Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 207688 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

बेल वनीकरण

Cultivation of Wood Apple or Bel/Bael Tree

(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक, अन्यथा निरर्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -


Community Medical Plant Forestation -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम -Aegle marmelos
पादप वर्णन
बेल तरह तरह की जलवायु मशान कर सकता है किन्तु जल भरे भूमि में नहीं उग सकता है।  बेल 1200 मीटर  ऊंचाई व गगरम  जलवायु में होता है , पथरीली , बलुई मिटटी में भी उग जाता है।  उत्तराखंड में दक्षिण में गंगा , हिंवल किनारे के जंगलों में बहुतायत में पाया जाता है बेल के लिए मध्य शीत  व खूब ग्रीष्म जलवायु सही जलवायु है। 
बेल दो तरह का होता है छोटा फल वाला व बड़े फल वाला बेल
औषधि उपयोग
बेल ऊर्जा वृद्धकारक है बेल बहुत  सी बीमारियों में औषधि के रूप में प्रयोग होता है
बेल अपच, मरोड़ आदि की औषधि में प्रयोग होता है।
बेल शर्रेर के शक़्कर को नियंत्रित करता है
यकृत की कई कमजोरियों को दूर करता है
गर्भवती स्त्रियों हेतु लाभकारी है
बेल बालों व त्वचा हेतु लाभकारी है
बेल रक्तचाप हेतु लाभदायी ही
बेल पत्तियां जोड़ो के दर्द , अलसर , व पीलिये निबटान , कृमि नाशक हेतु प्रयोग होता है
बेल फूल , जड़े व छा ल भी औषधि में प्रयोग होता है।  तने से गोंड प्राप्त होता है।
शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ाना शुभ माना जाता है ऋग्वेद में बेल को लक्ष्मी स्थान माना गया है

 भूमि
बलुई याने मकई वाली मिट्टी , तूंग वन वाली मिट्टी , पथरीली भी चल सकती है ,  व कम चिकनी मिट्टी गड्ढों में बीज बोना ही सही माना जाता है।  गड्ढों की दूरी कम से कम 8  मीटर सही दूरी है , बेल जलभरान भूमि में नहीं उग सकता है। गड्ढों में ऊपरी कृषि मिट्टी डाली जाती है व गोबर खाद ही सही खाद है , बेल को रोपण द्वारा या जड़ काटने से भी उगाया जा सकता हैं किन्तु रोपित वृक्षों से फल बहुत बड़े अंतराल की बाद 15 वेश में आते हैं
जलवायु
मानसून , मध्य शीत व ग्रीष्म ऋतुएँ  आवश्यक हैं
फल तोड़ने का समय
अधिकतर फल जनवरी या फरवरी तक पक जाते हैं जब फल पीले हो जाय तो तोड़ लेने चाहिए . एक पेड़ से 800  फल भी आ जाते हैं किन्तु सामन्यतया  400 फल लग ही जाते हैं
बीज बोन का समय
पके फलों से बीज निकालकर छाया में सुखाया जाता है। बीज बोन का जुलाई अगस्त या फरवरी मार्च  सही समय है। पहाड़ों में जुलाई व अगस्त ही सही समय है।  सिंचाई की आवश्यकता ग्रीष्म में पड़ती है। 





Copyright @ Bhishma Kukreti  3/6  //2018


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

टिमुर वनीकरण

Timur Forestation  for medical Tourism

(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -7


Community Medical Plant Forestation -7

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  109

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  109               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--212 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -212

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम Xanthoxylum armetum
पादप वर्णन - टिमुर एक 6 मीटर  ऊंचाई वाली , कंटीली झाडी है जिसके फल लाल होते हैं।   टिमुर  पहले उत्तराखंड में  एक आवश्यक पादप था और अब भोटिया क्षेत्रों को छोड़ समाप्ति के करीब है।   टिमुर गर्म घाटियों में समुद्र तल से 1000 -2100 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्र में उग जाता है।  टिमुर उप उष्ण कटबंधीय जंगलों में उगता है या खेतों के किनारे या खेतों में उगाया जाता है। कुमाऊं के टिमुर  गढ़वाल के मुकाबले अधिक तीखे होते हैं
औषधि उपयोग -
दंत ओषधि , एंटी सेप्टिक , डाइबिटीज निरोधी , पेट पीड़ा नाशक , टॉनिक व कृमि नाश हेतु दसियों औषधि में टिमुर के तना , छाल , फूल व बीजों का प्रयोग होता है
भोटिया क्षेत्र में सूप बनाने , मसाले व चटनी हेतु उपयोग होता है।  बीज मसालों में भी प्रयोग होता है

दांतुन व धार्मिक उपयोग मुख्य है

जलवायु आवश्यकता - उप उष्ण कटबंधीय जलवायु , मानसून आवश्यक है
 भूमि
दुमट मिटटी या गोरक्ष , भारी मिटटी में उग आता है।

फल तोड़ने का समय  - बीजों को भोटिया क्षेत्रों में अक्टूबर में एकत्रित किया जाता है। नेपाल की घाटियों में पहले हो जाता है
बीज बोन का समय - टिमुर सीधे बीज बोन , कलियों व रोपण से उगाया जाता हैं , नरसरी या सीधे बीजों को जंगल या खेतों में भी बोया जा सकता है।
टिमुर बीज मानसून में जुलाई अगस्त इ बोये जाते हैं , नरसरी में एक हेक्टेयर हेतु 3 किलो बीज काफी होते हैं किन्तु सीधे बीज बोन हेतु 30 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। अंकुर 20 दिन के पश्चात ही उगते हैं।


रोपण समय -
तना कलियों को से जुलाई अगस्त में रोपना ठीक है।
बीजों से जब अंकुर 30 सेंटी मीटर ऊँचे हो जाय तो उन्हें ट्रांसप्लांट किया जा सकता है
खाद -
खेतों व नरसरी में गोबर खाद सबसे उत्तम खाद होती है।
सिंचाई
जब तक पौधे डमडमे न हो जायं सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।  चूँकि उत्तराखंड में विशेषतया भोटिया क्षेत्र में बारिश , बर्फबारी होती है तो टिमुर हेतु जल मिल जाता है।
बीमारी
आमतौर पर टिमुर पर बीमारी नहीं लगती है
वयस्कता
टिमुर में फूल पांच साल में आने लगते हैं व सही वयस्कता सात साल में आती है
तने को बेचने हेतु फूल आने से पहले ही काटा जाता है। जनवरी से पहले।
उपज
एक हेक्टेयर में 6 क्विंटल सूखे बीज मिल जाते हैं

फल तोड़ने में सावधानी - फलों को तोड़ते समय सावधानी वर्तनी पड़ती है।  लौंफ्याते समय घाव आदि होने से टिमुर में बीज बनने कुछ सालों तक बंद हो जाते हैं



Copyright @ Bhishma Kukreti  4/6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

गूलर /तिमला वनीकरण

Fig Forestation in Uttarakhand
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -8


Community Medical Plant Forestation -8

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  110

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  110               

Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--213
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 213

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम  Ficus racemosa
संस्कृत नाम -ब्रह्मवृक्ष
पादप वर्णन -
 तिमल या गूलर वृक्ष भारत में सब जगह पाया जाता है।  6 से 10 मीटर ऊँचा व एक फुट गोल तने वाले गूलर सामान्य पेड़ माने जाते हैं।  गूलर की पत्तियां चौड़ी व वेक्स लिए होते हैं।  फल गोल पीले , भूरे , कत्थई रंग तक पाए जाते हैं
आर्थिक उपयोगिता
पत्ते चारे के काम आता है और दूध वृद्धिकारक है।  फलों को खाया जाता है व सूखे फल मंहगे होते हैं . लकड़ी उपयोगी होती है अनुमान है कि फिग परिवार की खपत भारत में 200 -300 टन वार्षिक है।
धार्मिक उपयोग
हिन्दू व बुद्ध धर्मी दोनों पंथों में गूलर का धार्मिक उपयोग होता है कई अनुष्ठानों में उपयोग।
औषधि उपयोग
भग्न अंगों को भरने की औषधि
त्वचा चमक व रक्षा हेतु औषधि (छाल का पेस्ट)
घाव भरने की औषधि
आँख , पेट आदि में जलन के अतिरिक्त , सूजन कम करने में उपयोगी औषधि
रक्तचाप  औषधि
चक्कर आने पर औषधि
स्वाद व ऊर्जा वृद्धिकारक
तीस कम करता  है
प्रसूति स्त्री हेतु लाभदायी औषधि
मासिक धर्म हेतु औषधि
कफ बृद्धिकारक किन्तु पित्त दोष कम करता है।
डाइबिटीज आदि औषधि
बबासीर हेतु उपयोगी औषधि
जलवायु आवश्यकता
अत्त्याधिक शीत  छोड़ सब जगह उग सकता है
 भूमि
बलुई , दुम्मट , यहां तक कि पथरीली भूमि भी ठीक होती है

फल तोड़ने का समय  - जून जुलाई
बीज बोन का समय - मानसून , ट्रीटमेंट किये बीज लाभदायी
रोपण का समय -मानसून
कलम से भी उगते हैं
खाद आवश्यकता - गोबर
सिंचाई आवश्यकता - सूखा प्रतिरोधी
वयस्कता समय - 6 -7 वर्ष
सही सलाह - महाराष्ट्र में जिस तरह सतारा व लातूर के पथरीली तकरीबन बंजर धरती में बौनी जाति  के गूलर कलम लगाने से बंजर धरती भी उपयोगी धरती बन गयी व किसानों को आर्थिक लाभ होने लगा।  उसी तरह उत्तराखंड में भी बौनी किस्मों की कलम लगाना ही श्रेयकर है . विशेष्य्ज्ञों की सलाह आवश्यक है।




Copyright @ Bhishma Kukreti  5 /6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

किनगोड़ा , किलमोड़ा।  दारु हल्दी वनीकरण

Indian Barberies , Chitra Foestation in  Uttraakhand
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -9


Community Medical Plant Forestation -9

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  -111

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  111               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--214 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 214

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम Berberies  aristata
संस्कृत नाम दारुहरदा , दारु हल्दी
हिंदी-  चित्रा
पादप वर्णन
किनगोड़ा उत्तराखंड में लगभग सभी जगह जंगलों , पथरीली जमीन में 1800 -३००0  मीटर की ऊँचे स्थानों में पाया जाता था अब इसकी प्रजाति खतरे में है।  झाडी नुमा 6  -9  फ़ीट ऊँचा।  कांटेदार झाडी , पत्तियां भी कांटेदार।
बाड़ के काम आता है , रंग बनाने में उपयोग

औषधि उपयोग

आँख औषधि -कजतवाईरस में उपयोग
जलन कम करता है , घाव आदि पर उपयोग
यकृत रोग में उपयोग
कैंसर में क्लोन न होने हेतु  उपयोग
स्त्रियों हेतु मूत्र रोग में उपयोग
डाइबिटीज कम करता है
कई कर्ण रोग उपचार में उपयोग
पाचन शक्ति वर्धक
गरारा में उपयोग

पारम्परिक , आयुर्वेद , यूनानी व सिद्ध औषधियों में उपयोग होता है
जलवायु आवश्यकता - सामन्य किन्तु गर्म हो तो भला, खुली जमीन
 भूमि
खुला , बलुई , दुम्मट व पथरीली।  वास्तव में सब जगह हो सकता है।  हाँ पानी भरान हानिकारक है।
फूल आने का समय - अप्रैल मई
फल तोड़ने का समय  - मई जून
बीज बोन का समय - पके फलों से बीज बो दिए जाने चाहिए और इन्हे एक शीत ऋतू आवश्यक है (cold frame ) . शीत ऋतू अंत या वसंत में उगने लगते हैं।
भण्डारीकृत बीजों को एक शीत आवश्यक है एयर जनवरी में बो दिए जाते हैं जब अंकुरित  पौधा 20 सेंटी मित्र का हो जाय तो उसे अपने निर्णीत स्थान पर रूप दिया जाता है।
रोपण का समय -वसंतान्त या ग्रीष्म से पहले भाग में
कलम से भी रोपण होता है किन्तु असंभव नहीं तो भी बहुत कठिन।
खाद आवश्यकता - कम्पोस्ट या  वनों में स्वजनित प्राकृतिक खाद
सिंचाई आवश्यकता -कम किन्तु सरसरी में आवश्यक , अधिक पानी हानिकारक
वयस्कता समय - 5  6 साल
 सार्वजनिक वनीकरण हे तु वनों में पके फल /बीज सब जगह छिड़क दिए जांय कनीतु अधिक बीजों की आवश्यकता पड़ेगी . बकरी चरण से बचाव आवश्यक है
विशेषज्ञों से राय आवश्यक




Copyright @ Bhishma Kukreti 6  /6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
 
 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

कदम्ब  वृक्ष वनीकरण

Kadamb /Cadamb Plantation in Uttarakhand

(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थकअन्यथा यह लेख निरर्थक है )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -10


Community Medical Plant Forestation -10

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  112

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  - 112                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--215 
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 215

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम - Nollamrckia cadamba
संस्कृत नाम -हरि  प्रिया
पादप वर्णन
कदम्ब 40 -45 मीटर ऊंचा पेड़ होता है शाखाओं से छतरी बनती है जो छाँव देने का काम करता है। कदम्ब के फूल का गुच्छा नारंगी रंग के होते हैं और एक गुच्छे से छोटे छोटे 8000  बीज पैदा हो सकते हैं।  बीज हवा या वर्षा से विकर्ण होते हैं
औषधि उपयोग
फल , छाल , बीज , जड़े सभी औषधि निर्माण में उपयोगी
कदंब पत्तियों के पेस्ट को घाव भरने हेतु उपयोग
छाल पेस्ट  से घाव धोये जाते हैं। अल्सर आदि में गरारा में उपयोग
कदम्ब की औषधि उलटी , छरक लगने /दस्त , की औषधि में उपयोगी।
मूत्र  रोग में उपयोगी औषधि
बुखार हेतु औषधि
फल रस माहवारी ठीक करने में व दूध वृद्धि हेतु उपयोग
अधिक पसीने की रोकथाम में उपयोग
खेतों के काटने पर दर्द व खज्जी भगाने में औषधि उपयोग
पिम्पल।  फोड़े , काले धब्बे दूर करने हेतु छाल पेस्ट उपयोग



धार्मिक उपयोग
भारत में कदम्ब एक पूज्य पेड़ माना जाता है और कई अनुष्ठानो में उपयोग होता है
आर्थिक उपयोग -लकड़ी मंहगी होती है कागज व प्लाईवुड निर्माण में उपयोगी
जलवायु आवश्यकता - मैदानी भूभाग व हिमालय में 3 000 फ़ीट ऊंचाई से निचे तक  पाया जाता है जहां 1500 mm  तक वारिश होती है जैसे आसाम , दार्जिंलिंग आदि । कदम्ब 200 mm वार्षिक वर्षा में भू उगता है गलता है।  धूप  आवश्यक है है।
 भूमि  - बलुई , दुम्मट , भुरभुरी खिन खिन पथरीली भी

फल तोड़ने का समय  - सितंबर -दिसंबर  में पेड़ों में चढ़कर या शाखाएं हिलाकर फल तोड़े जाते हैं।  फलों को तीन चार दिन तकसड़ने  छोड़ दिया जाता है।  फिर बीजयुक्त गूदे को पानी में मिलाया जाता है व बीज तलछट में जमा हो जाते हैं . बीजों को सुखाया जाता है। फल को काटकर सुखाकर भी बीज एकत्रित  किये  जाते हैं। बीज छाया में सुखाये जाते हैं और 9 महीनों तक रखे जा सकते हैं।
बीज बोन का समय -
फरवरी म सही स्थान हीना  ,
मिट्टी मिले बालू की पट्टियों में बोये जाते हैं किन्तु ध्यान रखना होता है कि नीचे न दबें।  छाया ही उत्तम होती हैं।  खुले में अंकुरण कठिन ही होता है। धूप में अंकुर मर जाते हैं। अंकुर धूप व पानी नहीं सह सकते हैं। छाया हेतु पराळ  से बने पल्ल सही हैं। पानी बारीक छलनी से देना श्रेयकर। अंकुरण के बाद पल्ल उठा लिया जाता है।  अंकुरण में तीन सप्ताह लगते हैं और अंकुरण का प्रतिशत 60 -9 0 % होता है।
अंकुरित पौधों को पॉलीथिन बैग की मिट्टी में रोपा जा सकता है। अंकुरों को भी छाया चाहिए।  30 -50 सेंटीमीटर के बाद फिर से रोपण किया जाता है।
रोपण वरसात में होता है
कलम रोपण का समय - मानसून
खाद आवश्यकता -गोबर व फंगस निरोधी दवा
सिंचाई आवश्यकता - समय समय पर अधिक पानी नहीं जमना चाहिए
वयस्कता समय- 5 - 6 वर्ष में फूल आने लगता है।
 गदन या नदी तट जहां बालू हो वह सही स्थान
पेस्ट कंट्रोल आवश्यक है।
विशेषज्ञों की  राय आवश्यक है

आईये राजनेताओं व अधिकारियों की नींद जगाएं - बंदर भगाओ , सुंगर भगाओ व वन कानून बदलो !
Copyright @ Bhishma Kukreti  7 /6  //2018


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

शिग्रु /ड्रमस्टिक वनीकरण द्वारा मेडिकल टूरिज्म विकास

Drumstick Forestation in Uttarakhand
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -11


Community Medical Plant Forestation -11

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  113

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  113               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 216)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 21

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम Moringa oelifera
संस्कृत - शिग्रु
मराठी -शेवगा , सींग
पादप वर्णन
 वास्तव में ड्रमस्टिक का जन्म उप हिमालयी भूभाग में हुआ था और अमृत तुल्य वनस्पति होने के कारण अब समस्त भारत ही नहीं अन्य देशों में भी उगाया जाता है।  आश्चर्य है उत्तराखंड व हिमाचल में इस अमृत तुल्य वृक्ष की अवहेलना होती जा रही है।  ड्रमस्टिक एक मध्यम ऊंचाई याने 10 -12 मीटर ऊंचाई व तने की गोलाई 45 cm वाला वृक्ष है।  अमृत तुल्य ड्रमस्टिक की टांटी /pod लम्बा व एक -दो सेंटीमीटर गोलाई की होती हैं।  टांटी की सूखी संब्जी व दाल , साम्भर में डाला जाता है।  कई भोज्य पदार्थों में भी डाला जाता है।  स्वाद कडुआ होता है किन्तु अमृत तुल्य वृक्ष माना जाता है।
औषधि उपयोग -
ड्रमस्टिक के अंगों का औषधीय उपयोग
पत्तियां
तना
छाल
फूल
फल
बीज
ड्रमस्टिक ऐंटीऑक्सीडेंट होने के कारण कई सरने वाली /फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम में उपयोगी
हाइपर टेंसन व हृदय रोग में उपयोगी औषधि उपयोग
वीर्य , शुक्राणु व शुक्राणु प्रजनन  शक्ति वृद्धि हेतु फलों से औषधि
जलन कम करने हेतु पत्तियों , बीजों व टांटीयों /फली से औषधियां
गठिया , वातरोग आदि हेतु औषधियां
कैल्सियम होने के कारण दांत सुरक्षा हेतु उपयोग
कलेस्ट्रॉल कम करता है
आर्सेनिक टॉक्सिक कम करने में उपयोगी
पत्तियों के पेस्ट लगाने से त्वचा चमक बढ़ती है
पत्तियों को सर पर रगड़कर सरदर्द , अध कपाळी कम होता है
घावों , नासूर में उपयोगी
 ड्रमस्टिक की पत्तियों की चाय गैस्ट्रिक व अल्सर रोग उपचार
बीज भूषि त्वचा रोग हेतु
स्वास रोग में उत्तम औषधि
त्वचा की कई बीमारियों हेतु औषधि
(कृपया अपने आप वैद न बने व डाक्टर की सलाह अवश्य लं )


जलवायु आवश्यकता - उप हिमालय व मैदानी जलवायु , उप हिमालय याने दक्षिण उत्तराखंड में कहीं भी उग सकता है
 भूमि
बलुई , दुम्मट व पथरीली भी , रगड़ को पुनर्जीवित हेतु उत्तम पादप , किनारे जहां कुछ मिटटी हो वहांव सिचाई हेतु जमीन में नीचे पानी रोपित किया जाना चाहिए।   

फल तोड़ने का समय  -नई जाती हर समय फल देती है।
बीज बोन का समय - मई जून में नरसरी में व साधारण भूमि में व मानसून , बलुई मिट्टी में बोते हैं।  आठ दस दिन में अंकुर।  एक हेक्टेयर में 800 ग्राम बीजों की आवश्यकता
रोपण का समय - मानसून , बीज अंकुरित होने के 30 -35 दिन बाद रोपण।  पानी व खाद आवश्यक हैं
कलम द्वारा भी मानसून में रोपण होता है , एक हेक्टेयर में 1500 पेड़ लग सकते हैं
खाद आवश्यकता -गोबर
सिंचाई आवश्यकता - सामन्य
वयस्कता समय-शीघ्र , प्रूनिंग , कटाई , छंटाई आवश्यक
 वनों में सीधी बीज छिड़क कर भी वनीकरण सम्भव है।

विशेषज्ञों की राय  आवश्यक है

आईये राजनीतिज्ञों , अधिकारियों पर वन अधिनियम परिवर्तन हेतु दबाब बनाएँ ! सर्वप्रथम बन्दर , सूअर  व अदूरदर्शिता भगाए जायं !
Copyright @ Bhishma Kukreti  8/6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
   Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Haridwar Garhwal Uttarakhand ;
Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ;

Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Pauri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Chmoli  Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Rudraprayag Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Tehri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Uttarkashi Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Dehradun Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Udham Singh Nagar Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Nainital Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Almora Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ;
  Medicinal Plants plantation in Pithoragarh Uttarakhand


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

रीठा वनीकरण
Soapnut Forestation in Uttarakhand

(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण - 12


Community Medical Plant Forestation -12

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  114

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -  114               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series-- 217)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 217

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम -Sapindus mukorossi
कुम्भ बीज , रिष्टिक
पादप वर्णन
 रीठा कभी बहुतअय्र में पाया जाता था अब आंतरिक पर्यटन हेतु लोग कहते हैं औ वहां आठ दस मील दूर रीठा पेड़ है।
रीठा 12 -20 मीटर ऊँचा व 70 वर्षीय रीठा  तने की गोलाई 3 मीटर  तक जाती है , शीत ऋतू में पत्ते झड़ जाते हैं। पीले फूल व काले भूरे फल।  फलों के अंदर कठोर काले बीज  हैं।  काले बीज कभी गुच्छी  खेलने के व बच्चों हेतु कंगन बनाने के काम आते थे।
हिमालय में लघु व मध्यम पहाड़ियों में 4000 फ़ीट की ऊंचाई में पाए जाते हैं।
औषधि उपयोग -
विष रोधक औषधियों में
आयुर्वेद में कफ रोधक , कोलेस्ट्रॉल कम करने की औषधियों , रक्तचाप समन्वयकरण औषधियों में प्रयोग होता है। त्वचा की गंदगी साफ़ हेतु औषधि ( फेस वाश ) में  उपयोग। सरदर्द व अधकपाळी दूर करने की औषधियों में भी उपयोग होता  है
रीठा तेल कई औषधियों व उद्यम में उपयोग।
गर्भपात औषधि हेतु भी रीठा प्रयोग होता है।
घाव, फोड़े  धोने आदि में प्रयोग
कपड़े धोने व शैम्पू में प्रयोग
पत्तियाँ -चारे हेतु उपयोगी
जलवायु आवश्यकता
- धूप , अच्छे बारिश , आम पहाड़ी जलवायु
 भूमि
बलुई , दुम्मट , रेतीली जमीन रगड़ किनारे में भी उग आते हैं

फल तोड़ने का समय  -अक्टूबर से जनवरी

 
बीज बोन का समय - बीजों को सूखे में ही भण्डारकृत किया जाता है।  फंगस लगने का खतरा हर समय होता है।

बीज बोन हेतु ग्रीष्म ऋतू सही समय
रीठे की जड़ें लम्बी होती है अतः बलुई मिट्टी में गड्ढे इस प्रकार हों कि जड़ों को पनपने का अवसर मिल सके।
 बीजों को 24 घंटे मंतते वार्म पानी में रखा जाता है जिससे छिलके उत्तर सकें किन्तु ध्यान रहे कि गरम जल से बीज न मरें ।  वैक्यूम फ्लास्क में रीठे के बीजों को मंतते  जल में रखा जाता है या गर्म राख से पानी को मंतता  रखा जाता है। अथवा सैंडपेपर से बीजों को खुरचकर तब पानी में भिगोया जाता। है
भिगोये बीजों को 2. 5 सेंटीमीटर गहरा बोया जाता है।  बीजों को छाया में ही बोया जाय  व बोन से पहले खाद नहीं डालनी चाहिए , जब तक मिट्टी  सूखे पानी नहीं देते हैं , खाद व पानी , नमि फंगस दफंदी को  डालते हैं
अंकुरण समय
एक से तीन महीने में अंकुरण आता है। बीज और फूलते हैं व उन पर सफेद बूरा आ जाता  है अतः घबराने की आवश्यकता नहीं। 
जब अंकुर ठीक से आ  जाएँ तो पौधों को दूसरी जगह रोपा जाता है जहां जल व धूप खूब हों।  ध्यान देने योग्य पहलु यह है कि  अंकुरण से लेकर रोपाई तक इसकी लम्बी जड़ों को बचाना।
खाद आवश्यकता - शुरुवात रोपाई के पश्चात  गोबर कम्पोस्ट आवश्यक
धूप - पेड़ को धूप  चाहिए
सिंचाई आवश्यकता - जल प्रेमी
वयस्कता समय- नौ दस साल में फूल , फल देने लगता है।

विशेषज्ञों की राय आवश्यक है

आईये राजनीतिज्ञों , अधिकारियों पर वन अधिनियम परिवर्तन हेतु दबाब बनाएँ ! सर्वप्रथम बन्दर , सूअर  व अदूरदर्शिता भगाए जायं !
Copyright @ Bhishma Kukreti  9/6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
४- डा प्रकाश चंद्र पंत , कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां
-
   Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Haridwar Garhwal Uttarakhand ;
Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ;

Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Pauri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Chmoli  Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Rudraprayag Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Tehri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Uttarkashi Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Dehradun Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Udham Singh Nagar Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Nainital Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Almora Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ;
  Medicinal Plants plantation in Pithoragarh Uttarakhan


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


 अर्जुन (असीन ) वृक्ष वनीकरण से मेडिकल टूरिज्म विकास

Arjuna  Plant Plantation for Medical Tourism in Uttrakhand --
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -


Community Medical Plant Forestation -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम -Terminalia arjuna गढ़वाल में असीन अर्थात Terminalia Alata
पादप वर्णन
अर्जुन सदाबहार वृक्ष है जिसकी ऊंचाई 60 -85 फ़ीट तक पंहुच जाती है।  अर्जुन की पत्तियां तिकोनी , फूल पीले व फल 2. 5 -3 . 5  सेंटीमीटर लम्बे होते हैं जिनके अंदर बीज होते है। अर्जुन लगभग सारे भारत में पाया जाता है और नदी , रगड़ के किनारे पाया जाता है।  अर्जुन की छाल मंहगी बिकती है
आर्थिक उपयोग
लकड़ी में उपयोग
रेशम उत्पादन में पत्तियां उपयोगी
कई धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग
औषधि उपयोग
रक्तस्राव रोकने  , घाव भरने में उपयोग
मूत्र नली में पीप रोकने, कई मूत्र रोग निदान व दस्त में उपयोग
कोलेस्ट्रल व मोटापा कम करने में उपयोग व हृदय रोग औषधि में उपयोग
डाइबिटीज हेतु उपयोग
छाती दर्द में उपयोग
थकावट भगाता है व ऊर्जा लाता है
दंत औषधि व टूथ पेस्ट में उपयोग
यूटेरस की कई बीमारियों में औषधि उपयोग

जलवायु आवश्यकता
 भूमि
यद्यपि अर्जुन लगभग हर जमीन में पैदा होता है किन्तु अर्जुन को जमीन के नीचे पानी तल पसंन्द है , लाल मिटटी विशेषतः नदी किनारे जलोढ़ मिटटी में अच्छी पैदावार देता है। रगड़ , गदन किनारे सही भूमि।
अर्जुन जलभरान प्में भी पल सकता है
फल तोड़ने का समय  -फूल मार्च से शुरू हो जाते हैं व सितंबर से दिसंबर में पके फल तैयार हो जाते हैं।  फलों को सुखाकर बीज प्राप्त किये जाते हैं।
बीज बोन का समय -
मानसून
एक किलो  में 700 -800 बीज आते हैं
बीजों को कम से कम 40 घंटे पानी में सोक कर नरसरी में बोया जाता है . अंकुरण समय 50 -70 दिन व अंकुरण प्रतिशत 50 -60 % होता है।  2 -तीन महीने बाद रोपण
रोपण का समय अंकुरण के 2 -3 महीने बाद व 15 महीने पुराने अंकुरित पौधे को भी रोपा जा सकता है।
रोपण हेतु गड्ढों का घनत्व --60 x 60 x 60 cm व गड्ढों के मध्य दूरी 6 x 6 मित्र की यानी एक हेक्टेयर में 275 पौधे लगाए जा सकते हैं
खाद आवश्यकता
शुरुवात में आवश्यक बाद में कम किन्तु खाद आवश्यक है। अति छाया नहीं होनी चाहिए व पहले दो साल ओस से बचाव आवश्यक
सिंचाई आवश्यकता
अर्जुन को वार्षिक 750 -1900 mm वर्षा की व 25 -30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है
वयस्कता समय
कम से कम 5 वर्ष

कीड़ों , जीवाणुओं से बचाव आवश्यकहै इसलिए   कृपया विशेज्ञों की राय लें
विशेषज्ञों की राय  आवश्यक है
देहरादून में नाग फार्मेस्युटिकल आर के पुरम व पंतनगर बायो टेक  जसपुर में रोपण हेतु पौधे मिलते हैं

आईये राजनीतिज्ञों , अधिकारियों पर वन अधिनियम परिवर्तन हेतु दबाब बनाएँ ! सर्वप्रथम बन्दर , सूअर  व अदूरदर्शिता भगाए जायं !
Copyright @ Bhishma Kukreti  10/6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
   Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Haridwar Garhwal Uttarakhand ;
Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ;

Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Pauri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Chmoli  Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Rudraprayag Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Tehri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Uttarkashi Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Dehradun Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Udham Singh Nagar Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Nainital Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Almora Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ;
  Medicinal Plants plantation in Pithoragarh Uttarakhand


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां :  सामजिक चेतना हेतु महत्वपूर्ण पुस्तक

Most Valuable Book _ Kumaon ki Upyogi Aushdhi Vanspatiyan
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -14


Community Medical Plant Forestation -14

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  116

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -   116               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--219)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 21920

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

    उत्तराखंड  मेडिकल पर्यटन का सिरमौर बनाना है तो समाज के हर जागरूक सदस्य को योगदान देना होगा।  प्रदेश के पर्यटन विकास में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका जागरूक समाज निभाता है।  जागरूक समाज हेतु  प्रसारण आवश्यक है।   उत्तराखंड टूरिज्म विकास  हेतु सबसे पहले वर्तमान समाज को उत्तराखंड व उनके क्षेत्रीय औषधि वनस्पति का ज्ञान अत्त्यावश्यक है। जब समाज के हर सदस्य औषधि वनस्पति का ज्ञान व उन वनस्पति का उपयोग आत्मसात करेगा तभी समाज मेडकल टूरिज्म विकास हेतु उठ खड़ा होगा और तब सरकार या  बाप को भी साथ देना होगा।
     सामजिक चेतना हेतु औषधि वनस्पतियों की जानकारी हेतु पुस्तकें  हैं।  उत्तराखंड में औषधि वनस्पतियोन की एकमुश्त जानकारी की कमी कई दशकों से खल रही थी।  पिथौरगढ़ के वनस्पति वैज्ञानिक डा प्रकाश पंत व अन्य वैज्ञानिकों ने  को पूरा करने में योगदान देकर मार्ग प्रशस्त करने की डिसा में महत्वपूर्ण व प्रशंसनीय कार्य किया है।

            डा प्रकाश पंत की पुस्तक 'कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां ' एक पठनीय पुस्तक है। 35 पृष्ठीय 'कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां ' पुस्तिका में वनस्पतियों की भूमिका , औषधि  निर्माण में वनस्पतियों के किन भागों व किन अवयवों का होता है के अतिरिक्त 70 औषधि वनस्पतियों का विवरण है।  वनस्पति विवरण के अतिरिक्त , सुगंध युक्त वनस्पतियों का विशेष विवरण , वनस्पति का किन रोगों को दूर करने की औषधियों का भी वर्णन इस 'कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां ' पुस्तिका में है।  परिशिष्ट में प्रत्येक औषधिपादप का विवरण  चार्ट  द्वारा  लेखक ने पाठकों के लिए पठन अति सरल कर दिया है। .   

   आमतौर पर वैज्ञानिक  प्रकृति के कारण गूढ़ भाषा प्रयोग कर देते हैं किन्तु वैज्ञानिक डा प्रकाश पंत ने सरल हिंदी भाषा का प्रयोग कर पुस्तिका को सुगम पठनीय बना दिया है।  सरल भाषा में पुस्तिका  डा पंत का हार्दिक अभिवादन आवश्यक है। पुस्तिका 'कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां ' में 24 चित्रों ने पुस्तक का महत्व  और भी बढ़ा दिया है।
     इतने कम  इतनी साड़ी जानकारी भी प्रशंसनीय है।
पाठकों से निवेदन है कि पुस्तिका बाचन तो करें ही  इस  प्रसार भी अवश्य करें।

'कुमाऊं की उपयोगी औषधि वनस्पतियां '
लेखक : डा प्रकाश चंद्र पंत
पुनर्लेखन व सम्पादन -डा मृगष पांडे
प्रकाशक - उत्तराखंड सेवा निधि , अल्मोड़ा , उत्तराखंड

आईये राजनीतिज्ञों , अधिकारियों पर वन अधिनियम परिवर्तन हेतु दबाब बनाएँ ! सर्वप्रथम बन्दर , सूअर  व अदूरदर्शिता भगाए जायं !
Copyright @ Bhishma Kukreti  11/6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
   Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Haridwar Garhwal Uttarakhand ;
Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ;

Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Pauri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Chmoli  Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Rudraprayag Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Tehri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Uttarkashi Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Dehradun Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Udham Singh Nagar Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Nainital Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Almora Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ;
  Medicinal Plants plantation in Pithoragarh Uttarakhand


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

ग्वीराळ , क्वीराळ , कचनार वृक्ष बनीकरण से मेडिकल टूरिज्म विकास

Kwiral (Mountain Ebony) tree  Plantation for Medical Tourism in Uttarakhand
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
-

  सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -15


Community Medical Plant Forestation -15

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति  )  117

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (  Strategies  )  -    117             

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--220)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -220

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  लैटिन नाम -Bahunia variegata
स्थानीय नाम - ग्वीराळ , क्वीराळ
संस्कृत कचनार गंडेरी
पादप वर्णन
ग्वीराळ /क्वीराल/कचनार सुंदरतम पेड़ों में गिना जाता है , इसके फूल फूल माह में देहरियों में डाले जाते हैं।  सफेद , बैंगनी फूल रिझाते हैं। 30 फ़ीट तक ऊँचे ग्वीराळ /क्वीराल/कचनार  पेड़ उत्तराखंड में धूप वाली घाटियों में 150-1300 मीटर  तक की ऊंचाई में बलुई व , खारी जमीन , अन्य चिकनी मिट्टी वाले क्षेत्र में बहुतायत में मिलता है। कचनार , ग्वीराळ , क्वीराळ का चारा , सब्जी , इमरती व उपकरण हेतु लकड़ी , रंग निर्माण टेनिंग , के अतिरिक्त कचनार कई औषधियों में उपयोग होता है।  पहाड़ों में गंडक रोग कम होने के पीछे कचनार का भोजन उपयोग भी रहा है।
पद्दाप अंगों का औषधि में उपयोग
छाल
टहनी
फूल

निम्न  रोग निबटान  हेतु औषधि उपयोग
कफ , सर्दी जुकाम
त्वचा रोग
मुंह सफाई
गंडक समस्या
रक्तस्राव
स्त्रियों के माहवारी रक्तस्राव /प्रदर
कृमि /वर्म्स नाश
स्वास रोग



जलवायु आवश्यकता - दक्षिण , उत्तर उत्तराखंड की पहाड़ियां जहां खुली घाटियां हों।  कचनार कुछ समय तक 5 अंश सेल्सियस तापमान सह सकता है किन्तु अति बर्फ अधिक समय तक नहीं सह सकता है। गदन के किनारे धूपेली जगहों जैसे रगड़ , पख्यड़ सही क्षेत्र ,अर्ध   /मध्यम छाया क्षेत्र
 भूमि  - , बलुई , दुम्मट से कुछ कुछ चिकनी मिट्टी तक
फूल आने का समय - वसंत , फली ग्रीष्म में पक्ति हैं।
फल तोड़ने का समय  -  जब टांटी /फलियां मध्यम पीली -काली पड़  जायँ जो बीजों को निकाला जाता है
बीज बोन का समय - वसंत , बीजों को मंतत वार्म पानी में 12 घंटों तक भिगोया जाता है और तब सुधारी (खोदी , समतल , खादयुक्त ) मिट्टी में बोया जाता है।  सिंचाई आवश्यक
रोपण का समय - जब कलियाँ लम्बी आ जायँ तो उखाड़ कर मानसून में रोपण किया जाता है , पहले दो साल कम शीत से बचाव आवश्यक अतः खुली घाटी सही भूमि।
खाद आवश्यकता - पहले पहल
सिंचाई आवश्यकता -शुरुवात में
वयस्कता समय- चार पांच साल

कीड़ों , जीवाणुओं से बचाव आवश्यकहै इसलिए   कृपया विशेज्ञों की राय लें
विशेषज्ञों की राय  आवश्यक है

आईये राजनीतिज्ञों , अधिकारियों पर वन अधिनियम परिवर्तन हेतु दबाब बनाएँ ! सर्वप्रथम बन्दर , सूअर  व अदूरदर्शिता भगाए जायं !
Copyright @ Bhishma Kukreti  12/6  //2018
संदर्भ

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - रामनाथ वैद्य ,2016 वनौषधि -शतक , सर्व सेवा संघ बनारस
-
   Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Haridwar Garhwal Uttarakhand ;
Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Kumaon Uttarakhand ;

Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Pauri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Chmoli  Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in  Rudraprayag Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Tehri Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Uttarkashi Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Dehradun Garhwal Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Udham Singh Nagar Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Nainital Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Almora Kumaon Uttarakhand ; Medicinal Plants Plantation for Medical Tourism in Champawat Kumaon Uttarakhand ;
  Medicinal Plants plantation in Pithoragarh Uttarakhand


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22