Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 207219 times)

Bhishma Kukreti

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-वैकल्पिक चिकित्सा ही उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म हेतु विकल्प है

Complmentary and Alternative Therepies is the game for n Uttarakhand Medical Tourism

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  99

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -    99               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--201 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 201

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  विद्यमान वैश्विक व्यापारिक काल में उत्तराखंड के सदूर गाँव के वैद्य से विश्व का कोई अन्य वैद्य प्रतियोगिता करता रहता है।  उत्तराखंड के पारम्परिक पर्यटन -धार्मिक व पहाड़ पर्यटन को एक सहयोगी पर्यटन की शक्त आवश्यकता है और वह पर्यटन है - मेडिकल टूरिज्म।
      मेडिकल टूरिज्म में ऐलोपैथिक टूरिज्म सर्वोत्तम टूरिज्म है किंतु दिल्ली व अन्य शहरों में वर्तमान विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ उत्तराखंड प्रतियोगिता नहीं कर सकता है।  तो  उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु 'वैकल्पिक चिकित्सा ही सर्वोत्तम विकल्प है।
 कुछ वैकल्पिक चिकित्साओं का निम्न लिस्ट है -
आयुर्वेदिक चिकित्सा
योग चिकित्सा
प्राकृतिक चिकित्सा
मृदा चिकित्सा
हर्बल या पादप जैसे पत्ती  चिकित्सा या हर्बल स्नान चिकित्सा , जैसे कंडाळी झपांग चिकित्सा
जल चिकित्सा
एक्यूप्रेसर चिकित्सा
अक्युपंचर चिकित्सा
तिब्बती /भोटिया चिकित्सा
ध्वनि या संगीत चिकित्सा
 फल चिकित्सा
सिरोवस्ठी  चिकित्सा
मुट्टु (जोड़ों के दर्द हेतु ) चिकित्सा
सर्वकम अभ्यंगम - तरोताजा चिकित्सा
आध्यात्मिक चिकित्सा जैसे विपासना , विज्ञानं भैरव आधारित चिकित्सा
खिलाड़ियों हेतु आध्यात्मिक चिकित्सा
अन्य कर्मकांड आधारित चिकित्साएं
उपरोक्त चिकित्साओं हेतु भी उत्तराखंड शासन व समाज को कई कार्य करने होंगे जिनकी चर्चा आगामी अध्याओं में की जायेगी




Copyright @ Bhishma Kukreti  24/5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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Bhishma Kukreti

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हिमाचल से प्रतियोगिता अवश्यम्भावी है
 Uttarakhand has to Compete with Himachal


उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  -100

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  - 100                 

Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 202
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 202

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  धार्मिक पर्यटन छोड़ हर पर्यटन में हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड का प्रबल प्रतियोगी है , गैर धार्मिक पर्यटन में हिमाचल उत्तराखंड से आगे ही है। आम ग्राहकों के मन में भी हिमाचल की छवि अच्छी ही है।
 सन 2005 में हिमाचल सरकार ने मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु हिमाचल की ताकत व कमजोरियों का विश्लेषण इस प्रकार किया था।  देखें ये ताकतें व कमजोरियां उत्तराखंड परिपेक्ष्य में क्या  हैं
मेडिकल टूरिज्म में हिमाचल की ताकत
ताकत ----------------------------------------------------------  उत्तराखंड संबंध में टिप्पणी
दुनिया में दुर्लभ 5  प्रकार की जलवायु -------------------------------  वही
राजनीतिक व सामाजिक स्थायित्व -------------------------------------  वही
शांतिप्रिय व आतिथ्य पूर्ण राज्य ------------------------------------ वही
प्रदूषण मुक्त --------------------------------------------------------------- वही
दुर्लभ साहसिक , इकोटूरिज्म , आस्था , संस्कृति , हेरिटेज पर्यटन आदि  प्रसिद्ध ---- वही
ठीक ठाक शिक्षा ------------------------------------------------------------ वही
धार्मिक टूरिज्म विशेष बौद्ध धर्मी ------------------------------------------------   हिन्दू धार्मिक पर्यटन
ठीक ठाक इंफ्रास्ट्रक्चर --------------------------------------------------------वही , कुछ बेहतर
सेवों  व अन्य फलों की प्रसिद्धि --------------------------------------------------- कुछ  भी नहीं

कमजोरियां
हवाई  यात्रा ------------------------------------------------------------------------ वही
कठिन जलवायु में पर्यटकों की परेशानी ----------------------------------------वही
प्रशिक्षित गाइडों की कमी  ------------------------------------------------------वही
कम विदेशी पर्यटकों आगमन --------------------------------------------------वही
बहुत से स्थानों में पर्याप्त पार्किंग की  व्यवस्था न होना ------------------------वही
कमजोर मार्केटिंग विदेशों व देश में  -------------------------------------------वही
कोई नया पर्यटक स्थल न आना -----------------------------------------------टिहरी झील
लैंड एक्विजेशन समस्या -------------------------------------------------------- वही
वनों  का  निर्वनीकरण की समस्या ------------------------------------------------वही
 समुचित फंड की कमी ------------------------------------------------------------वही
याने कि हिमाचल हर बिंदु  में उत्तराखंड जैसा ही है।  ऐसे में उत्तराखंड की विशेष पग उठाने आवश्यक हैं।
 ऐसा लगता है हिमाचल ने इस दिशा में कुछ कदम उठाने शुरू कर दिए हैं किन्तु  मेडिकल टूरिज्म बाबत उत्तराखंड  शासन नीति स्पष्ट नहीं है।  भगवान भरोसे ही है शासन
   हिमाचल में कृषि हिमाचल की ताकत हैं और पहाड़ी उत्तराखंड में कृषि उत्तराखंड की कमजोर।  हिमाचल पलायन  मार ऐसे नहीं झेल रहा है जैसे उत्तराखंड। उत्तराखंड में प्रवासियों के बाहर होने से  मानवीय व बौद्धिक श्रमिक सबसे बड़ी समस्या है।  यदि हिमाचल की ताकत वासी हैं तो उत्तराखंड  ताकत प्रवासी .



Copyright @ Bhishma Kukreti  25/5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना


 Making Godeshwar a national Tourist Place
             

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--203 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 203

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

   ( यह लेख मेरे कुल पुरोहित ठंठोली के सभी कण्डवालों  को समर्पित )

 अभी अभी कुछ दिन पहले मैं गाँव गया था तो जिसे देखो वही हमारे क्षेत्र में विकास का रोना रोते  ही मिला। सही भी है जहां अब गाँव  खाली हो गए हों , बंदरों व सुंगरों से निजात पाना संभव न हो वहां विकास के लिए ह्यळी ही गाडी जायेगी।  मुझे विकास ह्यळी अच्छी लगती है क्योंकि चेतना का नाम ह्यळी है। पर जब पूछा जाता है कि विकास क्या होना चाहिए तो सभी सामने के गाँवों की ओर देखने लगते हैं।  शयद विकास कोई सरकारी सब्सिडी होगी जो सामने के गाँव को मिलती है और मेरे गाँव को नहीं।  एक तरफ हमारे क्षेत्र के लोग माळा -बिजनी   शिवपुरी के विकास का गाना गाते  हैं  दूसरी ओर अपसंस्कृति का भी अलाप जोर जोर से करते नजर आते हैं।  मुंबई में भी मुंबई वालों को विकास के बारे में नहीं पता कि अब मुंबई हेतु विकास मार्ग क्या है।  विकास चक्षुहीनो  हेतु हाथी वर्णन हो गया है।
     मेरे अनुसार विकास अगले दस वर्षों हेतु उत्पादनशीलता वृद्धि हेतु काय होते हैं।  यदि बिजली सड़क पानी से उत्पादनशीलता में वृद्धि न हो तो उसे विकास कतई  नहीं कहा जाना चाहिए।  यह तो बस सुविधा आबंटन मात्र है। 
 
     मूल मुद्दा मल्ला ढांगू विकास

मल्ला ढांगू ऋषिकेश कोटद्वार मोटर मार्ग पर  गैंडखाळ से परसुली वाला क्षेत्र है और ब्रिटिश काल में भी उपेक्षित क्षेत्र था तो उत्तर प्रदेश सरकार काल में भी उपेक्षा शिकार था तो उत्तराकंड सरकार भी पीछे नहीं।  सभी जन मल्ला ढांगू का विकास चाहते हैं किन्तु क्या विकास हो के मामले में सर्वथा अनभिज्ञ हैं।
    मुंबई आने के बाद से  व्यापार से जुड़ने  के बाद अनुभव से पता चला कि पर्यटन ही एक ऐसा उद्यम लगता है जो उत्तराखंड का काया पलट कर सकता है।  शिवपुरी के निकट तल्ला ढांगू का विकास (अप संस्कृति नाम पड़  गया है ) इसका जीता जागता उदाहरण है।  मल्ला ढांगू में भी यदि विकास चाहिए तो पर्यटन ही एक ऐसा उद्यम है जो मल्ला ढांगू का काया पलट कर सकता है।  एक उदहारण अभी हमारे गाँव जसपुर  में मई में सामूहिक नागराजा पूजन था जिसमे जसपुर वालों ने कुल मिलाकर कम से कम पांच से सात लाख व्यय किया होगा याने धार्मिक पर्यटन में पांच से सात  लाख का टर्न ओवर।  तीन लाख के लगभग तो मल्ला ढांगू में व्यय हुआ ही होगा, डेढ़ लाख तो पूजा में ही व्यय हुआ।  इसी तरह पुजारियों , जगरियों,  ढोल वादकों की दक्षिणायें , सर्यूळों , टैक्सी चालकों की भी अच्छी खासी कमाई हुयी, जसपुर , सिलोगी , जाखणी धार व गूमखाळ  के दुकानदारों की आय अलग से हुयी। 

      शुरुवात कहाँ से करें ?

   प्रश्न उठता है कि मल्ला ढांगू में पर्यटन उद्यम विकास की शुरुवात कहाँ से की जाय ? पर्यटन कोई फैक्ट्री तो है  नहीं कि फैक्ट्री लगाई और माल बनना शुरू।  पर्यटन हेतु एक  स्थल आवश्यक है। मेरी दृष्टि में मल्ला ढांगू में गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर ही एक ऐसा स्थल है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटक क्षेत्र के रूप में विकसित कर इस क्षेत्र में पैसे की बरसात करवाई जा सकती है छन छन।

      श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ शिव मंदिर भूगोल
  स्व भैरव दत्त कण्डवाल भेषज जी व स्व सत्य प्रसाद बहगुणा गुरु जी अनुसार गोदेश्वर मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है।  श्री अतुल कंडवाल अनुसार सिद्ध पीठ मंदिर सत्रहवीं सदी से भी कहीं पुराना मंदिर है।  भीष्म कुकरेती अनुसार गोदेश्वर मंदिर कभी धार में नहीं अपितु एक गदन के किनारे था, यहां तब क्षेत्र वालों का श्मशान  था।   और गोरखा काल से पहले या बहुत पहले जसपुर व गोदेश्वर मध्य भयंकर भूस्खलन आया और  गोदेश्वर मंदिर क्षेत्र धार में परिवर्तित हो गया। 
   गोदेश्वर शिव मंदिर कंडार वृक्षों के मध्य ठंठोली ग्राम के बेलदार -थळधार क्षेत्र में ऋषिकेश -कोटद्वार मोटर मार्ग में जाखणी बस स्थल से दक्षिण में दो किलो मीटर  की दूरी पर स्थित है।  बेलदार व थळधार दोनों शिव भूमि की ओर इंगित करते हैं थलधार मतलब (देव) +स्थल+ धार ।  गोदेश्वर के निकट कठूड़ गाँव के देवी व शिव मंदिर हैं व निकटवर्ती स्थानों के नाम भी खस देवों  के नाम हैं जैसे जाखणी (यक्षणी ), गणिका , नगेळा , पुर्यत , भटिंड ,माड़ीधार , गुडगुड्यार , इकर आदि व नाथ।  कठूड़ से लेकर सभी उपरोक्त  नाम खस संस्कृति (2000 वर्ष पहले ) के द्योतक हैं और कहीं न कहीं देव स्थल नाम हैं जो इस क्षेत्र को देव क्षेत्र बतलाते हैं।  महाभारत में धौम्य ऋषि प्रकरण में वर्णन है कि कनखल से दो पर्वत श्रेणियां हिमालय की ओर निकलती हैं एक भृगु श्रृंग श्रेणी उदयपुर पट्टी , नीलकंदठ श्रेणी व दूसरा पुरु श्रृंग श्रेणी।   यदि हम विश्लेषण करें तो पाएंगे कि पुरु श्रृंग श्रेणी ही जसपुर का पुर्यत  पर्वत श्रेणी है (कोटद्वार ऋषिकेश  मोटर मार्ग पर ) । सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं बल धार्मिक मामले में गोदेश्वर सिद्ध पीठ प्राचीनतम धार्मिक क्षेत्र है ।  दक्षिण गढ़वाल में होने से व रोहिल्ला आक्रमणों छापा मारी से इस प्राचीन क्षेत्र को वह प्रसिद्धि न मिल सकी जिसका यह क्षेत्र अधिकारी था।
  गोदेश्वर  में शिव लिंग के ऊपर छत नहीं है खुले में है व शिव मंदिर की मान्यता है कि यहां निस्संतान दम्पतियों को संतान प्राप्ति होती है।  अतुल कंडवाल ने कई वृत्तांत गोदेश्वर द्वारा संतान प्राप्ति के दिए हैं और पौराणिक उद्धहरणों से सिद्ध किया है बल गोदेश्वर नाम के पीछे भी सूनी गोद भरने से अर्थ है।

               कैसे गोदेश्वर को राष्ट्रीय पर्यटक क्षेत्र बनाया जाय ?

मेरा मानना है कि गोदेश्वर जैसे क्षेत्र जो ऋषिकेश से दो ढाई घंटे की यात्रा के अंतराल पर हो उसे सरकार नहीं अपितु समाज ही विकसित कर सकता है। पर्यटन विकास में सरकार नीति निर्धारित करती है बाकी कार्य समाज करता है। मल्ला ढांगू समाज ही गोदेश्वर सिद्ध पीठ को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर सकता है।

    मेरा गाँव मेरी सड़क तहत मोटर मार्ग
जाखणी से गोदेश्वर मंदिर तक मोटर मार्ग आज एक आवश्यकता है और मेरा गाँव मेरी सड़क योजना तहत यह कार्य हो सकता है।  जब मित्र ग्राम व ग्वील में इस सिद्धांत से मार्ग बन सकते हैं तो जाखणी -गोदेश्वर में  भी यह संभव है।

   आंतरिक पर्यटन से बाह्य पर्यटन की ओर याने मल्ला ढांगू के युवाओं में प्रचार

 मैं अभी जब गाँव में था तो मेरी वय  के तीन चार जनों ने गोदेश्वर मंदिर जाने की इच्छा जाहिर की।  मेरे बत्तीस वर्षीय पुत्र व भतीजे ने मेरे से प्रश्न किया कि गोदेश्वर मंदिर है क्या ? मैंने  घर से ही दिखाया कि सामने पश्चिम में गोदेश्वर मंदिर दिख रहा है।  मेरे लिए व मेरी पत्नी के लिए दो क्या एक किलोमीटर  यात्रा भी कठिन है तो गोदेश्वर यात्रा रह गयी किन्तु कार  सर्विस होने से कई मील दूर डांडा नागराजा यात्रा उन्होंने की। ढांगू के युवा दम्पंतियों के मध्य गोदेश्वर सिद्ध पीठ का माहात्म्य प्रचारित होना ही चाहिए  . सर्व प्रथम गोदेश्वर को प्रवासी ढांगू युवाओं में प्रचार अति आवश्यक है।  सर्व प्रथम गोदेश्वर सिद्ध पीठ का प्रचार ढांगू के युवाओं में आवश्यक है।
      श्री विवेका नंद बहुगुणा जी से सीख लेनी चाहिए
  मल्ला ढांगू में बहुगुणा , कंडवाल , कुकरेती व बिंजोला जाति के पंडित हैं जिनका प्रभाव अभी भी प्रवासियों पर है।  ये पंडित जी यदि कह दें तो जजमान साड़ी रात एक टांग  पर खड़ा रह जाएगा।  यदि सभी पंडित अपने जजमानों को गोदेश्वर मंदिर में पूजा हेतु प्रेरित करें तो गोदेश्वर मंदिर में आंतरिक पर्यटन विकसित होगा।
     एक उदाहरण देने से सिद्ध हो जाएगा कि कैसे आंतरिक पर्यटन विकसित होता है।  जसपुर के श्री विवेका नंद बहुगुणा जी के ग्वील के यजमान श्री अनिल कुकरेती (मध्य प्रदेश निवासी ) की सुपुत्री आकांक्षा का विवाह भटियाणा (चमोली ) के श्री राकेश जोशी के साथ मुंबई में हुआ।  श्री विवेका नंद बहुगुणा जी ने इन दोनों नव दम्पंतियों को प्रेरित किया कि गोदेश्वर सिद्ध पीठ पूजा आवश्यक है और दोनों नव दम्पति मुंबई से गोदेश्वर पूजा हेतु पंहुचे।  हाँ बाकी प्रबंध श्री विवेका नंद बहुगुणा जी ने किया हुआ था।  यदि बहुगुणा , कंडवाल , कठूड़ के कुकरेती व बिंजोला पंडित इस दिशा में कार्य करें तो गोदेश्वर मंदिर में पर्यटन विकसित होगा।
   शिव रात्रि पर मल्ला ढांगू के प्रवासियों का आने हेतु प्रेरणा
दिल्ली देहरादून आदि निकटवर्ती शहरों में रहने वाले प्रवासियों को शिव रात्रि अनुष्ठान सम्मलित होने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए जैसे थलनदी आदि में गेंद मेले हेतु प्रवसियों को प्रेरित किया जाता है।
 
       अन्य ग्रामीण सामहिक पूजाओं के समय गोदेश्वर सिद्ध पीठ में  धार्मिक अनुष्ठान

  गोदेश्वर सिद्ध पीठ क्षेत्र में अधिकतर गावो में कुछ अंतराल पर सामूहिक पूजाएं होती हैं जैसे - जसपुर में नागराजा पूजा , मित्रग्राम में इस वर्ष से सामूहिक भागवद , ग्वील में भ्रातृ सम्मलेन या रामलीला व कठूड़  में देवी पूजा प्रायोजन ।  मेरी राय में उसी समय श्री अतुल कंडवाल जी सरीखे जन को गोदेश्वर सिद्ध पीठ में कोई भंडारा या अनुष्ठान उरयाणा चाहिए जिससे उस गाँव के युवा भी शरीक हों और गोदेश्वर सिद्ध पीठ से परिचित हो सकें।
     संतोषी माँ  की तर्ज पर गोदेश्वर सिद्धपीठ का प्रचार
   धार्मिक स्थल विश्वास के बल पर ही प्रचारित होते हैं। गोदेश्वर सिद्धपीठ मंदिर का प्रचार कुछ कुछ संतोषी माता या सत्य नारायण जैसे प्रचारित होना आवश्यक है।   संतान प्राप्ति तो श्री गोदेश्वर सिद्धपीठ का मूल विश्वास है।
       गोदेश्वर सिद्धपीठ की प्रार्थना लिखी जानी चाहिए
  ठंठोली के श्री अतुल कंडवाल ने सूचना दी है कि गोदेश्वर सिद्ध पीठ पर पुस्तक भी प्रकाशित है।  मेरी राय में गोदेश्वर सिद्ध पीठ की कथा सत्य नारायण तर्ज पर लिखी जानी चाहिए व उसकी विशेष प्रार्थना लिखी जानी चाहिए व यूट्यूब पर प्रार्थना प्रचारित होनी चाहिए।
      जाखणी , सिलोगी में आधार भूत सुविधाएं
   श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ को पर्यटक स्थल बनाने हेतु जाखणी धार व सिलोगी बजार में आधार भूत सुविधाएं आवश्यक हैं।  जाखणी धार अब क्षेत्रीय पंचायत केंद्र भी हो गया है तो सरकार ने भी यहां कई सुविधाएं देनी ही हैं।
      भविष्य का धार्मिक पर्यटन सर्किट
  भविष्य में एक बहुत ही कारगर धार्मिक सर्किट के अवसर हैं।  कठूड़ के देवी मंदिर , शिव मंदिर , भैरव मंदिर , श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ , जसपुर नागराज (शिल्प , कला व साहित्य वृद्धि कारक देवता ) , बड़ेथ देवी मंदिर  कड़ती का सिलसू मंदिर , कैडूळ का सती सावित्री मंदिर व लंगूर गढ़ का भैरों मंदिर एक सर्किट बनते हैं और यह  सर्किट ऋषिकेश व कोटद्वारा से सामान दूरी पर हैं।  या नीलकंठ सर्किट से गोदेश्वर सिद्ध पीठ जोड़ा जाय।

  आंतरिक पर्यटन विकसित होने के बाद बाह्य पर्यटन पर जोर
   जब भी कोई पर्यटक क्षेत्र आंतरिक पर्यटन क्षेत्र रूप में प्रसिद्ध हो जाता है तो स्वमेव ही बाह्य पर्यटन विकसित हो उठता है।  शिरडी के साईं बाबा मंदिर पहले पहल नासिक , अहमदनगर में प्रसिद्ध हुआ फिर महराष्ट्र में प्रसिद्ध हुआ और अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गया है।
    श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ का सोशल मीडिया में संतान प्राप्ति सिद्ध पीठ रूप में भी प्रचारण आवश्यक है।
  एक बार सिद्ध पीठ गोडेश्वर प्रसिद्ध हो जाय तो मल्ला ढांगू में स्वयमेव कई पर्यटन प्रोडक्ट विकसित हो जाएंगे जैसे नीलकंठ मंदिर के आस पास। 
  ग्राम प्रधानों व पंचायत मंत्रियों को भी इस कार्य में सम्मलित किया जाना चाहिए।
       कुम्भ मेले से यात्रियों को गोदेश्वर सिद्ध पीठ लाना
    सही समय कुम्भ मेला है कि हरिद्वार में आये यात्रियों को गोदेश्वर आने के लिए प्रेरित किया जाय।  प्रचार प्रसारण हेतु  फंडिंग हेतु किसी धनी  भक्त की सहायता  आवश्यक है .
 
 
   




Copyright @ Bhishma Kukreti  /265 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
  ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; ठंठोली ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; जसपुर ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; कठूड़ ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; बड़ेथ ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; ग्वील ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; मित्रग्रम ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; बन्नी ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना ; खैंडुड़ी ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना , सौड़ ढांगू विकास हेतु श्री गोदेश्वर सिद्ध पीठ मंदिर को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटक क्षेत्र बनाने की परिकल्पना
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;



Bhishma Kukreti

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  पहाड़ों में कृषि बौड़ाई हेतु औषधि पादप उगाई  (मेडकिल टूरिज्म विश्लेषण )

 Ayurveda Based medical Tourism in Uttarakhand

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  101

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  101               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-204-)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 204

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    पिछले अध्यायों में इस लेखक ने सिद्ध करने का प्रयत्न  किया कि उत्तराखंड को वर्तमान पर्यटन को सहारा देने हेतु मेडिकल टूरिज्म आवश्यक है और वैकल्पिक चिकित्सा ही उत्तराखंड हेतु लाभदायी प्रोडक्ट्स हैं।
   मेडिकल टूरिज्म अब केवल चिकित्सा तक ही सीमित नहीं रह गया है अपितु चिकित्सा हेतु औषधि निर्माण व चिकित्सा प्रदान के प्रत्येक अवयव भी मेडकिल टूरिज्म के महत्व पूर्ण  अंग होते हैं।
  मोटे मोटे  रूप में निम्न अवयव आयुर्वेद मेडिकल टूरिज्म के महत्वपूर्ण अंग -
  आयुर्वेद चिकित्सालय
  आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षण संस्थान
 आयुर्वेद चिकित्सा प्रशिक्षण संस्थान
   आयुर्वेद औषधि निर्माण, निर्माण  , औषधि परीक्षण , शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थान
चिकित्सा हेतु उपकरणों का निर्माण
आयुर्वेद औषधि विपणन व वितरण के भाग
  आयुर्वेद औषधि हेतु वनस्पति उत्पादन             
   पहाड़ों की  मूलभूत कृषि समस्या को अवसर में परिवर्तन के लाभदायी अवसर

 पलायन के कारण उत्तराखंड के पहाड़ी गाँव बंजर धरती की समस्या  से जूझ रहे हैं बंदर , सुंगर व अन्य वनैले जानवर घ्वीड़ -काखड़ , मोर भी कृषि हेतु समस्या बने हैं। इसके साथ साथ लैन्टीना घास - कुरी व धरती की उत्पादनशीलता कम करने वाले अन्य पादप भी समस्या  बने हैं।
 यह एक सत्य है कि पहाड़ों में कृषि भूमि की 80 % मिल्कियत प्रवासियों की है।  यह जो एक कठिनाई है किन्तु  प्रसन्नता की बात है कि इसे अवसरों  में बदला जा सकता  है। प्रवासियों के पास निवेश की क्षमता का लाभ उठाया जा सकता है।  इसमें संदेह नहीं करना चाहिए बल जो प्रवासी अपने गाँव में एक उनुत्पादन शील मकान पर सात आठ लाख लगा सकता है वही प्रवासी औषधि पादप उत्पादन में भी भागीदारी कर सकता है।
   पहाड़ों में कृषि बौड़ायी  हेतु आयुर्वेद औषधि पादप उगाई सबसे महत्वपूर्ण पथ है।  बहुत सी औषधि पादपों को बंदर , सुंगर आदि से हानि नहीं पंहुचा सकते है तो ऐसे पादप उत्पादन कृषि को पुनर्जीवित कर सकते हैं।
  आगामी अध्यायों में हम जान्ने का प्रयत्न  करेंगे कि कौन कौन सी औषधि वनस्पति कृषि साधनों के बल पर उत्पादित की जा सकती हैं।  हम यह भी विश्लेषण करेंगे कि किन किन वनस्पतियों के उत्पादन में प्रवासी भी योगदान दे सकते हैं और प्रवासी कैसे आयुर्वेद औषधि वनपस्ति बिना पहाड़ आये उत्पादन  कर सकते हैं
 सम्पूर्ण विश्व में कृषि में वः लाभ नहीं रह गया है जो अन्य व्यापार या रोजगार में है।  अतः अब समय आ गया है कि उन पादपों की जानकारी ली जाय जो प्रीमियम कीमत में विकट हैं जिससे प्रवासियों को ऐसी कृषि से लाभ हो और वे पहाड़ों में औषधि पादप उत्पादन में निष्कंटक निवेश कर सकें।
    सम्पूर्ण भारत में कृषि के अंर्तगत एक नई कठिनाई भी आ खड़ी है और वह है मजदूरी वृद्धि जो सही भी है।  अब हमें उन पादपों को चुनना है जो बढ़ी मजदूरी को भी पचा सके याने यहां भी प्रीमियम पादपों का ही चुनाव करना है जिससे प्रवासी निवेश कर सकें।
  औषधि पादप उत्पादन ही सब कुछ नहीं है अपितु औषधि निर्माण हेतु पादप के विभिन्न अंग प्रयोग में आते हैं जैसे पत्तियां , सूखी पत्तियां , छाल , जड़ें , तने आदि ।  हमें उन रास्तों को भी खोजना है जो औषधि पादपों के अंगों को विक्री हेतु सुरक्षित रख सकें और उसमे प्रवासी को मैदानों से पहाड़ न आना पड़े। 
  हमें यह भी सोचना होगा कि एक क्षेत्र में एक ही पादप अधिक उत्पादन हो जिससे वहां जनसंख्या   , कृषि मजदूर प्रवीण सकें।
  सबसे कठिन कार्य है पहाड़ियों में  वर्तमान रोजगार के अतिरिक्त अतिरिक्त कमाई के साधन हेतु मानसिकता।
 एक अन्य कठिनाई यह भी है कि कई प्रवासियों की आय इतनी अधिक है कि उनके लिए कृषि कमाई का लाभकारी साधन नहीं है।  इस स्थिति का भी विश्लेषण कर हमें समुचित समाधान ढूँढना है और आगामी अध्यायों में इन बिंदुओं पर भी चर्चा होगी।
 ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत मंत्री या स्थानीय निकायों के सदस्यों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है इन सदस्यों को भी प्रशिक्षण व प्रेरण आवश्यक है।
   वनस्पति पादप विक्री प्रबंध पर भी आगे चिंतन मनन होगा।




Copyright @ Bhishma Kukreti 27 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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मेडिकल टूरिज्म विकास में राजकीय  शासन  की भूमिका

Role of State  in Developing Medical Tourism --

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  102

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  102               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--205 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 205

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

     मेडिकल टूरिज्म में शासन /प्रशासन की अहम् भूमिका होती है।
 पशासन को मेडिकल टूरिज्म में गैर सरकारी संस्थानों से प्रतियोगिता के स्थान पर उन्हें संबल देना होता है। यहां पर ध्यान देना आवश्यक है कि सरकारें आती हैं जाती हैं किन्तु शासन या प्रशासन स्थिर होता है।
 शासन का उद्देश्य सरकारी चिकित्सा संस्थानों से लाभ कमाने की कामना नहीं होनी चाहिए अपितु सेवा व आवश्यक पड़ने पर गैर सरकारी चिकित्सा संस्थानों की सहायता देनी होती है।
 शासन को समझना चाहिए कि राजकीय चिकिसा संस्थाओं का कार्य जनता को मूलभूत चिकत्सा पर्दा करवाना है न कि  मेडिकल टूरिज्म के माध्यम से लाभ कमाना।
 शासन को  साफ़ साफ़ मेडिकल टूरिज्म विकास नीति बनानी चाहिए और साथ में भागीदारों को उनके अधिकार व कर्तव्यों से अवगत कराना आवश्यक होता है। नीतियों में विदेश नीति , चिकत्सा नीतियां , चिकित्सा नियम , वीसा आदि आते हैं।   चूँकि चिकत्स्कों व् चिकित्सालय अविसे विगयपन प्रचारित नहीं कर सकते हिन् जैसे व्यापारिक ब्रैंड्स तो प्रचार प्रसार में शासन की अहम भूमिका होती है
 शासन को मेडिकल टूरिज्म हेतु व्यापारिक कूटनीति /कॉमर्शियल डिप्लोमेसी में पहल करनी होती है।
 शासन को आवश्यक नियम बनाने चाहिए जो मेडिकल टूरिज्म को संबल दें किन्तु नीति व पर्यावरण को हानि न पंहुचायें
 शासन मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु समय बढ़ योजनाएं बनाकर उन्हें संचालित कर , क्रियावन्नित करता है और आवसश्यक पड़ने पर आवश्यक कदम उठता है।
 शासन का कार्य मूल बहुत सुविधा इन्फ्रास्ट्रक्चर जुटाना होता ही है। लैंड एक्विजेशन बिल जैसे कार्य इंफ्रास्ट्रक्चर व नीति के अंग हैं
  शासन की  मेडिकल टूरिज्म विकास में निम्न भूमिका अहम है -
    १- चिकित्सा सेवाओं का वर्गीकरण या यह निर्णय लेना कि किन किन चिकित्सा सेवाओं को मेडिकल पर्यटन हेतु विकसित करवाना है
   २- सभी छितरी सेवाओं का समाकलन करना
   ३ - प्रशासन संभालना
  ४- विकास व विकास पर दृष्टि
 ५- प्रचार प्रसार
  ६- आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करवाना
  ७- चिकित्सा टूरिज्म विकास हेतु संस्थाओं की खोज व उन्हें मेडिकल टूरिज्म में भागीदार बनाना
  ७- भागीदारों हेतु फंडिंग व्यवस्था यदि आवश्यक पड़े तो विशेष बैंक की स्थापना
   समय समय पर कई प्रेरणादायक व उत्प्रेरक काय कर विकास को दिशा देना भी शासन का कर्तव्य होता है।
  शासन का  सबसे महत्वपूर्ण कार्य मेडिकल टूरिज्म हेतु योजनाओं की शुरुवात है व समाज को मेडिकल टूरिज्म में इन्वॉल्व करना है
 




Copyright @ Bhishma Kukreti 28 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;




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सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण आयुर्वेद पर्यटन हेतु एक आवश्यकता

 Medical Plant Forestation is Must for Ayurveda Tourism  in Uttarakhand

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -1
 Community Medical Plant Forestation -1

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  103

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -    103               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-206 - 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 206

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    यदि उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकसित करना है तो आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन ही महत्वपूर्ण विकल्प है।  आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन से बांज पड़ी  धरती के हरी भरी होने के पूरे के पूरे अवसर हैं।  आयुर्वेद चिकित्सा हेतु दसियों वन पादपों की आवश्यकता होती है अतः यह आवश्यक है कि उत्तराखंड का हर इंच वन औषधि पादपों से आच्छादित हो।  राज्य सरकार को वन अधिनियमों में परिवर्तन करने पड़े तो करे।
  बहुत से पंडितों का आकलन है कि ग्रामवासी नई पद्धति को शीघ्र नहीं अपनाते।  मुझे लगता है वे भूतकाल में खोये रहते हैं।  वर्तमान ग्रामवासी मुंबई , कनाडा के प्रवासियों से अधिक अनुकूलितीकरण  में विश्वास करते हैं। जरा पहाड़ी गाँवों में जाईयेगा तो पाएंगे कि अब गाँवों में हर व्यक्ति 50 दिन में तैयार होने वाली राजमा बोता है।  याने यदि ग्रामवासी को सही माने में आर्थिक लाभ दिखता है तो वह  तुरंत उस तकनीक को अपना  लेता है।
       उत्तराखंड राज्य का कायापलट आयुर्वेद पर्यटन ही कर सकता है।  आयुर्वेद पर्यटन में  निम्न संस्थाओं की आवश्यकता पड़ेगी जो नए से नए आजीविका  देने में समर्थ रहेंगे
आयुर्वेद औषधि निर्माण
 आयुर्वेद चिकित्सालय कम से कम दस प्रकार के विशेष चिकित्सालय
आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन विपणन संस्थान
    आयुर्वेद औषधि विक्री संस्थान
  आयुर्वेद औषधि पादप विक्री संस्थान
   कृषि भूमि औषधि पादप उत्पादक
  सार्वजनिक या ग्राम सभा वनों में औषधि पादप उत्पादन
  राज्य वनों में औषधि पादप उत्पादन
  जरा सोचिये उपरोक्त कार्यों हेतु कितने हजार मनुष्यों   की आवश्यकता पड़ेगी यह संख्या लाखों में जायेगी।  जहां तक श्रम शक्ति का प्रश्न है यदि पहाड़ों में श्रम  शक्ति उपलब्ध नहीं है तो आउटसोर्सिंग बुरा नहीं है।  मैं नेपाली , पूर्वी उत्तर प्रदेश या बंग्लादेशियों के कभी खिलाफ नहीं रहा हूँ।  उत्तराखंडियों का मुख्य ध्येय आयुर्वेद चिकित्सा व्यवसाय होना चाहिए ना कि श्रम शक्ति पर अनावश्यक बहस।
   खाली पड़े वनों के एक एक इंच का औषधि पादपों माध्यम से दोहन आवश्यक है ।  वनों में आज आग लग रही हैं पर जरा सोचिये बल यदि वनों में ग्रामवासियों के औषधि पादप होते तो क्या वे आग फैलने देते जी नहीं वे अग्निशामन  का पबंध कर ही लेते।  चूँकि वनों पर अब गाँवों का अधिकार नहीं है तो वन जलें  तो जलें वाली मानसिकता से वन अधिक जल रहे हैं।
    ग्राम  सभा वनों में जबरन औषधि पादप वन लगने चाहिए।  जी हाँ जबरन औषधि वन लगाए जाने चाहिए।  एक तूंग केवल लकड़ी देता हैं किन्तु खैर लकड़ी , चारा व मुनाफ़ा आदि देता है तो ऐसे बनों में तूंग के स्थान पर खैर या टिमरू के पेड़ नहीं होने चाहिए ? चीड़ के स्थान कोई अन्य औषधीय पेड़ लगेंगे तो अधिक मुनाफ़ा होगा।  क्या भेंवळ को वन लायक नहीं ढाला जा सकता है ? क्या कुछ वनों में बेडु -तिमलु  नहीं उगाया जा सकता है ? क्या तूंग वन हरड़ , बयड़  या आंवला  वनों में परिवर्तित नहीं हो सकते है ? ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनके बारे में  शासन , समाज को सोचना ही होगा। शिल्पकारों के पास भूमि कम है क्या उन्हें ग्राम वन अदरक , हल्दी , वन प्याज उगाने नहीं दिया जा सकता है ?  यदि किसी शिल्पकार को ग्राम सभा के एक एकड़ भूमि पर हल्दी -अदरक कृषि करने दिया जाय तो सूअरों की शामत  नहीं आ जायेगी ?   यदि वनों में उगे टिमरू से ग्राम सभा को प्रति वर्ष एक लाख से अधिक लाभ होना निश्चित हो तो वन टिमरूमय न हो जाएगा ?
 आगामी अध्यायों में उन  वन पादपों के बारे में चिंतन होगा जो चिकित्सा पर्यटन में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।

   कल पढ़िए - कैसे तूंग वनों में व गंगा तटों पर खैर पादप उगाया जा सकता है



Copyright @ Bhishma Kukreti  29 /5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;



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खैर  वनीकरण
Cultivation of Katha Plant or Acacia catechu -

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -2

Community Medical Plant Forestation -2

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  ) 104

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  104               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 207)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 207

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
खैर पेड़ मनुष्य के लिए बहुत ही लाभदायी पादप है।  लकड़ी , चारा, रंग टैनिंग के अतिरिक्त खैर का प्रयोग कई औषधि निर्माण में होता है।
खैर का औषधीय उपयोग
१- दांत की मीरियों /गम की सुरक्षा
2 -कफ , डाइबिटीज , रक्तदोष , त्वचा के कई दोषों आदि के उपचार हेतु कई औषधियों में प्रयोग होता है और पादप कच्चे माल के यथोचित व अच्छे दाम मिल जाते हैं।  खैर के सभी भाग औषधियों में प्रयोग में आते हैं।
खैर का पेड़ मध्य से ऊँची ऊंचाई लगभग 3 -15 मीटर ऊंचाई की की झाड़ीनुमा झाडी है।
भूमि - दक्षिण उत्तराखंड में  खैर 12 00 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्र में बलुई व अन्य पथरीली मिट्टी , जलोढ़क मिटटी में पैदा होता है कह सकते हैं कि दक्षिण गंगा घाटी व तूंग  वाली भूमि में खैर उगता है ।  खैर के लिए 40 -50 डिग्री तापमान सही तापमान है।   उत्तरखण्ड में खैर के वन अपने आप उगते हैं,    किन्तु अब परिस्थिति ऐसी आ गयी है कि खैर को वन कृषि के अंतर्गत उगाना आवश्यक है।
       खैर का कृषिकरण या कल्टीवेशन
खैर के बीज अपने आप उड़कर जमते रहते हैं।  खैर के बीज एक साल के अंदर ही बोये जाने चाहिए।  खैर के बीजों को बंद कमरे में सुरक्षित रखा जाता है। नरसरी में बीजों को 24 घंटो तक पानी में भिगोया जाता जाता है और अप्रैल मई में नरसरी में बोये जाते हैं। फिर मानसून आने पर खैर पौधों का रोपण किया जाता है।
   उत्तर प्रदेश में  खैर वनीकरण पर प्रभावकारी काम हुआ है और लाभदायी फल मिले हैं।  उत्तरप्रदेश में जिस बंजर वन का खैरीकरण करना हो वहां मानसून के आते ही खैर बीज बो दिए जाते हैं।  इस विधि में सबसे बड़ी समस्या खर पतवारों की होती है अतः  अधिक मात्रा में बोये जा सकते हैं। खर पतवार की रोकथाम हेतु वनों को मानसून से पहले जला दिए जाते हैं जिससे खर पतवार के बीज जल जायँ।
   तल्ला ढांगू व बिछला ढांगू, गूलर गाड गढ़वाल में गंगा तट पर खैर के वन  बहुत होते थे पर  अब समाप्ति पर हैं यदि ग्रामीण वनीकरण योजना के तहत इन वनों में यदि मानसून आते ही बीज बोये जायँ तो खैर वनीकरण को नई ऊर्जा मिल सकेगी। जहां पानी रुकता हो वहां खैर नहीं उगता। खैर को कोमल पत्तियां बकरियों व जानवर  हैं अतः जानवरों को उज्याड़ खाने से भी बचाया जाना आवश्यक है।
 



Copyright @ Bhishma Kukreti  30/5 //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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हरड़ , हल्डुण / हरीतकी वनीकरण

- Harad Chebulic Myrobalan Forestation -

  सामाजिक  औषधि पादप वनीकरण -3

Community Medical Plant Forestation -3

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )105

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  105               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 208)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 208

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
Latin name -Terminula chebula
आयुर्वेद नाम - हरीतकी
गढ़वाली नाम हल्डुण
  हरड़ क आर्थिक उपयोग - इमरती व कृषि यंत्र काष्ट
आयुर्वेद व चिकित्सा उपयोग - दस्त साफ़ करने , मल बाँधने , त्रिदोष नाशक , बल बुद्धि वृद्धिकारक , सर दर्द मारक , मूत्र साफ़ कारक जुकाम , इन्फ्लुएंजा नाशक होने से  हरड़ फल को सीधा या उबालकर खाया जाता है अथवा यह कई आयुर्वेद औषधियों जैसे त्रिफला में अवयव रूप में प्रयोग होता है। हरड़ की लकड़ी बहुत मंहगी होती है।
औषधि  बीज प्रयोग होते हैं
  हरड़ /हरीतकी की जानकारी

  फलों की वर्तमान कीमत - 25 फल 375 रूपये में ओनलाइन में मिलते हैं और बीज  2000 रुपए प्रति किलो तक मिलते हैं
पेड़ - हरीतकी का पेड़ 95 -98 फ़ीट ऊंचा व तना एक मीटर तक मोटा होता है। उप हिमालयी क्षेत्र में 36 अंश सेल्सियस से 45 अंश सेल्सियस तापमान वाले 5000 फ़ीट की ऊंचाई वाले वनों में पाया जाता है। हरड़ हेतु वार्षिक वारिश  1200 mm से 1500 mm  की आवश्यकता होती
उत्तराखंड में यह उप हिमालय क्षेत्र में बहुतायत में मिलता था व हरड़ का निर्यात होता था।  अब हरड़ का निर्यात सम्भवतया इतिहास हो गया है। 
भूमि - यद्यपि हरड़ तकरीबन सभी तरह की मिट्टी में उग जाता है किन्तु हरड़ बलुई मिट्टी , भुरभुरी मिट्टी व दक्षिण मुखी क्षेत्र सही क्षेत्र है।  अधिकतर गेंहू के भद्वाड़  क्षेत्र सही क्षेत्र है।
पानी - जल की आवश्यकता होती है शुरुवाती वर्षों में बाकी यह पादप सहनशील पादप है
फल आने का समय - हरड़ पर 8 -10 वर्ष में फल आने लगते हैं। हरड़ पर  दो साल अच्छी संख्या में फल आते हैं व् एक या दो साल फिर कम संख्या में फल आते हैं।

  बीज बुवायीकरण
हरड़ के फल जब पीले हो जायं तो तोड़े जाने चाहिए या पीले फल गिर जायं तो उन्हें बीज हेतु एकत्रित किया जाता है। पके फलों को मई जून में तोड़ा जाता है।  फलों से निकाले बीजों को को छाया में सुखाये जाते हैं, उन्हें गणि बैग में बंद क्र दिया जाता है व एक साल तक ये बीज उगने लायक रहते हैं किन्तु नव बीजों से ही फलस उगाना श्रेयकर होता है
नरसरी में पेड़ उगाना -
सही समय -जुलाई
पॉलीबैग  आकार - 32 x 22 " क्योंकि हरड़ के जड़े जल्दी बढ़ती हैं
मिट्टी - भुरभुरी , बलुई या गेंहू के भद्वाड़ की मिटटी
कली विकसित होने में समय लगता है अतः जल्दी बाजी ठीक नहीं।   कलियों को नरसरी में एक साल का समय कम से कम लगता है। कलियों को कम धुप वाले स्थान में उगाया जाता है। कलियों को दूसरे वर्ष रोपा जाता है।
खाद -जितनी मिट्टी उसका आधी मात्रा गोबर की काली खाद।
हरड़ रोपण हेतु गड्ढे - 5 x 5 x 5 फिट के गड्ढों को 18  फ़ीट x 18 फ़ीट की दुरी पर खोदे जाते हैं। में बलुई मिट्टी के साथ काली गोबर की खाद मिलाई जानी चाहिए।  आस पास छोटे गड्ढे पानी रोकने व जल स्तर ऊपर रखने की भी सलाह वैज्ञानिक देते हैं
एक हेक्टेयर भूमि हेतु 5 किलो बीजों की आवश्यकता होती है और 280 -300 पेड़ उगाये जा सकते हैं।
पहले दो वर्ष ही खाद व सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। ग्रीष्म ऋतू में प्रत्येक सप्ताह सिचाहि होनी चाहिए
 हरड़  तकरीबन बीमारी झेल लेता है।  दीमक ग्रसित भूमि में दीमक विरोधी दवाई का प्रयोग कर भूमि को दीमक रोधक  भूमि में बदलना आवश्यक है , खर पतवारों को हाथ से निकाला जा सकता है।
 यदि रोपण न करना हो तो 24 घंटे तक गोबर के पानी में भिगोये बीजों को सीधा गड्ढों में भी बोया जा सकता है

  सीधा बीजों को छिटका कर वनीकरण

  पानी में भिगाये (24 घंटे गोबर के पानी में भिगोकर ) बीजों को गोबर खाद के साथ मिलाकर भी छिटकाये जा सकते हैं किन्तु इस विधि में अधिक बीजों की आवश्यकता पड़ती है व कली आने की दर कम हो सकती है।

8 -10 साल में हरड़ फल देने लगता है और एक पेड़ लगभग 40 -50 किलो फल दे देता है। हरड़ की उम्र 50 वर्ष से अधिक होती है।

     पेड़ों मध्य अन्य फलस
चूँकि हरड़फसल देने में अधिक समय लेता है तो पेड़ों के मध्य उन औषधियों को उगाया जाता है जो लगुल होते हैं , छाया पसंद करते हिन् जैसे वनहल्दी , वनप्याज , गिलोय आदि , ह्री पट्टी वाली औषधीय वनस्पति भी उगाई जा सकती है।



Copyright @ Bhishma Kukreti  31/5 //2018
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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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Bhishma Kukreti

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बहेड़ा वनीकरण

Cultivation of Behra/Baheda  in Community forests
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -


Community Medical Plant Forestation -4

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  106

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  - 106                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--209)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 209

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  Latin Nem - Terminalia bellirica
बहेड़ा का पेड़  30 मीटर स भी काफी ऊँचा पेड़ होता है और पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होता है।  इसकी पत्तियां 3 -6 इंच लम्बे व २से ३ इंच चौड़े होते हैं।  फल अंडाकार व कथई रंग के होते हैं अंडे बीज या गुठली होती हैं।
बहेड़ा से औषधीय लाभ -
 आमतौर पर बहेड़ा त्रिफला क अवयव रूप में अधिक जाना जाता है किन्तु बहेड़ा के कई औषधीय लाभ हैं - श्वसन संस्थान छेदक , श्वास नलिकाओं की सूजन कम करने , कफ नष्ट करने वाला होता है और शोथहर, नेत्रों की फूली नष्ट करता है , पीड़ाहर , अग्निदीपक , चर्मरोग हर , कृमिनाशक नेत्रों व केशों , मुंह की बदबू नष्टीकरण हेतु लाभकारी है।
  दक्षिण उत्तराखंड की कम ऊंचाई वाली भूमि म भेदा का वनीकरण लाभदायी है।  मिट्टी बलुई व कम चिकनी ही उचित होती है व जहां पानी न रुके , कम जल वाले क्षेत्र जैसे राजस्थान में भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
 बहेड़ा बीजों द्वारा व अंकुरि गुल्म से पैदा होता है। हरड़ व बछड़ा हेतु एक जैसी मिट्टी की आवश्यकता होती है। उचित वार्षिक वर्षा -900 -3000  mm . तापमान -30 -45 अंश सेल्सियस उचित है।

फल एकत्रीकरण - जनवरी में फल एकत्रित किये जाते हैं  पहले या बाद में एकत्रीकरण से टेनिन के गन में कमजोरी आ जाती है। छैया में फल सुखाने के बाद गुठली /बीजों को निकाल दिया जाता है
 बुवाई समय - बुआई का सही समय मानसून से पहले मई जून महीने हैं।  बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोकर बोया जाता है। मिटटी को खोदना आवश्यक होता है।  पंक्ति में सीं में 7 मीटर के अंतराल पर बीज बोये जाते हैं , नरसरी में तैयार पौधों को तीन महीने के बाद रोपा जाता है।  सीधी  बुवाई व रोपण विधि दोनों से पेड़ उग आते हैं।  कम्पोस्ट खाद ही सही खाद है।  पहले दो साल पानी दिया जाना चाहिए विषहत्या ग्रीष्म ऋतू में
अधिक छाया व ओस हानिकारक होते हैं बीज आद्रता में जमते हैं
बहेड़ा सात आठ वर्षों में फल देने लगता है। 
भण्डारीकरण हेतु पहले बहेड़ा के फलों को छाया में सुखाया जाता है तभी गणि बैग में भरा जाता है

Copyright @ Bhishma Kukreti  1 /6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
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Bhishma Kukreti

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आंवला वनीकरण


Embalic Forestation

(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )

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  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -5


Community Medical Plant Forestation - 5 तक

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  107

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  - 107                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 210)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 210

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम - Phyllanthus emblica
आंवला वर्णन - आंवला लघु , मध्यम से बड़े 1 -3 मीटर तक  की ऊंचाई का वृक्ष होता है छाल सफेद से पीले रंग का व् पत्तियां पत्रकों से मिलकर बने होते हैं जैसे इमली।  फल डंठल पर गुच्छे में आते हैं जो अंडाकार पीले रंग के होते हैं फलों के अंदर गुठली होती है
आंवले के औषधि उपयोग --
आंवला के कई रोगों हेतु औसधि इ पई उपयोग होते हैं इसीलिए आंवला विष्णु अवतार या विष्णु -लक्ष्मी  प्रिय फल माना जाता ह. त्रिफला के मुख्य अवयव होने के अतिरिक्त आंवला ज्वर , अर्श रक्तपित्त , कामला , पांडुरोग , प्रमेह , अग्निमांद्य मूत्रकृच्छ , नेत्र रोग , शिरोरोग में औषधि हेतु उपयोग होता है वृद्धावस्था कम करने में सहयोगी है।
आंवला कृषिकरण हेतु जलवायु आवश्यकता
उष्ण कटबंधीय पादप
वार्षिक वर्षा -630 -800 mm
अधिकतम तापमान - 46  डिग्री सेल्सियस यद्यपि आंवला शून्य डिग्री सेल्सियस को भी सहन काने में सक्षम है किन्तु शुरू के तीन वर्षों में ओस व मई जून में धुप से बचाव आवश्यक
भूमि - लघु , मध्यम भूमि , बलुई मिट्टी में अच्छी फसल , सामान्य  क्षारीय भूमि व सूखे इलाके में भी उग जाता है
आंवला के बीजों को जून जलाई वर्षात शुरू होते ही मिट्टी में खाद भरे गड्ढों में 6 मीटर की दूरी में बोया जाता है और 200 ग्राम बीज एक एकड़ के लिए काफी होते हैं।  रोपण व कली विधि भी अपनायी जाती है। काली गोबर खाद अच्छी होती है। गर्मियों में सिंचाई आवश्यक है। फल देने का समय वेराइइटी अनुसार
7 -8 साल में आंवला फल देने लगता है और एक पेड़ 120 किलो के लगभग फल दे देता है।



Copyright @ Bhishma Kukreti  2 /6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
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