कतरन से पहले होती है भेड़ों क ी पूजा
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यूं तो रवांई क्षेत्र में वर्ष भर मेलों व त्योहारों की धूम धाम रहती है, लेकिन सरबडियाड़ क्षेत्र के आठ गांवों में मार्च व सितंबर माह में भेड़ों के ऊन कतरन के समय 'ऊन लवाण मेला' लगता है। मेले में क्षेत्र में पशुधन की समृद्धि के लिये पशुपालक अपने वन और ईष्ट देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही भेड़ों से ऊन उतराने से पहले उनकी पूजा होती है।
चार दिन तक चलने वाला मेला सोमवार को संपन्न हो गया। मेले में ऊन कतरन के समय स्थानीय गीत गाने की आज भी परम्परा कायम है। इस वर्ष भी सितम्बर से रवांई के सरबडियाड़ क्षेत्र के सर, लेवटाडी, कसलंाव, डिगाडी, किमडार, पोंटी, छानिका व गोल गांवों में परम्परा के अनुसार मेले में पूजा अर्चना के बाद तीन हजार भेड़ों की ऊन काटने का कार्य शुरू हुआ। गांव के शीशपाल सिंह, मेघनाथ सिंह, उमराव सिंह, जयवीर सिंह व यशवीर सिंह बताते हैं कि इसी महीने काठों व बुग्यालों से भेड़ बकरियों को गांव में लाया जाता है।
ऊन के अच्छे उत्पादन को परंपरा अनुसार पक वान तैयार किये जाते हैं। ढोल नगाड़े व रणसिंघे बजाकर वन व गांव के ईष्ट देवताओं की पूजा की जाती है, जिसके बाद ऊन काटी जाती है। इस वर्ष भी पशुपालन विभाग की टीम ने भेड़ पालकों को ऊन काटने में मदद की।
साथ ही भेड़ों को टीकाकरण, भेड़ों का बीमा व निशुल्क दवाएं वितरित भी की। पशु चिकित्सक डॉ. एसके तिवारी व पशुधन प्रसार अधिकारी चंद्रमोहन ने बताया कि इसी महीने कंडियाल गांव में खादी ग्रामोद्योग की ओर से ऊन खरीद मेला भी लगाया जायेगा।
Source Dainik jagran