श्रीनगर
पौराणिक काल से ही श्रीनगर का प्राचीन शहर, जो बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है, निरंतर बदलाव के बाद भी अपने अस्तित्व को बचाये रखा है। श्रीपुर या श्रीक्षेत्र उसके बाद नगर के बदलाव सहित श्रीनगर, टिहरी के अस्तित्व में आने से पहले एकमात्र शहर था। वर्ष 1680 में यहां की जनसंख्या 7,000 से अधिक थी तथा यह एक वाणिज्यिक केंद्र जो बाजार के नाम से जाना जाता था, पंवार वंश का दरबार बना। कई बार विनाशकारी बाढ़ का सामना करने के बाद अंग्रेजों के शासनकाल में एक सुनियोजित शहर के रूप में उदित हुआ और अब गढ़वाल का सर्वश्रेष्ठ शिक्षण केंद्र है। विस्थापन एवं स्थापना के कई दौर से गुजरने की कठिनाई के बावजूद इस शहर ने कभी भी अपना उत्साह नहीं खोया और बद्री एवं केदार धामों के रास्ते में तीर्थयात्रियों की विश्राम स्थली एवं शैक्षणिक केंद्र बना रहा है और अब भी वह स्वरूप विद्यमान है।
नाम : दुर्गा मंदिर, शारदानाथ घाट
पता : अलकनंदा के तट पर
सम्पर्क व्यक्ति : शांता गिरि
दिशा : नदी के तट पर, अपर बाजार
आरती/प्रार्थना का समय : 6 से 7 बजे सायं
पूजित देवता (अगर कोई हों) : दुर्गा मां
पारम्परिक/ ऐतिहासिक महत्व
:
वर्ष 1967 में नया मंदिर परिसर शारदानाथ बाबा द्वारा बनवाया गया।
नाम : केशोराय मठ
पता : अलकनंदा तट के करीब, कमलेश्वर मंदिर के नीचे
दिशा : अलकनंदा के तट पर
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व : एटकिंस द्वार हिमालयन गजेटियर में इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1625 में बताते हैं। इसका खंडहर यह बताता है कि उस समय यह मंदिर कितना भव्य होगा। यह महसूस कर आपको शर्मिन्दगी होगी कि इसे नष्ट होने की अनुमति दी गई। इसके जड़ में पीपल के पेड़ उग गये, प्रवेश द्वार को नष्ट कर दिया गया तथा जहां असली मूर्ति स्थापित था वह स्थान खाली पड़ा है।
नाम : शीतला देवी मंदिर
पता : भक्तियाना, श्रीनगर
पूजित देवता
(अगर कोई हों)
:
शीतला मां
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
यह देवी, भक्तियाना क्षेत्र की इष्ट देवी मानी जाती हैं।
नाम : लक्ष्मी-नारायण मंदिर
पता : तिवारी मोहल्ला, श्रीनगर
सम्पर्क व्यक्ति : राकेश तिवारी
दिशा : अलकनंदा के तट पर, तिवारी मोहल्ला
पूजित देवता : लक्ष्मी-नारायण
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व : यह मंदिर नगर शैली डिजाइन में बनाया गया है। इस मंदिर के प्रमुख पवित्र हॉल में चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित है जो पुराने राजमहल की ओर मुखातिब है। यह संभव है कि पंवार राजा गण प्रतिदिन इस मंदिर में प्रार्थना करते थे। यह भी संभव है कि यही वह प्रतिमा है जिसे मानशाह तिब्बत से लाये थे। यह महसूस किया जाता है कि असली मंदिर अलकनंदा के तट पर उत्तर की ओर बनाया गया, बाद में इसे सुरक्षित रखने के लिए पुन: स्थापित किया गया। बिरेही बाढ़ के बाद अलकनंदा इस मंदिर के और करीब स्थानांतरित हो गई।
टिप्पणी/ विशेष बातें
:
स्थानीय लोग इस मंदिर के पुन: ठीक-ठाक करने के लिए कार्य कर रहे हैं। यहां एक अन्य मंदिर सत्यनारायण का था जो नष्ट कर दिया गया।
नाम : लक्ष्मी-नारायण मंदिर/शंकरामठ
पता : एसएसबी, श्रीनगर
दूरभाष : 09319477624
सम्पर्क व्यक्ति : महु प्रसाद उन्नियाल
आरती/प्रार्थना का समय : 6 बजे सायं
पूजित देवता : देवी लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु, राज राजेश्वरी, कृष्ण
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व : यह स्थान ठाकुर द्वारा भी कहलाता है। वर्ष 1670 में फतेहपति शाह द्वारा जारी एक ताम्रपत्र के अनुसार तत्कालीन धर्माधिकारी शंकर धोमल ने यहां जमीन खरीदा तथा राजमाता की अनुमति से मंदिर की स्थापना की।
मंदिर में विशाल मंडप बना है, चूंकि उसमें कोई खंभा नहीं है इसलिए यह तत्कालीन पाषाण वास्तुकला की खोज का एक उदाहरण है।
मंदिर के मुख्य भवन में ढ़ाई मीटर ऊंचा एक सुंदर प्रतिमा लक्ष्मी-नारायण का स्थापित है। ऐसा मालूम पड़ता है कि यह दक्षिण से लाया गया था। दूसरी प्रतिमा भगवान विष्णु की, ठीक उसके बगल में स्थापित है।
नाम : लक्ष्मी-नारायण मंदिर
पता : नागेश्वर गली, श्रीनगर
दूरभाष : 03146-211049
सम्पर्क व्यक्ति : श्री भगवती प्रसाद बदोनी, पुजारी
दिशा : सरस्वती विद्या मंदिर के नजदीक
आरती/प्रार्थना का समय
:
प्रात: 6 बजे से 7:30 बजे सायं
पूजित देवता
:
लक्ष्मी-नारायण तथा हनुमान
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
यह कहा जाता है कि एक बार लंका पर पूल बना, उनमें कुछ पत्थर बच गए जिसमें ‘राम’ लिखा था। हनुमान ने भगवान राम को सलाह दिया कि उन पत्थरों पर लिखे नाम को लोगों द्वारा ठोकर मारने के लिए नहीं छोड़ देना चाहिए इसलिए उन पत्थरों को लाकर गढ़वाल में यह मंदिर बनवा दिया गया।
टिप्पणी/ विशेष बातें
:
हनुमान की प्रतिमा को वर्ष 1200 के बाद से बचाकर रखा गया और बाद में यहां लाया गया।
नाम : कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर
पता : अलकनंदा तट के करीब, श्रीनगर
सम्पर्क व्यक्ति : आशुतोष पुरी, महंत
दिशा
:
अलकनंदा तट के करीब
पूजित देवता
:
भगवान शिव, गणेश, देवी अन्नपूर्णा
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
यह श्रीनगर का सबसे अधिक श्रद्धेय एवं पूजित मंदिर है। यह कहा जाता है कि जब देवता गण राक्षसों के साथ युद्ध हार रहे थे तो भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र पाने के लिए इसी स्थान पर भगवान शिव का तप किया था। उन्होंने भगवान शिव के 1,000 नामों में से एक-एक का उच्चारण कर कुल 1,000 कमल (कमल जिससे मंदिर का नाम जुड़ा है) फूल चढ़ाये। उन्हें जांचने के लिए भगवान शिव ने एक फूल छिपा लिया। जब भगवान विष्णु को ज्ञात हुआ कि उनके पास एक फूल कम है तो उन्होंने तुरंत एक फूल के बदले अपनी आंख (जो कमल भी कहलाता है) चढ़ा दिया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया जिससे भगवान विष्णु ने असुरों का संहार किया।
चूंकि भगवान विष्णु ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को सुदर्शन चक्र धारण किया था इसलिए यहां बड़े धूमधाम से बैकुंठ चतुर्दशी मनाया जाता है। इसी दिन दम्पत्ति जो पुत्र की प्राप्ति चाहते हैं, वे हाथों में दीप जलाकर रातभर खड़े होकर प्रार्थना करते हैं। यह कहा जाता है उनकी इच्छाएं पूर्ण होती है। यह खाद रात्रि कहलाती है तथा यह कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने स्वयं यही पूजा इस मंदिर में किया था।
इस मंदिर का निर्माण, कहा जाता है कि आदी शंकराचार्य के निवेदन पर भगवान ब्रह्मा ने रातों-रात कर दिया जो कि गढ़वाल के ऐसे 1,000 मंदिरों में से एक है। यह वास्तव में एक खुला मंदिर है जो 12 सुंदर नक्काशी किये पत्थरों पर टिका है। सम्पूर्ण मंदिर भवन काले पत्थरों का बना है जो कि पेंटिंग कर सुरक्षित कर दिया गया। बिरला परिवार ने वर्ष 1960 में इस मंदिर का पुनरूद्धार कर इसमें दीवार लगवा दिया।
यहां का शिवलिंग स्वयंभू तथा मंदिर से भी पूर्व (पूराना) का है। यह कहा जाता है कि गोरखों ने इस शिवलिंग को खोदने की कोशिश की लेकिन जमीन में 122 फीट गहरे खुदाई के बाद भी इसका छोर नहीं मिला। उसके बाद उन्होंने माफी मांगी, धरती की खुदाई को ढ़क दिया तथा यह कहा कि इस मंदिर की खुदाई कर छेड़-छाड़ करना अनुचित है तथा यह एक पवित्र मंदिर है।
टिप्पणी/विशेष बातें :
एटकिंस द्वार हिमालयन गजेटियर में इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1625 में बताते हैं। इसका खंडहर यह बताता है कि उस समय यह मंदिर कितना भव्य होगा। यह महसूस कर आपको शर्मिन्दगी होगी कि इसे नष्ट होने की अनुमति दी गई। इसके जड़ में पीपल के पेड़ उग गये, प्रवेश द्वार को नष्ट कर दिया गया तथा जहां असली मूर्ति स्थापित था वह स्थान खाली पड़ा है।
नाम : श्री बद्रीनाथ मंदिर
पता : वीर चन्द सिंह गढ़वाली मार्ग, श्रीनगर
दूरभाष
:
01346-253556
सम्पर्क व्यक्ति
:
पी भट्ट
दिशा
:
कल्याणेश्वर मंदिर के नजदीक
आरती/प्रार्थना का समय
:
प्रात: 8 बजे तथा 6 बजे सायं
पूजित देवता
:
भगवान विष्णु
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
माना जाता है कि इस छोटे मंदिर की प्रतिमा पहले तिवारी मोहल्ला में लक्ष्मी-नारायण मंदिर के नजदीक सत्यनारायण मंदिर में स्थापित था।
नाम
:
कल्याणेश्वर मंदिर
पता
:
गोला बाजार, श्रीनगर
सम्पर्क व्यक्ति
:
राधु शाम गुप्ता, प्रबंधक
दिशा
:
गोला बाजार में
आरती/प्रार्थना का समय
:
प्रात: 8.30 बजे और 7.30 बजे सायं
पूजित देवता
:
भगवान शिव
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
इस मंदिर की स्थापना तीन पुश्तों पहले एक अग्रवाल परिवार द्वरा कराया गया।
टिप्पणी/ विशेष बातें
:
मंदिर में एक सत्संग हॉल तथा एक धर्मशाला है।
नाम
:
हनुमान मंदिर
पता
:
अपर बाजार, गंगा घाट, श्रीनगर
सम्पर्क व्यक्ति
:
श्री भगवती प्रसाद बदोनी, पुजारी
दिशा
:
अपर बाजार
आरती/प्रार्थना का समय
:
प्रात: 5 बजे तथा 6 बजे सायं
पूजित देवता
:
हनुमान और गरूड़
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
130 से अधिक वर्षों पुराना, स्थानीय लोगों द्वारा बनवाया गया।
टिप्पणी/ विशेष बातें
:
हनुमान मंदिर में हनुमान तथा गरूड़ दोनों की प्रतिमा अगल-बगल में स्थापित है।
नाम
:
हेमकुण्ड साहिब
पता
:
गोला बाजार, श्रीनगर
दूरभाष
:
01346-252203
मोबाइल
:
09927218805
सम्पर्क व्यक्ति
:
ज्ञानी सुरेन्द्र सिंह
दिशा
:
गोला बाजार
Prayer समय
:
प्रात: 4:15 बजे और 6:30 बजे सायं
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
यह कहा जाता है कि अभी जहां यह गुरूद्वारा है वहां पहले एक बगीचा था जहां तीर्थ यात्रियों के ठहरने का एक छोटा सा स्थान बना था। एक तीर्थयात्री गुरू गोविंद सिंह का लिखा कुछ पवित्र पंक्तियां लाया जिसे सुरक्षित रखने के लिए यह गुरूद्वारा बना। वे अभी भी इस गुरूद्वारा में सुरक्षित हैं।
विशेष बातें
:
हेमकुण्ड साहिब की पवित्र यात्रा वर्ष 1937 में प्रारंभ हुआ एवं इस पवित्र स्थान तक पैदल आने वाले भक्तों को ठहरने तथा भोजन की व्यवस्था के लिए गुरूद्वारा कमीटी की स्थापना की गई। इस प्रकार के कई गुरूद्वारा की स्थापना हेमकुण्ड साहिब के रास्ते में की गई, तथा यह हरिद्वार और ऋषिकेश के बाद यह तीसरा है।
नाम
:
नागेश्वर मंदिर
पता
:
नागेश्वर गली, श्रीनगर
मोबाइल
:
09410123593
सम्पर्क व्यक्ति
:
उमानन्द पुरी
दिशा
:
शिशु मंदिर विद्यालय के नजदीक
आरती/प्रार्थना का समय
:
प्रात: 5 बजे और 7 बजे सायं
पूजित देवता
:
गणेश के साथ भगवान शिव, पार्वती तथा पंच देव
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
अलकनंदा के नजदीक एक नाग कुंड था। पांच पुश्तों पहले इस प्रतिमा को वर्तमान स्थान पर लाया गया। उसके बाद से इसी स्थान पर शिवलिंग की पूजा की जाती है।
नाम
:
गोरखनाथ मंदिर
पता
:
नागेश्वर गली, श्रीनगर
सम्पर्क व्यक्ति
:
श्री गोपाल नाथ जी
दिशा
:
नागेश्वर मंदिर के नजदीक
आरती/प्रार्थना का समय
:
प्रात: 5:30 बजे और 7:30 बजे सायं
पूजित देवता
(अगर कोई हों)
:
भैरव जी और गोरखनाथ जी
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
यह 13वीं सदी का मंदिर है।
टिप्पणी/ विशेष बातें
:
एकल चट्टान से इस मंदिर का नक्काशी (निर्माण) किया गया है। यह मंदिर सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
नाम
:
गोरखनाथ गुफा मंदिर
पता
:
भक्तियाना, श्रीनगर
दिशा
:
भक्तियाना में
पूजित देवता
:
गोरखनाथ जी तथा भगवान शिव
पारम्परिक/
ऐतिहासिक महत्व
:
सुंदर प्रतिमा, गुफा पर नक्काशी, तथा ताम्र पत्र यह साबित करता है कि यह पूजा का प्राचीन स्थान है। यह एक मध्य तथा दक्षिण गढ़वाल का महत्वपूर्ण गुफा मंदिर है।
यह कहा जाता है कि यह गोरख आश्रम के त्रियुगनारायण का सर्दी कालीन आवास था जैसा कि स्कन्द पुराण के केदारखंड में वर्णन किया गया है। एक ताड़पत्र जो कल्पद्रुम यंत्र यहां उपलब्ध है, का मंत्रोच्चार करने से मुक्ति प्राप्त होती है।
मुख्य गुफा में एक लिंग तथा अष्टधातु का बना गुरू गोरखनाथ का एक प्रतिमा है। इसके ठीक सामने गुरू गोरखनाथ का चरण पादुका है।
टिप्पणी/ विशेष बातें
:
मुख्य गुफा 3 मीटर लम्बा तथा 2 मीटर चौड़ा है। इसके बाहर 4 खंभों का चबूतरा है जिस पर 1812 अभिलेख अंकित है। मंदिर में एक ताम्र पत्र भी संभालकर रखा गया है जो फतेहपति शाह द्वारा बालकनाथ जोगी को दिया गया था।
नाम : माता कंसमर्दनी मंदिर
पता : कंसमर्दनी मार्ग, श्रीनगर
सम्पर्क व्यक्ति : मुरलीधर घिरदियाल, पुजारी
दिशा : सेंट टेरेसा स्कूल के नजदीक
पूजित देवता
(अगर कोई हों)
:
माता कंसमर्दनी
पारम्परिक/ऐतिहासिक महत्व
:
यह कहा जाता है कि देवी एक खेत (भूमि) में उपस्थित हुई। उन्होंने किसान को वहां हल चलाने एवं उन्हें वहां से निकालकर वस्त्र पहनाकर उन्हें एक डोली में बिठाने को कहा। उन्होंने ऐसा ही किया तथा उनकी सुरक्षा के लिए एक छोटा ढ़ांचा भी बनाया। इस मंदिर को गोरखा राज्य के दौरान वर्ष 1803-1815 में बनाया गया, तथा मंदिर के मुख्य भवन में वर्ष 1809 का अभिलेख सुत्ज्यामन थापा के बारे में लिखा है।
टिप्पणी/ विशेष बाते : यह देवी घिरदियाल वंश के तथा इस परिवार के लोगों का इष्ट देवी है तथा उनके द्वारा इस मंदिर में सदियों से पूजित है।
नाम : अलकेश्वर महादेव मंदिर
पता: नर्सरी रोड, श्रीनगर
मोबाइल: 09411585376
सम्पर्क व्यक्ति : श्री दुर्गा प्रसाद बनवारा
आरती/प्रार्थना का समय : 6 बजे सायं
पूजित देवता : शिवलिंग
पारम्परिक/ ऐतिहासिक महत्व : वर्तमान मंदिर का निर्माण वर्ष 1901 में हुआ जो बाढ़ में नष्ट हुए मंदिर का स्थान धारण किया।
टिप्पणी/ विशेष बाते : धनुष तीर्थ: वह स्थान जहां यह मंदिर बना है, का वर्णन स्कंद पुराण में धनुष तीर्थ के रूप में है।