Author Topic: Gwaldam Bageshwar Uttarakhand- ग्वालदम उत्तराखंड सुंदर पर्यटन स्थल  (Read 17964 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing information about Gwaldom Bageshwar which is a beautiful tourist spot. About 3 kms. from Baijnath, the main highway goes to Bageshwar and a side road branches off to Gwaldam. This is delightful route as besides the presence of birds, adding a winsome note, one passes through terraced field and thick pines set against a backdrop of the Himalayas, and one can watch the Trishul peaks coming even closer. Gwaldam with its salubrious climate is a little heaven nestling in the words. In this area, upto Talwari, there are several orchards - generally of apple.



Himalayan View from Gwaldom

From Gwaldam, the road winds its way through dense forests and terraced field dotted with rustic cottages of small towns known as Tharali and Narayan Bagad to meet the Ranikhet - Pandukhal road at a place called Simli, which is 8 km. short of Karanprayag.
We will share more information about Gwaldom and nearby areas in this topic.

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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How to Reach from Dehli

NG58 to Karanprag via

Meerut > Muzaffnagar > Roorkee > Haridwar > Rishkesh > Devprayag > Srinagar > Rudraprayag and Gauchar, state road to Gwaldom via Kulsari and Tharali.


Second Route -

From Delhi Ghaziabad > Muradabad > Rampur > Rudrapur > Haldwani > Bhawali > Almora > Someshwar > Kausani > Garur then to Gwaldam.

Trisul peak seen from Gwaldam height=375 Himalayan View from Gwaldam
 
by kundan singh pangtey

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The Border town of Gwaldam peers into kumoan to its south and faces to panoramic march of the mighty Himalaya to the north. It is spread over 6 sq km, straddling a deeply forest hill. The Bhagati Nanda Temple lies at the crossroads of the town, around which the few hotel and a small market area thrive.

BSF (Seema Suraksha Bal Training Centre)

BSF training facility stretches over a vast area in the uppar part of town. This gives the town a cantonment feel, where still pretty remnants of the Raj such as the fishery and the Forest Rest, House, evoke nostaliga for a bygone area. 

Trisul Range from Gwaldam

Trisul Range from Gwaldam height=375   by kundan singh pangtey

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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More About Gwaldam

As the road begins to snake upto the Pinder Basin from Tharali, the lush aroma of hte woods beings to tickle your senses. Villagers with identical white houses appear sporadically amid lush fields of wheat and bright red amaranthus.

There are Garhwali  kumaonis even a small settlement of Bhatias here. There is none of the traditional rivalry between the two neighobours. its residents speak a dialect that is neither kumouan nor garhwali but a mix of both. All of which makes Gwaldam a place like no other in Uttarakhand.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Both Mandir, Baghtoli (Gwaldam)

At Bhagtoli (1 km from Gwaldam Bus stand) a short 5 min walk from the road leads to Bhotia settlement of 15 families who settled here in the late 1950s. The gompa here, popular known as Bodh Mandir. You will find spot its yellow bright roof from a distance. The sanctum is lined with statues of various incarnation of Budda.
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ग्वालदम, (चमोली, उत्तराखण्ड) की वादियों में फ़ोटोग्राफ़ी का लुत्फ़बरेली फ़ोटो विजन क्लब का यात्रा-वृतान्त सुना रहा है एक नौजवान व  फोटोग्राफ़ी विधा का उत्साही शागिर्द जिनका मौलिक लेखन हुबहू दुधवा लाइव पर प्रकाशित किया जा रहा है,  इस यात्रा और उनके खूबसूरत पड़ावों के मंजरों की तस्वीरों को कैमरे में कैद किया वाइल्ड-लाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र सतपाल सिंह ने, पेश है ग्वालदम से सचिन गौड़ की एक रोमांचकारी रिपोर्ट....नवम्बर २०१० की २५ तारीख को फोटो विजन क्लब का काफिला मायावी हिरण (त्रिशूल पर्वत) का शिकार करने के लिए ग्वालदम के लिए निकला, कफिले में सात शिकारियों (फ़ोटोग्राफ़र्स) का दल था, दल के सदस्यों में डॉ पंकज शर्मा,श्री गोपाल शर्मा , दीपक घोष जी, संजय जयसवाल जी, श्री सुशील सक्सेना और सतपाल सिह जी सभी सीनियर शिकारियों के साथ में जूनियर शिकारी  सचिन गौड़ शिकार करने की ट्रेनिंग के लिए इस दल में शामिल हुआ था । सभी को समय की पाबंदियों के साथ चलना था, समय ६:३० पर हमारी गाड़ियॉ बरेली से ग्वालदम के लिए चल पडी, उस रोज इन्द्रदेवता भी अपनी माया दिखा रहे थे भीनी भीनी बरसात की फुहार हमारी गाडियों पर डाल रहे थे सभी मन से इन्द्र देव को मनाने का प्रयास कर रहे थे, हे देव हम पर दया करो हमारी यात्रा को कामयाब करो ताकि अपने लक्ष्य को पा सके इस तरह प्रार्थना करते हुए आगे बढ़ते ही जा रहे थे सभी को उम्मीद कम ही थी कि इन्द्रदेव मान जायेगें सुबह ८:१५ पर हमारा काफिला पंतनगर बाईपास पर रूका वहॉ पर सभी शिकारियों ने सुबह का नाश्ता लिया नाश्ते में चाय के साथ स्नैक्श सेम और दीपक घोष जी के लाये हुये मसाले चने का स्वाद लिया, ८:३० पर हमारा कारवॉ आगे अपनी मंजिल की ओर बढ़ चला अभी भी इन्द्रदेव का क्रोध बना हुआ था कुछ घंटे के सफर के बाद जैसे ही हमारी गाड़ियॉ हल्द्वानी में एन्टर हुई सभी के चेहरे खुशी से खिल उठे, इन्द्रदेव का क्रोध शान्त हुआ सूर्य देव की भी कृपा हम सब पर हुई सभी ने दोनो देवताओं को धन्यवाद किया|
 
  शिकारी दल के सभी शिकारी अब काफी उत्सुक थे, उस मायावी हिरण तक पहुंचने के लिए १:४०मिनट पर हमारी गाडियॉ रानी खेत में पहुंच गई एकाएक उस मायावी स्वर्ण हिरण की झलक हम सभी को दिखी सभी का मन  था कि लंच लेने के बाद स्वर्ण हिरन का शिकार करेगें उस समय हिरन की झलक देख सभी लंच भूलकर उसे उसी समय शूट करने के लिए अपने अपने हथियार निकाल लिए जिसे जहॉ जगह मिली बही पोजीशन संभाल कर इमेशन लोड करने लगे सभी अपने साथ हर प्रकार का हथियार लाये थे कोई ७०-३०० एम०एम० की राईफल (कैमरा) लिए हुये था, कई हजार एम०एम० की मिशाइल से सूट कर रहा था, कोई कारवाईन से और मे अपनी एकनाली बन्दूक निकाल कर अपना मोर्चा संभाले हुये था, कोई भी शिकारी दल का सदस्य उस मायावी स्वार्ण हिरन को अपने हाथों से निकलने देना नहीं चाहता था, हर तरफ सभी ने मोर्चा बंदी कर रखी थी, हर तरफ से मायावी हिरन को शूट करने के लिए ट्रिगर दबाया जा रहा था सभी अपनी भरपूर कोशिश में लगे हुये थे  एक मेरी ही खुट्टल  बन्दूक से कोई फायर नहीं हो पा रहा था, शायद मुझे शिकार करने का अनुभव नहीं था मेरे पास अच्छे हथियार नहीं थे, जिसकी जानकारी मुझे फोटो विजन शिकारी दल में शामिल होकर मिली ।
 
 मेरा साथी सतपाल सिह जो कि उम्र मे मुझसे छोटा था पर उसे शिकार का अनुभव मुझसे ज्यादा था  तब उसने मुझसे कहा मैदान में आकर कभी हार नहीं माननी चाहिए, आपके पास जो भी साधन है, उसका इस्तेमाल कर उसी से अच्छा काम करना चाहिए, सतपाल कि बात में दम था, और फिर  मैंने भी अपना इरादा पक्का कर लिया कि मैं अपनी एकनाली बन्दूक से उस मायावी हिरन का शिकार करके रहूगा ।
Photo by: Satpal Singh
मायावी हिरन हमसे लगभग २५० कि०मी० पर था, हब हमारा शिकारी दल लंच के लिए चलना  चाहता था सभी शिकारी रानी खेत होटल मून में लंच के लिए रूके । रात होने से पहले हम उसे कैद करने के लिए उत्सुक थे मै भी अपना छोटा पिंजरा (छोटा कैमरा) थामें हुये उसे कैद करने के लिए सावधान था, हमारी गाडियॉ धीरे-धीरे घाटियां पार करती हुई चली जा रही थी, घाटी से जब हमारा कारवॉ नीचे उतरा तब घाटी के बीच कोसानी बस्ती दिखाई दी, मानो स्वर्ग के दरवाजे पर आ गये हो, इस बार मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और हमने अपनी गाडी वहीं रूकवादी मैं उन लम्हों को अपने छोटे से पिंजरे(कैमरे) में कैद कर लेना चाहता था, उस स्वर्ग जैसी बस्ती में,  मेरे हाथ जो भी लगा मै उसे अपने छोटे से पिंजरे में कैद करता चला गया। तब मन में उत्सुख्ता जागी स्वर्ग दरवाजे पर पहुंचने पर मन मंत्र मुग्ध हो गया है जब हम स्वर्ग के अन्दर पहुंचेगे तब क्या होगा, हमारे और शिकारी साथी भी अपने बड़े-बड़े पिंजरे लेकर इधर-उधर उस खूबसूरत लम्हों को कैद करने के लिए अपनी-अपनी गाड़ियों से उतर कर दौड़ पडे जिसके जो हाथ लगा उसे अपने पिंजरे में कैद कर फिर हमारा कारवॉ निकल पडा अपनी मंजिल की ओर ३:२० पर हमें मायावी हिरण की फिर एक बार झलक दिखी, हमारे दल के साथी इतने करीब पहुंच कर उसे अपने हाथे से निकल कर जाने देना नहीं चाहते थे, उस तक पहुंचने का रास्ते से सभी शिकारी अंजाने थे कि उसके करीब कैसे जल्दी पहुंचा जाये क्योकि धीरे-धीरे शाम होने को आ रही थी, तब हमारे गाड़ी के ड्राईवर ने बताया साहब उस तक पहुंचने का एक रास्ता मुझे मालूम है, अगर आप कहो तो मैं आपको उसके कुछ करीब तक पहुंचा सकता हूं।
Photo by: Satpal Singh
सभी ने अपनी सहमति से ड्राईवर से कहा तुम हमें उसी रास्ते पर ले चलो, ड्राईवर ने कहा यहॉ से कुछ दूरी पर अनाशक्ति आश्रम नाम से जगह है, वहॉ से आप अपना शिकार बहुत करीब से शूट कर सकते हैं, शाम ४:१० मि० पर शिकारी दल अनाशक्ति आश्रम था, और मायावी हिरन हमारे काफी करीब था। एक बार फिर सभी ने अपने अपने हथियार बड़ी फुर्ती के साथ निकाल लिए ऒर अपनी पोजीशन संभाल कर खड़े हो गये और जैसे ही सभी ने अपनी मैगजीन लोड़ की, मायावी ने अपना रंग बदलना प्रारम्भ कर दिया। पहले गोल्ड,हल्का सुनहरा, दूधिया गुलाबी, गुलाबी और अंत में पूर्ण गुलाबी के साथ निलमा रंग के साथ हमारी आWखों से ओझल हो गया, धाम से  शिकारी दल ६:१० मि० पर गुवालदम के लिए निकल पडा । एक घंटे के सफर के बाद हमारा कारवॉ गुवालदम गैस्ट हाउस पर पहुंचा सभी ने अपने अपने कमरों में पहुचने के बाद सुबह का पलान किया।
Photo by: Satpal Singh
  ग्वालदम गैस्ट हाउस से वहॉ की बस्ती का रात का नजारा अति सुन्दर प्रतीत हो रहा था, कुछ देर रैस्ट करने के बाद सभी ने ९:०० बजे डिनर लिया, उसके बाद अपने अपने कमरे में आराम करने के लिए पहुंच गये सुबह २६.११.२०१० सतपाल सिंह और मैंने ५:०० बजे उठकर चाय पी और फ्रैश होकर हम दोनो ने अपनी गन चैक करके  फिर चल दिए शिकार करने ।
Photo by: Satpal singh
६:०० बजे वाकी सीनियर्स शिकारी साथी भी अपनी अपनी मिशाइल लोड कर अपने कमरों से निकल कर गाड़ी में बैठ चुके थे, और  सूर्य उगने से पहले हमारी गाड़ियॉ एक मोड पर रूकी वहॉ से मायावी हिरन की झलक कुछ-कुछ दिखने लगी थी सभी जल्दी जल्दी सूर्य की किरण आने से पहले अपनी पोजिशन संभाल चुके थे अब इन्तजार था मायावी हिरन को कुछ साफ देखने का और उसे अपनी एक नाली बंदूक से शूट करने का आज मैं पूर्ण रूप से तैयार था उसे कैद करने के लिए कुछ इन्तजार के बाद वह पल हम सबके सामने था, सूर्य देव अपनी लालिमा के साथ प्रकट हो रहे थे और वह स्वर्ण हिरन हमारी आंखों के सामने बड़े ही करीब था, कोई भी शिकारी अब उस मायावी को छोड़ना नहीं चाहता था, प्रकाश की तीव्र गति से भी तेज, सभी अपने हथियारो का प्रयोग कर रहे थे, और  हमनें उसे हर तरफ से घेर रहा था, कभी इधर से कभी उधर से और अंत में मैने अपनी एक नाली बन्दूक से उसका शिकार कर ही लिया उस दिन सभी शिकारी भागदौड़ में थक चुके थे सभी ने कहा अब तो हिरन घायल हो ही चुका है, कल जब चलेगें तब उसे पिंजरें कैद कर लें चलेगें अब यहॉ कही नहीं जायेगा सभी आराम कर कुछ देर बाद नाश्ता लेगें गैस्ट हाउस पहुंच कर सभी ने अपनी अपनी पसन्द का नाश्ता किया नाश्ते में मेरे मनपंसद आलू के पराठे थे खाकर मजा आ गया उसके बाद दोपहर को सभी ने आराम किया, शाम ४:०० बजे एक बार सभी शिकारी साथी बोले चलो एक बार उस मायावी हिरन को देख आये अब किस हाल में है, कही चकमा दे कर ओझल न हो गया हो वो सभी फिर उसी जगह पर फिर अपने अपने हथियार लेकर पहुंच गये एक बार फिर मायावी अपना रूप बदल रहा था हमारे हाथों निकलने का प्रयास कर रहा था, सभी ने एक बार फिर से अपने हथियारो से उसे फिर शूट करना शुरू कर दिया दो तीन घंटे तक शूट करने के बाद अब सन्तुष्ट थे कि अब ये कहीं नहीं जायेगा। उसके बाद सभी शिकारी साथी गैस्ट हाउस वापस आ गये २७ तारीख को हमारी बरेली के लिए वापसी थी इसलिए रात ही में पलान किया कि सुबह हम सबको गुवालदम से ८:०० बजे चलना था, रात में हम सबने खाना और चाय पी, और सुबह के नाश्ते का आडर दे दिया  रात मे  मॆने ऒर सतपाल ने योजना बनाई की सुबह ५:०० बजे उठकर  यहा के कुछ नजारे अपने पिंजरे में कैद कर अपने साथ ले जायेगें, २७.११.२०१० सुबह हमने उठकर चाय बिस्कुट का नाश्ता लिया और निकल पडे पिंजरा लेकर नजारे कैद करने एक घंटे में हम दोनों को जितना भी मिल सका, उसे कैदकर वापस आ गये ।

 वापसी में हमारी गाडिया  सोमेश्वर के रास्ते होते हुये बैजनाथ के प्राचीन मन्दिर पहुंची मन्दिर की कला और नदी का किनारा मन्दिर को ऒर भी खूबसूरज दरशा रहा था, आकाश की नीलमा के साथ और भी सुन्दर प्रतीत हो रहा था, नदी में तैरती मछलियॉ भी हम सबको लुभा रही थी, मानों जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया हों, सभी शिकारियो ने अपने-अपने पिंजरे निकाल कर बचे हुये सुन्दर, लम्हों को कैद करना शुरू कर दिया।

 चलते लम्हात उन सुनहरे पलों को हम अपने छोटे से पिंजरे में कैद कर अपने घर की ओर बढ़े जा रहे थे ४:५० पर हमारा शिकारी दल रानीखेत पहुंचा वहॉ होटल पर हम सभी ने लंच लिया, उसके बाद कुछ शिकारियों ने  रानी खेत के आर्मी शॉप पर  खरीदारी की, उसके बाद हमारा कारवॉ वापस बरेली की ओर चल दिया, हल्द्वानी में मुझे रूकना था। इसीलिए मैने अपने शिकारी दल से कहा मेरा सफर  पर हल्द्वानी में विराम लेगा आगे आप मेरे बिना ही यात्रा करें काठगोदाम पर पहंचकर सभी ने एक बार फिर चाय और पकौड़ी नमकीन का स्वाद लिया, उसके बाद कारवॉ मुझे छोड़ कर वापस बरेली आ गया ।

 
 
सचिन गौड़
 सेलुलर: 07599004278
फ़ोटो विजन क्लब (बरेली)
 सतपाल सिंह, मोहम्मदी (खीरी)
email: satpalsinghwlcn@gmail
http://networkedblogs.com/cONYm


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Other places nearby places

Angora Farm - The state-run Angora farm is 1 km ahead from main Gwaldam's main market. It was established in 1987, the farm has five shillas or homes for 170 mohair goats.

Machhi Tal

HIdden in a nook in the ridge along gentle stream 9 km cut out of Gwaldam the road to Debal, Machhi Tal came up in 1928, when the British thought they would breed fish here for personal consumption.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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