Author Topic: Kumaun Regiment & Garhwal Rifle - कुमाऊँ रेजिमेंट एवं गढ़वाल राइफल  (Read 102223 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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4 कुमाऊं ने बचाया था बडगाम हवाई अड्डे को 

तीन नवंबर 1947 को देर रात कश्मीर की एक ब्रिगेड के हेडक्वार्टर में 4 कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा का वायरलेस संदेश पहुंचा। दुश्मन हमसे केवल 50 गज दूर है, हम संख्या में बहुत कम हैं और भारी गोलाबारी में फंसे हैं। मैं एक इंच पीछे नहीं हटूंगा और अंतिम आदमी, अंतिम गोली तक लड़ता रहूंगा। इसके कुछ ही पलों बाद सूचना मिली कि मेजर सोमनाथ अब वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं।
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को कांगड़ा के हिमाचल प्रदेश स्थित दाध गांव में मेजर जनरल एएन शर्मा के घर में हुआ था। 22 फरवरी 1942 को उन्होंने सेना में कमीशन प्राप्त किया। नवंबर 1947 में कश्मीर पर कबाइली हमले के दौरान वह 4 कुमाऊं रेजीमेंट की कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे। हमले के कारण श्रीनगर और बडगाम हवाई अड्डे के लिए खतरा बना हुआ था। तीन नवंबर की रात 11 बजे सोमनाथ शर्मा को दक्षिणी बडगाम का मोर्चा सौंपा गया। 700 दुश्मनों ने उनकी कंपनी पर मोर्टारों और छोटी मशीनगनों से हमला बोल दिया। जिसमें उनके जवान शहीद होने लगे किंतु श्रीनगर ऐरोड्रम और बडगाम की सुरक्षा के लिए वह दुश्मन को उलझाए रखना चाहते थे। मेजर सोमनाथ खुले मैदान में भारी गोलाबारी के बीच जवानों का हौसला बढ़ाते रहे और जवाबी हमले करते रहे। उन्होंने खुले मैदान में कपड़े की पट्टी हवा में लहराते हुए अपने बमवर्षक एअरक्राफ्ट को संकेत देने के प्रयास किए। कई जवान शहीद हो जाने तथा हाथ में प्लास्टर लगा होने के बावजूद वह मैगजीनों में गोलियां भरकर जवानों को देते रहे।
किंतु इसी बीच एक मोर्टार बम का गोला उनके पास रखे विस्फोटकों में गिरा और भयंकर विस्फोट के साथ वह चिर निंद्रा में विलीन हो गए, किंतु उनके साथियों ने लगातार दुश्मन का मुकाबला करके उसे रोके रखा। इस बीच अतिरिक्त फौज मोर्चा संभालने के लिए पहुंच गई।
सोमनाथ तथा उनके साथियों की बहादुरी तथा बलिदान के बलबूते बडगाम हवाई अड्डा बच गया। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत भारत का सबसे पहला परमवीर चक्र प्रदान किया गया। उनके नाम से रानीखेत में रेजीमेंट का सबसे प्रमुख मैदान हैं।

साभार : अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया

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शहीद मेजर शैतान सिंह


नवंबर 1962 में चीन युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर शैतान सिंह ने 17 हजार फीट ऊंचे चुसूल सेक्टर के रेजांग्ला में भारी बर्फवारी के बीच दुश्मनों का बहादुरी के साथ मुकाबला किया। शैतान सिंह का शरीर गोलियों से छलनी होता रहा। किंतु आखिरी सांस तक उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा और वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र दिया गया।

एक दिसंबर 1924 को जोधपुर राजस्थान के बंसार गांव में ले. कर्नल हेम सिंह के घर में पैदा हुए मेजर शैतान सिंह ने एक अगस्त 1949 को कमीशन प्राप्त किया और कुमाऊं रेजीमेंट में नियुक्ति प्राप्त की। 1962 में चीन ने उत्तरी सीमाओं पर तीव्र आक्रमण कर दिया। मेजर शैतान सिंह इन्फैंट्री बटालियन की एक कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे और 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रेजांग्ला में तैनात थे। 18 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने भारी मोर्टार तोपों और छोटे हथियारों से इस कंपनी पर अप्रत्याशित ढंग से गोलाबारी शुरू कर दी। कुमाऊं रेजीमेंट की कंपनी में 120 लोग तैनात थे, जबकि दुश्मनों की संख्या काफी अधिक थी। इसके बावजूद भारतीय सेना ने कई दुश्मनों को मार गिराया। जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर निर्भीक होकर दौड़ते रहे और स्वयं गोलाबारी करते हुए साथियों को हौसला देते रहे। इसी बीच उनके कंधे और पेट में गोलियां लग गई। लगातार खून बहता रहा। वह अंतिम समय तक लड़ते रहे। शरीर ढीला पड़ जाने पर जवानों ने उन्हें मोर्चे से हटाने का प्रयास किया, किंतु भारी मशीनगनों की गोलाबारी के बीच फंसे मेजर शैतान सिंह ने सैनिकों को वहां से हटकर अपनी जान बचाने का आदेश दिया। रेजांग्ला में उस वक्त भारी बर्फवारी हो रही थी। विपरीत परिस्थितियों में अप्रतिम बहादुरी का परिचय देने के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र दिया गया। इस युद्ध में कुमाऊं रेजीमेंट के 116 जवान शहीद हुए थे।


साभार :अमर उजाला रानीखेत

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पूर्व सैनिकों का दशहरा एवं पुर्नमिलन समारोह
बिग्रेडियर एसएस पटवाल ने कहा कि पूर्व सैनिकों के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही है जिसका लाभ वह पूरी तरह से उठाएं। यदि किसी के सामने कोई परेशानी आती है तो वह सीधे विभाग में संपर्क कर सकते हैं।

 
रविवार को गढ़वाल राइफल्स भूतपूर्व सैनिक संगठन की ओर से दशहरा एवं पुर्नमिलन समारोह बीईजी के नरेंद्र सकलानी गेस्ट हाउस लालकुर्ती में किया गया। समारोह का शुभारंभ सनराइज स्कूल के बच्चों ने मां दुर्गा की स्तुति से किया। पूर्व हवलदार कुंवर चौधरी ने गढ़वाली गीत प्रस्तुत किया।

इसके बाद पार्वती देवी एंड पार्टी ने गढ़वाली नाटक प्रस्तुत किया और गढ़वाली नृत्य प्रस्तुत किए। सूबेदार मेजर मनमोहन कोटनाला ने गीत एवं दीपा खत्री एंड पार्टी ने चौफला नृत्य एवं गीत प्रस्तुत किए।


समारोह के समापन पर सभी भूतपूर्व सैनिकों ने बेडूपाको बारामासा में सामूहिक नृत्य कर पुर्नमिलन समारोह का भरपूर आनंद किया। इस मौके पर पूर्व कैप्टन विजय सिंह रावत, भगवान सिंह रावत, बीएस पुंडीर, जगमोहन सिंह रावत, गंभीर सिंह बिष्ट, जसपाल सिंह बिष्ट, दिनेश सिंह गुसाई, बीपी हेमदानी, गमाल सिंह राणा, बीएस पंवार, एसपी सेमवाल, रणजीत सिंह नेगी, गजे सिंह, जगमोहन सिंह, श्याम सिंह, विजय सिंह आदि उपस्थित रहे।




Source Dainik jagran

विनोद सिंह गढ़िया

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केआरसी को मिले हैं चार अशोक चक्र

देश की सीमाओं के अंदर उग्रवादियों और आतंकवादियों का सफाया करने के लिए कुमाऊं रेजीमेंट के चार बहादुरों ने सर्वोच्च बलिदान दिया। अमृतसर के आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मेजर भूकांत मिश्रा और नायक निर्भय सिंह ने, आपरेशन रक्षक के दौरान जम्मू-काश्मीर के जबूराह में सूबेदार सज्जन सिंह ने तथा कारगिल के आपरेशन विजय में नायक रामवीर सिंह तोमर शहीद हुए थे।
अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर के अकाल तख्त को उग्रवादियों से खाली कराने के लिए छह जून 1984 को 15 कुमाऊं रेजीमेंट की कंपनी को भेजा गया। यह कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण था। अकाल तख्त में छिपे उग्रवादी लगातार गोलाबारी कर रहे थे। जान की परवाह किए बगैर जहां मेजर भूकांत मिश्रा ने तख्त तक पहुंचने में सफलता पाई, वहीं उनकी कंपनी के बहादुर नायक नायक निर्भय सिंह साए की तरह उनके पीछे लगे रहे। दोनों इस आपरेशन में शहीद हो गए। मेजर भूकांत मिश्रा का जन्म नावबास्ता आगरा में नायक निर्भय सिंह का जन्म राजस्थान के झालवाड़ में हुआ था। दोनों को मरणोपरांत अशोक चक्र मिला। 13 कुमाऊं के सूबेदार सज्जन सिंह 26 सितंबर 1994 को जम्मू काश्मीर के जबूराह में आतंकियों को खोजने के लिए निकले एक दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे। सुबह के लगभग नौ बजे वहां मुठभेड़ हुई जिसमें सेना के कई लोग शहीद हो गए।
सूबेदार सज्जन सिंह आतंकवादियों की गोलियों से बुरी तरह घायल हो गए, किंतु फिर भी रेंगकर आगे बढ़ते हुए जवाबी फायर करते रहे। अंतत: एक बुलेट उनके हेलमेट को पार कर गई और वह वीरगति को प्राप्त हुए। इस मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन का एक कमांडर और पांच अन्य लोग मारे गए।
उन्हें भी मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान किया गया। दूसरी तरफ कुमाऊं रेजीमेंट के ही नायक रामवीर सिंह तोमर ने कारगिल के युद्ध में शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। उन्हें भी मरणोपरांत अशोक चक्र मिला। केआरसी मुख्यालय में इन बहादुर शहीदों की स्मृतियों को विभिन्न भवनों और प्रवेश द्वारों के जरिए संजोया गया है।


अमर उजाला ब्यूरो

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उत्तराखंड में रानीखेत के नजदीक शुक्रवार 21 अक्टूबर को भारत-फ्रांस सैनिकों के संयुक्त युद्धाभ्यास शक्ति-11 के दौरान ग्रुप फोटोग्राफी के पोज देते दोनों देश के सैनिक।
 

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सरहदों की हिफाजत को दौड़े युवा
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कुमाऊं रेजीमेंट के सोमनाथ मैदान में यूनिट हेडक्वार्टर कोटे की भर्ती रैली के लिए शनिवार को दौड़ व नापजोख सम्पन्न हुई। विभिन्न प्रांतों के लगभग डेढ़ हजार युवा भर्ती में पहुंचे। जिसमें सर्वाधिक अभ्यर्थी उत्तराखंड के थे।

पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार सेना के सोमनाथ ग्राउंड में शनिवार की सुबह से कोटा भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई। विभिन्न राज्यों से भर्ती में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे सैन्य परिवारों के युवा सुबह 6 बजे से पहले ही सोमनाथ ग्राउंड के पास जुट गए। करीब आधा दर्जन राज्यों से लगभग डेढ़ हजार युवा पहुंचे थे। भर्ती रैली जीएओ-1 ले. कर्नल सुनील कटारिया व कर्नल डीएन कोटनेक की देखरेख में चली।

 भर्ती अधिकारी जीएसओ-1 लेफ्टिनेंट कर्नल सुनील कटारिया से मिली जानकारी के अनुसार इस कोटा भर्ती में उत्तराखंड के करीब 800 तथा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली से लगभग 600 युवाओं ने दौड़ में भाग लिया। इनके अलावा करीब डेढ़ सौ से 200 युवा अधूरे कागजातों के कारण दौड़ में भाग नहीं ले पाए। दौड़ में करीब ढाई सौ युवा सफल रहे।

जिनकी देर शाम तक नापजोख का काम जारी है। उन्होंने बताया कि भर्ती में पूरी तरह से पारदर्शिता बरती जा रही है। भर्ती प्रक्रिया को सम्पन्न कराने में सूबेदार मेजर दीवान सिंह सहित अन्य सैन्य अधिकारी व जवान जुटे रहे।

Source dainik jagran

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गढ़वाल राइफल्स लैंसडौन की गौरव सेनानी रैली में बोले सीएम
श्रीनगर। सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों की सभी समस्याओं का समाधान सरकार की प्राथमिकता में है। उत्तराखंड और केंद्र में तत्कालीन भाजपा सरकार के कार्यकाल में सेनानियों को विशेष सम्मान दिया गया है। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने यह बात यहां गढ़वाल राइफल्स लैंसडौन की पहल पर आयोजित गौरव सेनानी रैली के दौरान बतौर मुख्य अतिथि कही।


गढ़वाल विवि के चौरास परिसर स्थित स्वामी मन्मथन प्रेक्षागृह में आयोजित कार्यक्रम में सीएम ने पूर्व सेनानियों का आह्वान किया कि वे जनहित के अपने कार्याें से समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनें। सैन्य बहुल प्रदेश होने के नाते भविष्य की पीढ़ी के लिए एक बेहतर राज्य की नींव डालने में पूर्व सैनिक अहम योगदान दे सकते हैं। ।


गढ़वाल राइफल्स लैंसडौन के ब्रिगेडियर शरत चंद ने कहा पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों का हालचाल जानने और समस्याओं का मौके पर निस्तारण के लिए इस रैली आयोजित की गई है। सीएम से उन्होंने लैंसडौन के वॉर मेमोरियल छात्रावास को देहरादून शिफ्ट करने तथा पौड़ी में सीएसडी कैंटीन के लिए भूमि और बजट स्वीकृत करने की मांग की। विधायक बृजमोहन कोटवाल ने भी विचार रखे।

 कार्यक्रम में सीएम ने पूर्व सैनिकों के आश्रितों को अनुदान राशि के चेक भी वितरित किए। मौके पर सैनिक कल्याण बोर्ड के निदेशक एएन बहुगुणा, मेजर जनरल आरएच वर्धन, एयर वाइस मार्शल रि. गगनोगा, समेत बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक मौजूद थे। रैली के दौरान लगाए गए मेडिकल कैंप का पूर्व सैनिकों एवं उनके आश्रितों ने खूब लाभ उठाया।
रेल लाइन का शिलान्यास पीएम या रेल मंत्री करें

‘सैनिकों की भर्ती रैली खंडूरी के प्रयास से’श्रीनगर। कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में सीएम खंडूरी ने कहा कि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के  रेलवे लाइन का शिलान्यास करना तर्कसंगत नहीं है। सरकार के जिम्मेदारी व्यक्ति को यह काम करना चाहिए।  प्रधानमंत्री या रेल मंत्री यदि इसका शिलान्यास करें तभी इसकी सार्थकता है। 1996 में भी ऋषिकेश में कर्णप्रयाग रेल लाइन को लेकर यही सब हुआ था। तब से अभी तक पहाड़ में रेल नहीं चढ़ पाई है।

रैली में ब्रिगेडियर शरत चंद ने श्रीनगर में आगामी दो से छह नवंबर को होने वाली गढ़वाल राइफल्स की भर्ती रैली के आयोजन का श्रेय मुख्यमंत्री खंडूरी को दिया। कहा कि मुख्यमंत्री के प्रयास पर ही भर्ती रैली का आयोजन हो रहा है। सीएम खंडूरी के प्रयास करने पर ही भर्ती रैली के आयोजन की स्वीकृति मिल पाई।





Source Amarujala
 

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नये रूप में कुमाऊं रेजीमेंट का संग्रहालय
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  जागरण कार्यालय, रानीखेत: कुमाऊं रेजीमेंट के संग्रहालय के जीर्णोद्धार का काम पूरा हो गया है। इसे अब नये रूप में लगभग तीन साल के अंतराल बाद फिर जनता के लिए खोला गया है। संग्रहालय में पांच अनुभाग बनाए गए हैं।
रानीखेत में स्थित कुमाऊं रेजीमेंट का संग्रहालय दशकों पुराना है, जिसमें संग्रहीत सैन्य कार्यवाही से संबंधित दुर्लभ सामग्री व उपलब्धियां बताती चीजें रेजीमेंट के गौरवमयी इतिहास व गौरव गाथाओं को बखूबी समझा रही हैं। दर्शकों के लिए संग्रहालय प्रेरणादायी है। इस संग्रहालय का आधुनिक रूप से जीर्णोद्धार करने का काम वर्ष 2008 में शुरू किया गया। इस कारण आम जनता के लिए बंद किया गया था।

 जीर्णोद्धार का काम पूर्ण हो जाने के बाद करीब 3 साल बाद इसे जनता के दर्शनार्थ खोल दिया गया है। इसे नये तरीके से सुसज्जित किया गया है और 6 अनुभागों में बांटा गया है। पहले अनुभाग में पहले विश्वयुद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक के इतिहास से जुड़े साजो-सामान व उपलब्धि से जुड़ी सामग्री रखी गई है। दूसरे भाग में कुमाऊं रेजीमेंट के बटालियनों के गठन तथा उनके इतिहास से जुड़ी सामग्री, तीसरे भाग में कुमाऊं रेजीमेंट से थल सेनाध्यक्ष पद तक पहुंचे जनरल श्री नगेश, जनरल केएस थिमैया व जनरल टीएन रैना से संबंधित सामग्री सजाई गई है।

इसी प्रकार चौथे भाग में खेलकूद व पर्वतारोहण से संबंधित चीजें रखी गई हैं। इसी प्रकार सैन्य गतिविधियों से जुड़ी फोटो, प्रमाण पत्र और अन्य प्रेरणादायी चीजें पांचवें व छठे नये भाग में सुसज्जित की गई हैं। सेना की ओर से इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाने का प्रयास चल रहा है


Source dainik jagran

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युवाओं ने दिखाया सेना की भर्ती में दमखम
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भर्ती कार्यालय लैंसडाउन की ओर से श्रीनगर के एसएसबी मैदान में चल रही गढ़वाल राइफल्स की खुली भर्ती में चौथे दिन रुद्रप्रयाग जनपद के 6400 युवाओं ने प्रतिभाग किया। इसमें से 1012 अभ्यर्थी शारीरिक दक्षता में सफल रहे।

शनिवार को भर्ती के चौथे दिन रुद्रप्रयाग जनपद के युवाओं के लिए सोलजर जीडी, सोलजर टेक्निकल व सोलजर क्लर्क की भर्ती आयोजित की गई। उक्त तीन ट्रेडों के लिए जनपद के 6400 अभ्यर्थियों ने दौड़ लगाई। विभिन्न शारीरिक नाप-जोखों, प्री मेडिकल व दस्तावेज जांच के उपरांत 1012 अभ्यर्थियों को भर्ती के लिए सही पाया गया। इन अभ्यर्थियों को मुख्य मेडिकल व दस्तावेज सत्यापन के उपरांत 27 जनवरी को लैंसडाउन में आयोजित होने वाली लिखित परीक्षा में सम्मिलित किया। भर्ती निदेशक कर्नल भूपेंद्र ने बताया कि शनिवार को तीन ट्रेडों में रुद्रप्रयाग के 6400 युवाओं में से 1012 युवाओं को शारीरिक दक्षता में सही पाया गया। उन्होंने बताया कि अभी तक पौड़ी जनपद के 1200 और चमोली जनपद के करीब नौ सौ अभ्यर्थी शारीरिक दक्षता में सही पाये गये हैं। रविवार व सोमवार को भी अभ्यर्थियों का प्री-मेडिकल किया जायेगा और दस्तावेज जांचे जायेंगे।


Jagran

विनोद सिंह गढ़िया

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1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। युद्ध की घोषणा हालांकि भारत ने तीन दिसंबर 1971 को की थी और 16 दिसंबर 1971 को युद्ध फतह कर लिया। किंतु संघर्ष पहले ही शुरू हो चुका था। पूर्वी पाकिस्तान वर्तमान बंग्लादेश में स्थित शमशेर नगर तथा उसके हवाई अड्डे को चार कुमाऊं रेजीमेंट ने 30 नवंबर से दो दिसंबर के बीच भीषण संघर्ष के जरिए कब्जे में ले लिया था। इस संघर्ष में चार कुमाऊं के 20 जवान शहीद हुए तथा 48 गंभीर रूप से घायल हुए। जिनमें तत्कालीन कंपनी कमांडर ले. जसबीर सिंह भी थे। उन्होंने ब्रिगेडियर के रैंक पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। ब्रि. जसबीर अब व्हील चेयर पर रहते हैं।
मूल रूप से रामनगर निवासी ब्रिगेडियर जसबीर सिंह ने चार कुमाऊं में 1971 को कमीशन प्राप्त किया। 1971 के युद्ध में शारीरिक रूप से अक्षम हो जाने के बावजूद वह अब लेखन और चित्रकला में मशगूल हैं। वह अधिकतर समय यहां रियूनी गांव में अपने नए मकान में रहते हैं। उन्होंने बताया कि 1971 में वह 2 लेफ्टिनेंट के रूप में नागालैंड में चार कुमाऊं रेजीमेंट की एक कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे। 28 नवंबर को डिवीजन के जीओसी मेजर जनरल केवी कृष्णन ने यूनिट को बंग्लादेश की सीमा पर जाने का हुक्म दिया। वहां मुक्तिवाहिनी की मदद से शमशेर नगर पर कब्जा करने की योजना थी। शमशेर नगर पूर्वी पाकिस्तान के रेल और सड़क संपर्क का केंद्र था और पाकिस्तान की इंटरनेशनल एअर लाइंस का एअर पोर्र्ट भी वहीं पर था। विभिन्न कंपनियों का नेतृत्व मेजर वाईएस बिष्ट, डीके धवन, कमांडो टीमों का नेतृत्व हवलदार केशर सिंह, हवलदार मोहन सिंह आदि कर रहे थे। 29 की शाम सात बजे भारतीय कंपनियां सीमा सुरक्षा बल की चौकी से निकलकर चुपचाप दुश्मन के इलाके में घुस गई। ले. एमपीएस खाती और ले. जसबीर सहित तमाम लोगों के नेतृत्व में नौ बजे हाइवे की घेराबंदी कर दी गई। इसके बाद मुंशी बाजार क्षेत्र से शमशेर नगर की तरफ को पाक सेना के वाहनों की लंबी कानवाई आती दिखाई पड़ी। कानवाई की पहली लॉरी पर दो इंच मोर्टार्र बमों से लैस जवान थे। इस वाहन को उड़ा दिया गया। इसके बाद अन्य वाहनों से भी पाकिस्तान के जवान बाहर कूदने लगे। वहां जवानों की लाशें बिछ गई। चार कुमाऊं के सिपाही विश्राम सिंह सहित कई जवानों ने गंभीर घायलावस्था के बावजूद मोर्चा बांधे रखा। पाकिस्तानियों के पास मशीन गनें, मोर्टार्र तथा रायफलें थी, जबकि भारतीय सेनाएं भी मोर्टारों तथा आधुनिक हथियारों से लड़ रही थी। ले. जसबीर सिंह की दोनों टांगों में कई गोलियां घुस गई, सिर के पिछले हिस्से तथा कंधे पर बमों के छिलकों से तीखे प्रहार हुए। उन्होंने चिकित्सा सहयोगी सैनिकों से प्राथमिक उपचार कराया। 30 नवंबर से लेकर दो दिसंबर तक संघर्ष चलता रहा। चार कुमाऊं की रोड ब्लाक कार्रवाई से पाक सेनाओं का आपसी समन्वय भंग हो गया और सभी कंपनियों ने जबरदस्त घेराबंदी करके इस बीच शमशेर नगर, पाक एअरलाइंस के दफ्तर, हवाई अड्डे, विद्यालय क्षेत्र, डांगबग्ला कब्जा कर लिया।

साभार : अमर उजाला

 

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