गंगा और शिव के प्रति श्रद्धा की प्रतीक है कांवड़ यात्रा
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श्रावण मास में शिव की पूजा और आराधना का आज दूसरा सोमवार है। आज ही कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला कामिका एकादशी व्रत है। मंगलवार को मंगला गौरीव्रत है। बुधवार को श्रावण मास की शिवरात्रि का व्रत है।गुरु पूर्णिमा के बाद देश के प्रमुख शिव तीर्थ के लिए कांवड़ यात्राएं आरंभ हो जाती हैं।
चूंकि सावन के पहले पखवाड़े में त्रयोदशी के दिन भगवान शंकर का जलाभिषेक होता है, इसलिए श्रद्धालु अपनी सहूलियत के अनुसार यह यात्रा इस तरह शुरू करते हैं ताकि निश्चित तिथि (शिवरात्रि) तक अपने इष्ट मंदिर में पहुंच जाएं।
यह यात्रा गंगा और शिव के प्रति असीम श्रद्धा की प्रतीक है। इस यात्रा में श्रद्धालु गोमुख, ऋषिकेश, हरिद्वार या गंगा के किसी भी पवित्र तट, घाट अथवा किसी अन्य पवित्र नदी तक की पैदल यात्रा करते हैं और वहां से जल लाकर अपने अभीष्ट शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।कांवड़ यात्रा से अनेक किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि श्रवण कुमार द्वारा अपने माता-पिता को बहंगी में बैठाकर कराई गई तीर्थयात्रा ने ही गंगा और शिव को माता-पिता के समान मानकर त्रेता युग में कांवड़ यात्रा का रूप ले लिया।
एक कथा के अनुसार कांवड़ परंपरा के जनक परशुराम थे। उन्होंने सर्वप्रथम कांवड़ से जल लाकर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया था।वास्तव में सावन अयन को सुधारने का संदेश देता है - अयन अर्थात नेत्र। सावन में काम का आवेग बढ़ता है। शंकर इस आवेग का शमन करते हैं। कामदेव को भस्म करने का प्रसंग सावन मास का ही है। शिव चरित में उल्लेख मिलता है कि तारकासुर को मारने के लिए शंकर ने श्रावण मास की शिवरात्रि को ही विवाह रचाया था।कहा जाता है कि सावन में हरिद्वार क्षेत्र में आदिदेव शिव विराजते हैं।
अपने श्वसुर राजा दक्ष से किए गए वादे के अनुसार इस मास में भगवान शिव पूरे 30 दिन तक कनखल के दक्षेश्वर मंदिर में विराजते हैं।इन दिनों हरिद्वार के हर गली-कूचे में हर-हर महादेव और बम-बम भोले के जयकारे लगाते लाखों शिवभक्तों का समुद्र दिखाई पड़ता है। हरिद्वार से कांवड़ लाने वाले श्रद्धालुओं में ज़्यादातर यूपी, दिल्ली, हरियाणा और दूरस्थ राजस्थान तक के लोग शामिल होते हैं।
कांवड़ियों के रूप में यह प्रार्थना एक सामूहिक उत्सव का रूप ले लेती है।पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग काशी या इसके आसपास से गंगाजल लेकर बाबा विश्वनाथ अथवा बिहार के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम जाकर जलाभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि यह धाम राक्षसराज रावण ने स्थापित किया था। वैसे मान्यता यह है कि बारह ज्योतिर्लिन्गों में से किसी एक पर भी जाकर यह पूजा की जा सकती है।
गंगाजल से शिवलिंग के अभिषेक के माहात्म्य को कश्मीर से कन्याकुमारी तथा द्वारिका से जगन्नाथपुरी तक समान रूप से स्वीकार किया गया है।गुरुवार को मुस्लिम त्योहार शबे मिराज है। शुक्रवार को सूर्य ग्रहण है।
लाखों भक्तजन इस मौके पर कुरुक्षेत्र में और अन्य जगह नदियों में स्नान करने जाते हैं। हरियाली अमावस्या और देव-पितृ कार्य अमावस्या भी इसी दिन है। जैन महोत्सव का आयोजन होगा। शनिवार को हिमाचल प्रदेश में छिन्नमस्तिका चिंतपूर्णी देवी का 9 अगस्त तक चलने वाला मेला शुरू होगा।
श्रोत - navbharattimes.indiatimes.com