बड़े काम के होते हैं उत्तराखंड के जंगलों में पैदा होने वाले जंगली फल
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पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाले जंगली फल कई बीमारियों में रामबाण की भूमिका निभाते हैं , लेकिन जानकारी के अभाव में इनकी स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी बिना परख के हीरे और पत्थर की एक जैसी होती है। वहीं सरकारी अमले की ओर से इनके संरक्षण के लिए ठोस प्रयास न किए जाने से अब यह विलुप्ति की कगार पर पहुंचने लगे हैं। कैंसर, श्वास व त्वचा संबंधी कई बीमारियों के लिए रामबाण होने के बावजूद भी इन फलों को पहचान न मिल पाना सोचनीय विषय है।
मध्य हिमालयी वन क्षेत्र में पाए जाने वाले बेल, किनगोर, काफल, हिंसुल, सेमल सहित कई अन्य ऐसे जंगली फल हैं, जिनमें कई मर्ज के राज छुपे हुए हैं। गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण विकास एवं शोध संस्थान द्वारा इस पहाड़ी क्षेत्र में किए गए शोध में स्पष्ट है कि लगभग चार सौ से अधिक वन औषधियां पाई जाती हैं, लेकिन इनके सापेक्ष बीस फीसदी ही उपयोग में लाई जाती हैं।
जंगली फलों में किनगोर, बेल, घिंगारू, काफल, हिंसुल, तिमला, सेमल, लिंगड़ा, खैणा व दय्या मुख्य रूप से हैं। पहले तो जंगलों में यह फल आसानी से मिल जाते थे, लेकिन अब यह भी विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए हैं। इन फलों से कैंसर, पाचन, पेट की बीमारी, त्वचा, श्वास, पेचिश, पीलिया सहित कई बीमारियों का इलाजसंभव हैं। पहले गांवों में रहने वाले लोग अक्सर इन्हीं औषधियों से बीमारियों का इलाज करते थे, लेकिन अब आधुनिकता के दौर में एलोपैथिक दवाइयों की मांग बढ़ती जा रही है। सरकारी स्तर से भी वन औषधियों के संरक्षण के लिए कोई ठोस प्रयास अभी तक भी देखने को नहीं मिल रहे हैं।
शोध संस्थान के प्रभारी वैज्ञानिक डा. आरके मैखुरी का मानना है कि सरकारी स्तर से वनौषधियों के विकास के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं हुए हैं। उन्होंने बताया कि चार सौ से अधिक औषधियों में से बीस से पच्चीस फीसदी औषधियों ही अब आंशिक रूप से उपयोग में लाई जाती हैं। संस्थान द्वारा केदारघाटी के त्रियुगीनारायण में वनौषधियों से दवाइयां तैयार करने का व्यापक स्तर पर कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। अब तक सैकड़ों लोगों को औषधियों की महत्ता व उत्पादन के प्रति जागरूक किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि सरकारी स्तर से मात्र घोषणाएं होती है, लेकिन धरातल पर अभी तक कार्य नहीं हुआ है।
इन बीमारियों में कारगर हैं जंगली फल
फल बीमारियां
काफल श्वास, बुखार व पेचिस
बेल पाचन, कैंसर व हृदयरोग
किनगोर पेट, त्वचा संबंधी बीमारियां
सेमल कटने पर उपचार
लिंगड़ा पीलिया
दैय्या जलने में कारगर
source dainik jagran