गंगोत्री से केदारताल की दूरी तय करते हुए 12 कि.मी. के बाद केदार खड़क में पहला पड़ाव डाला जाता है। बिना टेंट लगाए हमने एक बड़ी चट्टान के नीचे बनी गुफा में रात बिताई।
गंगोत्री में दूसरी रात बिताकर सवेरे हम जल्दी उठे। पांच बजे कमलसिंह हमारे पास पहुंच गया। हल्का नाश्ता लेकर साढ़े पांच बजे हमने यात्रा प्रारंभ कर दी।
अक्सर ट्रेकिंग करने वालों के लिए भी प्रारंभ में केदारताल का रास्ता कठिन है। परंतु 8-10 किमी चलने के उपरांत व्यक्ति रास्ते की कठिनाइयों का अभ्यस्त होने लगता है और मार्ग भी सुगम होने लगता है। हालांकि ऊंचाई वाले इलाकों में आक्सीजन की कमी जैसी समस्याओं को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।
ऐसे क्षेत्रों में चलने का मूलमंत्र है धीरे चलना, आक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक पानी पीना, ग्लूकोज लेना और कभी भूखे नहीं रहना। आप कितने भी होशियार हों, सुरक्षित चलने में ही समझदारी है। ऊंचाई पर अज्ञानतावश लोग संकट में पड़ जाते हैं।
दूसरे दिन हम भोज खड़क पहुंचते हैं। यह स्थान केदार खड़क से लगभग दस कि.मी. दूर है। तीसरे दिन 8 कि.मी. चलने के पश्चात भव्य ताल पर पहुंच जाते हैं।
तीसरे दिन ही हमें 6772 मीटर (लगभग 22213 फुट) ऊंचे मृगुपथ शिखर और ऊंचे थलम सागर शिखर के दर्शन हुए। कुछ समय बाद भव्य केदारताल हमारे सामने था। कुछ लोग इस मार्ग को दो दिन में तय करते हैं।