उत्तराखण्ड में बाँस की 7 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें 3 प्रजातियाँ बडे बाँस की एवं 4 प्रजातियाँ छोटे बाँस की हैं। लाठी बाँस (डेन्ड्रोकेलामस स्ट्रीक्टस- (Dendrocalamus trictus) शुष्क पर्णपाती वनों में पाई जाने वाली आम प्रजाति है। लैन्सडाउन, कालागढ एवं रामनगर वन क्षेत्रों में यह 1000 मी. की ऊँचाई तक लगभग 70,000 है. क्षेत्र में मिश्रित रूप में फैला है। चाय बाँस (बैम्बूसा न्यूटांस - Bambusa nutan) एवं काको/मगर बाँस (डेन्ड्रोकेलामस हैमिलटोनाई/सोमदेवाई - Dendrocalmus hamiltonii/omdevai) आमतौर पर घरों एवं गाँवों के आसपास उगाया जाता है। इनकी संख्या सीमित है। छोटे बाँस को स्थानीय भाशा में रिंगाल कहा जाता है। गढ अथवा गोल रिंगाल (अरूंडिनेरिया फालकाटा - Arundinaria falcata थम रिंगाल (थेम्नोकेलामस स्पेदिफलोरा - Themnocalmus spathiflorus ), देव रिंगाल (हिमालयाकेलामस फालकोनेराई - Himalayacalamus falconeri एवं जमूरा रिंगाल (सिनारूंडिनेरिया जौनसारेन्सिस - Sinarundinaria jaunsarensis) उत्तराखण्ड के वनों में पाई जाने वाली छोटे बाँस (रिंगाल) की प्रजातियाँ हैं। यह लगभग 60,000 है. वन क्षेत्रों में 4000 मी0 की ऊँचाई तक फैली हैं।
भारत में पाए जाने वाले मुख्य वर्गों में अरूंडिनेरिया (Arundinaria), बैम्बूसा (Bambusa), सिफेलोस्टेकियम (Cephalostachyum) चिमनोबंबूसा (Chimnobambusa), डेन्ड्रोकेलामस (Dendrocalamus), डाइनोक्लोआ (Dynochloa), जाइजांटोक्लोआ (Gigantichloa), न्डोकेलामस (Indocalamus), ओक्लेन्डरा (Ochlandra) ड्रिपेनास्टेकियम (Drepanostachium), फाइलोस्टैकिस (Phyllostachys), प्लायोब्लेटस (Plyoblatus), सिडोजिटीनेनथेरा (Psedogitinenthera),जाइगोस्टेकियम (Schystachium),और थेमनोकेलामस (Thamnocalamus) मेलोकेलामस (Melocalamus), मेलोकेनी (Melocannae), नियोहाउजिया (Neohauzeaua), औक्सीटिनेन्थेरा (Oxytenanthera), सीडोस्टेकियम (Pseudostachyum), साइजोस्टेकियम (Schizostachyum), सेमीअरूंडिनेरिया (Semiaundinaria), सिनोबेम्बूसा (Sinobambusa ), टीनोस्टेकियम (Teinostachium) षामिल हैं। स्यूडोसासा (Pseudosasa) एवं थायरोस्टेकिस (Thyrostachys) बाहर से लाई गई प्रजातियाँ हैं जो अधिकतर उगाई जाती हैं।