अन्य विद्वानों का मत है कि बड़ाहाट नाम उस प्राचीन त्रिशूल से आया है, जिसे 12 शक्तियों का श्रोत माना गया है और ‘बारह’ शब्द का अपभ्रंश है बड़ाहाट। प्राचीन ग्रंथों में बड़ाहाट से संबद्ध ‘चामला की चौड़ी’ का भी वर्णन मिलता है। आज चामला की चौड़ी को भैरों चौक कहा जाता है जहां भैरव, अन्नपूर्णा एवं परशुराम मंदिर हैं। चामला की चौड़ी का नाम एक चंपा पेड़ पर है, जिसके नीचे बनें चौक का इश्तेमाल ग्राम परिषद की बैठक, तीर्थ यात्रियों का एकत्र होकर प्रार्थना करने के लिये होता था, जो वे गंगोत्री की कठिन पैदल यात्रा से पहले करते थे।
उत्तरकाशी पर पाल या पंवार वंश के राजाओं की हुकूमत थी। इस वंश की स्थापना कनक पाल ने 9वीं शताब्दी में की जब उसने चांदपुर गढ़ी के सरदार की लड़की से शादी की। कनक पाल के 37वें वंशज ने गढ़वाल के 52 छोटे-मोटे राजाओं को परास्त कर, पंवार या पाल वंश को प्रबल किया और गढ़वाल के अधिकांश हिस्से पर राज्य करने लगा। उसने अपनी नई राजधानी 16वीं शताब्दी में श्रीनगर में स्थापित की। इसके बाद कई पंवार राजाओं ने श्रीनगर से राज किया। वर्ष 1803 में नेपाल के गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया जबकि प्रद्युम्न शाह राजा था। मुठभेड़ में प्रद्युम्न शाह मारा गया और उसका राज्य गोरखों ने हथिया लिया। वर्ष 1814 में गोरखों का संपर्क अंग्रेजों से हुआ क्योंकि उनकी सीमाएं अंग्रेजों से सटी थी। सीमा की कठिनाईयों ने अंग्रेजों को गढ़वाल पर आक्रमण करने को बाध्य किया। अप्रैल, 1815 में गोरखों को गढ़वाल क्षेत्र से खदेड़ दिया गया एवं गढ़वाल को अंग्रेजों के जिले में मिला लिया गया तथा पूर्वी गढ़वाल तथा पश्चिमी गढ़वाल में इसे विभक्त कर दिया गया। पूर्वी गढ़वाल को अंग्रेजों ने अपने पास ही रखा और दून घाटी को छोड़कर अलकनंदा नदी के पश्चिम स्थित पश्चिमी गढ़वाल को गढ़वाल वंश के उत्तराधिकारी सुदर्शन शाह को दे दिया गया। इस राज्य को टिहरी गढ़वाल या टिहरी रियासत कहा गया तथा वर्ष 1947 में भारत की स्वाधीनता के बाद वर्ष 1949 में इसे उत्तर प्रदेश राज्य के साथ मिला दिया गया।
स्वाधीनता के बाद जब टिहरी गढ़वाल राज्य का विलय भारत के साथ हुआ तो वर्ष 1960 में उत्तरकाशी सीमा का जिला बनाया गया। नये जिले का महत्व दो बहुत महत्वपूर्ण तीर्थ केंद्रों गंगोत्री एवं यमुनोत्री के कारण हैं जो गंगा (भागीरथी) एवं यमुना दो पवित्र नदियों के श्रोत स्थल हैं।