Author Topic: Mahakumbh-2010, Haridwar : महाकुम्भ-२०१०, हरिद्वार  (Read 152099 times)

हेम पन्त

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Dalai Lama Participates in Maha Kumbh Mela
« Reply #460 on: April 07, 2010, 11:36:00 AM »
Haridwar: His Holiness the Dalai Lama joined a series of programmes organised by Parmarth Niketan, an ashram in Rishikesh, as a part of the ongoing Maha Kumbh mela (large religious gathering of Hindu religion) on Sunday.

“Encyclopaedia of Hinduism” was launched by His Holiness the Dalai Lama, Yoga Guru Swami Ramdev, NDA working chairman L K Advani and others at a function that drew a galaxy of spiritual gurus and leaders from the BJP and VHP.

Lauding the Indian tradition His Holiness the Dalai Lama said, “India must take the lead in promoting secular ethics with Indian tradition of non-violence and harmony among various faiths.”

His Holiness the Dalai Lama along with other spiritual gurus and BJP leaders L K Advani and Uttarakhand Chief Minister Ramesh Pokhriyal took part in the ‘Ganga Sparsh Abhiyaan’ function aimed to keep the Ganga river clean organised by the Uttarakhand government.

source: tibet.net

हेम पन्त

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Devbhoomi,Uttarakhand

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आस्ट्रेलिया के संत को बनाया गया महामंडलेश्वर...... हरिद्वार महाकुम्भ 2010

हरिद्वार महाकुम्भ में अखाडो द्वारा महामंडलेश्वर बनाये जाने की प्रक्रिया जारी है ।हिन्दू धर्म के प्रचार -प्रसार व संस्कृति के प्रसार के लिए अखाडे के महामडलेश्वर को चुना जाता है इसी क्रम में हिन्दुधर्म की वसुधैव कुटुंकम की संस्कृति का पालन करते हुए आस्ट्रेलिया के संत को महानिर्वाणी अखाडें का महामंडलेश्वर बनाया गया उनका नाम अब स्वामी जसराज गिरि कर किया गया है  ।

महामंडलेश्वर स्वामी जसराज गिरी 15 सालो से दिल्ली में अपना आश्रम चलाते हुए विश्व में वैदिक सभ्यता का प्रचार-प्रसार कर रहे है । उनके महामंडलेश्वर बनाये जाने पर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वदेवानंद ने कहा कि इससे भारत व आस्ट्रेलिया के रिश्तों में मजबूती आयेगी भारत के साधु संतों  ने उन्हे महामंडलेश्वर बना कर आस्ट्रेलिया के निवासियों को भाईचारे का संदेश दिया है।

इससे आस्ट्रेलिया में भारतवासियों पर हो रहे हमलों को रोकने में मदद मिलेगी । महामंडलेश्वर बने   स्वामी जसराज गिरि ने कहा कि आस्ट्रेलिया व भारत के संबध हमेशा मैत्री पूर्ण रहे है वह दोनो देश के बीच आध्यात्मिक संबधों का और मजबुत करेंगे।

इस अवसर पर अखाडे के महामंडलेश्वरों ने नवनियुक्त महामंडलेश्वर को सन्त परम्परा के अनुसार चादर ओढाई व बधाई दी पट्टाभिषेक के अवसर पर विदेशी भक्तों युरोप,आस्ट्रेलिया,स्लोवानिया ,रूस आदि देशों के विदेशी भक्तो ने भी स्वामी जसराज गिरी को चादर
ओढाई तथा आर्शीवाद लिया । विदेशी भक्तो में आस्ट्रेलियाई संत को महामंडलेश्वर जैसी महत्वपूर्ण उपाधि दिए जाने से उत्साह  व हर्ष  दिखायी दिया।

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                    अमृत-कुम्भकी अवधारणा

वर्तमान समय में भी वसुधा के ओर-छोरतक किसी न किसी रुप में अखिल कोटिब्रह्याण्डनायक उस परम प्रभु की व्यापक शासन-शक्ति धर्मरुप से निर्बाध दृष्टिगोचर हो रही है। वर्णा श्रमियों की सुदृढ़ता का ही फल है कि परमपिता परमेश्वर भी सदेह धरातल पर अवतीर्ण होकर सज्जन, साधु-रक्षा एवं दुष्टों का संहार कर पृथ्वी का भार हल्का करन में अग्रसर होते हैं-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
(गीता ४/७-८)

भावार्थ- नाना प्रकार के पर्वो का सर्जन भी धार्मिक विज्ञानों द्वारा ही हुआ था। सबसे मूल में कोई न कोई अलौकिक विशेषता विद्यमान रहती है जिसे विचारशील ही समझ पाते हैं। इन्हीं महापर्वों में कुम्भ पर्व भी है जो कि भारत के हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चार स्थानों में मनाया जाता है।

वैसे 'कुम्भ' शब्द का अर्थ साधारणः घड़ा ही है, किन्तु इसके पीछे जनसमुदाय में पात्रता के निर्माण की रचनात्मक शुभभावना, मंगलकामना एवं जनमानस के उद्धार की प्रेरणा निहित है।

यथार्थतः 'कुम्भ' शब्द समग्र सृष्टि के कल्याकारी अर्थ को अपने आपमें समेटे हुए है-

कुं पथ्वीं भवयन्ति संकेतयन्ति भविष्यक्तल्याणादिकाय महत्याकाशे स्थिताः बुहस्पत्यादयो ग्रहाः संयुज्य हरिद्वारप्रयागादितत्तत्पुण्यस्थान-विशंषानुद्दिश्य यस्मित्‌ सः कुम्भः।

भावार्थ- 'पृथ्वी को कल्याण की आगामी सूचना देने के लिये या शुभ भविष्य के संकेत के लिये हरिद्वार, प्रयाग आदि पुण्य स्थान विशेष के उद्देश्य से निर्मल महाकाश में बृहस्पति आदि ग्रहराशि उपस्थित हों जिसमें, उसे कुम्भ' कहते हैं।'

इसके अतिरिक्त अन्यान्य जन कल्याणकारी भावों को भी 'कुम्भ' शब्द के शब्दार्थ देखा जा सकता है।

पुराणों में कुम्भ पर्व की स्थापना बारह की संख्या में की गयी है, जिनमें से चार मृत्युलोक के लिये और आठ देवलोक के लिये है-

देवानां द्वादशाहोभिर्मर्त्यैर्द्वादशवत्सरैः।
जायन्ते कुम्भपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया॥
पापापनुत्तये नृणां चत्वारि भुवि भारते।
अष्टौ लोकान्तरे प्रोक्ता देवैर्गम्या न चेतरैः॥

भावार्थ- भूमण्डल के मनुष्य मात्र के पाप को दूर करना ही कुम्भकी उत्पत्तिका हेतु है। यह पर्व प्रत्येक बारह में वर्ष हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चारों स्थानों में होता रहता है। इन पर्वों में भारत के प्रान्तों से समस्त सम्प्रदायवादी स्नान, ध्यान, पूजा-पाठादि करने के लिये आते हैं।

क्षार-समुद्र से पर्यवेष्टित भारत भूमि स्वभावतः मलिनता के कलंक पकड़ से युक्त है। यह पुण्यप्रक्षालित भूमि है। भौगोलिक दृष्टि से इसके चार पवित्र स्थानों में उस अमृत-कुम्भ की प्रतिष्ठा हुई थी, जो उस समुद्र-मन्थन से उदूत हुआ था।

कालिक दृष्टि से ग्रहयोग जो खगोल में लुप्त-सुप्त अमृतत्व को प्रत्यक्ष और प्रबुद्ध कर देते हैं, चारों स्थानों में बारह-बारह वर्ष पर अर्थात्‌ द्वादश वर्षात्मक कालयोग से प्रकट होते हैं।

तब गंगा (हरिद्वार), त्रिवेणीजी (प्रयाग), शिप्रा (उज्जैन) और गोदावरी (नासिक)-ये पतितपावनी नदियाँ अपनी जलधारा में अमृतत्व को प्रवाहित करती हैं। अर्थात्‌ देश, काल एवं वस्तु तीनों अमृत के पादुर्भाव के योग्य हो जाते है। फलस्वरुप अमृतघट या कुम्भ का आवतरण होता है।

कालचक्र न केवल जीवन के क्रिया-कलाप का मूलाधार है; अपितु समस्त यज्ञकर्म, अनुष्ठान एवं संस्कार आदि भी कालचक्र पर आधारित हैं। कालचक्र में सूर्य, चन्द्रमा एवं देवगुरु बृहस्पति महत्वपूर्ण स्थान है। इन तीनों का योग ही कुम्भ पर्व का प्रमुख आधार है। जब बृहस्पति मेष राशि पर तथा चन्द्रमा, सूर्य मकर राशि पर स्थित हों तब प्रयाग में अमावस्या तिथि को अति दुर्लभ कुम्भ होता है।

 इस स्थिति में सभी ग्रह मित्रतापूर्ण और श्रेष्ठ होते हैं। हमारे जीवन में जब मित्र और श्रेष्ठजनों का मिलन होता है तभी श्रेष्ठ एवं शुभ विचारों का उदय होता है और हमारे जीवन में यह योग ही सुखदायक होता है।

कुम्भ के अवसर पर भारतीय संस्कृति और धर्म से अनुप्राणित सभी सम्प्रदायों के धर्मानुयायी एकत्रित होकर अपने समाज, धर्म एवं राष्ट्र की एकता, अखण्डता, अक्षुण्णता के लिये विचार-विमर्श करते हैं। स्नान, दान, तर्पण तथा यज्ञ का पवित्र वातावरण देवताओं को भी आकृष्ट किये बिना नहीं रहता।

 ऐसी मान्यता है कि महापर्व पर सभी देवगण तथा अन्य पितर-यक्ष-गन्धर्व आदि पृथ्वी पर उपस्थित होकर न केवल मनुष्यमात्र, अपितु जीवमात्र को अपनी पावन उपस्थिति से पवित्र करते रहते हैं।

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                                             महाकुंभ में 400 करोड़ से ज्यादा होगा फूलों का कारोबार
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हरिद्वार में 14 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ में 400 करोड़ रुपए से भी अधिक फूलों का कारोबार होने की संभावना है और इसके लिए काफी पहले से ही उत्तराखण्ड के फूल उत्पादक किसानों और व्यापारियों ने तैयारी कर रखी है।

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने विशेष बातचीत में बताया कि चार महीनों तक चलने वाले महाकुंभ के दौरान करीब पांच से छह करोड़ लोगों के आने की संभावना है, जिसमें विदेश से हजारों की संख्या में लोग आ रहे हैं।

कुंभ मेले के दौरान गंगा के किनारे बने विभिन्न देवी देवताओं के मंदिरों की सजावट, विभिन्न धार्मिक पंडालों के सजावट, विभिन्न देवी देवताओं की मूर्ति पर चढा़ये जाने वाले फूल और मूर्तियों के श्रृंगार के लिए हजारों टन फूलों की जरूरत है।

देहरादून के फूल व्यापारी सुदेश चौहान ने बताया कि सबसे अधिक मांग गेंदा और देसी गुलाब की है। मुख्य रूप से लाल और पीले रंग के गेंदे और गुलाब के लिए अभी से बुकिंग हो चुकी है।

सुदेश ने बताया कि गेंदा और गुलाब के अलावा ग्लोडियस, रंजनीगंधा, चांदनी तथा कुछ अन्य फूलों की भी जबर्दस्त मांग है। इन फूलों से एक तो बडी़ बडी़ मालाएं बनाई जाती हैं जो विभिन्न विग्रहों पर चढा़ने के काम आती हैं इसके अतिरिक्त पंडालों और मंदिरों की सजावट के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

राज्य के सुगंध पौधा केन्द्र के वैज्ञानिक नपेन्द्र चौहान ने बताया कि केन्द्र की सेलाकुईं शाखा की ओर से पचास एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में किसानों ने गेंदे की बुआई की है। इसके लिए उन्हें मुफ्त में बीज और पौधे भी उपलब्ध कराये गये हैं।

उन्होंने बताया कि इसी तरह से हरिद्वार में भी इस वर्ष काफी अधिक क्षेत्र में फूलों की खेती की गई है और कुंभ के आने का इंतजार हो रहा है जब इस उपज से किसान लाभ कमा सकेंगे।

ऋषिकेश के संत रामेश्वर दास ने बातचीत में बताया कि इतनी भारी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी आस्था के तहत पूजा के लिए फूल उपलब्ध कराना भी प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है।

राज्य उद्यान विभाग के सूत्रों ने बताया कि पूरे राज्य में इस वर्ष विशेषतौर पर साढे़ दस लाख पौधों का वितरण किया गया है और 4565 हेक्टयर क्षेत्र में उद्यानों का विस्तार भी किया गया है। सूत्रों के अनुसार सुंगध पादप विकास योजना के तहत इस वर्ष किसानों को विशेष सहायता राशि भी दी गई है।

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आस्ट्रेलिया के संत को बनाया गया महामंडलेश्वर...... हरिद्वार महाकुम्भ 2010


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