Author Topic: Flora Of Uttarakhand - उत्तराखंड के फल, फूल एव वनस्पति  (Read 308071 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Baanjh ka ped ka seed..  this is called lukumar in local language.

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विदेशी फूलों से महका कुमाऊं
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हल्द्वानी,जासं: देशी लिली को हालैंड ने टिश्यू कल्चर तकनीक से फूल की बड़ी व टिकाऊ प्रजाति 'लिलियम' बनाते समय यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस प्रयोग को वह आगे नहीं बढ़ा पाया, उसे भारत के किसान कर दिखाएंगे। उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां हालैंड के लिलियम की आठ प्रजातियों से एक दर्जन रंगों के फूल खिलाने में कामयाबी मिल गई है। ऐसा टिश्यू कल्चर तकनीक से कंद (वाल्व)की नई और उन्नतशील प्रजाति के निर्माण से संभव हो पाया है। इसे भारतीय उद्यान बोर्ड ने भी सराहा है। बोर्ड अब उत्तराखंड में तैयार नई प्रजाति के लिलियम के वाल्व की खरीद करने की पेशकश कर रहा है। अभी तक लिलियम के वाल्व विदेशों से आयात किए जाते रहे हैं, लेकिन उससे बेहतर गुणवत्ता के वाल्व अब उत्तराखंड के किसान बनाने लगे हैं।

कुमाऊं में फूलों की व्यावसायिक खेती की दिशा में अरसे से प्रयास कर रहे इंडोडच के विशेषज्ञों ने हालैंड के लिलियम ओरियंटल और एशियाटिक की आठ प्रजातियों से दर्जन भर रंग के फूलों की वैरायटी तैयार कर ली है। प्रगतिशील किसान एवं इंडोडच के निदेशक सुधीर चड्ढा कहते हैं कि इस प्रयोग में उन्हें पांच वर्ष का समय लगा। लिलियम के छोटे-छोटे वाल्व से लगातार प्रयोग के बाद बड़े वाल्व बनाने में कामयाबी मिल गई है। इस नई प्रजाति में रंगों की विविधता इसे खास बनाती है। चाफी (पदमपुरी) तथा चकलुआ स्थित फार्म में लिलियम की आठ प्रजातियों से दर्जन भर रंग के फूल खिलाने में कामयाबी मिली है। सफेद, पीला, पिंक, लाल, बैगनी, लाइट पिंक और ओरेंज कलर में ही कुछ गाढ़े और कुछ हलके रंगों के फूल खिल रहे हैं जो पुष्प प्रेमियों के लिए कौतूहल हैं तो खेती के इच्छुक किसानों की आर्थिकी संवारने में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। फार्म में वर्तमान में ढाई लाख वाल्व तैयार कर लिए गए हैं। अब एक करोड़ वाल्व प्रतिवर्ष बनाने का लक्ष्य रखा गया है।


Dainik jagran

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सेमल एक फायदे अनेक
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प्रकृति में मनुष्य के उपयोग की अनेकों चीजें हैं इनका उपयोग वह सदियों से करता आ रहा है। सेमल भी उन पेड़-पौधों मे से एक है, लेकिन इसके लाभ अनेक है। जंगलों व गांवों के आस-पास कुदरती रूप से उगने वाले सेमल लोगों की आय का जरिया भी बनने लगा है।

सेमल पांच सौ मीटर की ऊंचाई से लेकर पन्द्रह सौ मीटर की ऊंचाई तक होता है। इसका पेड़ काफी बड़ा होता है। अप्रैल माह में इस पर फूल निकलते है। इनका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। फूल निकलने के बाद जो इस पर जो फल लगता है वह केले के आकार का होता है इसका उपयोग कच्चा व सूखाकर सब्जी के रूप में किया जाता है।


इसके फूलों की बाजार में भारी मांग है। फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं उन बीजों से रूई निकलती है जो मुलायम व सफेद होती है। इस रू ई का प्रयोग कई कामों में किया जाता है। खास बात यह है कि सेमल का उपयोग लोग पहले तो करते थे लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं किया जाता था।

सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। इसके फूल बाजार में 15 से 20 रूपये किलों तक बिक जाते है। इसके अलावा फल भी 10 से 15 रुपये किलों बिकते है। बीज तो 50 से 70 रुपये किलों तक बिकते है।


नागणी के काश्तकार रतन सिंह और कोटी के दिनेश लाल तो सेमल से एक सीजन में तीस से चालीस हजार रूपया तक कमा लेते है। उनका कहना है कि सेमल केवल सब्जी तक सीमित नही है उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण इसकी बड़े बाजारों में भारी मांग है।
सेमल को लेकर उद्यान निरीक्षक डीएस नेगी का कहना है कि वह बहुत उपयोगी है,जिस पर लोगों केा कोई मेहनत नही करनी पड़ती और मुनाफा भी शुद्ध है।
   

Source Dainik Jagran

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