विदेशी फूलों से महका कुमाऊं
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हल्द्वानी,जासं: देशी लिली को हालैंड ने टिश्यू कल्चर तकनीक से फूल की बड़ी व टिकाऊ प्रजाति 'लिलियम' बनाते समय यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस प्रयोग को वह आगे नहीं बढ़ा पाया, उसे भारत के किसान कर दिखाएंगे। उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां हालैंड के लिलियम की आठ प्रजातियों से एक दर्जन रंगों के फूल खिलाने में कामयाबी मिल गई है। ऐसा टिश्यू कल्चर तकनीक से कंद (वाल्व)की नई और उन्नतशील प्रजाति के निर्माण से संभव हो पाया है। इसे भारतीय उद्यान बोर्ड ने भी सराहा है। बोर्ड अब उत्तराखंड में तैयार नई प्रजाति के लिलियम के वाल्व की खरीद करने की पेशकश कर रहा है। अभी तक लिलियम के वाल्व विदेशों से आयात किए जाते रहे हैं, लेकिन उससे बेहतर गुणवत्ता के वाल्व अब उत्तराखंड के किसान बनाने लगे हैं।
कुमाऊं में फूलों की व्यावसायिक खेती की दिशा में अरसे से प्रयास कर रहे इंडोडच के विशेषज्ञों ने हालैंड के लिलियम ओरियंटल और एशियाटिक की आठ प्रजातियों से दर्जन भर रंग के फूलों की वैरायटी तैयार कर ली है। प्रगतिशील किसान एवं इंडोडच के निदेशक सुधीर चड्ढा कहते हैं कि इस प्रयोग में उन्हें पांच वर्ष का समय लगा। लिलियम के छोटे-छोटे वाल्व से लगातार प्रयोग के बाद बड़े वाल्व बनाने में कामयाबी मिल गई है। इस नई प्रजाति में रंगों की विविधता इसे खास बनाती है। चाफी (पदमपुरी) तथा चकलुआ स्थित फार्म में लिलियम की आठ प्रजातियों से दर्जन भर रंग के फूल खिलाने में कामयाबी मिली है। सफेद, पीला, पिंक, लाल, बैगनी, लाइट पिंक और ओरेंज कलर में ही कुछ गाढ़े और कुछ हलके रंगों के फूल खिल रहे हैं जो पुष्प प्रेमियों के लिए कौतूहल हैं तो खेती के इच्छुक किसानों की आर्थिकी संवारने में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। फार्म में वर्तमान में ढाई लाख वाल्व तैयार कर लिए गए हैं। अब एक करोड़ वाल्व प्रतिवर्ष बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
Dainik jagran