७. जौलजीवी -
काली और गोरी नदी के संगम पर शौकाओं के शीतकालीन आवास-क्षेत्र के दक्षिणी भाग में स्थित है। यहाँ पर समस्त कुमाऊँ का सबसे बड़ा औद्योगिक मेला लगता है। ज्वाहर जयन्ती (१४ नवम्बर) से १५ दिन तक इस मेले का आयोजन होता है। यह पिथौरागढ़ , से ६८ कि. मि. की दूरी पर स्थित है।
इस मेले में शौका, कुमाऊँनी, नेपाली और मैदानी क्षेत्र के हजारों व्यापारी आते हैं और अपने-अपने ढ़ंग का व्यापार करते हैं।
तिब्बत व्यापार - संधि के समाप्त होने से पहले जौलजीवी का मेला शौका व्यापारियों द्वारा आयोजित ऊन तथा ऊनी माल के लिए विख्यात था। नेपाल से अब भी इस मेले में घी, शहद और घोड़े लाये जाते हैं।
इस मेले में जहाँ औद्योगिक सामाग्री की प्रदर्शनी लगती है - वहाँ विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी सम्पन्न किये जाते हैं। नेपाली, शौका एवं कुमाऊँनी नृत्यगीतों के लिए यह मेला विशेष रुप से प्रसिद्ध है।
८. छियालेख -
यह स्थल अपनी बनावट और प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है। इसके चारों ओर भारत तता नेपाल की हिमाच्छादित पर्वत - श्रेणियाँ हैं। यह स्थल ऊँची पर्वत - श्रेणी के ऊपर एक समतल पठार है। मैदान में नाना प्रकार के फूल खिले रहते हैं। शंकु आकार के सुन्दर-सुन्दर वृक्षों का छाया में उस स्थल की सुन्दरता और बढ़ जाती है। वर्म देवता और छेतो माटी देवताओं के मन्दिर यहीं स्थित है। इन्हीं देवताओं के कारण 'छियालेख' का धार्मिक महत्व भी है। इस क्षेत्र में एक किम्वदन्ति प्रसिद्ध है कि एक बार राम, लक्ष्मण और सीता इस स्थल पर पहुँचे थे। लोगों का यह भी मानना है कि कल्पवृक्ष यहीं था। युगों युगों से चले आये संस्कारों के कारण इस स्थल की मान्यता सम्पूर्ण क्षेत्र में है।
शौका क्षेत्र अत्यन्त सुन्दर है। यहाँ अनेक ऐसे स्थल हैं जिनका धार्मिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। ऐसे अनेक दर्शनीय स्थलों को देशने दूर-दूर से लोग आते हैं। इस अंचल के 'छिपला केदार', 'बंबास्यांसै', 'गबला स्यांसै', 'ज्योलिंका कैलास मेला' और 'वेदव्यास मेला' अपने ढ़ंग के ऐसे मेले हैं जिनका अपना ऐतिहासिक महत्व है। इन मेलों में शौका लोग बड़े उत्साह से जाते है। जौलजीवी का मेला उद्योग तथा मनोरंजन का मेला है, जबकि उपरोक्त अन्य मेले पूर्णतः धार्मिक मेले हैं।
पिथौलागढ़ के शौका क्षेत्र की अपनी विशिष्टता है। यह क्षेत्र युगों - युगों से व्यापार का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र के शौका व्यापारी पश्चिमी तिब्बत के दुश्यर गरलोक, ज्ञानिमा, दर्चयन और ताकलाकोट आदि स्थानों पर जाकर व्यापार करते थे।
आज शौका क्षेत्र के कई उदीयमान युवक देश की हर सेवा में आगे आ रहे हैं। शौका क्षेत्र में दंतो चकहिया नामक शक्तिशाली शासक को याद किया जाता है। सुनपति शौका तो कुमाऊँ के लोकगीतों के नायक ही हैं। सुनपति शौका की ही पुत्री राजुला 'मालूसाही' की प्रसिद्ध नायिका थी। इसी तरह कन्ती - फौंदार की यशस्वी गाथा भी इस क्षेत्र की एक विशेषता है। दानवीर जसुली बूढ़ी शोक्याणी का नाम भी पूरे शौका में प्रसिद्ध है। इसी तरह पं. गोबरया, श्री परमल सिंह धाकी, श्री मोती सिंह मेम्बर, श्री त्यिका नगन्याल, श्री जबाहर सिंह व्यास आदि का नाम इस क्षेत्र में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इन लोगों ने अपने क्षेत्र और क्षेत्र की संस्कृति के उत्थान के लिए बहुत प्रशंसनीय कार्य किए हैं।