नौटी और वाण गांव में गाये जाने वाले लोकगीतों और जागरों में यह भी वर्णन है कि १४ वीं सदी में कन्नौज के राजा जसधवल ने भी जात का आयोजन किया था। कहा जाता है कि एक बार नन्दा आकाश मार्ग से कन्नौज के राजा जसधवल और उनकी गढ़वाली रानी वल्लभा के दरबार में पहुंची और कुशल क्षेम के बाद मां नन्दा ने रानी वल्लभा से राज्य मांग लिया, लेकिन रानी ने उन्हें राज्य देने से इंकार कर दिया। रुष्ट होकर नन्दा हिमालय लौट आई और रानी से कह आई कि तुम अब राज्य का सुख नहीं भोग पाओगी। कुछ दिनों बाद राज्य में अकाल पड़ गया और विपदा आ गई, राजा ने इस विपदा का कारण पुरोहितों से पूछा तो बताया गया कि रानी के मायके की देवी का दोष लगा है और इसके लिये राजजात की मनौती का विधान है।
राजा अपनी गर्भवती पत्नी वल्लभा, पुत्र, पुत्री, सेना और नर्तकियों को लेकर यात्रा पर चल पड़ा। हरिद्वार से वाण तक वह सकुशल पहुंचा, लेकिन उसके बाद दर्प में यात्रा के नियमों की अवहेलना करने लगा। रिणकीधार (अब पातर नचौणीयां) से आगे महिलाओं, बच्चों और अशुद्ध वस्तुओं के ले जाने पर निषेध है, लेकिन राजा ने यहां पर नर्तकियों से नृत्य करवाया तो देवी श्राप के कारण वे नर्तकियां शिला में बदल गई, तब से इस स्थान को पातर नचौणियां कहा जाता है। राजा तब भी सचेत नहीं हुआ और भगुवासा से आगे गंगतोली गुफा में रानी ने एक कन्या को जन्म दिया, इससे देवी क्रोधित हो गई। रानी, राजा के अतिरिक्त सैन्यदल और सेवल ज्यूंगराली मे रुके थे,वहां प्रचण्ड ओलावृष्टि हुई, नन्दा के सेवक लाटू ने लौह और पाषाण वर्षा की, राजा का समस्त परिवार और सैन्यदल यहीं पर समाप्त हो गया। वल्लभा की प्रसूति के कारण गंगतोली गुफा का नाम वल्लभा स्वेड़ा पड़ गया। १६००० फीट की ऊंचाई पर आज भी सैकड़ो कंकाल पड़े हैं, जो इन्हीं यात्रियों के बताये जाते हैं। मां नन्दा ने चांदपुर गढ़ी के राजा को वैतरणी कुंड में इन मॄतकों का तर्पण करने का आदेश दिया था, तब से राजजात के समय भी रुपकुंड में मृतकों के तर्पण की परम्परा है।........