Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 207181 times)

Bhishma Kukreti

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Re: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (
« Reply #310 on: September 27, 2018, 05:21:15 AM »


मेडिकल टूरिज्म  विकास  हेतु मत्स्य  पालन की  आवश्यकता

Need for  Fisheries  for Medical Tourism Development

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति -
Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -4
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 170
Medical Tourism development  Strategies -170
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 274
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -274

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

  मेडकल या किसी भी अन्य पर्यटन हेतु मत्स्य आपूर्ति आवश्यक है क्योंकि मेडिकल टूरिस्ट व उनके साथ आये संबंधी मत्स्य की मांग करते हैं।  अन्य पर्यटन में भी मछली भोजन की मांग होती है।  मत्स्य उद्योग में चीन की भागीदारी 60 प्रतिशत है जब कि भारत की 6 . 3 प्रतिशत है। भारत का मत्स्य उद्यम से GDP का 1  . 1 प्रतिशत है। भारत में मत्स्य पालन से 14 करोड़ लोगों का जीवन यापन चलता है। मेडिकल टूरिज्म में मत्स्य पालन या मछली आपूर्ति की अहम भूमिका है।

मछली का स्वास्थ्य में लाभकारी भूमिका

मछली में कई उच्च पोषक तत्व जैसे प्रोटीन , आयोडीन , खनिज व  हैं जो मछली को पूर्ण भोजन के पास लाने में सक्षम हैं
मछली भोजन से हृदय घात के अवसर कम होते हैं
ओमेगा 3 अम्ल होने से मछली शरीर विकास हेतु महत्वपूर्ण है
मछली भोज वृद्धवस्था में रोकथाम करता है
मछली भोजन तनाव कम कर सकता है
मछली विटामिन D  का प्रमुख स्रोत्र है
मछली भोजन से डाइबिटीज के अवसर कम होते हैं
मछली बच्चों में स्वास रोग कम करने में कामयाब होते हैं
वृद्धवस्था में मत्स्य भोजन चक्षु दृष्टि हेतु लाभकारी भोजन है
मत्स्य भोजन नींद वृद्धि कारक है
मत्स्य से कई प्रकार के भोज्य पदार्थ बन सकते हैं व पकाना सरल है

मत्स्य पालन
नदी किनारे बसे गाँवों हेतु मत्स्य पालन एक लाभकारी व्यापार है और सरल भी है
नदी , समुद्र के अतिरिक्त भारत में तालाबों , तलयों व नदी किनारे कृत्रिम तालाब निर्मित कर मत्स्य पालन किया जाता है। 
मत्स्य पालन में समग्र कृषि अधिक कारगर सिद्ध होती है - मत्स्य तालाब तट पर मक्का , धान , सोया , सूरजमुखी मशरूम की संयुक्त खेती
मत्स्य पालन हेतु नर व नारी मछलियों की आवश्यकता पड़ती है व तालब या बहते तालाब में भोजन की व्यवस्था आवश्यक होती है जैसे धान , गेंहू , मक्का , गोबर )कीड़ों ), शादी ब्याह में बचा भोजन आदि
उत्तराखंड में राहु /राउ मछली अधिक पाली जाती है जिसे 25 से 30 अंश सेल्सियस तापमान की आवश्यकता पड़ती है।

लेख मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु लिखा गया है अतः मत्स्य उत्पादन , तालाब निर्माण आदि हेतु विषेशज्ञों की राय लें


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Re: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (
« Reply #311 on: September 28, 2018, 08:06:13 AM »
 
शिल्पकार समाज की अवहेलना से उत्तराखंडी पर्यटन उद्यमोमुखी  न बन सके

Need for  involving Shilpkar Community in Uttarakhand  Tourism Development

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति -  5
Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -5
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 171
Medical Tourism development  Strategies -171
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 275
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -275

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

    मैं  तीन  साल पहले नीलकंठ महादेव (, ऋषिकेश निकट , उदयपुर पट्टी ) यात्रा पर गया।  वहां हजारों पर्यटक आये थे और मंदिर से एक मील पहले से ही रास्ते में  महादेव जी को चढ़ाये जाने वाले फूल आदि बिकने शुरू हो गए थे। फूल बेचने वाले कोई भी  उदयपुर पट्टी तो छोड़िये गढ़वाली न था , पानी बोतल बेचने वाला उदयपुर पट्टी की तो छोडो कोई भी गढ़वाली न था सभी बिहार या पूर्वी उत्तर प्रदेश के थे।  आस पास के किसी भी गाँव में कोई फूल खेती नहीं थी खेत बंजर पड़े थे।  स्थानीय दुकानदार फूल , दूध , मिठाई , अनाज आदि सभी ऋषिकेश से आयात करते पाए गए।  नीलकंठ में उदयपुर ढांगू की कोई यादगार /सोविनियर वस्तु प्राप्य तो छोड़िये निशान  न थे।  सभी सोविनियर प्रोडक्ट आयातित थे। भोजनालयों में कहीं भी गढ़वाली भोजन पट्टिका नहीं लगी थी।
    किसी भी गढ़वाल के धार्मिक स्थल पर जाईये चाहे बद्रीधाम , ज्वाल्पा देवी मंदिर हो , भैरव गढ़ी मंदिर हो, अति स्थानीय पर्यटक स्थल जसपुर नागराजा मंदिर हो  या क्षेत्र प्रसिद्ध  गोदेश्वर महादेव मंदिर हो सब स्थलों का यही हाल है बल फूल , दूध, फल   व भेंट वस्तु आयातित होती है।  प्रत्येक चार वर्ष में जसपुर में सामूहिक नागराजा पूजन होता है और प्रवासी पर्यटक अरसा , पहाड़ी दालें , जख्या , टिमुर  बीज , नकचुंडी , नागराजा -ग्विल्ल लौह त्रिशूल आदि खरीदना चाहते हैं किन्तु जसपुर में ये वस्तुएं सुलभ नहीं होती हैं।  प्रवासी कोटद्वार , गुमखाल या ऋषिकेश से ये वस्तुएं खरीदते हैं।
    पत्रकार समाज का पर्यटन दृष्टि के प्रति उद्यम विरोधी रवया दिखता जिसे मैंने कई पर उठाया भी है।  जैसे पत्रकारों, बुद्धि जवियों द्वारा सोशल मीडिया में केदारधाम में लेजर शो का विरोध , मुकेश अम्बानी द्वारा त्रिगुणी नारायण में बेटे का विवाह , उत्तर कशी में मुरारी बापू प्रवचन आदि की तीब्र आलोचना हुयी।  प्रजातंत्र में विरोध अपनी  जगह सही है किन्तु  विरोध से समाज में पर्यटन उद्यम प्रति घृणा पैदा करनवाआ कोई चतुरता या पत्रकारिता तो नहीं हुयी।
   गढ़वाल भारत का सदियों से प्रमुख धार्मिक स्थल है किन्तु गढ़वाली आज भी पर्यटन उद्यममुखी नहीं सके हैं।  किसी भी पर्यटन स्थल या हाल्ट स्थल में गढ़वालियों ने किसी स्थानीय प्रोडक्ट से अपनी कोई विशिष्ठ छवि नहीं बनाई।
  गढ़वाली  यदि पर्यटन उद्यम मुखी नहीं हुआ तो उसका मुख्य कारण शिल्पकारों की अवहेलना व शिल्पकारों को पर्यटन उद्यम का भागीदार न समझना है।  शिल्पकारों की पर्यटन उद्यम में समाज ने व  सरकार ने कोई  भागीदारी निश्चित की ही नहीं ।  स्वतंत्रता के एकदम पश्चात फ्लोरीकल्चर, फल उद्योग विचार विकसित नहीं हुआ था समाज फल , फूल से अधिक अनाज को महत्व देता था तो समाज फल , फूल की मांग वनों से पूरी करता था।   सवर्ण वनों से फल , फूल इकट्ठा तो करते थे किन्तु पर्यटक स्थलों में बेचेंते नहीं थे।  कुक्कुट पालन सवर्णों में मान्य न था (कुखुड़ों द्वारा सग्वड़ रौंदळणे भय के कारण ) और शिल्पकार समाज जो कुक्कुट पालन से जुड़ा था उसे धार्मिक पर्यटन स्थल के निकट जाने की मनाही न भी हो तो भी सामजिक विन्यास के कारणों से शिल्पकार समाज धार्मिक पर्यटन स्थल से दूर ही रहता था तो कुक्कुट -अंडा आपूर्ति गढ़वाल से न होकर आयात की लत पड़  गयी और आज भी यही लौस चल रही है  ।  उसी तरह शिल्पकार अधिक संख्या  में फल , फूल व अन्य भोज्य पदार्थ जैसे टिमुर एकत्रीकरण कार्य करते थे किन्तु उन्हें धार्मिक पर्यटन स्थलों के निकट स्थल नहीं मिलता था तो पर्यटक स्थलों में स्थानीय फल , फूल , औषधि पादप आपूर्ति की कोई संस्कृति बन ही नहीं पायी।
       इसी तरह सोविनियर /स्थानीय  भेंट वस्तु (कुटीर उद्यम संबंधी वस्तुएं ) के निर्माता   तो शिल्पकार ही होते थे किन्तु बद्रीनाथ , देव प्रयाग , गंगोत्री , जमनोत्री में विक्रय स्थल पर अधिकार तो पंडों या ब्राह्मणों का था एवं शिल्पकारों की कोई पूछ ही नहीं होने से कुटीर उद्यम जनित वस्तु पर्यटक स्थलों पर विक्री की कोई संस्कृति  नहीं पनपी  ना ही हमारे विचारकों ने कभी ध्यान दिया कि जब तक शिल्पकारों को पर्यटन उद्योग से सीधा व स्थल निकट न जोड़ा जायेगा तो सही माने में पर्यटन उद्यम से समाज कोलाभ न पंहुच पायेगा।
     पर्यटन उद्यम में स्थानीय संस्कृति यथा संगीत व संगीत वाद्य यंत्रों का बड़ा महत्व होता है किन्तु चार धामों में  कोई मंच स्थापित नहीं हुए जहां संगीत वादक अपने हुनर से पर्यटकों को स्थानीय संगीत का आनंद दे सकें।  देखा जाय तो बद्रीनाथ,  केदारनाथ , जोशीमठ , पाण्डुकेशर , देवप्रयाग में दक्षिण के ब्राह्मणों की आरतियों को ही संगीत माना जाता आ रहा है।  यहां स्थानीय संगीत की कोई अहमियत ही नहीं है।
      गढ़वाल के धार्मिक पर्यटक स्थलों में आपूर्ति हेतु मैदानी भू भागों पर निर्भर करना पड़ता है जब कि पहाड़ों में कुटीर उद्यम , सोविनियर हेतु प्रोडक्ट्स उपलब्ध थे तो भी शिल्पकारों की अवहेलना से पर्यटन उद्यम हेतु आपूर्ति आयात से की जाती है।
कोटद्वार  एक पर्यटक स्थल है यहां एक अजीब संस्कृति पनप रही है होटलों या कैटरिंग में गढ़वाली शिल्पकारों को कम ही रखा जाता है किन्तु वाह्य शिल्पकारों को रखने में कोई दिक्क्त नहीं होती है।  यदि किसी शिल्पकार को कैटरिंग /होटल में नौकरी पर रखा जाता भी है  तो उन्हें ताकीद की जाती है बल वे अपने को ब्राह्मण या राजपूत बतलायें।  यह संस्कृति पर्यटन विकास हेतु सही संस्कृति नहीं है।
     अभी भी यदि शिल्पकारों की अवहेलना हुयी तो आने वाले दिनों में सभी पर्यटन उद्योगों में आपूर्ति ही नहीं अपितु ट्रेडिंग में भी वाह्य लोग घर कर जाएंगे।  शिल्पकारों को स्थानीय भोज्य पदार्थ , मिठाईया , वन -फल , फूल व अंडा आपूर्ति व सोविनियर , संगीत आपूर्ति में तुरंत जोड़ना आवश्यक है अन्यथा कल गढ़वाल पर्यटन उद्यम गढ़वाली विहीन हो जाएगा।



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« Reply #312 on: September 29, 2018, 08:13:10 AM »



मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु सुअर पालन  की आवश्यकता

Need for Pig Farming for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 6
Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -6
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 172
Medical Tourism development  Strategies -172
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 276
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -276

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती
 मेडिकल टूरिज्म अपने आप में एक पर्यटन उद्यम ही है जिसमे टूरिज्म की सुविधाओं का समावेश आवश्यक है।  पर्यटक मांस भक्षी भी होते हैं।  मुस्लिम व यहूदियों को छोड़कर प्रत्येक धर्मावलम्बी सूअर मांस भी भक्षण करते हैं।  हिन्दुओं में तो कहा जाता है बल वह हिन्दू नहीं जिसने सुअर न खाया हो।
   मांस हेतु सुअर पालन एक लाभकारी व्यापार है।  कुछ साल पहले तक सामाजिक वर्जनाओं के कारण सुअर पालन एक वर्ग के पास ही सिमित था किन्तु अब भारत में वर्जनाएं टूट रही हैं और व्यापारिक मानसिकता के कारण हिन्दुओं की  कई जातियां सुअर पालन में आगे आ रही हैं।  भारत में सुअर मांस उत्पादन दिनों दिन बढ़ रहा है
भारत में सन 2016 में  सुअर मांस उत्पादन  370  000 मैट्रिक टन  था
भारत में सन 2017 में सुअर मांस उत्पादन   397 000 मैट्रिक टन  था
भारत में सन 2016 सुअर मांस उत्पादन  395  000 मैट्रिक टन का अनुमान लगाया जा रहा है।
उत्तरप्रदेश सुअर मांस उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक प्रदेश है
उत्तराखंड में भाभर म पैनो , बदलपुर , नयार -हिंवल -मालनी नदी घाटी , सदाबहार बहते गदन के आस पास,  हरिद्वार , देहरादून , नैनीताल , उधम सिंह नगर सुअर पालन हेतु कामयाब क्षेत्र हैं।

सुअर मांस के लाभ
सुअर प्रोटीन में सबसे उच्च दर्जे का मांस है (89 %) , बॉडी बिल्डर सुअर का मांस प्रेमी होते हैं।
सुअर मांस में सुअर पालन , आयु , जलवायु अनुसार विभिन्न वसा भी मिलते है (10 -16 % और अधिक )
सुअर मांस में निम्न खनिज व विटामिन्स प्राप्त होते हैं -
थियामिन
सेलेनियम
जस्ता
विटामिन B 6
विटामिन B 12
नियासिन
फॉस्फोरस
लौह - यद्यपि सुअर मांस में अन्य मांस के बनिस्पत कम लौह  होता है किन्तु पाचन तंत्र से लौह आकर्षित करने की क्षमता बहुत है
सुअर मांस मांस पेशी वर्धक है जिससे शारीरिक व्यायाम में लाभकारी है
यद्यपि पूर्ण रूप से सिद्ध नहीं हुआ है किन्तु माना जाता है बल सुअर मांस हृदय घातक  नहीं है
सुअर के भोजन अनुसार कुछ टेप वर्म सुअर मांस में मिल सकते हैं।

सुअर पालन के व्यापारिक लाभ -
सुअर की शीघ्र वयस्क होने वाला जंतु है और प्रजनन शक्ति अधिक होने के कारण कुछ ही साल में दोगुने तिगुनी संख्य हो जाती है
सुअर में खाद्य पदार्थों को मांस परिवर्तन  का प्रतिशत अधिक होता है अतः शीघ्र ही वयस्क हो जाते हैं, ८ -9 महीनों में बच्चे पैदा करने की शक्ति आ जाती है व साल भर में दो बार बच्चे जनते हैं व एक बार में 10 -12 बच्चे पैदा हो जाते हैं।
सुअर का भोजन बहुआयामी है अनाज , पींड , फल , फूल, सब्जी , गणना जमीन के नीचे की वनस्पति आदि आदि
सुअर पालन हेतु कम लागत लगती है व शीघ्र ही निवेश वापस आने लगता है।
सुअर गोबर खाद रूप में उपयोग तो होता ही है इसका गोबे मत्स्य भोजन भी है
 सुअर पालन हेतु पानी व जमीन होनी आवश्यक हैं
परिहवन की व्यवस्था आवश्यक है
अच्छी ब्रीड के सुअर बजार में उपलब्ध हैं
समय समय पर सूअरों की डाक्टरी जांच आवश्यक है
सुअर शाला आवश्यक है और उनके मल मूत्र विसर्जन व अन्य यंत्र भी आवश्यक है
सुअरों हेतु स्पेस की आवश्यकता वयस्कता के अनुसार बढ़ती है अतः स्थल अंतराल का ध्यान आवश्यक है।
प्रजनन हेतु उचित प्रबंध भी आवश्यक हैं व गर्भवती मादाओं हेतु अलग स्थान का परबध करना ही सही है।
सुअरों हेतु सूखा स्थान  (pig -bed ) होना आवश्यक है व अधिक तापमान नहीं होना चाहिए। शीत भी अधिक नहीं होनी चाहिए अन्यथा वसा कम बनता है। दक्षिण उत्तराखंड की जलवायु सही है।

चूँकि सुअर जहां कहीं विष्ठा कर देते हैं और उनकी विष्ठा मनुष्य जैसी होती है व सुअर भी मुर्गियों जैसे भूमि को रौंदेळ देते हैं इसलिए आम किसान इन्हे पालना सही नहीं समझते हैं किंतु गाँव से बाहर जल स्रोत्र के निकट सुअर पालन एक सही व्यापार है।
सुअर पालन  में लाभ के अनंत  सम्भावनाये हैं व सदैव लाभदायी व्यापार है

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Re: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (
« Reply #313 on: September 30, 2018, 07:11:25 AM »



दुग्ध  उत्पादन हेतु शिल्पकारों व प्रवासियों की भागीदारी  आवश्यक


मेडिकल टूरिज्म हेतु दूध व दुग्ध पदार्थों की आवश्यकता

 

Need for Dairy  Farming for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 7

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -7 

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 173

Medical Tourism development  Strategies -173

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 27 6

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -277

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

 

कोई भी टूरिज्म हो , किसी भी युग का पर्यटन उद्यम रहा हो दूध व दूध से बने पदार्थों का टूरिज्म उद्यम में महत्व रहा है व रहेगा।

दूध व दूध से बने पदार्थ दही ,मक्खन ,  घी , खोया विभिन्न मिठाईयां पर्यटन उद्यम की एक अहम आवश्यकता होती हैं।

जहां  तक उत्तराखंड पर्यटन में दुग्ध हेतु पशु पालन का प्रश्न है ब्रिटिश शासन काल   तक स्थानीय कृषक किसी भी भांति  पर्यटकों की दूध मांग पूरी करते थे किन्तु स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड वासियों की मांग भी स्थानीय जनता पूरी नहीं कर पायी और गेंहूं , चावल , गुड़  चीनी , नमक , तेल की ही भांति दूध भी आयात होने लगा।  काला जाति  द्वारा पोषित 'पर्यटकों हेतु भैंस पालो ' संस्कृति भी नष्ट हो गयी और उत्तराखंड दूध उद्यम पनपा ही न सका।  अब तो गाँवों में किसान नाम ही नहीं तो पशु पालन एक समसयय बबन चुका है।

  समस्या कोई भी हो किन्तु यह एक सत्य है यदि उत्तराखंड में पर्यटन उद्यम सही प्रकार से विकसित करना है तो दूध उत्पादन हेतु पशु पालन में भी विकास आवश्यक है।

 यदि उत्तराखन में सही माने में मेडिकल टूरिज्म विकसित करना है तो सर्वपर्थम पहाड़ों में दूध  वृद्धि आवश्यक है।

  कोटद्वार , ऋषिकेश , जसपुर -काशीपुर में RA मुंबई व अमूल गुजरात की तर्ज पर बॉटलिंग प्लांट्स व वितरण केंद्र खोलकर पहाड़ों में बचे खुचे किसानों व प्रवासियों को सहकारी पशु पालन उद्यम में लगाकर ही  दुगडग उत्पादन की मांग स्थानीय स्तर पर पूरी की जा सकती है।

 जब तक 80 % आपूर्ति स्थानीय रूप से न हो तो वः उद्योग लाभकारी उद्योग नहीं रहा जाता है।  दूध की आपूर्ति भी स्थानीय स्तर पर आवश्यक है।

 पहाड़ों में दूध उत्पादन हेतु पशु पालन आंदोलन में दो सामाजिक वर्गों को शामिल किये बगैर दुग्ध उत्पादन का सपना सपना ही रहेगा।

   यह सर्व विदित है बल पहाड़ी गाँवों में या तो शिल्पकार या आय व शरीर अनुसार कमजोर सवर्ण ही रह चुके हैं (अध्यापकों व पटवारी  केवल राशन कार्ड व सरकारी स्कीम पाने हेतु नाम हेतु गाँवों में दिखाए जाते हैं अन्यथा  उनके परिवार शहरों में रहते हैं ) . अतः  शिल्पकारों को वृहद स्तर पर पशु पालन हेतु उत्साहित करना समय की मांग है।

 दूसरा वर्ग है प्रवासियों का जिनके पास जमीन की मिल्कियत है किन्तु वे निवास नहीं कर पाते।  अतः किसी भी प्रकार प्रवासियों को सहकारी  पशु पालन हेतु उन्हें भागीदार बनाये बगैर  पशु पालन एक सपना ही रहेगा।

 शिल्पकार वर्ग व प्रवासी वर्ग जब तक पशु पालन में नहीं जुड़ेंगे मेडिकल व अन्य पर्यटन समुचित रूप से विकसित नहीं हो पायेगा। 

    अतः समाज का कर्तव्य है बल प्रवासियों व पहाड़ों में रह रहे शिल्पकारों को पशु पालन में भागीदार बनाया जाय। 

 मोटर मार्ग पर सहकारी संस्थान अनुरूप डेयरी फ़ार्म खोले जा सकते हैं।

डेयरी फार्मिंग हेतु कुछ मूलभूत बातें -

१- पानी

२- हवादार आधुनिक गौशालएं / मॉडर्न डेयरी फ़ार्म

३- सामन्य व दुग्ध बढ़ाउ पौष्टिक  चारा

४- गोबर विपणन

५- वेस्ट ड्रेनेज  हेतु प्रबंध

६- ताकतवर पशु

७- चिकित्सा प्रबंध

८- श्रमिक /प्रबंधक

९ - यंत्र व औजार

१० निवेशक

११ - निकटम  मिल्क प्रोसेसिंग फैक्ट्री

प्रवासियों को समझना चाहिए बल भविष्य में आज की आमदनी से काम नहीं चलेगा और अन्य आमदनियों की आवश्यकता पड़ेगी , सहकारी पशुपालन , डेयरी फार्मिंग में निवेश कर भविष्य हेतु आमदनी निश्चित की जा सकती है।  शिल्पकारों के पास चारा हेतु जमीन व गौशाला हेतु धन व जमीन दोनों मुहैया करवाना होगा। 


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मेडिकल टूरिज्म हेतु अनाज , दलहन आपूर्ति की आवश्यकता

 

Need for Cereals , Pulses for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 8

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -8 

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 174

Medical Tourism development  Strategies -174

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 278

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -278

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

  प्रत्येक टूरिज्म विकास हेतु अनाज , दलहनों की अति आवश्यकता होती है।
 अच्छा हो कि स्थानीय स्तर पर अनाज व् दलहन की आपूर्ति हो।  ब्रिटिश काल से पहले उत्तराखंड उत्पादित  अनाज व  दलहन पर्यटन में प्रयोग होते थे किन्तु जनसंख्या वृद्धि के कारण ब्रिटिश काल में गेंहू , चावल , दालें आयात होने लगीं और स्वतंत्रता पश्चात आयत में कमी कतई  नहीं आयी।  उत्तराखंड निर्माण पश्चात तो स्थिति भयावह हो गयी।  भाभर, मैदानी  भूभाग जो अनाज , दलहन , भाजी उगाता था उस भूभाग में रिहायशी मकान निर्मित हो गए व कृषि हेतु भूमि अब मिलती ही नहीं है।  पूरा उत्तराखंड पर्यटकों ही नहीं अपितु स्वयं के उपभोग हेतु भी अनाज व दलहन आपूर्ति हेतु आयात पर निर्भर हो गया।
  यदि अनाज , दलहन स्थानीय स्तर पर आपूर्ति न हो तो उद्यम उतना लाभकारी नहीं होगा व इसके कई खामियाजा भुगतने पड़ते हैं।  जब स्थानीय पदार्थों की आपूर्ति न हो तो  पर्यटन में उतने लाभ न होने से स्थानीय जनता भागीदारी नहीं निभाती है।

   मेडिकल टूरिज्म हेतु सामन्य अनाज व दलहन आवश्यकता
गेंहू
धान
मकई
चना
उड़द
अरहर
मसूर
मूंग
राजमा
मटर
सिंगाड़ा

 मेडिकल टूरिज्म हेतु मोटे अनाज की आवश्यकता

डाक्टर अब स्वस्थ रहने हेतु मोटे अनाज उपभोग की सलाह दे रहे हैं।  अतः भविष्य में निम्न अनाजों की मांग वृद्धि अवश्यम्भावी है
ओगळ
रामदाना , चुहा , मारसु
कोदा , मंडुआ
झंगोरा , सवैया  कौणी
जौ
बाजरा
जुंडळ , ज्वार
मकई
सूंट
रयांस /रगड़वांस
विभिन्न राजमा
गहथ /कुल्थी
भट्ट /पहाड़ी पारंरिक जाति का सोया दाल - पहाड़ी पारम्परिक जाति की मांग अधिक संभावना है
पहाड़ी अरहर /तुवर
सिंगाड़े की भी मांग अधिक बढ़ेगी
 आदर्शात्मक दृष्टि से तो उपरोक्त मांगें पहाड़ों से ही पूरी हो सकती हैं किन्तु व्यवहारिक रूप से ग्रामीण जनसंख्याके पलायन से संभव नहीं दिखता है।
समाज को कोई तो विकल्प ढूंढना ही होगा।  कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग एक विकल्प है जिसके होते मोटे अनाज व दालों की आपूर्ति पहाड़ों से संभव हो सकता है

सम्पूर्ण क्षेत्र पर्यटन से लाभ तभी उठा सकता है जब 80 प्रतिशत स्थानीय आपूर्ति हो व 80 प्रतिशत मानव श्रम स्थानीय हो।  विचारकों व समाज को तुरंत विकल्प खोजकर योजनाओं को क्रियावनित करना होगा कि स्थानीय स्तर पर आपूर्ति संभव हो सके।  गोआ में स्थानीय आपूर्ति पूरी स्थानीय नहीं है किन्तु मंहगा मानव श्रम पूरा गोआ का ही है तो पर्यटन लाभकारी है।

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मेडिकल टूरिज्म हेतु साग भाजी  आपूर्ति आवश्यकता

 

Need for Vegetables  for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 9

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -9   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 175

Medical Tourism development  Strategies -175

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 279

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -27 9 

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

  मेडिकल टूरिज्म व अन्य टूरिज्म की आवश्यकताएं लगभग एक जैसी ही होती हैं।  मेडिकल हो या धार्मिक पर्यटक उन्हें रहने , परिवहन नोरंजन व भोजन की आवश्यकता एक सामान पड़ती है। भोजन में सब्जियों की आवश्यकता महत्वपूर्ण आवश्यकता है जो नास्ते से लेकर सांध्य भोजन में शामिल होती हैं।

भारत में निम्न सब्जियों को आम पर्यटक पसंद करते हाँ

गोभी

आलू

मत्र व अन्य फलियां

पत्ता गोभी

बैगन

ह्री सब्जिया - पालक , मेथी , मर्सू , सरसों आदि

गाँठ गोभी

टमाटर

प्याज

शिमला मिर्च

गाजर

चुकुन्दर

लौकी

परबल

टिंडा

मूली

चचिंडा , तुरई

कद्दू

करेला

मशरूम्स

शलजम

अरबी आदि

कई यूरोपीय , दक्षिण अमेरिकी व अफ्रीकी सब्जियां भी क्रेज बन रही हैं

कुछ सब्जियां डाक्टर मरीजों हेतु प्रिस्क्राइब करते हैं

उत्तराखंड में स्थानीय स्तर पर exotic सब्जी हेतु निम्न सब्जियां आवश्यक होती हैं

लिंगड़ , खुन्तड़

मूला

तैड़ू

अरबी के पत्ते

ओगळ

पहाड़ी राई

पहाड़ी पालक

स्क्वैश

टिंडॉरा

भोटिया क्षेत्र की विशेष सब्जियां विशेषकर ट्रैकिंग या विलेज टूर के टूरिस्टों हेतु

 स्थानीय स्तर पर सब्जी उगाना आवश्यक है . यदि स्थानीय स्तर पर सब्जियां आपूर्ति न हो तो टूरिज्म लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिलता है।




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मेडिकल टूरिज्म विकास  हेतु फल -फ्रूट्स आपूर्ति आवश्यकता

 

Need for Fruits   for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 10

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -10   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 176

Medical Tourism development  Strategies -176

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 280

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -280   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती


धार्मिक , साहसिक , मनोरंजन , व्यापारिक या मेडिकल टूरिज्म जैसे सभी उद्यमों में फलों की आवश्यकता पड़ती है।  स्थानीय समाज को पर्यटन से तभी सही माने में लाभ मिलता है जब उत्पादक व विक्रेता स्थानीय हों।  यह एक वास्तविकता है बल पहाड़ फल उत्पादन में तकरीबन फिस्सड्डी है और फल विक्रेता पहाड़ी समाज के नहीं के बराबर ही हैं।  ऐसे में समाज पर्यटन से कैसे जुड़ेगा प्रश्न अभी पहाड़ के सामने अड़ा खड़ा है।  मेडिकल टूरिज्म हेतु फल आपूर्ति आवश्यक है

   पहाड़ों में फल उगाये जाते हैं या नहीं किन्तु निम्न फलों की मांग बरोबर रहती ही है -

सीजन में आम

अमरुद

पपीता

केला

अंगूर

संतरा व नीम्बू प्रजाति के फल

सीजन में लीची

सेव

नासपाती

स्ट्राबेरी

अनन्नास

चीकू

प्लम्स

तरबूज

खरबूज

अनार

अखरोट

खुबानी

खजूर

न्यूजी लैंड, अफ़ग़ानिस्तान  व दक्षिण अमेरिका से आयातित फल

बहुत से वन फलों की भी मांग रहती है

डम्फू (पीली रसभरी )

काफल

हिसर

किनगोड़ा /किलमोड़ा

बेडु

इमली

छ्यूंती

तिमल

दाड़िम

आंवला

मकोई

घिंघारू

बेल

सस्काटून

करोंदा

जामुन

बेर

कई औषधि रूपेण वन फल

  पहाड़ों में फल उत्पादन की मुख्य समस्या

 पहाड़ों की भूमि का ८० प्रतिशत भूभाग का स्वामित्व प्रवासियों के पास है अतः उत्पादन समस्या है।  इसके अतिरिक्त बंदर बड़ी समस्या हैं। फल उत्पादन हेतु निम्न समाधान सही हैं -

 कॉन्ट्रैक्ट कृषि /बागवानी - प्रवासी भूमि ठेकदारी व लीज पर दें

सहकारिता आधारित - प्रत्येक गाँव सहकारी समिति बनाये व जमीन अनुसार निवेश व भागीदारी अनुसार बागवानी लगाई जाय व कृषि की जाय

 पहाड़ों के निकट प्रवासी स्वयं बागवानी करें

सरकार बंजर भूमि का राष्ट्रीय कारण कर दे और उन्हें बाँट दे जो बागवानी कर सकें

वन नीति में बदलाव हो और पंचायत वन बागवानी करे





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मेडिकल टूरिज्म विकास  हेतु फूल  आपूर्ति आवश्यकता

 

Need for Flowers Supply  for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 11

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -11   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 177

Medical Tourism development  Strategies -177 

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 281

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -281   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

 यह  आश्चर्य ही है बल सदियों नहीं हजारों साल से हरिद्वार - शिवपुरी - झैड़ - व्यासचट्टी - बद्रीनाथ सड़क व गोविषाण  (उधम  सिंह नगर )- जोशीमठ बद्रीनाथ सड़क से चार धाम यात्रा चलती आ रही है किन्तु ना तो नई यात्रा सड़क लाइन (टिहरी गढ़वाल ) ना ही प्राचीन यात्रा सड़क लाइन पर फ्लोरीकल्चर कृषि संस्कृति पनपी।  मंदिरों के खुलने व बंद होने ही नहीं अपितु पूजा में सैकड़ों टन फूल चढ़ते हैं किन्तु गढ़वाल में फूल उगाने की संस्कृति अभी भी सुप्तावस्था में ही है।

धार्मिक ही नहीं अपितु मेडकल टूरिज्म में भी फूल आपूर्ति एक आवश्यकता होती है।

अधिकतर पर्यटन उद्यम में निम्न फूलों की आवश्यकता पड़ती है -

गेंदा

गुलाब

कमल

चमेली

रजनीगन्धा

कनेर

गुडहल

एस्टर जैसे कम्पोजिट फेमिली के  फूल

सूरजमुखी

मोगरा

लिली परिवार के फूल

कई बन फूल जैसे बुगल बद्रीनाथ में चढाया जाता है , बेल पत्री, तुलसी पत्ती , दुर्वा  पत्तियों का अपना महत्व है

इनके अतिरिक्त अन्य देव विशेष फूल भी आवश्यक  होते हैं

गेंदे की मांग सबसे अधिक है

  पहाड़ों में फ्लोरीकल्चर की कल्चर पनपनी आवश्यक है।  फ्लोरीकल्चर हेतु प्रवासियों को सहकारी संस्था बनाकर फूल उगाने चाहिए



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मेडिकल टूरिज्म विकास  हेतु मसाले   आपूर्ति आवश्यकता

 

Requirements for Spices  Supply  for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 12

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -12   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 178

Medical Tourism development  Strategies -178

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 282

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -282   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

भारत मसालों का देश है अतः भारतीय भोजन में एक नहीं कई मसालों का उपयोग होता है।  मेडिकल टूरिज्म या अन्य टूरिज्म में  पर्यटकों हेतु  अतिरिक्त भोजन व्यवस्था आबश्यक है।  भोजन हेतु मसालों की मांग प्यूरी करना भी आवश्यक है।

निम्न मसालों की आपूर्ति सामन्य रूप से आवश्यक

जीरा , सरसों

धनिया बीज

जख्या

लाल मिर्च

 हरी मिर्च

प्याज

लहसुन

 भोटिया स्थल जंगली प्याज

अजवाइन

हींग

काली , सफेद मिर्च

लॉन्ग

सौंफ

दोनों इलायची

तेज पत्ता

अदरक

हल्दी

कच्ची हल्दी

दालचीनी

पोदीना

मेथी

मेथी कसूरी

कड़ी पत्ता

टतिल

मूंगफली

केसर

नमक

काला नमक

भोजन रंगने के खाद्य रंग

इसके अलावा चाय मसाला , पान मसाला आदि  कुछ विशेष मसालों की आवश्यकता होती है।

जावित्री

चिरौंजी

भांग बीज

अनारदारा

खसखस /अफीम बीज

चक्र फूल

इमली

निम्बू रस

नीम्बू सत /साइट्रिक ऐसिड

तुलसी पत्ते

करेर

लैमन ग्रास

आम चूर

खरबूज , ककड़ी बीज मिठाई आदि

भंगजीरा , मुंगण्या

पितकुट - सूखी बेथु /मेथी , डंठल  पत्ती

तिब्बत से लगे उत्तरी उत्तराखंड के विशेष मसाले

कुछ ऊर्जा दायक मसाले यथा जल जीरा

उपरोक्त सूची में से कुछ मसालों को आयात ही करना पड़ता है बाकी मसाले उत्तराखंड में उगाये जा सकते हैं।

उत्तराखंड की वस्तुस्थिति है बल मैदानी कृषि  भूमि अब रहवासी हेतु रिहायसी याने कंक्रीट जंगल भूमि में परिवर्तित हो चुकी है और पहाड़ों की कृषि भूमि जंगलों में परवर्तित हो चुकी है तो सामन्य मसाले भी आयातित होते हैं जो किसी  भी दृष्टि से लाभकार नहीं हैं

समाज व सरकार को विकल्प खोजने आवश्यक हैं बल  उत्तराखंड में ही मसालों का उत्पादन हो


औषध पादप जो विशेष मसालों के रूप में प्रयोग होते हैं उनकी भी आवश्यकता होती है


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मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु फ़ूड प्रोसेसिंग की आवश्यकता


       (कुटीर उद्यम के  फ़ूड प्रोसेसिंग )

 

Requirements for Food Processing  through Cottage Industry  for Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 13

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -13   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 179

Medical Tourism development  Strategies -179

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 283

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -283   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती


  मेडिकल टूरिज्म व अन्य टूरिज्म में कई खाद्य पदार्थ प्रंसकृत  या संसाधित भोज्य पदार्थ  होते हैं जैसे अचार , पापड़ , बड़ी , जाम या कई  औषधि।  कई फ़ूड प्रोसेस्ड फ़ूड हेतु भी  कच्चा माल भी प्रोसेस्ड फ़ूड रूप में उपयोग होता है जैसे कटे आम या बेर /केर , मशरूम नमक घोल में। दही , घी , मठ्ठा  भी प्रोसेस्ड फ़ूड ही हैं , शराब भी। हुक्के पर पीने का तम्बाकू यहां तक कि बीड़ी सिगरेट हेतु तम्बाकू पत्तियां भी किण्वित  की जाती है जो प्रोसेस्ड फ़ूड ही है।   सभी तरह के प्रोसेस्ड फ़ूड की टूरिज्म उद्यम हेतु महत्वपूर्ण होते हैं।

 मानव्  आदि काल से फ़ूड को सड़ने से बचाने व विपरीत जलवायु में उस भोज्य पदार्थ के उपभोग हेतु फ़ूड प्रोसेस करता आया है जैसे सुक्सा। 

 मेडिकल टूरिज्म में भोज्य पदार्थ व कई औषधियों हेतु फ़ूड प्रोसेस्ड स्थिति में खरीदे जाते हैं।

फ़ूड प्रोसेसिंग उद्यम अनुसार तीन प्रकार के होते हैं

१- घरेलू या कुटीर उद्यम के फ़ूड प्रोसेसिंग कार्य

२- मध्यम स्तर

३- वृहद स्तरीय फ़ूड प्रोसेसिंग

        घरेलू या कुटीर उद्यम स्तरीय फ़ूड प्रोसेसिंग

  कच्चे माल हेतु फ़ूड प्रोसेसिंग

बड़े फ़ूड प्रोसेसिंग इकाईयों हेतु कई बार खाद्य पदार्थ लघु स्तर पर प्रोसेस किये जाते हैं जैसे अचार हेतु आम या नीम्बू अन्य फलों या अन्य भागों को नमक घोल में मिलाना।  मशरूम , केर /बेर , प्याज , लहसून को भी नमक घोल में डालकर बड़ी फैक्ट्रियों को बेचा जाता है कई बार विशेष भोज्य व औषधि वनस्पति को काटकर नमक घोल , सिरका या शक्कर या गुड़ घोल में मिलाकर मिलाकर फैक्ट्रियों को बेचा जाता है। 

 सुक्सा भी इसी क्रम में आता है , बहुत सी औषधि हेतु औषधि  पादपों  के अंगों को सुक्सा रूप में प्रिजर्ब कर औषधि निर्माताओं को बेचा जाता है।

   उपभोग हेतु फ़ूड प्रोसेसिंग

कई तरह के भोज्य पदार्थ घरेलू या कुटीर उद्यम द्वारा उपभोग हेतु त्यार किये जाते हैं

कई तरह के दांतुन

  सुक्सा

कई  औषध पादपों के अंग सुखाकर सीधे औषधि रूप में  तैयार  किये जाते हैं जैसे  हरड़ , बयड़  के फलों को सुखाकर उपभोग हेतु तैयार किये जाते हैं

मूला का सुक्सा , केसर

, बिच्छू घास /कंडाळी , बासिंगू आदि के अंगों को सुखाकर सुक्सा रूप में बेचा जाता है

बेडु , तिमलू आदि को सुखाकर कच्चे माल या ुभोग हेतु बेचा जाता है

तम्बाकू के पत्तियों को बिन घाम  सुखाकर सीधा उपभोक्ताओं के उपभोग या कच्चे माल रूप में फैक्ट्रियों को बेचा जाता है

बांस या गेंहू के पुआल की टोकरियाँ बनाने हेतु तने को प्रोसेस ही करना पड़ता है। , विभिन्न स्योळु भी प्रोसेस्ड माल ही है

कसूरी मेथी , पितकुट (बेथू  के प्रत्येक अंग को सुखाकर नमक मसाले हेतु या मसाले हेतु उपयोगी बनाना ) भी प्रोसेस्ड फ़ूड ही है


    परिपूर्ण प्रोसेस्ड माल

बड़ियाँ , पापड़ , विशेष अचार , विशेष औषधि को प्रोसेस कर सीधा उपभोक्ताओं के उपभोग हेतु प्रोसेस किया जाता है।

च्यूड़ा  इसी क्रम का प्रोसेस्ड फ़ूड है

मेथी की रोटी या खाकरा रोटी भी प्रोसेस्ड फ़ूड ही है

तैड़ू का  आटा, ओगळ आटा , बसिंगू का आटा भी प्रोसेस फ़ूड ही है

अरसा हेतु सूखा आटा भी प्रोसेस्ड फ़ूड ही है

  उपरोक्त उदाहरण द्योत्तक हैं बल मेडिकल व अन्य टूरिस्ट उद्यम हेतु कई तरह के घरेलू या कुटीर उद्यम तहत फ़ूड प्रोसेसिंग की अपार संभावनाएं हैं


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Requirements for       Cottage Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Dehradun Garhwal, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Haridwar Garhwal, Uttarakhand,   Requirements for        Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Tehri Garhwal, Uttarakhand,   Requirements for    Spices Supply  for Medical Tourism Development in  Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Pauri Garhwal, Uttarakhand,   Requirements for        Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Chamoli  Garhwal, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Rudraprayag Garhwal,   Requirements for        Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Kumaun , Uttarakhand, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works )  for Medical Tourism Development in  Udham Singh Nagar Kumaun , Uttarakhand, Uttarakhand,   Requirements for        Cottage  Industry (Food Processing works )  for Medical Tourism Development in Nainital  Kumaun , Uttarakhand, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works )  for Medical Tourism Development in  Almora Kumaun , Uttarakhand, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in  Champawat Kumaun , Uttarakhand, Uttarakhand,   Requirements for       Cottage  Industry (Food Processing works ) for Medical Tourism Development in Pithoragarh  Kumaun , Uttarakhand, Uttarakhand



 

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