धर्म की राह में सदियों पुराना नरकंकालों का टीला - नेशनल जियोग्राफी चैनल, ऑक्सफोर्ड यूनि. ने किया शोध
हिमालयी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड की श्रीनंदा राजजात यात्रा 14 साल बाद एक बार फिर रूपकुंड से होकर गुजरी। राजजात के हजारों यात्रियों ने रूपकुंड में और उसके आसपास पड़े सैकड़ों नरकंकालों को देखकर दांतों तले अंगुली दबा ली। सदियों से रहस्य-रोमांच के आवरण में लिपटे रूपकुंड के नरकंकालों पर काल (वक्त) भारी पड़ने लगा है।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते कम बर्फबारी, ग्लेशियरों के सिकुड़ते जाने से जनपद के सीमांत क्षेत्र में स्थित रूपकुंड भी सूखने के कगार पर है। इसलिए बर्फ और ठंडे पानी में कुदरती तौर पर संरक्षित कंकाल क्षरित होने लगे हैं। अगर इनके संरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई तो बहुत जल्द ये अतीत बन जाएंगे।��
दोगुने कद के रहे होंगे उस वक्त के लोग
रूपकुंड में पाए गए कंकालों में से पूरी तरह साबुत तो नहीं बचे हैं लेकिन हाथ-पैर और दूसरे अंगों की लंबाई मौजूदा मानव से दोगुनी है। अनुमान लगाया गया है कि जिन लोगों के कंकाल हैं उनकी औसत लंबाई 10 से 12 फीट के बीच रही
होगी।
कितने पुराने, क्या है मान्यता, हकीकत क्या
कार्बन डेटिंग में विद्वानों ने कंकालों को 600 से 800 साल पुराना पाया है। कुछ विद्वान एक साथ इतने कंकालों को पाए जाने को सामूहिक खुदकुशी अथवा कुदरत के कहर से जोड़ते हैं। स्थानीय मान्यता इसे चौदहवीं सदी में संपन्न हुई श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के� साक्ष्य के रूप में देखती है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि 14वीं सदी में कन्नौज के राजा जसधवल एवं रानी बल्लभा ने देवी दोष निवारण के लिए श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा की थी। यात्रा में राजा ने पवित्रता का ध्यान नहीं रखा इसलिए उसे देवी के कहर से महारानियों और अनुचरों समेत रूपकुंड के पास अपनी जान गंवानी पड़ी।
कुछ ऐसे भी हैं जो रूपकुंड को स्वर्ग के मार्ग के तौर पर बताते हुए इन कंकालों को पांडवों के स्वर्गारोहण से जोड़ते हैं। अब इसमें कौन सा दावा सही है ये तो नहीं कहा जा सकता है पर इन कंकालों की अपनी कोई न कोई कहानी तो होगी ही।
1956 में रूपकुंड के ट्रैकऔर कंकालों पर शोध शुरू हुए। कार्बन डेटिंग में कंकाल 500-600 वर्ष पुराने पाए गए। हालांकि बाद में नेशनल जियोग्रैफी चैनल के विद्वानों और आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध करके इन्हें करीब 800 साल पुराना बताया।
मानव विकास संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रोफेसर आरएस नेगी कहते हैं कि अगर नंदा रातजात यात्रा उस दौर में होती थी तो इन्हें उससे जोड़ा जा सकता है।
कुदरती सौंदर्य के बीच स्थित रूपकुंड उपेक्षा का शिकार
बर्फीली चोटियों और शानदार कुदरती नजारों के बीच स्थित रूपकुंड का आकर्षण सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है। कंकालों का रहस्य और उससे गुंफित अनेक गाथाओं को जानने की उत्सुकता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। लेकिन इन कंकालों के संरक्षण की दिशा में शासन स्तर पर कुछ भी नहीं किया गया।
नर कंकालों के संरक्षण के लिए पूर्व में राज्य सरकार से वार्ता हुई लेकिन सरकार ने किसी संस्था अथवा व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी नहीं सौंपी। कंकालों पर शोध जारी है।
-डॉ. विनोद कौल कार्यालय अध्यक्ष भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण देहरादून।
मृत जीव अपघटक जैविक प्रक्रिया के तहत नष्ट होते हैं।� यह प्रक्रिया भी कंकालों को नुकसान पहुंचा रही है। पहले वर्ष भर क्षेत्र हिमाच्छादित रहता था जिस वजह से कंकाल सुरक्षित थे। लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग के चलते इस क्षेत्र में� सिर्फ छह माह ही बर्फ रहती है। संरक्षण के लिए कंकालों पर रासायनिक लेप लगाने के अलावा रूपकुंड को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।
-डॉ. राजेश नौटियाल, विभागाध्यक्ष, भूगोल राजकीय महाविद्यालय कर्णप्रयाग।
रूपकुंड में मौजूद नरकंकालों को विश्व धरोहर घोषित करने की मांग की जा रही है। इनके संरक्षण के लिए जल्द प्रयास किए जाएंगे और सरकार से बात की जाएगी।
-डॉ. अनुसूया प्रसाद मैखुरी, विधायक कर्णप्रयाग।
http://www.dehradun.amarujala.com/feature/city-news-dun/800-years-old-man-skeleton-in-nanda-raj-jat-track-hindi-news/?