यहाँ पर जिन्दा है मानवता
प्रस्तुतकर्ता नीरज जाट जी
उत्तराखंड में पौडी गढ़वाल जिले में सुदूर अल्मोडा की सीमा के पास बीरोंखाल विकास खंड में एक गाँव है- पचराड। यह इलाका किसी पर्यटन सर्कल के आस पास भी नहीं है। सर्दियों में पूरी तरह से बर्फ का साम्राज्य रहता है। यहाँ के लोग पैसा नहीं जोड़ते, बल्कि केवल गुजारा करते हैं। आज से करीब दस साल पहले एक आदमी अपने पूरे परिवार को सदा के लिए छोड़कर चला गया। परिवार में चार साल की नेहा, दो साल की निशी व उनकी मां थी।
उस समय मां गर्भवती थी। लड़का पैदा हुआ, नाम रखा गया-धीरज। बच्चे छोटे छोटे थे। मां ने उन्हें पाला। खर्च भी कम था। जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे, खर्च भी बढ़ता गया। एक समय ऐसा आया, जब मां भी अपने जिगर के टुकडों को ऊपर वाले के भरोसे छोड़कर उसी के पास चली गई।
बच्चे अपने ताऊ के भरोसे रहने लगे। एक दिन ताऊ ने भी हाथ खड़े कर दिए। अब बच्चे क्या करें? किसके भरोसे रहें? कहाँ जाएँ? क्या खाएं?
क्या इन बच्चों का भविष्य बरबाद हो जाएगा? इसका उत्तर है--नहीं।
पूरे गाँव ने बच्चों को गोद ले लिया। प्रत्येक परिवार बारी- बारी से बच्चों को दो वक्त का खाना देगा। पढाई की जिम्मेवारी स्कूल के प्रधानाचार्य धीरेन्द्र सिंह रावत ने ली है। उनकी पढाई की फीस, किताबों का सब खर्चा वे ही उठाते हैं । आज नेहा कक्षा नौ में, निशी कक्षा आठ में और धीरज कक्षा छः में है।
वास्तव में इस पूरे घटनाक्रम में ताऊ की भूमिका मात्र एक दर्शक की है। ताऊ का भी अपना परिवार है। उसे उन्हें भी पालना है, आमदनी कम है। इसलिए पूरे गाँव की ही यह जिम्मेवारी बन गई है। इसी को कहते हैं मानवता। इसी के कारण मानव अन्य प्राणियों में सर्वश्रेठ है। इन लोगों ने ना तो किसी जनप्रतिनिधि से गुहार लगायी, न ही कभी इन बच्चों को पराया समझा। अगर ये घटना किसी शहर में होती, तो बच्चे या तो किसी अनाथालय में मिलते या फ़िर कहीं "छोटू" के रूप में। किसी को ख़बर भी न होती कि हमारे आस पास किसी गरीब के बच्चे अनाथ हो गए हैं।
सौजन्यhttp://neerajjaatji.blogspot.com/2008/11/blog-post_18.html