पर्यावरण
पिथौरागढ़ को प्राय: लघु कश्मीर कहा जाता है जो इसके प्राकृतिक सुंदरता के कारण ही है। मात्र 5 किलोमीटर लंबा तथा 2 किलोमीटर चौड़ी सौर घाटी में अवस्थित यह शहर त्रिशूल, नंदा देवी एवं पंचुली समूहों के शिखरों का अपूर्व दृश्य प्रस्तुत करता है। पिथौरागढ़ तिब्बत एवं नेपाल के बीच में है तथा यह चार पहाड़ियों– चांडक, ध्वज, थल केदार एव कुंदार– से घिरा है तथा जिनका अपना सौंदर्य अपूर्व है।
वर्ष 1841 में इस क्षेत्र में आने वाला प्रथम अंग्रेज बैरोन लिखता है, “पिथौरागढ़ की प्रथम दर्शन ही स्तब्ध कर देता है तथा आप जब चांडक मार्ग के शिखर पर जाते हैं तो एक चौड़ी घाटी सामने आती है जहां एक साफ एवं छोटी सैनिक छावनी, एक किला तथा फैले गांव तथा नीचे उतरते झरने हैं, जो हजारों-हजार जुते खेतों को उर्वरता शक्ति प्रदान करते हैं।.... मैं मानता था कि नैनीताल का सौंदर्य अब समाप्त हो गया है पर मुझे अब पता चला कि मैंने अपने जीवन में इससे ज्यादा बड़ी भूल कभी नहीं की है।”
वनस्पतियां
पिथौरागढ़ हरी पहाड़ियों से घिरा है जहां घने देवदार तथा सदाबहार पेड़ों के जंगल हैं। पास के क्षेत्रों में आडू, नाशपाती, सेव, बेर तथा खूबानी फलों के पेड़ प्रचुर हैं। उर्वर भूमि का इस्तेमाल धान की चबूतरी खेती में होता है। इस मनोहर शहर के इर्द-गिर्द की पहाड़ियों पर बीच-बीच में स्ट्रॉबेरी, येलोबेरी तथा ब्लेक बेरी की झाड़ियां हैं।
जीव-जन्तु
तेंदुए, हिरण, बंदर तथा लंगूर आस-पास के जंगली इलाकों में देखे जाते हैं। तीतर, गौरेये, स्विफ्ट, सारिकाएं एवं शिकारी पक्षी, ड्रोगो कक्कू तथा कोयल पक्षी जीवन के अंग हैं।