Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 207218 times)

Bhishma Kukreti

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 उत्तराखंड में जीव , जंतु पक्षी मांस आदि आधारित चिकित्सा
Animal based Medicines in Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -89

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   89               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--192)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -192

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

     यद्यपि आयुर्वेद वनस्पति आधारित विज्ञानं माना जाता है किन्तु  आयुर्वेद में जैसे चरक संहिता में जीव जंतु आधारित औषधियों का उल्लेख है।  उत्तराखंड में भी जीव -जंतु व पक्षियों के अंगों से औषधि निर्मित होती थीं या कुछ समय पहले तक प्रयोग होती  थीं। वैकल्पिक पारम्परिक औषधि में जीव -जंतु व पक्षियों के कई अंग उपयोग होते हैं
मांश -पालतू या  वनैले जंतुओं का मांश आहार शक्ति वृद्धि व नर शक्ति वृद्धि हेतु प्रयोग होता था /है।  बकरी -भेड़ , सूअर , खरगोश , शाही , सौलु , मुर्गे , हिरण काखड़ जाति , चकोर , तीतर बटेर व अन्य पक्षियों का मांश ताकत बढ़ाने हेतु उपयोग होता है।  मुर्गी के अंडे स्वास्थ्य व विशेष बीमारियों में उपयोग होते हैं।
शहद - मधुमखियों से निकला शहद  का विशेष अवयव है। 
 चिड़ियों  का बीट - कई औषधियों में चिड़िया बीट प्रयोग होता है /था
सींग -हिरण के सींग कई औषधियों में उपयोग होता था अन्य जंतुओं के सींग , खुर व हड्डियां भी औषधि निर्माण में उपयोग होती थीं।
 हड्डी का रस - बूढ़ों को बकरी की हड्डियों के रस पीने की हिदायत तो वैद्य  आज भी देते हैं।
हिरण की नाभि से भी औषधि तैयार की जाती थी।
नर हाथी के नर जननांग भी नर शक्ति वृद्धि हेतु उपयोग होते थे। कई जन्तुओं की वसा से तेल घाव आदि में उपयोग होते थे .
गौ मूत्र का भी उपयोग औषधि में होता है।
मस्वड़ पक्षी के रक्त  उपयोग बयळ (कान से पानी या पीप बहना ) ठीक करने में उपयोग होता था।
टीका तो घोड़ों में इंजेक्शन से निर्मित होता है
जोहार पिथौरागढ़ के भोटिया समाज में निम्न जीव जंतुओं का उपयोग कई बीमारियों में होता था**) -
जंतु -------अंग या विधि ----------------- व्याधि  उपचार में उपयोग
खरगोश ----रक्त ------ -------------------स्वास
मेंढक - ---सम्पूर्ण ---तेल में पके पदार्थ का जले घाव
बिच्छू ------सम्पूर्ण को तेल में पकाकर ------बबासीर
बिच्छू भष्म ----------------------  -------   घाव
घरेलू छिपकली ------तिल तेल में उबालकर ---एक्जिमा
जंगली छिपकली ---तेल में उबालना ------उस तेल से मवेशियों के घाव
मछली ------------रक्त ----------- घाव
कनखजूरा ------जलाकर धुंवा --------बबासीर
खटमल -----तुलसी रस में कूटकर  ----संयुक्त रस रिंगवर्म कृमिनाश
सांप -------मांश -------------- आँख , नजर वृद्धि , मूत्र व्याधि आदि
भराल -------सींग घोटकर --------पेस्ट ---पेट दर्द या बुखार
 बाग़ ---------------- मांश -----------     शक्ति
बाग़ बाल ----------  जलाकर  भूसी ------- पैर व मुंह व्याधि , तेल के साथ मालिस
गधे /घोड़े -------मांश ---------------- शक्ति , नर शक्ति
हिरण ----------- मांश -------------- उपरोक्त
 सूअर ---------  मांश  -------------     उपरोक्त
चूहा -----------    मांश --------          वीर्य वृद्धि व शक्ति
चीर व उल्लू --------- मांश ------------- शक्ति वीर्य वृद्धि
केकड़ा ------------   मांश ---------------   शक्ति , ऊर्जा व रक्त व्याधि
काला कबूतर -------- मांश -----------     लकवा
खरगोश -----------     मांश  ---------------माहवारी सुधार
   

सियार --------मांश ( लकवा , गठिया ) (रक्त स्वास व्याधि )

शाही ------- अंतड़ी मांश (बच्चों को पेट व्याधि व स्वास रोग )

बिल्ली ----------- बगैर चमड़ी के उबालते हैं व रस्से से गठिया व्याधि उपचार

मार्टेन चिड़िया ---------------हड्डी लुगदी -----------घाव भरान

कस्तुरी मृग की कस्तुरी के कई औषधीय उपयोग

कई पक्षियों के पीले जर्दे को सर आदि पर मला जाता है जो कई व्याधियों के उपचार में पयोग होता है
(** चंद्र सिंह नेगी और वीरेंद्र सिंह पयाल के 2007 में  प्रकाशित खोजपूर्ण लेख से साभार )
   
 

Copyright @ Bhishma Kukreti  /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - **   ** चंद्र सिंह नेगी और वीरेंद्र सिंह पयाल के 2007 , Traditional uses of Animal Products in medicines by Shoka Tribes Pithoragarh, Uttarakhand , India , Ethno Medicines, 1 (1), 47-53 
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Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड में पारम्परिक अभ्यंग /मालिश  चिकित्सा
   
 Massage Therapy in Uttarakhand (History Aspects)

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 89

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  89

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  89           

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--192)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -192

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 
  मालिश  प्रयोग मानव सभ्यता में बहुत प्राचीन युग से होता आया है।  मिश्र में प्रागैतिहासिक अवशेषों में मालिश चिकित्सा के 2500 BCE  के अवशेष मिले हैं। चीन में भी मालिश चिकित्सा प्रयोग का उल्लेख 2700  वर्ष पुरानी  पुस्तक 'आंतरिक या वैकल्पिक चिकत्सा /औषधि ' (1949 में अंग्रेजी में प्रकाशित ) मिलता है। किन्तु मालिश से वैज्ञानिक  ढंग से चिकित्सा प्रयोग का श्रेय हिन्दुओं के आयुर्वेद को ही जाता है मालिश चिकित्सा में इसे अभ्यंग  कहते हैं चरक संहिता में सर्वांग अभ्यंग  का उल्लेख हुआ है। वाग्भट्ट के अष्टांग हृदयम  में उल्लेख है कि यदि सर्वांग अभ्यंग  संभव न हो तो सिर  व पैरों की मालिश करनी चाहिए। भारत से ही अभ्यंग चिकित्सा मिश्र व चीन में प्रचलित हुयी।
    उत्तराखंड में मालिश चिकत्सा हर गाँव में प्रचलित थी और आज भी मालिश चिकित्सा प्रचलित है - मालिश बिना किसी द्रव या द्रव (घी , सरसों , टिल के तेल व औषधि ) की सहायता  से की जाती है या द्रव की सहायता से की जाती है।
   थकावट शान्ति हेतु सर्वांग अभ्यंग या मालिश चिकित्सा - थकावट या अन्य दुःख में सर्वांग या पुरे वदन की मालिश की जाती है।
   शिरो अभ्यंग अथवा सर मालिश - सरदर्द या अन्य स्थिति में सर की तेल मालिश या शुष्क की जाती है। 
  पाद अभ्यंग अथवा पैर मालिश - अति ठंड लगने या बेहोशी की स्थिति में पाद अभ्यंग साधारण बात है।
 मर्मांग अभ्यंग अथवा अंगों की मालिश - गम चोट या चोट लगने की स्थिति में विशेष अंग की मालिश की जाती है।
वात विरोशी अभ्यंग /मातृ अभ्यंग - नई माओं की सर्वांग मालिश की जाती है. कम से कम छह महीनों तक नवी माओं की मालिश की जाती है।
नवजात या शिशु बाल अभ्यंग या नवजात शिशु मालिश - नवजात शिशुओं की लगातार नौ दस महीनों तक या अधिक काल तक मालिश तो हर घर में प्रचलित है।
  हस्त घर्षण अभ्यंग अथवा हाथ रगड़ना - अति ठंड, शरीर अंग सुन्न पड़ने या अन्य दर्द में हाथों को रगड़ा जाता है।
  मुख घर्षण , मुंह की मालिश भी विशेष स्थितियों में की जाती है।
  अंग मर्दन , , अंग विशेष उमेठन या कान -नाक उमेठना - बहुत सी परिस्थितियों में नाक , कान या विशेष अंग को उमेठा जाता है।
    अंग दबाब - बहुत सी स्थितियों में अंगों को दबाया जाता है जैसे अँगुलियों को खींचना या तड़काना।
     कुरचना या दबाना - कईयों को जब खाई बाण होती है तो बच्चों की सहायता से पैरों से शरीर , पैर दबाना (कुरचना )या हाथों से शरीर  पटकाया /दबाया जाता है।
   मोच , नस चढ़ने या लछम्वड़ होने पर मालिश की जाती है।
  लकवा या अन्य स्थिति में मालिश चिकित्सा प्राचीन काल से चली आ रही है।
  उदर अभ्यंग - पेट में मरोड़ या नाळ पड़ने की स्थिति में उदर अभ्यंग किया जाता है। 
 हड्डियों की मालिश या अँगुलियों से  ठक टाना भी आम चिकित्सा प्रचलित है।
 चिकुटी काटना या चुनगी देना भी  का अभ्यंग का अंग माना जा सकता है।  आँखों की मालिश भी एक चिकित्सा ही है
 

       पर्यटकों हेतु अभ्यंग चिकत्सा
    उत्तराखंड में पर्यटकों हेतु उपरोक्त सभी अभ्यंग चिकित्सा सुलभ होती थीं।



Copyright @ Bhishma Kukreti  16 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Massage therapy &Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;    Massage therapy & Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Massage therapy &  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;   Massage therapy & Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;    Massage therapy & Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Massage therapy &  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Massage therapy &  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Massage therapy &  Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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    उत्तराखंड में पारम्परिक उपवास /व्रत चिकित्सा

 Fasting Therapy in Uttarakhand (History aspects)

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -90

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   90               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--193)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -193

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञCopyright @ Bhishma Kukreti  17 /4 //2018
    व्रत का अर्थ है कसम या सौं।  किसी वस्तु के उपभोग  त्याग को व्रत/उपवास  कहते हैं। उपवास चिकित्सा वास्तव में उत्तराखंड या भारत में सैकड़ों साल से प्रचलित है।  उपवास की सलाह आयुर्वेद व अस्टांग में भी मिलता है उपवास कई प्रकार का होता है। मुख्य उपवास /व्रत भोजन व वाणी व्रत व संसर्ग व्रत होते हैं। उपवास रखने का प्रचलन लगभग सभी धर्मों में प्रचलित है।  यहां  नास्तिक भी उपवास चिकित्सा का अनुमोदन करते हैं।
                   लंगड़ी लेना
  पेट चलने /पेचिस/कब्ज , भूख न लगने आदि स्थिति में वैद लंगड़ी लेने या उपवास रखने की सलाह देते थे।

         विशेष भोजन का उपवास
 
 कई बार चिकित्सक या ज्योतिषी जजमान या बीमार को किसी विशेष भोजन त्याग की सलाह देते हैं जैसे अणभुटा  या तेल विहीन, नमक रहित , मिर्च रहित, दूध रहित आदि भोजन त्यागने की सलाह देते हैं और मरीज अल्प  समय या लम्बे समय तक विशेष भोजन अवयव नहीं खाता है। कई रोगों में दही उपभोग वर्जित है।
   निर्जला व्रत
अधिकतर उपवास में लोग ठोस भोजन की तिलांजलि देकर जल , चाय , दूध , द्रव युक्र भोजन , चीनी गुड़ व कंद मूल , व्रत भोज्य पदार्थ भक्षण कर  लेते हैं किन्तु बहुत से अवसरों पर चिकित्सक व ज्योतिषी निर्जला व बिलकुल पूर्ण व्रत /उपवास की भी सलाह देते हैं। बहुत से लोग विश्वास तहत अथवा किसी भोज्य पदार्थ या धूम्रपान को किसी धार्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत उपभोग छोड़ देते हैं जैसे बद्रीनाथ यात्रा के बाद किसी भोज्य या पेय /धूम्रपान उपभोग छोड़ देते हैं या माता मृत्यु में दूध सवन छोड़ना , पितृ शोक में नमक सेवन छोड़ना आदि। किसी विशेष वस्तु प्राप्ति हेतु भी कई लोग कोई भोज्य पदार्थ उपभोग बंद कर देते हैं।
   शर्करा बीमार/ रक्त चाप/ स्वास रोग रोगी को कई भोज्य पदार्थ छोड़ने की सलाह चिकित्स्क देते हैं

       पत्नी संसर्ग उपवास
  कई बार पत्नी संसर्ग से दूर रहने का भी प्रचलन था और आज भी है। महाभारत में पाण्डु को पत्नी संसर्ग की सलाह दी गयी थी।
   मौन व्रत
 कई बार धार्मिक या शरीर चिकित्स्क मौन व्रत की भी सलाह देते हैं।  मैं बचपन से ही बहुत बोलता था।  मेरे ताऊ जी मुझे मौन रहने को वाध्य  करते थे।  योग में तो मौन व्रत ही नहीं  अंगों द्वारा संवाद न करने की सलाह है।

        अल्प उपवास
अल्प उपवास एक दिन या दो दिन का रखा जाता है। ऐसे उपवास कुछ अंतराल में रखे जाते हैं जैसे पूर्णमासी व्रत या सप्ताह में एक बार। बेटी की शादी में माता पिता द्वारा उपवास रखना इसी वर्ग में आता है।

    दीर्घ उपवास
 जैन , मुस्लिम धर्मी लम्बे उपवास रखते हैं।  बहुत बार कई उत्तराखंडी  अपने  विशेष कार्य सिद्धि हेतु लम्बे उपवास भी रखते हैं
    विशेष कार्य त्याग

 विशेष स्थिति में रोगी को कोई विशेष कार्य त्याग की भी सलाह दी जाती है। कमर दर्द में बोझ न उठाना इसी वर्ग का उपवास है।
     किसी दअन्य  के घर भोजन न करना
        बहुत बार धार्मिक अनुष्ठान या विश्वास तहत बहुत से लोग अन्य घरों में भोजन नहीं करते हैं या स्वयं भोजन पकाकर ही भोजन उपभोग करते हैं।
  मृत्यु हेतु उपवास
बहुत से वृद्ध मृत्यु हेतु  लम्बा उपवास रखते थे।  यह पद्धति जैन धर्मियों से ली गयी पद्धति है।

  पर्यटकों हेतु उपवास चिकित्सा
समय , स्थान व व्यक्ति अनुसार पर्यटकों हेतु उपवास चिकित्सा उपलब्ध थी।

Copyright @ Bhishma Kukreti 17  /4 //2018
संदर्भ :
1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी

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  Fasting Therapy & Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;    Fasting Therapy &  Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;    Fasting Therapy &  Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;    Fasting Therapy &  Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;     Fasting Therapy & Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;    Fasting Therapy &  Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;      Fasting Therapy & Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;    Fasting Therapy &  Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;     Fasting Therapy & Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Fasting Therapy &  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Fasting Therapy &    Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Fasting Therapy &    Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; पौड़ी गढ़वाल में उत्तराखंड में व्रत चिकित्सा : पारम्परिक चिकित्स; चमोली गढ़वाल में  उत्तराखंड में व्रत चिकित्सा : पारम्परिक चिकित्सा;रुद्रप्रयाग; टिहरी व्रत चिकित्सा।  उत्तरकाशी  गढ़वाल में व्रत चिकित्सा ; देहरादून गढ़वाल में व्रत चिकित्सा , हरिद्वार गढ़वाल में व्रत चिकित्सा , उधम सिंह नगर कुमाऊं में व्रत चिकित्सा , नैनीताल कुमाऊं में व्रत चिकित्सा ; अल्मोड़ा कुमाऊं में व्रत चिकित्सा , पिथौरागढ़ में व्रत चिकित्सा   ,


Bhishma Kukreti

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   उत्तराखंड में धूम्रपान चिकित्सा व धूम्र दत्त रक्षा उपाय
 Smoking Therapy in Uttarakhand

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -91

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 91               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--194)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -194

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    उत्तराखंड समेत भारत में धूम्रपान का इतिहास 2000 वर्ष से भी प्राचीन है। धूम्रपान औषधि व व्यसन रूप में उत्तराखंड में अशोक काल से भी पहले प्रचलित था। बाढ़ साहित्य में उल्लेख है कि  हरिद्वार व कोटद्वार भाभर में आये बौद्ध भिक्षु  धूम्रपान हेतु पहाड़ी गाँवों में लालायित रहते थ.
    अष्टांग हृदयम  में बागवभट्ट ने धूमप्रापण चिकित्सा का उल्लेख किया है। 
धूम्रपान के निम्न प्रकार हैं -
१- औषधि रूप  धूम्रपान
२-व्यसन रूप में धूम्रपान
३- धार्मिक   अनुष्ठानों  धूम्रपान
४- शरीर रक्षा हेतु निर्माण
५- कीटाणु भगाने व रक्षा हेतु जीव हत्त्या हेतु  धूम्र निर्माण
        औषधि रूप में धूम्रपान
उत्तराखंड में सत्रहवीं अठारवीं  सदी में  तम्बाकू ने प्रवेश किया और अंग्रेजी शासन में तम्बाकू व  अन्य व्यसनी धूम्रपान   का उपयोग बढ़ा।
    तम्बाकू धूम्रपान से पहले उत्तराखंड में व्यसन रूप में धूम्रपान का चलन ब्रिटिश शासन  सर्वाधिक हुआ और स्वतंत्रता के पश्चात तो बहुत ही अधिक प्रचलन बढ़ा।

    औषधि रूप में कई तरह के पौधों का उपयोग धूम्रपान हेतु होता रहता था व कई क्षेत्रों में आज भी है।
      औषधि धूम्रपान मनोरोग , भ्रान्तिमान स्थिति , अति भौतिक दर्द , उत्तेजना विसर्जन व प्राप्ति , तनाव आदि में प्रयोग होता था जैसे भांग , अफीम , धतूरा व कई अन्य वनस्पतियां।  वैद्य कई स्थानीय वनस्पतियों को जानते थे व वनस्पति के अंगों को पीसकर दुखियारे को धूम्रपान करवाते थे . चूँकि परम्परा थी कि गूढ़ विद्या सामन्य जन को नहीं बतलानी चाहिए तो हमारे पास उन बहुत सी वनस्पतियों का ज्ञान ही नहीं रह गया है जिन्हे वैद्य धूम्रपान चिकित्सा में प्रयोग करते थे। प्र्स्सन्न्ता है कि वनस्पति शास्त्री अब अन्वेषण में लगे हैं
 भट्ट जैसे बीजों  को जलाकर , भूनकर  उसके धूम्र से कफ , सर्दी जुकाम  आदि उपचार होता था।
    बागभट्ट अष्टांग हृदयम  के 21 वे अध्याय में धूम्रपान के निम्न रोगों में लाभ उल्लेख है -
   अ -कफ
ब - डिस्पोनइया सुनवैकल्य या  बोलने में कठिनाई
स - सूंघने, सुनने में कठिनाई
सी -, अश्रु दोष व्  - हिचकी
ध -खुजली या एलर्जी
न - पेट , सरदर्द , अधकपाली , शूल पीड़ा , ठंड से  दर्द , निद्रा , अनिद्रा , ऊर्जाहीनता , पीड़ा आदि आदि

             धूम्रपान यंत्र
मिटटी या धातु की बनी चिलम 

       धूम्रपान बत्ती
अष्टांग हृदयम में धूम्रपान बत्ती निर्माण की कला वर्णन मिलता है। यही विधियां  उत्तराखंड में धूम्रपान औषधि में उपयोग होती आती हैं (श्री स्व किसन दत्त कंडवाल  वैद्यराज , ग्राम ठंठोली, मल्ला ढांगू ,  पौड़ी गढ़वाल के भतीजे से प्राप्त जानकारी अनुसार अष्टांग आधारित वैदकी ठंठोली में प्रचलित थी )

     अंगार
 धूम्रपान हेतु किन किन अंगारों का उपयोग होना चाहिए का वर्णन अष्टांग में है।

  अस्टांग में तीन प्रकार -मृदु ,  मध्य , तीक्ष्ण आदि के प्रकार , कब धूम्रपान वर्जित है , धूम्रपान विधि आदि का सम्पूर्ण उल्लेख है।
   उपरोक्त सभी धूम्रपान औषधि उपयोग  उत्तराखंड में चिकत्सा रूप में उपयोग होते थे व वर्तमान में भी होते हैं।

   मृदु धूम्रपान हेतु वनस्पति व जंतु औषधि
अगरुरु , गुगलु , मुस्ता , स्थानेय , नालदा , शैलेय , उशिरा , वाल्का , वरंगा , काउंटी , ध्यामका , कुमकुम ,माशा , विल्वमज्जा , कुंदूका , पल्लव , इलावलुका आदि।
इसके अतिरिक्त तिल  का तेल व की जीवों के चर्बी या हड्डी मज्जा से बने तेल व घी भी धूम्रपान औषधि निर्माण  द्रवणी (मिश्रति करण ) हेतु उपयोग होते थे। 

     मध्य धूम्रपान वनस्पति औषधि
 जटामासी , नीली कमल ककड़ी भाग, शालकी , पृथ्वीका , उदंबरा ,अश्वथा , प्लाक्ष , यस्थिमधु, न्याग्रोधा , पद्मका आदि ।

    तीक्ष्ण धूम्रपान वनस्पति औषधि
  ज्योतिष्मती , हल्दी , दशमूल , लक्ष , श्वेता , त्रिफला आदि
    (श्री स्व किसन दत्त कंडवाल  वैद्यराज , ग्राम ठंठोली, मल्ला ढांगू ,  पौड़ी गढ़वाल के भतीजे से प्राप्त जानकारी )

      २- धार्मिक अनुष्ठानों में धूम्रपान 
   धार्मिक अनुष्ठानों जैसे होम , यज्ञ , आहुति , व घडेळा आदि में धुपण देना आदि धार्मिक धूम्रपान के उदाहरण हैं।

     ३- शरीर व कृषि रक्षा हेतु धूम्र उपयोग
   कीटों व अन्य सूक्ष्म सूक्ष्म  जीवों व मच्छरों को भगाने हेतु उपले व गंधेला / कड़ी पत्ता आदि जलाया जाता है।  टिड्डी आदि कीड़ों को भगाने हेतु भी धूम्र निर्माण किया जाता था।  मधु मक्खी/चिमल्ठ भगाने हेतु भी धूम्र निर्माण किया जाता है।
 
   ४- जीव  हत्त्या हेतु धूम्र निर्माण

   बाघ , शाही , सियार , रीछ आदि मारने हेतु इन जानवरों के बिलों /घरों में धूम्र निर्माण कर इन्हे बिल /घरों से बाहर लाया जाता था व मारा जाता था।  बहुत बार बंदरों , बाघों के आतंक कम करने हेतु बणांक लगाने की पुरानी परम्परा भी थी।
         नशे हेतु धूम्रपान

भांग , धतूरा , तम्बाकू का उपयोग बहुप्रचलित है।
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   वैसे धूम्र ने मनुष्य को नुक्सान अधिक पंहुचाया है लाभ कम दिया है जैसे रसोई में धुंवें ने कितनी जाने लीं हैं पता नहीं और अब दिल्ली जैसे श्हरों में धुंवे व प्रदूषित वायु हानि  . पंहुचती है 
 


 



Copyright @ Bhishma Kukreti  /184 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड परिपेक्ष्य में तिब्बती चिकित्सा प्रचलन व इतिहास भाग -1

 Tibetan Healthcare System in Uttarakhand

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  92

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 92                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--195)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 195

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    समस्त उत्तराखंड का उत्तरी भाग तिब्बत सीमा से सटा है और दीयों से तिबत व उत्तराखंड के राजाओं का सीमा विवाद चलता रहता था किन्तु दोनों क्षेत्रों के व्यापारिक , सांस्कृतिक संबंध कभी बंद नहीं हुए।  1962 के चीनी आक्रमण पश्चात तिब्बत से संबंध समाप्त हुए। गढ़वाल व कुमाऊं के उत्तरी भागों में भोटिया जाती तिब्बती मूल के हैं और तिब्बत के साथ वाणिज्य माध्यम का कार्य सहस्त्र वर्षों से करते आ रहे हैं।  भोटियाों ने गढ़वाल -कुमाऊं व हिमाचल को तिब्बती चिकित्सा पद्धति भी दी व कई  औषधि निर्माण पद्धति /ज्ञान भी उत्तराखंड को भोटियाओं द्वारा प्राप्त हुआ। बद्रीनाथ ,हेमकुंड , उत्तरकाशी , पिथौरगढ़ जोहर आदि स्थानों में अन्वेषकों , पर्वतारोहियों यात्रियों को भोटिया जन तिब्बती पद्धति से चिकित्सा भी प्रदान करते थे।  गढ़वाली सेना को तिबत व नीति -माणा   में तिब्बती पद्धति की चिकित्सा सुलभ थी। पर्यटकों को चिकित्सा प्रदान करने में तिब्बती चिकित्सा का भी हाथ रहा है।  कई तिब्बती चिकित्सा पद्धति ग्रामीण उत्तराखंड चिकित्सा पद्धतियों के साथ इस तरह मिल गयी हैं कि यह पता लगाना कठिन है कि कौन सी पद्धति तिब्बती है और कौन सी निखालिश कुमाउँनी या गढ़वाली पद्धति है।  आयुर्वेद ने भी भोटिया व्यापारियों द्वारा तिब्बती चिकित्सा पद्धति को प्रभावित किया किन्तु अब इन्हे पहचानना कठिन ही है।
    अतः मेडिकल टूरिज्म इतिहास की दृष्टि से तिब्बती चिकित्सा इतिहास भी महत्वपूर्ण है और तिब्बत के प्रसिद्ध चिकित्स्कों का ज्ञान भी प्रासंगिक हो जाता है।

                   बोन चिकित्सा पद्धति
  कहा जाता है कि तिब्बती चिकित्सा पद्धति दुनिया की प्राचीनतम पद्धतियों में से एक है।  इसे बोन चिकित्सा पद्धति भी कहते हैं जो बौद्ध धर्म  प्रसारण युग से पहले तक प्रचलित थी। बॉन चिकित्सा पद्धति की पोथी 'जाम -मा त्सा ड्रेल ' (200 BC ) में रची गयी थी जिसमे वेदों व चिकत्सा वर्णन है । 

       बुद्ध सांख्यमुनि (961 -881 BC )

   सांख्य मुनि ने तिब्बत में बौद्ध धर्म प्रचार किया और सांख्य मुनि क्र बौद्ध प्रवचनों ने बोन  चिकित्सा पद्धति को प्रभावित किया व चिकित्सा पद्धति में बुद्ध के चार अपरिवर्तनीय विचार व 6 सिद्धियों  सिद्धांतों का प्रवेश हुआ।
  ल्हा थोथोरी (245 -364 AD )
 जनश्रुति व यूथोक की नामथार अनुसार भारतीय मूल के दो चिकित्स्क भाई बहिन बिजी  गजे व बिली गजे तिबती राजा युल  पेमा नयिंगपो के चिकित्सक थे।  दोनों ने तक्षशिला जाकर आयुर्वेदाचार्य आत्रेय से चिकित्सा विज्ञान सीखा।  फिर दोनों ने चीन , नेपाल , चीन के पूर्वी तुर्किस्तान की यात्रा की।  दोनों ने मगध में कुमार जीविका से अतिरिक्त  चिकित्सा शिक्षण ग्रहण की।
      बज्रासन में आर्य तारा ने उन्हें तिब्बत जाकर चिकत्सा सिखलाने हेतु तिब्बत भेजा व राजा ने बिजे  का विवाह अपनी बेटी इदकी रोल्छा (जो बाद में चिकित्स्क हुईं ) से की।  बिजे गजे व बिली गजे ने लोगों की चिकित्सा ही नहीं की अपितु कई शिष्यों को चिकित्सा शिक्षा भी दी।  जनश्रुति अनुसार बिजी  गजे व बिली गजे चंदन के वनों में निवास करते हैं।

डंग गी थ्रोचोंग (चौथी सदी )

    बिजी गजे व रोलचा का  पुत्र या डंग  गी  थ्रोचोंग  महान चिकित्सक था व वह अपने नाना का व्यक्तिगत चिकित्सक भी था।  डंग गी थ्रोचोंग ने युवापन में ही अपने पिता से नाड़ी जांचने ,औषधि विज्ञान , रक्तचाप , रक्त रोकने व घाव विज्ञान सीख लिया था। डंग गी थ्रोचोंग की पीढ़ियों में कई चिकित्सक हुए।  डंग थ्रोचोंग की एक पीढ़ी में यूथोंग योंतेन गोनपो महान चिकित्स्क हुए व योंतेन की कई पीढ़ियों ने राजचिकित्स्क का पद संभाले रखा।

     धर्म राजा सौंगतसेन गैम्पो (617 -650 )

      33 वें राजा सौंगतसेन गैम्पो ने भारत से चिकित्स्क भारद्वाज ; ईरान से गालेनोज व चीन से हांग वान हांग डे  चिकित्स्कों को तिब्बत बुलाया व उनसे अपना चिकित्सा ज्ञान तिब्बत के चिकित्सकों को देने की प्रार्थना की।  प्रत्येक ने अपने ज्ञान पर लेख  लिखे जो बाद में 'मिजिग्पे -त्सोंचा ' (डरविहीन हथियार ) नाम से पुस्तक में संकलित किये गए।
   चीनी व भारतीय चिकित्स्क तो अपने देश लौट गए किन्तु ईरानी चिकित्स्क गालेनोज तिब्बत में रहा और उसने कई चिकित्सा पुस्तकें रचीं. राजा की चीनी रानी भी चीन से एक चिकित्सा पोथी लायीं और उसका तिब्बती में अनुवाद करवाया।
धर्म राजा त्रिसौंग देवोत्सेन (742 -797 ई )
धर्म राज देवोत्सेन ने ईरान , भारत , चीन , नेपाल व पूर्वी तुर्किस्तान के चिकित्स्कों का प्रथम सम्मेलन सामये बुलवाया . तिबत का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ बृद्ध युथोंग गोनपो  ने किया।  सम्मेलन में चिकित्सा सबंधी वार्ताएं हुईं।

 युथोंग योन तेन गोनपो (708 -833 ई )
    चिकित्स्क परिवार में जन्मे वरिष्ठ युथोंग ने चिकित्सा शिक्षण हेतु  हेतु कई बार भारत की यात्रा की व , चीन की भी यात्रा की।  युथोंग गोनपो ने सन 763 ई  में तिब्बत का प्रथम चिकित्सा शिक्षण संसथान 'तनाडग ' की स्थापना की।
   लोचेन रिनचेन सांगपो (958 -1056 ई )

लोचेन रिनचेन सांगपो  ने कश्मीर की यात्रा की और आयुर्वेद के अष्टांग की शिक्षा शाली होत्र से प्राप्त की । लोचेन रिनचेन सांगपो ने अष्टांग का तिब्बती में अनुवाद किया औरतिब्बति चिकित्सा में नया अध्याय जोड़ा।

कनिष्ठ युथोंग योनतेन गोनपो (1126 -1202 )

गोनपो चिकित्स्क परिवार में जन्मे कनिष्ठ युथोंग योनतेन गोनपो  युवा होने से पहले ही चिकित्सा शास्त्र में पारंगत हो गया था। अठारह वर्ष के कनिष्ठ युथोंग योनतेन गोनपो  ने छह बार भारत यात्रा की और डाकिनी पाल्डेन त्रिंगवा व चरक से अतिरिक्त चिकित्सा विद्या प्राप्त की।
कनिष्ठ युथोंग योनतेन गोनपो ने चिकित्सा शास्त्र पर कई पुस्तकें रचीं और 300 शिष्यों (जिनके नाम तिब्बती चिकित्सा साहित्य में उपलब्ध हैं ) को चिकित्सा ज्ञान दिया।

जंगपा नाम्यागल द्रासंग ( 1395 -1475 )
जंगपा नाम्यागल द्रासंग  ने दस साल में भारतीय सूत्र व सिद्धांतों में सिद्धि प्राप्त कर ली थी। जंगपा नाम्यागल द्रासंग ने 11 चिकित्सा पुस्तक रचे और जंगपा चिकित्सा पद्धति की स्थापना की।

रीजेंट सांगे गियेतसो (1653 -1706 )
   पांचवें दलाई लामा के रीजेंट रीजेंट सांगे गियेतसो  ने ह्यूमन एनोटॉमी के कई सूत्रों का संपादन किया व ल्हासा में चिकित्सा विद्यालय की स्थापना की। ज्योतिष पुस्तक के अतिरिक्त रीजेंट सांगे गियेतसो  ने तिब्बती चिकित्सा इतिहास भी संकलित किया व कई पुस्तकें रचीं।
खेनरब नोरबू (1883 -1962 )  योगदान  संरक्षण व  आदरणीय है।

  वर्तमान दलाई  लामा
तेरहवें दलाई लामा ने तिबत में मेन  त्सी खांग चिकित्सा संस्थान की स्थापना की थी वर्तमान दलाई लामा व अन्य चिकित्सकों  ने इस संस्थान को 1961  में भारत में पुनर्जीवित किया और संस्थान की कई शाखाएं दिल्ली अमेरिका में खोलीं।

    भोटिया समाज का चिकित्सा योगदान
 भोटिया समाज  कई जड़ी बूटियां सदियों से निर्यात  हैं व तिब्बती पद्धति का प्रचार भी करते आये हैं। इसके अतिरिक्त उत्तरकाशी में भी हिमाचली भोटिया चिकत्सा तिब्बती चिकित्सा प्रदान करते आये हैं।   

Curtsy -Men Tsee Khang Institute website
Copyright @ Bhishma Kukreti  19 /5//2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Tibetan Medical practices &  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tibetan Medical practices &   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Tibetan Medical practices &   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tibetan Medical practices &   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड में   वैकल्पिक चिकित्सा

उत्तराखंड में वैकल्पिक चिकित्सा
 Alternative Healthcare in Uttarakhand

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  93

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   93               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--196)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 196

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
 सदियों से उत्तराखंड में आयुर्वेद के अतिरिक्त वैकल्पिक चिकित्सा भी प्रचलित व सामन्य जन में प्रसिद्ध ही नहीं अपितु लोकप्रिय भी रही हैं।
उत्तराखंड में निम्न पारम्परिक वैकल्पिक चिकित्सा उपलब्ध थी या प्रचलित थीं -
     योग
- कृषिप्रधान क्षेत्र होने से व्यवसायिक योग प्रचलित तो न था पर ऋषि व ब्रिटिश काल में संत योग ध्यान करवाते थे।

विज्ञान भैरव आधारित चिकित्सा
- विज्ञान भैरव आधारित चिकित्सा वास्तव में शरीर संबंधी चिकित्सा है और अंत में मानसिक आनंद प्राप्ति होती है।  कटी तांत्रिक अनुष्ठानों में विज्ञान भैरव के सिद्धांतों में परिवर्तन कर उन्हें क्षेत्रीय आवश्कतानुसार परिवर्तित किया गया है जैसे - तेज नोक को शरीर पर चुभाने की कला /तकनीक को बहुत प्रेत भगाने हेतु कांड /कंडाळी  से झपोड़ने की विधि ; तेल दिखाना , तांत्रि अनुष्ठान (छाया पूजन ) नदी किनारे या ऊँची निर्जन धार में करना आदि . चिकुटी काटना आदि भी विज्ञान भैरव आधारित चिकित्सा है।
  संगीत आधारित चिकित्सा
संगीत आधारित चिकित्सा ने कई रूप ले लिए हैं।  धार्मिक अनुष्ठानों ने संगीत वाद्य वास्तव में आनंद व कई मनोरोग दूर करने की चिकित्साओं का परिवर्तित रूप है।  एकतारा वादन या घंटा वादन भी विज्ञान भैरव आधारित संगीत चिकित्सा ही है।
नृत्य चिकित्सा
नृत्य चिकित्सा तो संस्कृति का अंग है जिसे समग्र चिकित्सा नाम दिया जा सकता है।
सम्मोहन
यद्द्यपि सम्मोहन चिकित्सा भूतकाल में प्रचलित थी अब सम्मोहन चिकित्सा कम ही प्रयोग होती है किन्तु बहुत से मंत्र सम्मोहन संबंधी मंत्र उत्तराखंड में प्रचलित रहे हैं।
ध्यान
ध्यान से चिकित्सा आज अधिक  प्रचलित हो रही है
मूत्र चिकित्सा
वैद्यों  की अनुमति से स्व मूत्र चिकित्सा प्रचलित थी।  गौ मूत्र चिकित्सा तो काफी प्रचलित रही है। गोबर से स्वास्थ्य रक्षा जीवन शैली अंग है।
तंत्र मंत्र चिकित्सा
तंत्र मंत्र चिकित्सा तो आज भी प्रचलित है।
भोजन  आधारित चिकित्सा
समग्र भोजन आधारित चिकित्सा वास्तव में सदियों के अनुभव से संचालित होती रही है।  जैसे शीतकाल में कंडाळी खाना किन्तु गर्मियों में नहीं खाना , सर्दी जुकाम में भट्ट भूनकर सूंघना , ग्रीष्म ऋतू में मसूर की दाल न खाना , रात में दही , चावल , उड़द की दाल वर्जित होना आदि सामन्य समग्र जीवनशैली के अंग थे। व्रत रखना भी समग्र भोजन चिकित्सा अंग है।
भाप या भप्याण  चिकित्सा
भाप द्वारा चिकित्सा भी सामन्य चिकित्सा थी।
एक्यूपंचर व ऐक्यूप्रेस्सर
एक्यूपंचर व एक्यूप्रेसर चिकित्सा भी सामन्य चिकित्सा थी।  ताळ  लगाना या कान नाक छेदन आदि एक्युपंचर  के परिवर्तित रूप हैं। खुरचना आदि एक्यूप्रेसर का ही अंग है।
मानसिक चिकित्सा
मानसिक चिकित्सा के कई रूप सामने आते हैं जो तंत्र मंत्र में परिवर्तित हो गए हैं।
रत्न चिकित्सा
रत चिकित्सा कई रूप में प्रचलित थी।  गंड बांधना आदि रत्न चिकित्सा अंग हैं
धातु स्पर्श चिकित्सा /चुंबक चिकित्सा
लौह कड़े पहनना , पैर  या बाजू में लौह कड़ा पहनना धातु स्पर्श , चुंबक , विद्युत् चिकित्सा के अंग माने जा सकते हैं।
सुगंध चिकित्सा
 सुगंध , गंध चिकित्सा के कई रूप उत्तराखंड में मिलते थे।  कर्मकांड में गंध -सुगंध सामन्य प्रक्रिया है।
स्वास्थ्य रक्षा हेतु जीवन शैली
 पहाड़ों की जीवन शैली वास्तव में स्वास्थ्य रक्षा हेतु बनी थी।
स्पर्श चिकित्सा
स्पर्श चिकित्सा वास्तव में जीवन शैली अंग बन गया है।
हंसी चिकित्सा
हंसी चिकित्सा भी जीवन शैली का एक अंग है
रोदन चिकित्सा
रोदन चिकित्सा को जीवन शैली का अंग बना दिया गया है
पशु पक्षी पास होने की चिकित्सा
कृषि प्रधान क्षेत्र होने से यह चिकित्सा जीवन अंग बन गयी थी।
गाली चिकित्सा
गाली देकर गुबार निकालना भी जीवन शैली अंग है।
सम्भोग चिकित्सा
मानसिक शान्ति हेतु विज्ञान भैरव में सम्भोग का समय बढ़ाओ व अपने सम्भोग कृत स्मरण करो जैसे दो सिद्धांत  तो जीवन शैली अंग है
छींक चिकित्सा
छींक  चिकित्सा जीवन शैली अंग है।  जब छींक आये तो उसे रोकने से मानसिक शान्ति ही नहीं मिलती अपितु शरीर ऊर्जावान हो जाता है भी विज्ञानं भैरव सिद्धांत है।
क्रोध रोकना चिकित्सा
विज्ञानं भैरव का एक सिद्धांत है कि जैसे ही क्रोध आये उसे देखो तो शरीर ऊर्जावान हो जाएगा या शांति मिलेगी।  यह सिद्धांत जीवन शैली का अंग है
सांस व वायु चिकित्सा
सांस व वायु चिकित्सा भी जीवन शैली अंग है। शंख वादन , पिम्परी वादन आदि सांस वायु चिकित्सा के अंग माने जा सकते हैं।
आसमान देखना ,आदि जैसे कई कार्यकलाप वैकल्पिक चिकित्सा के रूप हैं जो उत्तराखंड में प्रचलित थे व आज भी प्रचलित हैं। 




Copyright @ Bhishma Kukreti 20 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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उत्तराखंड का सीधा मुकाबला दिल्ली  से है

Delhi is Major Competitor for Uttarakhand

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन   95

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  ( Strategies   )  - 95                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--197)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 197

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    मेडिकल टूरिज्म में हर चिकित्सा दायी क्षेत्र ग्लोबल प्रतियोगिता करता रहता है।  योग चिकित्सा के के मामले में स्विटजर लैंड भी उत्तराखंड से प्रतियोगिता कर सकता है
मेडिकल टूरिज्म दृष्टि से उत्तराखंड के दो क्षेत्र मुख्य प्रतियोगी हैं -
ऐलोपैथी में दिल्ली
प्राकृतिक व वैकल्पिक चिकित्सा में हिमाचल प्रदेश।

  दिल्ली की विशेस्ताएं जो उत्तराखंड में नहीं मिलती हैं
दिल्ली देश की राजधानी होने से दिल्ली का नाम भारत में या अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर अधिक प्रसिद्ध है।
 दिल्ली में मेडिकल फैसिलिटीज उत्तराखंड के मुकाबले कहीं अधिक हैं।
 दिल्ली में कई नामी गिरामी सरकारी चिकित्सालय पहले से खुले हैं जिनका नाम प्रसिद्ध हैं
 दिल्ली में दवाईयां भी सर्वत्र उपलब्ध हैं
 दिल्ली में प्राइवेट हॉस्पिटल्स व प्राइवेट डॉक्टरों की संख्या कहीं अधिक है। इमरजेंसी में सभी सहूलियतें मिल सकती हैं।
  राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली आने -जाने के लिए सड़क , रेल व हवाई जहाज सुविधाएँ कहीं अधिक हैं
दिल्ली में आंतरिक परिहवन व आवास -भोजन सिविधाएँ अधिक व वृहद स्तर पर हैं

   मेडिकल टूरिज्म में दिल्ली से प्रतियोगिता करना सफल रणनीति नहीं हो सकती है

उपरोक्त तथ्य साफ़ साफ़ निर्देश देते हैं कि ऐलोपैथी चिकित्सा में दिल्ली के साथ प्रतियोगिता कठिन है।  यद्यपि प्राइवेट चिकित्सा संस्थान खुलवाने के अच्छे अवसर उत्तराखंड में हैं किन्तु वे कम ही पड़ेंगे।
  दिल्ली से प्रतियोगिता आवश्यक है अतः  उत्तराखंड को ऐसे  मेडिकल प्रोडक्ट निर्मित करने पड़ेंगे जिसमे दिल्ली आगे न आ सके।

कल पढ़िए नई रणनीति

Copyright @ Bhishma Kukreti  21/5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;



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उत्तराखंड मेडिकल पर्यटन के सुनहरे वर्ष जब गांधी जी ने उत्तराखंड यात्रा की
 
 Gandhi Visiting Uttrakhand

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  96

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -   96               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--198)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 19

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
 मेडिकल टूरिज्म इतिहास में गांधी जी की मसूरी व कसौनी यात्रा हमेश याद रखा जायेगा।  दोनों बार गांधी जी यात्राएं मेडिकल टूरिज्म संबंधी यात्राएं थीं।
 

     Gandhi Ji was interested knowing about Uttarakhand by his own experience. Mahatma Gandhi reached Haridwar on 5th April 1915 at the Kumbh Occasion. Mahatma Gandhi visited Gurukul Kangari on 6th April 1915. Mahatma Gandhi visited Rishikesh, Swargashram and Lakshman Jhula on 7th April 1915.  Mahatma Gandhi came to Gurukul again in 1916.  In 19129, Gandhi reached Haridwar.  Gandhi reached Mussoorie vi Dehradun and he rested there for 15 days. गाँधी जी ने मसूरी की यात्रा दुबारा 1946 में की

    Gandhi Ji Visiting Kumaon region

      In June 1921, Gandhi ji reached Kumaon. First he reached to Bareli on 13th June from Savarmati . Gandhi delivered a speech in Bareli in a public meeting.  Gandhi reached Haldwani from Bareli in morning on 14th June 1921.  Govind Ballabh Pant and other Kumaon degnities were present for his welcome in Hldwani . Devdas Gandhi, Mrs Kasturba Gandhi , Gandhi’s Secretary Pyarelal , Jawahar Lal Nehru, Acharya Kriplani, Sucheta Kriplani were with Gandhi. Mahatma Gandhi delivered a speech in public meeting in Haldwani and collected donation for Harijan Kalyan.

     Gandhi reached Nainital around 11 AM from haldwani by car. The lodging arrangement for Gandhi was at Takula village two miles away from Nainital. Gandhi started his journey from Takula Village at five Pm for Nainital. People decorated town by flags and welcome gates. A procession was with Gandhi and band was in front. Gandhi was in open car and Govind Ballabh pant was also in car. Everywhere crowd was there in Nainital and joy was visible. Wives of British officers and other Lords were watching the procession with curiosity and surprise.

        At 7 PM, the meeting started at Malla tal where Gandhi delivered speech. People donated Chanda too. Gandhi returned to Takula.

 Gandhi spent Night in Takula. In next morning, Gandhi walked to Nainital. he delivered speech before women. Women donated money and their jewels to Gandhi .

       In day time , Gandhi reached to Almora. There was huge procession for Gandhi . Unfortunately a young man Padma Singh came under Gandhi car and died in hospital. Gandhi went to hospital to see the youth. Goind Ballabh Pant attended funeral. Mukandi Lal barrister met Gandhi in Ranikehet.

        On 21st June 1929 Gandhi reached to Kasauni. Badri Datt Pande was with Gandhi there. He was astounded  by watching Himalaya. Next day, Gandhi reached Bageshwar and laid foundation stone for Swaraj Bhavan.

   Gandhi stayed there for a few days. Gandhi wrote commentary on Anashakti  Yoga of geetaa there. Gandhi stayed in Kumaon from june to 4th july. Gandhi reached Kashipur via Ramnagar  Gandhi delivered speech and got donation too. Govind Ballabh Pant, Badri datt Pande and Mohan Joshi were with him in Kashipur. 




Copyright @ Bhishma Kukreti 21 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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मेडिकल टूरिज्म का वैश्विक बाजार पर एक नजर
Medical Tourism Global Views

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    मेडिकल टूरिज्म बहुत पुराना विचार है।  हजारों साल पहले पाषाण युग में भी मेडिकल टूर होते थे।  उत्तराखंड तो मेडिकल टूरिज्म हेतु सैकड़ों वर्षों से भारत में प्रसिद्ध रहा है। भूतकाल में  मेडिकल टूरिज्म कुटीर उद्योग जैसा था किन्तु वर्तमान में चिकित्सा , स्वास्थ्य लाभ पर्यटन ने अब संगठित रूप ले लिया है। वर्तमान में कई देशों मेडिकल टूरिज्म या चिकित्सा पर्यटन विकास  मंत्रालय भी खोले गए हैं।
   ट्रांसपेरेंसी मार्केट  एजेंसी के अनुसार वैश्विक स्वास्थ्य पर्यटन का व्यापार 1916  में उस$ 46. 46  बिलियन या  दस अरब डॉलर का था व सन 2025 तक स्वास्थ्य पर्यटन में 14 . 9 % की वृद्धि होगी व व्यापार US $ 160 . 8  बिलियन डॉलर तक पंहुच जायेगा ( एक बिलियन = 1000 x 1000000 =एक अरब ) .
  पेसियंट्स बियोंड बॉर्डर्स के रपट अनुसार वर्तमान में 5 देश स्वास्थ्य पर्यटन हेतु अति प्रसिद्ध हैं -
     मलेसिया
मलेसिया स्वास्थ्य पर्यटन का सरताज है और प्रतिवर्ष मलेसिया में 5 लाख विदेशी स्वास्थ्य लाभ हेतु पर्यटन करते हैं।  मलेसिया के चिकित्सालय व समाज चिकित्सा पर्यटकों के मित्र माने जाते हैं।  चिकित्सालयों में परिष्कृत उपकरणों व टेक्निकल स्टाफ के अतिरिक्त मलेसिया में चिकित्सा व्यय 20 % कम लागत भी है (विट्रो फर्टिलाइजेशन उदाहरण ) .
  भारत
पेसियंट्स बियोंड बॉर्डर रपट अनुसार भारत में प्रति  वर्ष 2 50 000  चिकित्सा पर्यटक प्रवेश करते हैं और इन पर्यटकों के चेहते शहर बंगलोर , चेन्नई , दिल्ली व मुंबई हैं।  भारत के मुख्य ग्राहक पाकिस्तान , मैम्यार , बंगलादेश , मालदीव हैं।  भारत कम लागत में चिकित्सा हेतु प्रसिद्ध हो रहा है और अमेरिकी , कनाडा अरब देशों , ब्रिटेन , अफ़्रीकी क्षेत्रों को भी आकर्षित कर रहा है।  चेन्नई सबसे अधिक पर्यटक आकर्षित करता है (30 -40 %)चिकित्सा पर्यटन में भारत प्रगति कर  रहा है।
भारत फर्टिलिटी , ऑर्थोपेडिक , ऑर्गन ट्रांसप्लांट , कार्डिक चिकित्सा हेतु अधिक पसंद किया जाता है।
भारत में निम्न चिकित्सा  आकर्षित करने में सफल हैं  -
कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट
कार्डियक ट्रीटमेंट
दंत  चिकित्सा
 कान , नाक व आँख
आँख चिकित्सा
 पाचन तंत्र  चिकित्सा
नस या तंत्रिका चिकित्सा /न्यूरोलॉजी
मेघविज्ञान चिकित्सा या किडनी संबंधी चिकित्सा
गुर्दा स्थानांतर /किडनी ट्रांसप्लांट
 स्त्री रोग चिकित्सा
मूत्र रोग चिकित्सा
आध्यात्मिक चिकित्सा जैसे योग




टर्की
टर्की की विशेषता है कि  यहां अमेरिकी डॉक्टर रोजगार करने को उत्साहित रहते हैं और उन्होंने इस सुंदर देश को चिकित्सा पर्यटन में प्रसिद्धि दिला दी है। तुर्की के मुख्य ग्राहक यूरोप व अमेरिका क्षेत्र के हैं व कार्डियक , कैंसर , ऑर्थोपेडिक चिकित्सा हेतु प्रसिद्ध स्थान माना जाता है।  टर्की आँखों के शल्य क्रिया हेतु भी प्रसिद्ध है।
ब्राजील
पेसियेंट्स बियोंड  अनुसार  २ लाख विदेशी चिकित्सा हेतु ब्राजील जाते है।  ब्राजिक कॉस्मेटिक सर्जरी हेतु प्रसिद्ध है। ब्राजील में कॉस्मेटिक सर्जरी व्यय संयुक्त राज्य अमेरिका से 30 -50 % कम है।
थाईलैंड
पेसियेंट्स बियोंड बॉर्डर्स अनुसार थाईलैंड के बैंकॉक शहर में बुमरुंगार्ड इंटरनेशनल प्रति वर्ष 12 लालख से अधिक रोगी चिकित्सा हेतु इस चिकित्सालय में भर्ती होते हैं और प्रतिदिन 1000 के लगभग विदेशी रोगियों की चिकित्सा होती है।

 



Copyright @ Bhishma Kukreti  22/5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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मेडिकल टूरिज्म के ग्राहकों के बारे में ममहत्वपुर्ण  जानकारियां --
Same Facts about Medical Tourism

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  98

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  98               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--200)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -200

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  मेडिकल टूरिज्म असोसिएसन ने अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दीं हैं -

64 % रोगियों  के पास हेल्थ इनसुएरेन्स नहीं होता
83 % ग्राहक अपने एक साथी के साथ रोग निदान हेतु पर्यटन करते हैं
33 % रोगी कॉस्मेटिक सर्जरी हेतु पर्यटन करते पाए गए हैं
90 % रोगियों के साथी  अन्य पर्यटन कार्यों में समय व्यतीत करते हैं।
अधिकांश अमेरिकी मेडकल टूरिस्टों का मानना है बल उन्हें विदेशों में अमेरिका से अधिक व्यक्तिगत महत्व मिलता है
80 % रोगी विदेशों में कम लागत के कारण ही विदेशों में चिकित्सा करवाते हैं
कई रोगी उच्च तकनीक से सुसज्जित चिकित्सालयों के कारण ही विदेशों में चिकित्सा करवाते हैं -बगलादेश व पाकिस्तान व अफ़्रीकी नागरिक भारत में चिकित्सा पर्यटन उच्च तकनीक उपलब्धि के कारण ही पर्यटन करते है।
बहुत से विदेशियों का व्यय होटल व्यय व हॉस्पिटल व्यय में कोई विशेष अंतर् नहीं होता है।
 रोग निदान के बाद जाते समय रोगी खूब  खरीदी भी करते हैं



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संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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उत्तराखंड का सीधा मुकाबला दिल्ली  से है



 

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