गढ़ नरेश अजयपाल के राज्याभिषेक के एक वर्ष बाद 1501-02 ई0 में चम्पावत के राजा किरती चन्द्र ने उनको पराजित कीया तथा उसके उत्तराधिकारीयों के आक्रमण से चाँदपुर का दुर्भेदगढ़ खण्डर बन गया तो 1512 ई0 में अजयपाल ने देवलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। परीणाम स्वरूप मन्त्रिगण तथा राजकर्मचारी भी चाँदपुर से उठकर देवलगढ़ के निकट आ बसे। बुधाणी, टकोली, पोखरी आदी गाँव बसने का यही इतिहास बताया जाता है। किंतु प्रस्तुत पंक्तियों का लेखक इस कथन को सर्वथा सत्य नहीं मानता। यदी 1512 ई0 में राजधानी के चांदपुर से उठकर देवलगढ़ बसने पर राजा के बहुगुण वंशी मन्त्री बुधाणी, पोखरी बसे तो पांच वर्ष बाद 1517 ई0 में देवलगढ़ से राजधानी के श्रीनगर चले जाने पर बुधाणी, पोखरी आदी गांव भी उजड़कर श्रीनगर-कीर्तिनगर के निकट बस जाने चाहिये थे, किंतु ऐसा नहीं हुआ। पोखरी के वंश विस्तार से पता चलता है कि ग्राम निश्चित ही बुधाणी से भी बहुत पहले बसा होगा। 1570 ई0 के आसपास यहाँ के वंशज अन्य क्षेत्रों में जाकर बसने लगे थे।