अगर अध्यात्म के साकार दर्शन करने हैं, तो हिमालय की छवि ही काफी है। सफेद बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों की शांति आपकी आत्मा को छू लेगी। हिमालय के ऐसे ही एक हिमनद पर मिले एक तीर्थयात्री का कहना था कि एक बार हिमालय आइए, यह आपको बार-बार बुलाएगा।
यह गलत नहीं है। हिमालय के पर्वतों पर छाई चुप्पी अपने में अनेक रहस्य छुपाए है। इसके रहस्यों को खोजने के लिए इसकी विशालता सभी को आमंत्रित करती है। हिमालय की गोद में आपको अनेक गुफाएं मिलेंगी, जिन गुफाओं ने बीते समय की कई कहानियां खुद में समेट रखा है। ऐसी ही एक गुफा का नाम है पाताल भुवनेश्वर।
हिंदू धर्म के आदिदेव शंकर को सर्मपित यह रहस्यमयी गुफा महान हिमालय की श्र्ृंखला में स्थित है। पिथौरागढ़ जनपद में मुख्यालय से लगभग 99 किमी. की दूरी पर गंगोलीहाट नामक एक जगह है। यहीं पर पाताल भुवनेश्वर गुफा स्थित है।
गुफा के प्रवेश द्वार के आस-पास मंदिर बना दिया गया है। गुफा का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु पहले यहां मंदिर में दर्शन करते हैं। इस गुफा का आभास ही मन में श्रद्धा की भावना जगाता है। गुफा में स्थित आदिदेव के दर्शन के बाद ही इस जगह पर आना सार्थक लगता है। इस गुफा का प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि इसमें खड़े होकर अंदर प्रवेश नहीं किया जा सकता। लेकिन वास्तव में अंदर जाने में कोई परेशानी नहीं होती है। प्रवेश द्वार में घुसने के बाद चिकनी ढलान वाला बेहद छोटा रास्ता आता है। श्रद्धालुओं के लिए आसानी हो, इसके लिए इस रास्ते पर रस्सियां लगा दी गई हैं। प्राकृतिक रूप से लगी चट्टानों पर ही पैर जमा-जमा कर आपको नीचे उतरना होगा। नीचे यह रास्ता एक बेहद विस्तृत कमरे जैसे स्थान में खुलता है। यहां से शुरू होती है पाताल भुवनेश्वर की गुफा। यहां गुफा की छत कहीं बहुत नीची है और कहीं बहुत ऊंची। ऊपर लटक रही चट्टानों से न जाने कहां से पानी गिरता रहता है।
इस कमरे जैसे स्थान से आगे जाने के लिए कई संकरे रास्ते हैं, जो अलग-अलग विस्तृत स्थानों पर खुलते हैं। इन्हीं स्थानों में से एक में तांबे से मढ़ा शिवलिंग स्थापित है। इसकी ऊंचाई जमीन से बहुत कम है। जिस तरह यह कोने में स्थापित है, आंखों के सामने पद्मासन की मुद्रा में इस मूर्ति के आगे बैठे तपस्वी की कल्पना साकार हो उठती है। यह गुफा इतना शांतिदायक और आध्यात्मिक आभास देती है कि अच्छे से अच्छा गृहस्थ भी यहां बैठकर तपस्या की सोचने लगता है।
इस स्थान से आगे गुफा में एक ऊंचे स्थान पर तीन छोटी-छोटी आकृतियां हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे शंकर-पार्वती और गणेशजी की अनगढ़ मूर्तियां हैं। अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस गुफा में इन्हें स्थापित किया था और इसकी आराधना की थी। इसी तरह गुफा में एक आकृति है, जिसके बारे में पुजारी का कहना है कि वह असंख्य पत्तियों वाला ब्रह्माजी का कमल है। गुफा में एक भयंकर आकृति भी है, जिसको भैरव मार्ग कहते हैं।
इस गुफा की खोज को लेकर बहुत-सी कथाएं प्रचलित हैं। एक किंवदंती के अनुसार, राजा नल अपने शौकिया खेल चौपड़ में सब हार गए। दुखी होकर वे हिमालय में अपने दोस्त के साथ तपस्या करने गए। वहां उन्हें एक अलौकिक हिरन दिखाई दिया। उसको प्राप्त करने के लिए राजा ने उस स्थान के क्षेत्रपाल की तपस्या की। क्षेत्रपाल ने प्रकट होकर राजा से कहा कि दरअसल वह हिरन तो शंकर भगवान ही हैं, जो इस क्षेत्र की एक गुफा में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं के साथ रहते हैं। अपनी तपस्या से उन्होंने गुफा के साथ-साथ चारों धाम के भी दर्शन किए। लेकिन यह रहस्य उन्होंने अपनी रानी को बता दिया। इसलिए उनकी मृत्यु हो गई। उनकी रानी ने इस गुफा के बारे में पता लगाया और इसके बारे में वेद व्यास को बताया। इसीलिए इस गुफा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।
इसी गुफा के पास एक गांव है चिटगल। काफी समय पूर्व पाराशर गोत्र के गोभन पमत नामक एक ब्राह्मण इस गांव में निवास करते थे। कहा जाता है कि उनके पास एक सुंदर गाय थी। जब वह जंगल में चरने जाती थी, तो वृद्ध भुवनेश्वर जो गुफा से कुछ ही दूरी पर है, वहां स्थित शिवलिंग के ऊपर अपना सारा दूध निचोड़ आती थी। ब्राह्मणी रोज हैरान रहती थी कि आखिर दूध कहां चला जाता है। एक दिन ब्राह्मणी ने स्वयं ही गाय का पीछा किया, तो यह दृश्य देखकर हैरान रह गई। उसे बेहद क्रोध आया। उसने दरांती से उसी वक्त शिवलिंग पर वार किया। शिवलिंग से दूध की धारा फूट पड़ी। यह आश्चर्यजनक दृश्य देखकर ब्राह्मणी अचेत हो गई। होश आने पर वह किसी तरह घर पहुंची, पर घर पहुंचते ही उसकी मृत्यु हो गई।
काफी दिनों तक इस स्थल की ओर फिर किसी का ध्यान नहीं गया। बाद में पुराणों का अध्ययन करके जगद्गुरु शंकराचार्य ने इस गुफा को खोजा और शिव-शक्ति को तांबे से नवाजा। उन्होंने इसका राज चंद्र वासियों के राजा को बताया। चंद्र वासियों ने यहां पर सीढ़ियां बनवाईं। अब इस गुफा में दर्शन हेतु कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था है। काशी से आए पुजारियों के वंशज यहां पूजा का कार्य तथा गुफा का मार्गदर्शन करते हैं। गुफा कमेटी के प्रबंधक दान सिंह भंडारी बताते हैं, ‘गुफा के भीतर विमान कलाकृतियां, जैसे नौ लाख तारे, तैंतीस कोटि देवता, गरुड़, चारों युग, भीम की गदा, ऐरावत हाथी के पांव, कामधेनु के थन से टपकता दूध, भगवान शिव की जटाएं आदि पर्यटकों व श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।’