पूर्णागिरी धाम में बिकता है कानपुर और बनारस का सिंदूर
अमर उजाला ब्यूरो
टनकपुर (चंपावत)। मां पूर्णागिरि धाम का मेला आस्था के अलावा कारोबारी नजरिए से भी महत्वपूर्ण है।
देश के तमाम हिस्सों से हर साल मेले में लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन को आते हैं। पिछले एक दशक से यात्रियों की आवाजाही हर बार बढ़ रही है। कानपुर और बनारस से आने वाले सिंदूर की खूब मांग रहती है।
मेले से परिवहन विभाग, रोडवेज और रेलवे की कमाई तो होती है, कई नौजवानों का रोजगार भी इस मेले पर निर्भर है। सैकड़ों टैक्सी मालिक और चालक कमाई कर सालभर की रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं। कानपुर, सोरों, बदायूं, पीलीभीत, कासगंज, एटा आदि से व्यापारी मेले में दुकानें लगाकर कारोबार करते हैं। प्रसाद और चढ़ावे की सामग्री के अलावा खिलौनों का कारोबार भी खूब होता है।
शुभ माना जाता है मां के धाम से खरीदा गया सिंदूर
कंदमूल के नाम पर बिकती है रामबांस की जड़
मेले में रत्नों की भी होती है बिक्री
टनकपुर। पूर्णागिरि मेले में रत्नों की बिक्री भी खूब होती है। बांदा जिले के रत्न कारोबारी लकेश कुमार सोनी करीब दो दशक से यहां रत्नों की दुकान लगा रहे हैं। धार्मिक मेलों में ही रत्न और पूजा की सामग्री ज्यादा बिकती है। रत्नों की सबसे बड़ी मंडी जयपुर से वे रत्न लाकर बेचते हैं।
भक्ति गीतों के कैसेट भी लुभाते हैं
टनकपुर। मेले में भक्तों गीतों की आडियो-वीडियो कैसेट्सों का भी अच्छा कारोबार होता है। रेलवे बाजार में कैसेट की दुकान लगाए स्थानीय व्यापारी भूरा के मुताबिक स्थानीय और बाहर के कुछ लोग भक्तिगीतों की आडियो-वीडियो कैसेट दिल्ली से मिक्सिंग करा कर लाते हैं। अब तक करीब धाम पर 12 से अधिक अलग-अलग आडियो-वीडियो कैसेट्स बन चुकी है।
मेले में बाहरी जिलों से आते हैं कारोबारी
टनकपुर। सिंदूर बेच रहे बदायूं के राजाराम का कहना है कि डेढ़ दशक से पूर्णागिरि मेले में दुकान लगा रहे हैं। वे कानपुर और बनारस से सिंदूर लाकर बेचते हैं। ओम, भालू और शंक तीन तरह का सिंदूर आता है। भालू क्वालिटी का सिंदूर महंगा बिकता है। महिलाएं (खासकर देहाती) मां के धाम में बिकने वाले सिंदूर को शुभ मानती है।
टनकपुर। कानपुर के जंगलों का कथित कंदमूल फल भी मेले में मिलता है। पीलीभीत आदि जगह के करीब 12 व्यापारी इस फल को बेच रहे हैं। पीलीभीत के राजू के मुताबिक इस फल को भगवान राम ने वनवास के दौरान खाया था। यह कानपुर के जंगलों में मिलता है। वे वहीं से लाकर इसे बेचते हैं। वहीं कुछ लोग इसे कंदमूल के बजाय रामबांस की जड़ बताते हैं।
Source -http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150320a_003115012&ileft=227&itop=316&zoomRatio=276&AN=20150320a_003115012