झंगोरा
पहाड़ की महत्वपूर्ण फसल झंगोरे को बढ़ावा देने के लिए रानीचौरी परिसर के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग ला रही है। वैज्ञानिकों ने झंगोरे की उन्नत प्रजाति पीआरजी-1 विकसित की है। झंगोरे की इस प्रजाति को पारम्परिक प्रजातियों से ज्यादा फसल देने के साथ ही संक्रमण रहित प्रजाति माना जा रहा है। जिस तरह से इसके नजीते जा रहे हैं उससे लगता है किए पुन: पहाड़ की खेती झंगोरा की फसल से लहलहाएगी।
उल्लेखनीय है कि झंगोरा पहाड़ की पारम्परिक फसल रही है। पहले यहां खेतों में इसकी फसल खूब लहलहाती थी, लेकिन धीरे-धीरे बीमारी व कम उत्पादन की वजह से काश्तकारों में इसका रुझान घटता गया और आज स्थिति यह है कि पहाड़ में कम ही लोग इस फसल हो उगा रहे हैं। रुझान कम होने का एक कारण इसे मोटे अनाज में गिना जाता है।
गुणों की बात की जाए, तो कई विटामिनों की मौजूदगी के कारण झंगोरा बेहद पौष्टिक समझा जाता है। गोविन्द वल्लभ पंत पर्वतीय परिसर रानीचौरी के वैज्ञानिकों ने झंगोरे की उन्नतशील प्रजाति पीआरजी-1 को विभिन्न जनपदों में प्रयोग के तौर पर बोया।
इसके नतीजों से वैज्ञानिक खासे उत्साहित हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रजाति के बेहतर नतीजे आए हैं। पारपंरिक प्रजातियों से ज्यादा उपज और रोगों में कमी के चलते इस प्रजाति से काफी फायदा मिल सकता है। नतीजों से पहाड़ के काश्तकारों का इस प्रजाति के रुझान भी बढ़ रहा है। कम मेहनत में अधिक उपज व रोग रहित यह फसल किसानों के लिए लाभकारी साबित होगी।
इस फसल को प्रोत्साहन मिला तो एक बार फिर पहाड़ की खेती झंगोरा की खेती से लहलहाएगी। काश्तकार दर्शनलाल कोठारी का कहना है कि इस नई विकसित प्रजाति से चारा व दानों में बढ़त हो रही है। इस प्रजाति के दानों में स्वाद भी अच्छा है और पारंपरिक प्रजातियों के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक भी है।
कृषि वैज्ञानिक वीके यादव ने बताया कि झंगोरा मोटे अनाज समूह में मंडुवे के बाद सबसे महत्वूर्ण फसल है। अब तक जो परंपरागत प्रजातियां थी, उनमें बीमारी की अधिक समस्या थी, साथ ही पैदावार भी कम थी।
इसे देखते हुए इस प्रजाति को विकसित किया गया है। इस प्रजाति में कोई बीमारी नहीं लगती, साथ ही पैदावार तीन से चार गुना ज्यादा है। श्री यादव ने बताया कि पौडी, टिहरी व चमोली से जो आंकड़े मिले हैं वे उत्साहजनक हैं और अब इसे अन्य क्षेत्रों में भी प्रसारित किया जाएगा।