Author Topic: Which Place is Where in Uttarakhand - उत्तराखंड में कौन से जगह किस जिले में है!  (Read 19331 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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                    भद्रकाली -Bageswar,janpad
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बागेश्वर जनपद में,गढ़वाल के कालीमठ के समान ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान भद्रकाली,एक प्रशिध शक्तिपीठ है,यहाँ शक्ति के तीनों स्वरूप महाकाली,महालक्ष्मी ,महासरस्वती की मूर्तियाँ स्थापित हैं !मंदिरों के नीचे लगभग ३० मीटर लंबी गुफा है! बागेश्वर से भद्रकाली की दूरी ३३ किमीहै

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               चौकोड़ी-(Pithauragarh Janpad )
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चौकोड़ी का रमणीक और सुन्दर दृश्यावली युक्त प्राचीन भौटीया -ब्यापार केंद्र २०१० मीटर की ऊंचाई पर तथा बागेश्वर से ४३ किमी की दूरी पर जनपद पिथौरागढ़ के हिर्द्यस्थल में स्थित है ! संभवत चारों दिशाओं में जाने वाले मार्गों के कारण इसका नाम चौकोड़ी पड़ा!

यहाँ से पंचाचूली शिखर तथा सूर्यास्त के मनोहारी दृश्य दिखाई देते हैं ! स्थानीय निवासी यहाँ चाय की खेती भी करते हैं !चीड,बांज,बुरांस के वनों के अतिरिक्त यहाँ फलों के भी उद्यान हैं !



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                      शीतलाखेत-Almoda Janpad
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पुष्प उद्यानों और औषधीय पादपों की पौधशालाओं के लिए प्रशिध यह स्थान अल्मोड़ा जनपद में है, अल्मोड़ा से ३० किमी की दूरी पर सिन्धुतल से १७६० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ! यहाँ से नंदा देवी,नंदाकोट,चौखम्बा,कामेट,त्रिशूल,हाथीपर्वत आदि हिमान्छादित शिखरों के मनोरम दृश्य दिखाई देते है !

यहाँ स्काउटिंग  के राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरीय शिविर लगते हैं !यहाँ से मात्र दो किमी दूर भारत रतन पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त का पैत्रिक गाँव खूँट स्थित है !शीतलाखेत से ४ किमी पर स्याहीदेवी का प्राचीन मंदिर है !

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                      डाकपत्थर -Dehradun Janpad
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समुद्रतल से ७९० मीटर की ऊंचाई पर शिवालिक पर्वत श्रेणियों के पाद प्रदेश में यमुना नदी के तट पर स्थित डाकपत्थर,गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा पर्यटन की दृष्टि से मनोरंजन हेतु विकसित किया गया रमणीक स्थक है !

यहाँ पर पर्यटकों के लिए एक टुरिष्ट कोम्प्लेक्ष  बनाया गया है, यहाँ पर एनी सुविधाओं के साथ-साथ तरणताल में तैराकी का प्रशिक्षण दिया जाता है !डाकपत्थर से ११ किमी पर आसन जल क्रीडा केंद्र है

!यहाँ पर वाटर स्कीइंग,सेलिंग,बोटिंग, क्याकिंग,कैनोइंग तथा होवर क्राफ्ट राइड की सुविधाएँ हैं,यहीं ८ किमी की दूरी पर कालसी नामक ऐतिहासिक स्थान हैं !तथा १६ किमी पर हिमाचल प्रदेश की सीमा में सिक्खों का पवित्र तीर्थ पौंटा साहब है !

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                         खिरसू- Paudi Garhwal
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बर्फ से ढ़के पर्वतों पर स्थित खिरसू बहुत ही खूबसूरत स्‍थान है। यह जगह हिमालय के मध्‍य स्थित है। इसी कारण यह जगह पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है।

 इसके अलावा यहां से कई अन्‍य जाने-अनजाने शिखर दिखाई पड़ते हैं। खिरसू पौढ़ी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह समुद्र से 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

खिरसू बहुत ही शान्तिपूर्ण स्‍थल है। यहां बहुत अधिक संख्‍या में ओक, देवदार के वृक्ष और फलोघान है।

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रॉबर्स केव (गुच्छुपानी) DEHRADUN



पिकनिक के लिए एक आदर्श स्थान रॉबर्स केव सिटी बस स्टेंड से केवल 8 कि.मी. दूर है। हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर लच्छीवाला-डोईवाला से 3 कि.मी. और देहरादून से 22 कि.मी. दूर है। सुंदर दृश्यावली वाला यह स्थान पिकनिक-स्पॉट है। यहां हरे-भरे स्थान पर फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में पर्यटकों के लिए ठहरने की व्यवस्था है।

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 मटेला ALMODA
मटेला का सुखद वातावरण सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ के बाग अत्यन्त सुन्दर हैं। 'पिकनिक' के लिए कई पर्यटक यहाँ अपने-अपने दलों के साथ आते हैं। नगर से १० कि.मी. की दूरी पर एक प्रयोगात्मक फार्म भी है।

Rajen

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बाड़ेछीना

अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर अल्मोड़ा-पिथोरागढ़ मोटर मार्ग पर एक स्थान है बाड़ेछीना.  यह स्थान समुद्रतल से 4800 फ़ीट की ऊंचाई पर पनार और सुयाल नदी के पास स्थित है.  पहाड़ों और बनों से घिरा हुवा यह स्थान अत्यंत रमणीक है और राहगीरों का प्रिय बिश्राम स्थल भी.  प्रसिद्ध तीर्थ स्थल जागेश्वर यहाँ से सात किलोमीटर दूर है जहाँ पर स्वामी शंकराचार्य द्वारा स्थापित महा म्रतुन्जय दंडकेश्वर, शक्तेश्वर महादेव और भगवान् जगन्नाथ के मंदिर हैं.  यहीं पर बृद्ध जागेश्वर और प्रसिद्ध  झान्कर्सेम  देवताओं के मंदिर हैं. बाड़ेछीना से उत्तर दिशा में प्रसिद्ध चितई मंदिर है.

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त्रिऋषि सरोवर,नैनीताल उत्तराखंड

नैनीताल' के सम्बन्ध में एक और पौराणिक कथा प्रचलित है। 'स्कन्द पुराण' के मानस खण्ड में एक समय अत्रि, पुस्त्य और पुलह नाम के ॠषि गर्गाचल की ओर जा रहे थे। मार्ग में उन्हे#े#ं यह स्थान मिला।

 इस स्थान की रमणीयता मे वे मुग्ध हो गये परन्तु पानी के अभाव से उनका वहाँ टिकना (रुकना) और करना कठीन हो गया। परन्तु तीनों ॠथियों ने अपने - अपने त्रिशुलों से मानसरोवर का स्मरण कर धरती को खोदा। उनके इस प्रयास से तीन स्थानों पर जल धरती से फूट पड़ और यहाँ पर 'ताल' का निर्माण हो गया। इसिलिए कुछ विद्वान इस ताल को 'त्रिॠषि सरोवर' के नाम से पुकारा जाना श्रेयस्कर समझते हैं।

कुछ लोगों का मानना हे कि इन तीन ॠषियों ने तीन स्थानों पर अलग - अलग तोलों का निर्माण किया था। नैनीताल, खुरपाताल और चाफी का मालवा ताल ही वे तीन ताल थे जिन्हे 'त्रिॠषि सरोवर' होने का गौरव प्राप्त है।

नैनीताल के ताल की कहानी चाहे जो भी हो, इस अंचल के लोग सदैव यहाँ नैना (नन्दा) देवी की पूजा - अर्चना के लिए आते रहते थे। कुमाऊँ की ऐतिहासिक घटनाएँ ऐसा रुप लेती रहीं कि सैकड़ों क्या हजारों वर्षों तक इस ताल की जानकारी बाहर के लोगों को न हो सकी। इसी बीच यह क्षेत्र घने जंगल के रुप में बढ़ता रहा।

 किसी का भी ध्यान ताल की सुन्दरता पर न जाकर राजनीतिक गतिविधियों से उलढा रहा। यह अंचल छोटे छोटे थोकदारों के अधीन होता रहा। नैनीताल के इस इलाके में भी थोकदार थे, जिनकी इस इलाके में काफी जमीनें और गाँव थे।

सन् १७९० से १८१५ तक का समय गढ़वाल और कुमाऊँ के लिए अत्यन्त कष्टकारी रहा है। इस समय इस अंचल में गोरखाओं का शासन था। गोरखों ने गढ़वाली तथा कुमाऊँनी लोगों पर काफी अत्याचार किए। उसी समय ब्रिटिश साम्राज्य निरन्तर बढ़ रहा था।

 सन् १८१५ में ब्रिटिश सेना ने बरेली और पीलीभीत की ओर से गोरखा सेना पर आक्रमण किया। गोरखा सेना पराजित हुई। ब्रिटिश शासन सन् १८१५ ई. के बाद इस अंचल में स्थापित हो गया। २७ अप्रैल, १८१५ के अल्मोड़ा (लालमण्डी किले) पर ब्रिटिश झण्डा फहराया गया। अंग्रेज पर्वत - प्रेमी थे।

 पहाड़ों की ठण्डी जलवायु उनके लिए स्वास्थयवर्धक थी। इसलिए उन्होंने गढ़वाल - कुमाऊँ पर्वतीय अँचलों में सुन्दर - सुन्दर नगर बसाने शुरु किये। अल्मोड़ा, रानीखेत, मसूरी और लैन्सडाउन आदि नगर अंग्रेजों की ही इच्छा पर बनाए हुए नगर हैं।

सन् १८१५ ई. के बाद अंग्रेजों ने पहाड़ों पर अपना कब्जा करना शुरु कर दिया था। थोकदारों की सहायता से ही वे अपना साम्राज्य पहाड़ों पर सुदृढ़ कर रहे थे। नैनीताल इलाके के थोकदार सन् १८३९ ई. में ठाकुर नूरसिंह (नरसिंह) थे। इनकी जमींदारी इस सारे इलाके में फैली हुई थी। अल्मोड़ा उस समय अंग्रेजों की प्रिय सैरगाह थी। फिर भी अंग्रेज नये - नये स्थानों की खोज में इधर - उधर घूम रहे थे।

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भोजबासा RUDRPRYAAG


गंगोत्री से 14 किमी दूर है भोजबासा। प्रचूर मात्रा में भोजपत्र के पेड़ होने के कारण यह नाम दिया गया है। यह जठ गंगा और भगीरथी के संगम पर है और गौमुख के रास्ते में प्रमुख पड़ाव है।

 मूलतः लालबाबा द्वारा निर्मित आश्रम में लंगर की सुंदर व्यवस्था है। साथ ही जीएमवीएन का एक अतिथि गृह है जहां विश्राम की पर्याप्त सुविधा है। रास्ते में आप पौराणिक फूल ब्रह्मकमल देखने को लालायित रहेंगे और संयोग रहा तो ब्रह्मा का यह आसन दिखाई पड़ सकता है।

 

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