके भक्त भी अपने परमेश्वर को खुश करने के लिये विभिन्न तरीकों से अपनी आस्था और अपार भक्ति को प्रदर्शित करने से पीछे नहीं हटते. भगवान शिव की आराधना और अटूट आस्था का एक ऐसा ही अदभुत दृश्य  श्रावण मास में देखने को मिलता है जब लाखों शिवभक्त उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों (खासकर पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली) से हरिद्वार पहुंचते हैं और पतित पावनी माँ गंगा का जल ले जाकर अपने स्थान को लौटते हैं. अपने साथ लाये गये पवित्र गंगाजल से वह विशेषकर शिवरात्री के दिन मन्दिरों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं.


इस टापिक के अन्तर्गत हम कांवड़ यात्रा के विभिन्न फलुओं पर विचार-विमर्श करेंगे और इन्टरनेट पर उपलब्ध कांवड़ यात्रा की  तस्वीरों को यहां जुटाने का प्रयत्न करेंगे.

हेम पन्त

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सनातन धर्म की पुरानी मान्यताओं के आधार पर वैसे तो गंगाजल से केवल स्वयंभू शिवलिंगों और 12 ज्योतिर्लिंगों का ही अभिषेक किया जाता है. लेकिन वर्तमान में लोग अपने घरों में स्थित शिवलिंगों का भी गंगा जल से अभिषेक करते हैं. इसके लिये सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करके पूर्ण शुद्धता के साथ गंगाजल को शिवलिंगों तक पहुंचाया जाता है.

अब तो समय के अभाव में कुछ लोग गाड़ियों से भी कांवड़ यात्रा सम्पन्न करते हैं लेकिन पुराने समय में लोग केवल पैदल ही इस कठिन यात्रा को सम्पन्न करते थे. कांवड़ यात्रा के दौरान विभिन्न समूहों और नागरिक संगठनों द्वारा जगह-जगह कांवड़ यात्रा शिविर लगाये जाते हैं, इससे भी भारतीय संस्कृति की  मानवसेवा की पुरातन विचारधारा को बल मिलता है.

हेम पन्त

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सावन का पवित्र महीना भगवान शिव का महीना कहा जाता है. वैसे तो पूरे साल भर शिव उपासना के लिये सोमवार का व्रत रखा जाता है लेकिन सावन के सोमवार को रखे गये व्रतों का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि श्रावण मास में जब सभी देवता विश्राम करते हैं तो महादेव शिव ही संसार का संचालन करते हैं. शिव जी से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें भी सावन मास में ही हुई ऐसा माना जाता है - जैसे समुद्र मंथन के बाद विषपान, शिव का विवाह तथा कामदेव द्वारा भस्मासुर का वध आदि सावन के दौरान की घटनाएं हैं.



 

Devbhoomi,Uttarakhand

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हरिद्वार | लाखों कांवडि़यों के आगमन से तीर्थनगरी हरिद्वार भोलेमय हो चुकी है। कांवड़ यात्रा निर्बाध रूप से संपन्न कराने के लिए राज्य सरकार ने मुकम्मल व्यवस्था की है। हुड़दंगियों से निपटने के लिए घुड़सवार पुलिस के चौदह जवानों को लगाया गया है।

 हरिद्वार में कांवडि़यों के आने और गंगाजल लेकर जाने का क्रम शुरू हो चुका है। डाक कांवड़, जिसमें हुड़दंग करने वाले कांवडि़ये अधिक रहते हैं, को काबू में करने को इस बार पुलिस ने विशेष इंतजाम किए हैं।


घुड़सवार पुलिस को वाकी-टाकी के साथ ही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रकार के बेंत मुहैया कराया गये हैं। हरिद्वार के एएसपी जीपी खंडूड़ी ने कहा, डाक कांवड़ चुनौतीपूर्ण है। तेज गति से आ रहे कांवडि़यों को कंट्रोल करना मुश्किल होता है। वाहन की आपसी भिडं़त सहित अन्य मामलों को लेकर कांवडि़या बवाल करने लगते हैं। भोजन-पानी को लेकर भी व्यापारियों से उनकी लड़ाई हो जाती है।

आगजनी तक की हरिद्वार में घटनाएं हो चुकी हैं। इन सबको काबू करने को पर्याप्त पुलिस तो है, लेकिन घुड़सवार पुलिस को विशेष तौर पर तैनात किया गया है। भीड़ को तितर-बितर करने को यह सबसे उपयोगी पुलिस बल है।

 

Devbhoomi,Uttarakhand

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                    गंगा और शिव के प्रति श्रद्धा की प्रतीक है कांवड़ यात्रा
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श्रावण मास में  शिव की पूजा और आराधना का आज दूसरा सोमवार है। आज ही कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला कामिका एकादशी व्रत है। मंगलवार को मंगला गौरीव्रत है। बुधवार को श्रावण मास की शिवरात्रि का व्रत है।गुरु पूर्णिमा के बाद देश के प्रमुख शिव तीर्थ के लिए कांवड़ यात्राएं आरंभ हो जाती हैं।

चूंकि सावन के पहले पखवाड़े में त्रयोदशी के दिन भगवान शंकर का जलाभिषेक होता है, इसलिए श्रद्धालु अपनी सहूलियत के अनुसार यह यात्रा इस तरह शुरू करते हैं ताकि निश्चित तिथि (शिवरात्रि) तक अपने इष्ट मंदिर में पहुंच जाएं।

यह यात्रा गंगा और शिव के प्रति असीम श्रद्धा की प्रतीक है। इस यात्रा में श्रद्धालु गोमुख, ऋषिकेश, हरिद्वार या गंगा के किसी भी पवित्र तट, घाट अथवा किसी अन्य पवित्र नदी तक की पैदल यात्रा करते हैं और वहां से जल लाकर अपने अभीष्ट शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।कांवड़ यात्रा से अनेक किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि श्रवण कुमार द्वारा अपने माता-पिता को बहंगी में बैठाकर कराई गई तीर्थयात्रा ने ही गंगा और शिव को माता-पिता के समान मानकर त्रेता युग में कांवड़ यात्रा का रूप ले लिया।

एक कथा के अनुसार कांवड़ परंपरा के जनक परशुराम थे। उन्होंने सर्वप्रथम कांवड़ से जल लाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया था।वास्तव में सावन अयन को सुधारने का संदेश देता है - अयन अर्थात नेत्र। सावन में काम का आवेग बढ़ता है। शंकर इस आवेग का शमन करते हैं। कामदेव को भस्म करने का प्रसंग सावन मास का ही है। शिव चरित में उल्लेख मिलता है कि तारकासुर को मारने के लिए शंकर ने श्रावण मास की शिवरात्रि को ही विवाह रचाया था।कहा जाता है कि सावन में हरिद्वार क्षेत्र में आदिदेव शिव विराजते हैं।

अपने श्वसुर राजा दक्ष से किए गए वादे के अनुसार इस मास में भगवान शिव पूरे 30 दिन तक कनखल के दक्षेश्वर मंदिर में विराजते हैं।इन दिनों हरिद्वार के हर गली-कूचे में हर-हर महादेव और बम-बम भोले के जयकारे लगाते लाखों शिवभक्तों का समुद्र दिखाई पड़ता है। हरिद्वार से कांवड़ लाने वाले श्रद्धालुओं में ज़्यादातर यूपी, दिल्ली, हरियाणा और दूरस्थ राजस्थान तक के लोग शामिल होते हैं।

कांवड़ियों के रूप में यह प्रार्थना एक सामूहिक उत्सव का रूप ले लेती है।पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग काशी या इसके आसपास से गंगाजल लेकर बाबा विश्वनाथ अथवा बिहार के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम जाकर जलाभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि यह धाम राक्षसराज रावण ने स्थापित किया था। वैसे मान्यता यह है कि बारह ज्योतिर्लिन्गों में से किसी एक पर भी जाकर यह पूजा की जा सकती है।

गंगाजल से शिवलिंग के अभिषेक के माहात्म्य को कश्मीर से कन्याकुमारी तथा द्वारिका से जगन्नाथपुरी तक समान रूप से स्वीकार किया गया है।गुरुवार को मुस्लिम त्योहार शबे मिराज है। शुक्रवार को सूर्य ग्रहण है।

 लाखों भक्तजन इस मौके पर कुरुक्षेत्र में और अन्य जगह नदियों में स्नान करने जाते हैं। हरियाली अमावस्या और देव-पितृ कार्य अमावस्या भी इसी दिन है। जैन महोत्सव का आयोजन होगा। शनिवार को हिमाचल प्रदेश में छिन्नमस्तिका चिंतपूर्णी देवी का 9 अगस्त तक चलने वाला मेला शुरू होगा।

 
श्रोत - navbharattimes.indiatimes.com





पंकज सिंह महर

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उत्तराखंड का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले हरिद्वार में कई धार्मिक मेले लगते हैं। परन्तु यहां के सबसे महत्वपूर्ण मेलों में से एक है कांवड़ मेला। यह मेला सावन में लगने वाला शिव भक्तों का सबसे बड़ा मेला जाना जाता है। इस मेले के लगने के साथ ही हरिद्वार के तमाम शिवालय सजाए जाते हैं। इस दौरान हरिद्वार की उपनगरी कहे जाने वाले कनल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

कांवड़ मेला अति पौराणिक है। जानकारों का कहना है कि कांवड़ को पहले श्रावण के नाम से जाना जाता है और इसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। कहते हैं कि श्रवण कुमार ने अपने माता- पिता को कांवड़ में बिठा कर तीर्थ कराया और तभी से कांवड़ का प्रचलन है।

मान्यता है कि पवित्र गंगा का जल हर की पौड़ी या फिर गंगोत्री से गंगाजल लेकर अपने शिवालय का अभिषेक करने से सभी मुरादें पूरी होती हैं। साथ ही शिवालय के मिट्टी का भी कांवड़ के लिये काफी महत्व रखता है।

हांलाकि कांवड़ मेले की शुरुआत इस वर्ष पंचक से हो रही है जिसमें कांवड़ ले जाना शुभ नहीं माना जाता है। इसलिये इस बार 27 जुलाई से लगने वाले पंचक के बाद ही हरिद्वार आकर कांवड़ लेने पर इसका अधिक लाभ मिलेगा। हिंदू धर्म में पंचक के दौरान कोई भी शुभ कार्य लाभप्रद नहीं माना जाता।


साभार- samaylive.com

 

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