.....इनको लाटू देवता इसलिये भी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें एक लाट (खम्भे) के ऊपर टांक कर नचाया जाता है, इन्हें लाटू जाख भी कहा जाता है। लाटू देवता के संबंध में कथा है कि पूर्व काल में सूर्यवर्चा नाम का एक यक्षपति राजा था, जिसने ब्रह्मा जी के वरदान से द्वापर युग में घटोत्कच की पत्नी भैमी के गर्भ से जन्म लिया था, इनका नाम बरबरीक था। यह एक कुशल योद्धा थे और महाभारत के युद्ध में मां से यह वचन लेकर आये थे कि जो भी पक्ष हार रहा होगा, वे उनकी ओर से ही लड़ेंगे (क्योंकि उनकी माता ने बताया कि तुम्हारे पिता लोग ५ भाई है, जब कि कौरव १०० हैं। तो तुम्हारे पिता वर्ग के लोग निश्चित ही हार रहे होंगे, तो तुम पहचान जाना कि जो हार रहे होंगे, वे तुम्हारे पितृ पक्ष के होंगे। लेकिन तब तक कौरव हार रहे थे) तो श्रीकृष्ण जी ने उनका सिर काट दिया और सिर को अजर-अमर रहने का वरदान दिया और महाभारत का युद्ध देखने की इजाजत भी दी और यह भी वरदान दिया कि भविष्य में तुम्हारे सिर की पूजा होगी और लोग तुम्को लम्बी लाट पर टांक कर नचायेंगे। यही यक्षपति राजा लाटू, धुडि़या, सलूड़िया, लाटू जाख हीत, हिंगलास आदि नामों से जाने लगे। इसे हमारे यहां क्षेत्रपाल या भूम्याल कहते हैं, राजस्थान आदि में इन्हें खांटू श्याम बाबा के नाम से जाना जाता है।