मनेला ग्लेशियर से बना हुआ आकर्षक और मनोहरी मैदान है, यहीं पर काली और कुटी नदियों का संगम होता है। यह अत्यन्त प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में माना जाता है। मैदान के किनारे पहाड़ की जड़ पर व्यास मुनी का मंदिर है। इस मंदिर के ऊपर एक महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है। व्यास घाटी व्यास मुनि के नाम से जानी जाती है। सम्पूर्ण शौका जनजाति महर्षि वेदव्यास को अपना पूर्वज मानती है। इस क्षेत्र में वेदव्यास की पूजा होती है।
मनेला में महर्षि व्यास जी के मंदिर के समक्ष रक्षावंधन के पुनीत पर्व पर दो दिन का मेला लगता है। मेला शुरु होने से पहले रात्रि - जागरण, कीर्तन, भजन, खेलकूद और लोकनृत्य गीतों का आयोजन शुरु हो जाता है। पूर्णमासी के दिन मुख्य मेला लगता है, दूर-दूर के लोग मेले में आते हैं, व्यास क्षेत्र का यह तो प्रमुख मेला है, जिसमें प्रत्येक व्यास भक्त उपस्थित होना अपना सौभाग्य समझता है।
यहाँ की एक विशेषता और है, व्यासमंदिर के १५० गज की दूरी पर पश्चिम-उत्तर की दिशा में एक छीटी सी गुफा है, जिसमें ९ साँप एक ही साथ रहते हैं। ये सफेद, काले और सफेद-काले मिश्रित रंग के हैं। ये धूप सेंकने के लिए एक साथ बाहर आते हैं, यहाँ के लोग इन्हें दूध पिलाकर शिव के गण के रुप में पूजते हैं। ये कभी किसी का नुकसान नहीं करते बल्कि मनौती करनेवाले लोगों को बाहर निकलकर आशीर्वाद देते हैं। यहाँ सामूहिक पूजा होती है। इस मेले में व्यासपट्टी के आकर्षण लोकनृत्यों का प्रदर्शन होता है, जिन नृत्यों तो देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।