Author Topic: Which Place is Where in Uttarakhand - उत्तराखंड में कौन से जगह किस जिले में है!  (Read 19335 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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रामबाड़ा रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड

रामबाड़ा, केदारनाथ मार्ग पर आखरी मुख्य पड़ाव है रामबाड़ा। रामबाड़ा एक तरह से मार्ग के बीचोंबीच स्थित ठहराव है। गौरीकुंड से देरी से प्रस्थान करने वाले रामबाड़ा में रात बिता सकते हैं जहां मध्यम दर्जे के आवास उपलब्ध हैं। रामबाड़ा से 3 किलोमीटर की चढ़ाई गरुड़क चट्टी की ओर मुड़ जाती है।

वहां से केदारनाथ केवल 4 किलोमीटर की दूरी पर है। रामबाड़ा से सिर्फ 1 किलोमीटर पहले एक सुंदर झरना आता है जहां अधिकांश यात्री उसकी सुंदरता को निहारने के लिए रुकते हैं।

   

 

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चिनयाली सौड़ टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

चिनियाली  सौड उत्तराखण्ड के किसी  छोटे शहर  की तरह  लगता है।  मेन मार्केट  (जो मेन  रोड भी  है) में  दुकान  और रेस्टूरेंट  (ढाबा कहना  ज्यादा  उपयुक्त  होगा) एक-दूसरे  से प्रतिस्पर्धा  करते हैं।  हालांकि, ढाबों में  संयोगवश  खाने-पीने  के तरह-तरह  के व्यंजन  मिलते  हैं - दक्षिण  भारतीय  से लेकर  चाइनीज  एवं उत्तर  भारतीय  तक।

 कुछेक  छोटे होटल  भी हैं, गढ़वाल  मंडल विकास  निगम का  गेस्ट  हाउस भी  है जहां  से आप  भगीरथी  का मनोरम  दृश्य  देख सकते  हैं। इस  शहर में  एक पेट्रोल  पम्प है  जो हरी-भरी  पहाड़ियों  के बीच  अवस्थित  है और  पेट्रोल  भरवाने  और रेस्ट  रूम विजिट  करने के  बाद तो  आप यहां  से जाना  पसंद नहीं  करेंगे।

चिनियाली  सौड को  जो तथ्य़  असाधारण  बनता है  वह निचले  हिमालयों  और भगीरथी  नदी का  शानदार  दृश्य  है (यहां  की सबसे  ऊंची चोटी  जगदेवी  है)।  हवाई-पट्टी  उत्प्रेरक  का काम  करेगी  जो इस  मंदिर  नगरी में  और इसके  चारों  ओर विकास  में तेजी  लाएगी।

 यहां होटलों  और गेस्ट  हाउसों  की भी  दरकार  है जिससे  आगंतुक  सभीपवर्ती  क्षेत्रों  में घूम  सकें और  चढ़ाई  कर सकें।  चूंकि, चिनियाली  सौड टिहरी  डैम जलाशय  के पिछले  सिरे पर  अवस्थित  है इसलिए, यहां वाटर  स्पोर्ट्स  की भी  सम्भावनाएं  हैं। कुछेक  वर्षों  के बाद  चिनियाली  सौड यमुनोत्री-गंगोत्री  मार्ग  का एक  महत्वपूर्ण  पर्यटन  स्थान  बन सकता  है।

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धरासू, टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

धरासू मोड़ पर भागीरथी के साथ-साथ निर्मित सड़क, जिसके दोनों तरफ चीड़, देवदार और रोडोडेन्ड्रोन्स  के पेड़ हैं, दो भागों में बंटती है। यहां खुरमोला भागीरथी से मिलती है और उत्तरकाशी (29 किलोमीटर दूर) और गंगोत्री (127 किलोमीटर दूर) की सड़क भागीरथी के साथ-साथ आगे बढ़ती जाती है। यमुनोत्री जाने वाली सड़क बाएं मुड़ कर खुरमोला घाटी की तरफ चली जाती है।

धरासू से हिमाच्छादित पर्वतों और इर्द-गिर्द स्थित गहरी घाटी का शानदार नजारा देखा जा सकता है। नई टिहरी के बाद उत्तरकाशी के पहले धरासू ही अच्छी-खासी जनसंख्या वाला शहर है।

शहर दो भागों में बंटा हुआ है। जैसे ही आप धरासू में प्रवेश करते हैं आपको कई होटल, एसटीडी बूथ और एक पुलिस स्टेशन देखने देखने को मिलेंगे। इसके आगे पुल इस एरिया को मेन मार्केट से जोड़ता है, जो धरासू का केन्द्र-स्थल है।

इस शहर का सब कुछ (जैसाकि उत्तराखण्ड के अधिकतर शहरों में है) मेन मार्केट से जुड़ा हुआ है। बैंक, दुकानें, विद्यालय, होटल, रेस्तरां, सब्जी विक्रेता सभी मेन मार्केट में अवस्थित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो प्रत्येक दुकान या बिल्डिंग अपने स्वयं के स्थान के लिए मुकाबला कर रहा हो।

धरासू से बड़कोट को जोड़ने वाली सड़क का निर्माण 1960 के दशक में किया गया था और स्पष्ट तौर पर गलती से ऐसा हो गया था। योजना तो धरासू और भटवारी को जोड़ने की बनी थी लेकिन, कागजी काम में गलती हो जाने की वजह से धरासू बड़कोट से जुड़ गया।

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भटवारी उत्तरकाशी उत्तराखंड

भटवारी  रूकने  का एक  महत्वपूर्ण  स्थान  हुआ करता  था क्योंकि  यह पुराने  दिनों  में गंगोत्री  से केदारनाथ  के तीर्थ-मार्ग  में पड़ता  था। इससे  चढ़ाई  और अश्वमार्गों  के अनेकों  रास्ते  निकले  हैं। यह  अधिक ऊँचाई  पर स्थित  घास के  एक सुन्दर  मैदान  दयारा  बुगयाल  के मुख्य  संपर्क  मार्ग  पर अवस्थित  है।

 इस  छोटे से  शांत शहर  के पुनः  ख्याति  पाने की  संभावना  है क्योंकि  इसके निकट  60 मेगावाट  की सिंगोली  - भटवारी  पनबिजली  परियोजना  की योजना  बनाई जा  रही है  और उत्तराखंड  सरकार  दयारा  बुगयाल  को एक  विश्वस्तरीय  स्की रिजार्ट  में बदलने  की योजना  रखती है।  भटवारी  को इन  दोनों  ही योजनाओं  का फायदा  मिलेगा।

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हर्षिल उत्तरकाशी उत्तराखंड

हर्षिल  को वर्णित  करने के  लिए केवल  एक शब्द  पर्याप्त  हैं : शानदार! यह बापसा  घाटी (हिमाचल  प्रदेश) के मुकुट  रूपी एक  विशाल  पर्वत  की छांव  तले जलंधरी  गाढ़ और  भागीरथी  के संगम  पर भागीरथी  नदी के  किनारे  एक घाटी  में अवस्थित  है। हर्षिल  लामखागा  दर्रे  जैसे कई  दर्रों  के जरिए  बासपा  घाटी से  जुड़ा  हुआ है।  मैत्री  और कैलाश  पर्वतों  के अलावा  दाएं तरफ  श्रीकांत  चोटी है

 जिसके  जिसके  पीछे केदारनाथ  स्थित  है और  इसके आगे  बंदरपूंछ  है। यह  वन्च इलाका  अपनी प्राकृतिक  सुन्दरता  और स्वादिष्ट  सेवों  के लिए  विख्यात  है। घुमावदार  छायादार  सड़कें, लम्बे  शंकुवृक्ष, उत्तुंग  पर्वत, अशांत  भागीरथी, सेव के  बगीचे, नदिंयां, जल-प्रपात  तथा घास  के हरे-भरे  मैदान  सभी हर्षिल  की शोभा  में चार  चांद लगाते  हैं।

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धाराली, उत्तरकाशी उत्तराखंड

धाराली  एक छोटा-सा, नयनाभिराम  गांव है  जिसे हर्षिल  का उपनगर  कहा जा  सकता है।  इसका राजमा  और सेव  पूरे क्षेत्र  में प्रसिद्ध  है। इसमें  विल्सन  नामक किस्म  भी शामिल  है जिसे  स्पष्ट  है कि  राजा  विल्सन  के नाम  पर रखा  गया है।  इसके निकट  भागीरथी  बहती है

  और यह  गांव चीड़  के पेड़ों  से घिरा  हुआ है।  यहां से  हिमाच्छादित  चोटियों  का विस्मयकारी  दृश्य  देखा जा  सकता है।  यह व्यस्त  गंगोत्री-उत्तरकाशी  मार्ग  पर अवस्थित  है लेकिन  अक्षुण्ण  प्रशान्ति  का इसका  परिवेश  बरकरार  है।

धाराली भारत-तिब्बत सीमा के इस तरफ का अंतिम गांव है और तिब्बत का बहुत तगड़ा प्रभाव है; यहां पर निलांग के अर्ध खानाबदोश जाढ़ों का स्थायी निवास है।

धाराली में और इसके चारों ओर अनेकों कैम्पिंग साइट हैं जो सेव के बगीचों और चीड़ वनों के बीच स्थापित किए गए हैं। इन सभी से आप पहाड़ों का शानदार नजारा देख सकते हैं।

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पीपलकोटि,चमोली  उत्तराखंड

पीपलकोटि हरिद्वार से बद्रीनाथ के मार्ग पर एक पड़ाव है जहां कई धर्माशालाएं हैं। 1952-53 में इस कस्बे तक सड़क का निर्माण हो जाने के बाद यह कस्बा और अधिक महत्वपूर्ण बन गया, और अपने से आगे स्थित कस्बों तक आपूर्तियॉं पहुंचाने का केंद्रीय स्थान बन गया। उसके सात साल बाद इस सड़क को जोशीमठ तक बढ़ाया गया, तब तक पीपलकोटि यात्रियों एवं व्यापारियों को सेवा प्रदान करने वाली एक व्यस्त जगह थी।

अलकनंदा के बांये तट पर स्थित इस कस्बे ने अभी तक अपनी परंपराओं का कायम रखा है। यहॉं अनेकों होटल, गेस्ट हाउस और भुगतानशुदा अतिथि निवास उपलब्ध हैं।

 जोशीमठ के लिए शीघ्र प्रस्थान नहीं कर पाने वाले या ब्रदीनाथ से काफी देर से प्रस्थान करने वाले यात्रियों के लिए यह एक अच्छा पड़ाव है – भोजन और आवास दोनों उपलब्ध हैं; और कोई भी यहां स्थित हिमालयन बैम्बू सोवनेयर शॉप से रिंगाल बेंत हस्तशिल्प का एक नमूना अपने साथ ले जाना चाहेगा।

पीपलकोटि के आसपास का इलाका, विशेषकर 11 किलोमीटर दूर तंगानी, रिंगाल फर्नीचर एवं हस्तशिल्प की अपनी दस्तकारी के लिए सुप्रसिद्ध है।

 इस इलाके का रुदिया समुदाय परंपरागत रूप से बांस की वस्तुएं बना रहा है और वे इसके लिए बांस की एक स्थानीय प्रजाति रिंगाल का बांस इस्तेमाल करते हैं।

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घंघरिया,चमोली  उत्तराखंड



घंघरिया, देवदार के घने जंगलों के बीच बसा घंघरिया   (या गोविंद धाम) हेमकुंड साहब यात्रा के लिए मुख्य पड़ाव माना जाता है। घाटी में इसके बाद कोई आबादी नहीं है। यहां भवन के नाम पर पर्यटक विश्राम गृह और गुरूद्वारा मात्र है। कुछ अस्थायी झोपड़ियां भी हैं जहां यदा कदा खानाबदोश गड़ेरियों का डेरा होता है या फिर तीर्थ के मौसम में दुकानदारों का बसेरा होता है।

गोविंद घाट से घंघरिया तक की चढ़ाई अपेक्षाकृत आसान है। रास्ते में हरे-भरे वन और कई चारागाह हैं। जंगल की सतह पर हरियाली और विशाल चट्टान काईदार होते हैं। रास्ते में दो खास गांव हैं - गोविंद घाट से 3 किलोमीटर बाहर पुल्स और भ्यूंदयार जो घंघरिया से ठीक 5 किलोमीटर पहले।

घंघरिया स्थित गुरूद्वारा मौसम में तीर्थयात्रियों के लिए वरदान साबित होता है। वहां सुबह से देर शाम तक लंगर होता है। सभी तीर्थयात्रियों को मोटी चटाई और कंबल दिए जाते हैं। तीर्थयात्रियों के लिए कई छोटे-छोटे शयन कक्ष थे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फूलो की घाटी (IN CHOMOLI DISTT)
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प्राकृतिक प्रेमियों के लिए यह जगह स्वर्ग के समान है। इस स्थान की खोज फ्रेंक स्मिथ और आर.एल. होल्डवर्थ ने 1930 में की थी। इस घाटी में सबसे अधिक संख्या में जंगली फूलों की किस्में देखी जा सकती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा के लिए यहां से संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे। इस घाटी में पौधों की 521 किस्में हैं। 1982 में इस जगह को राष्ट्रीय उद्यान के रूप मे घोषित कर दिया गया था। इसके अलावा यहां आपको कई जानवर जैसे, काला भालू, हिरण, भूरा भालू, तेंदुए, चीता आदि देखने को मिल जाएंगें।

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कण्वाश्रम कोटद्वार उत्तराखंड

गढ़वाल जनपद में कोटद्वार से १४ किमी दूर शिवालिक पर्वत श्रेणी के पाद प्रदेश में हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ कण्वाश्रम ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दिर्ष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है!

पुन्य सलिला मालिन के तट पर स्तिथ यह आश्रम चक्रवर्ती सम्राट भरत (जिनके नाम पर भारतवर्ष का नाम रखा गया है ) की शैशव किर्डास्थली  दुष्यंत शकुन्तला की प्रणय स्थली,मह्रिषी कण्व,गोतम और विश्वामित्र की तपोभूमि तथा कविकुल शिरोमणि महकवि कालिदास के महाकाब्य "अभिज्ञान शाकुंतलम"  का प्रेरणा स्रोत है !

पुरातत्वा वेताओं के अनुसार इस क्षेत्र में मालिनी -सभ्यता के प्रतीक स्वरूप १५०० साल पूर्व भाबी मंदिर एवं आश्रम थे !महाकवि कालिदास इसे किसलय प्रदेश के रूप में ब्यक्त करते हैं अभिज्ञान शाकुनतम में कण्वाश्रम का परिचय इस प्रकार है "एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम " धार्मिक तथा तिर्थ्तन की दिर्ष्टि से कण्वाश्रम की गौरभशाली पौराणिक गाथा तथा मालिन का गंगा सदिर्स्य महत्व रहा है !

 

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