ये किसके पापो का घड़ा अब,
उत्तराखंड पर फूटा है,
चोर, उचक्के, बदमाश यहाँ,
जिन्होंने लाखों को लूटा है,
मरते अबोध मासूम ओ बच्चे,
जिन्होंने अभी अभी चलना सीखा है,
क्या किस्मत लेकर आये माँ बाप,
क्या बच्चों के भाग्य मैं लिखा है,
ये बारिश का कहर बन क्यों,
प्रभु हमसे रूठा है,
उत्तराखंड की पावन धरती पर,
क्यों कहर बन कर टूटा है,
कही टूटकर गिरे पर्वत,
कही नदिया है जोरो पर,
दुखियों की किसी को खबर नहीं,
नेता लगे पैसे के जोरो पर,
अब इस दुःख की घडी में भी ये,
अपनी जेबों को गरम करें,
जिनको जरुरत है इनकी अब,
उनके लिए तो कुछ शर्म करें.
फिर बना "लेह", "लाह झेकला"
ये इन पापियों के पाप का साया है,
इस पावन उत्तराखंड को हर पल,
इन दुष्टों ने ऐसे ही सताया है.........
अब संभल जाओ भाइयों,
इनको जड़ से साफ करो,
मरना तो सबको है एक दिन,
क्यों न उत्तराखंड के लिए मरो.
प्रभु दे शांति उन पीड़ितों को,
जिन्होंने इस दुःख को उठाया है,
किसी ने खोया घर बार यहाँ,
किसी ने बच्चों को गवाया है,
रचना दीपक पनेरू,
दिनांक 19 - अगस्त - 2010