पहाड़ों की निर्जनता/सुदूरता ने इस क्षेत्र के लोगों को अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपरा को नृत्य एवं गीत द्वारा अक्षुण्ण बनाये रखने को सुनिश्च्ति कर दिया है।
अधिकांश गीत एवं नृत्य धार्मिक या फिर लोगों की परंपरागत जीवन शैली से संबंधित हैं।प्रत्येक समारोह में लोकगीत एवं नृत्य होते हैं। इस अवसर पर विभिन्न देवताओं को निमंत्रण एवं उपस्थित होने के लिये भक्तिगीत या जागर गान होता है।
पुरूष एवं महिलाएं दोनों मनोरंजक नृत्य में भाग लेते है, जिसे चांचरी कहते हैं जो समूह नृत्य एवं गान होता है।विवाहों एवं मेलों के अवसर पर होने वाला नृत्य छोलिया, एक युद्ध कला का प्रदर्शन होता है।
दो या इससे अधिक लोग एक हाथ में ढोल तथा दूसरे हाथ में तलवार लेकर नृत्य मुद्रा में एक दूसरे पर आक्रमण तथा बचाव की भंगिमा पेश करते हैं तथा ढोल, दामौ एवं रणसिंगे तथा तुरही की धुनों पर थिरकते हैं।
इस क्षेत्र में लोक भाषा की धनी परंपरा है जिनका संबंध स्थानीय/राष्ट्रीय किंवदन्तियों, नायकों, बहादुरी के कार्यों तथा प्रकृति के विभिन्न पहलुओं से रहता है। गीतों का संबंध पृथ्वी के सृजन, देवी-देवताओं के कार्यकलापों, स्थानीय वंशों/नायकों तथा रामायण एवं महाभारत के चरित्रों से रहता है।
सामान्यत: ये गीत स्थानीय इतिहास की घटनाओं पर आधारित होते हैं तथा सामूहिक कृषि-कार्यों के दौरान भड़ाऊ गान तथा विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक अवसरों पर अन्य गीत गाये जाते हैं। इसी प्रकार भोटिया जनजाति के शौका का अपना लोकगीत तथा नृत्य होता है। उन्हें मुख्यत: उत्सवों तथा सामाजिक सांस्कृतिक समारोहों में गाया जाता है।
विवेक पटवाल जी के सौजन्य से